चिन्ता का स्रोत - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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चिन्ता के प्रभाव
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चिन्ता का स्रोत

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का तीसरा अध्याय है: चिन्ता

इस बात को लगभग दो साल हो गए हैं जब किसी ने मेरे पास आकर कहा था, “मुझे लगता है कि आपको बहुत अधिक चिन्ता है और आप इस बारे में जानते भी नहीं हैं।” मैं मुस्कुराया और गर्व से अपने आप में सोचा: “यह किस बारे में बात कर रही है? मुझे चिन्ता नहीं है”। किसी ने कभी भी मुझ से ऐसी बात नहीं की थी। मैंने प्रार्थनापूर्वक उसकी बात पर विचार करने का निर्णय लिया। लगभग एक महिने के पश्चात्, हमारी कलीसिया के प्राचीनों ने मुझे एक आपातकालीन विश्राम काल प्रदान किया। वह दोनों ही मायनों में सही थी। मैं वास्तव में एक बड़ी मात्रा में चिन्ता का अनुभव कर रहा था, और मैं इस बात को जानता भी नहीं था।

मैंने यह पाया कि मेरी चिन्ता केवल मुझे ही प्रभावित नहीं कर रही थी। क्योंकि इसने मेरे दूसरों के साथ बातचीत करने को प्रभावित किया, इसने हमारे सहकर्मियों पर भिन्न-भिन्न स्तर पर नकारात्मक रूप से प्रभाव डाला। मैंने अत्याधिक समय सहकर्मियों से क्षमा माँगने में व्यतीत किया। हर कोई अनुग्रहकारी था। मैं इसे कभी नहीं भूलूँगा। जैसे जैसे मेरा विश्राम-काल समाप्त होने पर था, मैंने कभी यह प्रश्न नहीं किया कि क्या मुझे चिन्ता थी। इसके स्थान पर, मैंने बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न पूछना प्रारम्भ किया: “मेरी चिन्ता कहाँ से आ रही है?”

निश्चय ही, मैं उस प्रश्न को छोड़ देना चाहता था। अन्दर ही अन्दर, मैं जानता था कि यीशु मेरी चिन्ता का सर्वश्रेष्ठ समाधान था। मुझे विश्वास था कि वह उस चिन्ता का विनाश कर सकता है जो मेरा विनाश कर रही थी और मैं चाहता था कि उसका विनाश करने वाला गोला लहराना प्रारम्भ कर दे। परन्तु, किस पर लहराए? सब कुछ आज बहुत भिन्न है। मैं अभी भी कभी कभी चिन्ता से जूझता हूँ, परन्तु मैं अवगत रहता हूँ जब ऐसा होता है और मैंने सीख लिया है कि कैसे ख्रीष्ट में विश्वास के द्वारा आराम पाना है। चिन्ता को सम्बोधित करने की आशा करने वाले किसी व्यक्ति के लिए, स्रोत को समझना समीकरण का एक महत्वपूर्ण भाग है।

चिन्ता को परिभाषित करना कठिन है। इसमें परेशान होना, घबराहट, शंका, और भय के तत्व सम्मिलित हैं। कभी कभी बिना किसी समझने योग्य कारण के चिन्ता का अनुभव होता है। प्राय:, यह संकट, दुर्भाग्य, या हानि के पुर्वानुमान से जुड़ा हुआ होता है। हम बाइबल में चिन्ता को बहुत देखते हैं। शाऊल का पिता चिन्तित हो गया जब वह यह नहीं जानता था कि शाऊल कहाँ था ( 1 शमूएल 10:2)। भजनकार चित्रात्मक रूप से “परिश्रम की रोटी खाने” की बात करता है (भजन 127:2)। यशायाह के पास “घबराए हुओं” के लिए शब्द हैं (यशायाह 35:4)। दानिय्येल कहता है कि उसकी आत्मा भीतर ही भीतर व्याकुल होने लगी थी (दनिय्येल 7:15)। मार्था बहुत सी बातों के लिए “चिन्तित तथा व्याकुल” थी (लूका 10:41)। यहाँ तक कि प्रेरित पौलुस ने भी चिन्ता का अनुभव किया (2 कुरिन्थियों 11:28)। तो फिर, इस बात से हमें आश्चर्यचकित नहीं होना चाहिए, कि चार करोड़ अमरीकी नियमित रूप से चिन्ता से जूझते हैं। हर कोई कभी न कभी चिन्ता के किसी न किसी स्तर से संघर्ष करता है। यह अपरिहार्य है।

अन्तत:, चिन्ता का स्रोत मानव-जाति का पतन है। जब आदम और हव्वा ने वर्जित फल को खाया और संसार को पाप और कष्ट में डुबा दिया, तो तुरन्त बाद उनके द्वारा अनुभव की गयी भावना भय थी (उत्पत्ति 3:10)। और भय, निस्सन्देह, चिन्ता का एक तत्व है। एक बार जब परमेश्वर और मनुष्य के मध्य का पिछला सिद्ध सम्बन्ध क्षतिग्रस्त हो गया, तो आदम और हव्वा का सुरक्षा और शान्ति का भाव लुप्त हो गया। वे नहीं जानते थे कि उनके भविष्य में क्या होना है। वे नहीं जानते थे कि परमेश्वर उनके पाप के प्रत्युत्तर में क्या करने जा रहा है। उसने प्रतिज्ञा की गई थी कि वे मर जाएँगे यदि वे वर्जित फल खाएँगे (2:17)। सम्भवत: वे पूर्ण रूप से नहीं जानते थे कि उसका क्या अर्थ है। फिर भी, पहली बार, वे डरे हुए थे। वे चिन्तित थे। पतन चिन्ता का प्राथमिक स्रोत है।

 जिस रीति से जब आप तालाब में कोई पत्थर फेंकते हैं तो तरंगे होती हैं, उसी रीति से चिन्ता से सम्बन्धित विविध प्रकार की तरंगीय प्रभाव होते हैं जो कि पतन से प्रवाहित होते हैं। हम इन प्रभावों को चिन्ता के द्वितीयक स्रोत कह सकते हैं। पतित मनुष्य इन द्वितीयक प्रभावों से विभिन्न प्रकारों और भिन्न-भिन्न स्तर पर प्रभावित होते हैं। चिन्ता का एक द्वितीयक स्रोत मानव जीव रसायन पर पतन का प्रभाव है। लगभग 18 प्रतिशत अमरीकी अपने मस्तिष्क में रासायनिक असन्तुलन के कारण चिन्ता से संघर्ष करते हैं। उन्हें चिकित्सकीय रूप से निदान चिन्ता-विकार है। उपचार और दवाईयाँ प्राय: आवश्यक होती हैं।

दुख की बात है, उन मसीहीयों को जो ऐसी अवस्था में हैं, उन्हें प्राय: “अधिक प्रार्थना करने” या “बाइबल अधिक पढ़ने” के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। मैंने अपनी कलीसिया के ऐसे सदस्यों के साथ शोक किया है जिन्हें ऐसी  (नेकनीयत की) टिप्पिणियों के कारण द्वितीय श्रेणी के नागरिकों के समान आभास हुआ है। इसलिए, चिन्ता विकारों और अन्य चिकित्सकीय अवस्थाओं के मध्य समानता को पहचानना बहुत महत्वपूर्ण है। समस्या यह नहीं है कि व्यक्ति पर्याप्त नहीं कर रहा है। समस्या कभी-कभी उसके नियन्त्रण के बाहर होती है। यदि हम किसी व्हीलचेयर उपयोग करने वाले व्यक्ति को “अधिक प्रार्थना करने” को नहीं कहेंगे, तो हमें ऐसी बातें किसी चिन्ता विकार के व्यक्ति को भी नहीं कहनी चाहिए। ऐसे मूल्यवान लोगों को दया और चिकित्सीय हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है, तुच्छ बातों की नहीं।

अन्य द्वितीयक स्रोत जो चिन्ता में योगदान देते हैं उनमें व्यक्तित्व, जीवन के अनुभव, और तनावपूर्ण परिस्थितियाँ सम्मिलित हैं। आपके परमेश्वर-प्रदत्त व्यक्तित्व के कुछ पहलू हो सकते हैं जो आपको दूसरों की तुलना में चिन्ता करने के लिए अधिक प्रवृत्त बना सकते हैं। या सम्भवत: जब आप छोटे थे तब ऐसा कुछ आपके साथ हुआ हो जिसके कारण आपको चिन्ता हो। जब आप बच्चे थे यदि आपके माता-पिता में से किसी एक की नौकरी छूट गयी हो, तो यह आश्चर्य की बात नहीं होगी यदि जब कभी आपका स्वामी आपसे बात करना चाहता है आप चिन्तित हो जाते हों। चिन्ता का द्वितीयक स्रोत विविध और जटिल हैं।

निस्सन्देह, चिन्ता का एक सबसे शक्तिशाली द्वितीयक स्रोत पाप है। जब हम पाप करते हैं, हम दोष और लज्जा का अनुभव करते हैं। हम सम्भावित परिणामों के विषय में विचार करके चिन्तित हो जाते हैं। उस भय और घबराहट के विषय में विचार करें जो याकूब ने अनुभव किया जब उसने यह पाया कि एसाव, जिसके साथ उसने छल किया (दो बार), उसके पास आ रहा था (उत्पत्ति 32:7)। राजा दाऊद बात करता है अंगीकार न किए पाप द्वारा उत्पन्न गहरे आन्तरिक संघर्ष की (भजन 32:3)। याकूब हमसे कहता है कि “परस्पर अपने पापों को मान लो और एक दूसरे के लिए प्रार्थना करो, जिससे कि चंगाई प्राप्त हो” (याकूब 5:16)। निश्चित रूप से चंगाई का कुछ भाग पाप-सम्बन्धी चिन्ता से आराम पाना है। शुभ समाचार यह है कि हम अनुग्रह के परमेश्वर की सेवा करते हैं जो सर्वदा हमें क्षमा करने के लिए और हमें ख्रीष्ट में नया करने के लिए तत्पर रहता है।

एक अन्य चिन्ता का महत्वपूर्ण द्वितीयक स्रोत है निर्बल विश्वास। ध्यान दें जो यीशु मत्ती 6:25-34 में कहता है। वह हमें अपनी आधारभूत आवश्यकताओं (भोजन, वस्त्र)  की पूर्ति के लिए चिन्तित न होने का निर्देश देता है। ध्यान दें कि वह कैसे हमारे मूल्य की तुलना पक्षियों के मूल्य से करता है (पद 26)। यदि हम विश्वास नहीं करेंगे कि हम परमेश्वर के लिए मूल्यवान हैं, हम तब भी चिन्तित होंगे चाहे वह हमें सब प्रदान करे। यीशु यह भी कहता है कि चिन्तित रहना हमारी आयु को नहीं बढ़ा सकता है (पद 27)। यदि हम निश्चित नहीं हैं कि हमारे मरने पर क्या होगा, तो हम अपनी अपरिहार्य मृत्यु के बारे में चिन्तित होने के बोध से बचने के सक्षम नहीं होंगे। फिर यीशु ने वस्त्रों का उल्लेख किया है (पद 28)। स्पष्टतया, अपनी दिखावट के लिए चिन्तित होना कुछ नया नहीं है। अन्त में, यीशु इन तीनों प्रकार की चिन्ताओं को एक कारण से जोड़ता है: “हे अल्प-विश्वासियो” (पद 30)।

चिन्ता ग्रस्त किसी व्यक्ति को सम्भवतः अपने विश्वास को मात्र परमेश्वर की सम्प्रभुता, भलाई, और विश्वासयोग्यता में दृढ़ करने की आश्यकता हो सकती है। सम्भवतः उसे क्रूस द्वारा प्रकट परमेश्वर के लिए हमारे मूल्य पर विचार करने के लिए अधिक समय बिताने की आवश्यकता हो सकती है। यीशु सिखाता है कि दृढ़ विश्वास होने और कम चिन्ता (गैर-नैदानिक) होने के मध्य में स्पष्ट सम्बन्ध है। फिर भी, वह यह नहीं सिखाता है कि हमारे पास चिन्ता को स्थायी रूप से हटाने के लिए पर्याप्त विश्वास हो सकता है। हमें दृढ़ विश्वास को चिन्ता की अनुपस्थिति के साथ समीकृत करने से सावधान रहना चाहिए। प्रेरित पौलुस का सम्भवत: इतिहास में किसी अन्य मनुष्य से अधिक दृढ़ विश्वास था, फिर भी, जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया था, उसने चिन्ता का अनुभव किया। परन्तु हमें यह नहीं मान लेना चाहिए कि हम अपनी चिन्ता के बारे में कुछ नहीं कर सकते हैं। एक बार हम अपनी चिन्ता के द्वितीयक स्रोतों की पहचान कर लेते हैं, तो हमें स्वयं से और अन्य लोगों से पूछना चाहिए कि यदि दृढ़ विश्वास होता तो वह कैसा दिखता। मेरे साथ, मेरी चिन्ता व्यापक रूप से गर्व और असंचालनीय कार्यभार के एक जोखिम भरे मिश्रण से आ रही थी। मैं बहुत अधिक करने का प्रयास कर रहा था, मैं सहायता नहीं माँग रहा था,और जितना मैं उठा सकूँ उससे अधिक उत्तरदायित्वों के भार से मैं कुचला जा रहा था। ख्रीष्ट में अपने विश्वास को दृढ़ करने के लिए कम कार्य हाथ में लेना आवश्यक था।  

चिन्ता के प्राथमिक स्रोत को समझना और द्वितीयक स्रोतों की पहचान करना स्वतन्त्रता की ओर एक अत्यन्त महत्वपूर्ण कदम है। ऐसी बातों के प्रति जागरुकता दो प्रकार से हमारी सहायता करती है। प्रथम, यह हमें उन लोगों के साथ जो चिन्ता का अनुभव कर रहे हैं, भला, करुणामय, और धैर्यवान बनाने में सहायता करती है। यह जानना कि चिन्ता, कारणों का एक जटिल समूह है हमें सरल समाधान सुझाने से रोकता है। यह हमें उन लोगों की, जो चिन्ता में हैं उनके लिए अनजाने में अधिक चिन्ता या भय का कारण बनने के स्थान पर सहायता करने के सक्षम बनाता है। दूसरा, चिन्ता के प्राथमिक स्रोत को समझना और द्वितीयक स्रोतों की पहचान करना आशा के अभ्यास हैं।

परमेश्वर के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है (उत्पत्ति 18:14)। परमेश्वर के लिए सब कुछ सम्भव है (मत्ती 19:26)। और, जो हमें सामर्थ प्रदान करता है, उसके द्वारा हम सब कुछ कर सकते हैं (फिलिप्पियों 4:13)। जिस प्रकार से प्रभु ने अनुग्रहकारी और शक्तिशाली रूप से चिन्ता को सम्भालने और यहाँ तक कि उसे पराजित करने में सहायता की है बहुत सारे मसीही (मेरे सहित) इन सत्यों के विषय में दृढ़ निश्चयी हो गए हैं|  यदि आप चिन्ता से संघर्ष करते हैं, तो दो बाते सत्य हैं। आपको सहायता की आवश्यकता है, और आपकी सहायता यहोवा की ओर से आती है (भजन 121:2)। 

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
मैट रायमन
मैट रायमन
रेव. मैट रायमन मिनियापोलिस, मिनेसोटा में कलीसिया रोपक हैं। इससे पहले उन्होंने ओरलैण्डो, फ्लॉरिडा में यूनिवर्सिटी प्रेस्बिटेरियन चर्च के वरिष्ट पास्टर के रूप में सेवा की।