परमेश्वर की सन्तुष्ट सन्तान - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
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परमेश्वर की सन्तुष्ट सन्तान

भजन 131 में राजा दाऊद ने इस बात का अंगीकार किया कि उसने उन बातों के विषय में चिन्ता नहीं की “जो बातें बड़ी और मेरे लिए कठिन हैं” (1 पद)। किसी राजा के लिए ऐसा अंगीकार विचित्र प्रतीत हो सकता है; आखिरकार, क्या यही उसकी बुलाहट नहीं थी? सभी लोगों में से, क्या एक राजा को बड़ी बातों के विषय में जागरूक नहीं होना चाहिए, क्या उसे उनका विश्लेषण नहीं करना चाहिए और फिर अपने राष्ट्र के लिए एक बुद्धिमानीपूर्ण कार्य योजना नहीं बनानी चाहिए? यदि आप भजन 131 को आगे पढ़े, तो आपके मन में एक और प्रश्न हो सकता है: दाऊद क्यों अंगीकार करता है, “मैने अपने मन को शान्त और चुप कर लिया है, जैसे दूध छुड़ाया हुआ बच्चा अपनी माँ के साथ रहता है” (2 पद)?
दाऊद की साक्षी को समझने के लिए हमें यह समझना चाहिए कि दाऊद के मन में इससे पहले कभी न कभी अनिश्चिता कि स्थिति बनी रही होगी। यदि ऐसा नहीं होता, तो वह शान्त किये जाने और चुप होने की प्रक्रिया से होकर नहीं गया होता। एक बात जो बहुत लोगों को व्याकुल करती है, वह है उन बातों को समझने का प्रयास करना जो हमसे परे है। हम वर्तमान घटनाओं का विश्लेशण करने, त्रासदियों को समझाने या उलझे हुए प्रश्नो को सुलझाने के प्रयास में व्याकुल हो सकते है। जब हम इसमें बहुत दूर चले जाते है, तो हम अपने अहंकार को प्रकट करतें हैं। हम उन बातों को समझने का प्रयास कर रहे थे जिन्हें केवल परमेश्वर जानता है। हमें सर्वज्ञानी होने के लिए कभी नहीं सृजा गया था। हम संसार कि समस्याओं का समाधान करने के योग्य नहीं है। केवल ख्रीष्ट इसे कर सकता है।

अत्यधिक विश्लेषण करने को छोड़ देने की दाऊद की प्राचीन साक्षी अभी भी हमारे वर्तमान समय में प्रासंगिक है। हम सूचना के युग में रहते हैं जहाँ पर हम विश्व-भर की “बड़ी बातों” से भरे हुए हैं। अधिकतर लोगों के पास सामाजिक संचार (social media) माध्यम के मंचो पर पहुँच है जहाँ पर हमसे नवीनतम घटनाओ के विषय में कुछ न कुछ कहने की प्रत्याशा की जाती है। जबकि जागरूकता अच्छी बात हो सकती है, हमें संसार की समस्याओ को अपने कन्धो पर ढोने का प्रयास नहीं करना चाहिए। समाधान देना तो दूर, हम कभी भी सभी विषयों को समझने के योग्य नहीं होंगे। यदि हम सावधान नहीं रहें तो हम व्यक्तिगत परिक्षाओं के विषय में भी उन बातों को समझने का प्रयास कर सकते हैं जिन्हें केवल परमेश्वर जानता है। इससे उत्तम एक और मार्ग है, और प्रभु ने दाऊद को उत्प्रेरित किया कि वह इसकी साक्षी दे।

दाऊद जब अपनी तुलना एक दूध छुड़ाए हुए बच्चे से करता है तो यह एक सहायक चित्रण है। प्राचीन समयों में प्रायः बच्चों का वर्तमान के कई समाजों की तुलना में देर से अपनी माता से दूध छुड़ाया जाता था। इसका अर्थ है कि बच्चे एक शिशु से अधिक जागरूक होता था, और इसलिए दूध छुड़ाना एक चुनौतीपूर्ण समय होता था। फिर भी, ऐसे दिन आयेंगे जब बच्चे ठोस आहार खाना सीख जाएँगे और अपने अतीत की विफलता को छोड़ देंगे। यह दाऊद की साक्षी थी; जीवन भर के कई परिक्षाओं के पश्चात् और ईश्वरीय प्रावधान के विरुद्ध संघर्ष करने के पश्चात् उसने परमेश्वर के मार्गो को अपनाना सीख लिया था। अब वह एक दूध छुड़ाए हुए बच्चे के समान था जो बिना पोषण की लालसा किए अपनी माता की उपस्थिति में सन्तुष्ट था।

किन्तु दाऊद की साक्षी मात्र यह नहीं थी कि वह सब कुछ परमेश्वर पर छोड़ रहा था। अपने लोगों को बुलाते हुए उसने उन्हें यह शिक्षा दी: “हे इस्राएल, अब से लेकर सदा-सर्वदा यहोवा पर ही आशा लगाए रह” (3 पद)। जब हम प्रभु में आशा रखते हैं तो हमारे पास निश्चित ज्ञान होता है कि वह सब कुछ को जानता है और वह सब बातों पर सम्प्रभु है। आइए हम भरोसा करे कि वह सब कुछ अपने लोगों के भले के लिए कर रहा है।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

रॉबर्ट वैनडूडेवार्ड
रॉबर्ट वैनडूडेवार्ड
रेव्ह. रॉबर्ट वैनडूडेवार्ड पोवास्सन, ओन्टारिया में होप रिफॉर्मड् चर्च के पास्टर हैं।