पवित्रशास्त्र
19 दिसम्बर 2024परमेश्वर को जानना
26 दिसम्बर 2024परमेश्वर का वचन
परिचय
बाइबल का वर्णन या पहचान करने के लिए बार-बार उपयोग किया जाने वाला शब्द है परमेश्वर का वचन, जो कम से कम पन्द्रह सौ वर्षों के अवधि में लिखी गई छियासठ पुस्तकों का संग्रह है, मानवीय रूप से कहें तो, प्रेरितों और नबियों द्वारा लिखी गई है, और ईश्वरीय रूप से कहें तो परमेश्वर के श्वास से निकली है। इसे परमेश्वर का वचन इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसका प्राथमिक लेखक परमेश्वर है और भविष्यवक्ता और प्रेरित इसके द्वितीयक लेखक हैं। बाइबल में सब कुछ ठीक वैसा ही है जैसा परमेश्वर इसे कहना चाहता था, और परमेश्वर के वचन में वही अर्थ है जो परमेश्वर ने निर्धारित किया है। ऐतिहासिक रूप से, प्रोटेस्टेंट ने पवित्रशास्त्र के चार प्रमुख विशेषताओं को पहचाना है: अधिकार, स्पष्टता, आवश्यकता और पर्याप्तता।
व्याख्या
बाइबल स्वयं को परमेश्वर के वचन के रूप में सन्दर्भित करती है (1 थिस्सलुनीकियों 2:13)। पवित्रशास्त्र के कई अलग-अलग गुण इस पदनाम की पुष्टि करते हैं, जो हमें भरोसा देता है कि यह दावा सत्य है। वेस्टमिंस्टर विश्वास-अंगीकार वचन 1.5 इनमें से कई गुणों को सूचीबद्ध करता है, जिसमें पवित्रशास्त्र की शैलीगत सुन्दरता और गरिमा, विभिन्न लेखकों और विविध दृष्टिकोणों के बाद भी बाइबल की शिक्षा की एकता, उद्धार का एकमात्र मार्ग का बाइबलिय प्रस्तुतीकरण, और पापियों को बचाने और पवित्र करने के लिए बाइबिल के धर्मसिद्धान्तों का सामर्थ सम्मिलित है। फिर भी, जबकि ये विशेषताएँ बाइबल के दावों की पुष्टि करती हैं, केवल पवित्र आत्मा ही हमें बाइबल की साक्षी को स्वीकार करने के लिए विश्वास दिला सकता है कि यह वास्तव में परमेश्वर का वचन है। आखिरकार, केवल आत्मा ही परमेश्वर की बातों को प्रकट कर सकता है (1 कुरिन्थियों 2:9-10)।
क्योंकि बाइबल ही परमेश्वर का वचन है, यह विश्वास और जीवन के सभी बातों में अंतिम अधिकार है। जैसा कि यीशु सिखाता है, अधिकार स्वयं पवित्रशास्त्र के शब्दों में विद्यमान है। वह हमें बताता है कि पवित्रशास्त्र का खण्डन नहीं किया जा सकता (यूहन्ना 10:35)। पवित्रशास्त्र का अधिकार परमेश्वर के अन्तर्निहित अधिकार से प्राप्त होता है, जिसने पवित्रशास्त्र को अपने श्वास से दिया है। यीशु स्वयं परमेश्वर है (यूहन्ना 1:1), जिसका अर्थ है कि सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र उसकी आधिकारिक वाणी है जो पिता और पवित्र आत्मा के आधिकारिक वाणी से कुछ भी कम नहीं है। यीशु दावा करते है कि उसकी भेड़ें उसकी वाणी सुनती हैं (यूहन्ना 10:27)। वे उसकी वाणी पर ध्यान देती हैं, क्योंकि वे उसमें निहित अधिकार को पहचानती हैं।
उत्प्रेरणा परमेश्वर के वचन के विषय में सिद्धान्त है जो वर्णन करता है कि परमेश्वर का वचन हमारे पास कैसे पहुँचा। शाब्दिक रूप से, पवित्रशास्त्र “परमेश्वर-श्वासित” है (यूनानी भाषा में, थियोपनेस्टोस; 2 तीमुथियुस 3:16)। परमेश्वर ने अपने पवित्र आत्मा के द्वारा नबियों और प्रेरितों में परमेश्वर का वचन को श्वासित किया। जिस प्रकार हम अपने शब्दों को बोलते समय श्वास छोड़ते हैं, उसी प्रकार परमेश्वर ने पवित्रशास्त्र को प्रकट करते समय अपने वचनों को श्वास के रूप में छोड़ा। यहाँ यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि पवित्र आत्मा ने मानव लेखकों के व्यक्तित्व और चेतना को अनदेखा नहीं किया, परन्तु उन्होंने दोनों के माध्यम से कार्य किया और इस प्रकार से प्रक्रिया का मार्गदर्शन किया कि बाइबल एक ही समय में परमेश्वर का वचन और उसके मानव लेखकों का वचन दोनों है।
बाइबल अचूक और त्रुटिहीन दोनों है। पहले शब्द का अर्थ है “त्रुटि करने में असमर्थ” और वास्तव में यह दोनों में अधिक दृढ़ शब्द है, क्योंकि इसमें त्रुटिहीनता का विचार भी सम्मिलित है, फिर भी कई उदारवादी विद्वान त्रुटिहीनता को अस्वीकार करते हुए अचूकता को स्वीकार करते हैं। तो फिर, बाइबल की अचूकता का अर्थ यह है कि परमेश्वर का अधिकार और पवित्रशास्त्र-लेखन की प्रक्रिया—नबियों और प्रेरितों द्वारा पविशास्त्र का लेखन—के देख-रेख का परिणाम एक ऐसी पुस्तक है जो त्रुटि करने में असमर्थ है। पवित्रशास्त्र की त्रुटिहीनता का अर्थ है कि वास्तव में पवित्रशास्त्र में कोई त्रुटि नहीं है। जबकि बाइबल स्वयं इन शब्दों का उपयोग अपनी सच्चाई का वर्णन करने के लिए नहीं करती है, परन्तु हम उचित और आवश्यक निष्कर्ष से इन दो विचारों तक पहुँच सकते हैं। क्योंकि परमेश्वर ने पवित्रशास्त्र को इस आकार में उत्प्रेरित किया है कि परमेश्वर का अधिकार पवित्रशास्त्र में निहित हो गया है, और क्योंकि हम जानते हैं कि परमेश्वर कभी झूठ नहीं बोलता, तो कोई भी त्रुटि उसमें उपस्थित नहीं हो सकती है। धर्मसुधारवादी ईश्वरविज्ञानियों ने भी सदैव केवल मूल हस्तलिपियों के लिए ही इस स्थिति का दावा करने में सावधान रहे हैं। प्रतियाँ ईश्वरीय उत्प्रेरणा से नहीं बनाई गई थीं, और व्यक्तिगत हस्तलिपियों में व्यक्तिगत प्रतिलिपिकार की त्रुटियाँ उपस्थित हो सकती हैं। परन्तु, हस्तलिपियों की तुलना करके, हम यह पता लगा सकते हैं कि वह विशेष हस्तलिपि लेखक द्वारा लिखे गए मूल स्थल से कहाँ अलग है। इनमें से कोई भी अन्तर विश्वास के किसी भी सिद्धान्त या पवित्रशास्त्र के अर्थ को प्रभावित नहीं करता है। दूसरे शब्दों में कहें तो, हमारे पास नबियों और प्रेरितों के वास्तविक शब्द हैं, भले ही हमारे पास वे वास्तविक पृष्ठ नहीं हैं जिन पर उन्होंने स्वयं लिखा था। स्थल को समय के साथ परमेश्वर द्वारा बड़ी संख्या में सटीक प्रतिलिपियों के माध्यम से संरक्षित किया गया है।
प्रोटेस्टेंट ईश्वरविज्ञानियों ने सामान्यतः पवित्रशास्त्र की चार विशेषताओं (या गुणों) को समझाने के लिए विभिन्न शब्दों का उपयोग किया है—अधिकार, स्पष्टता, आवश्यकता और पर्याप्तता। ये चार विशेषताएँ हमें पवित्रशास्त्र की आंतरिक शिक्षा को उसकी प्रकृति और उपयोगिता के विषय में समझने में सक्षम बनाती हैं। यदि हम इनमें से किसी भी विशेषता को निर्बल करते हैं, तो हम स्वयं पवित्रशास्त्र के सार को निर्बल कर देते हैं।
पवित्रशास्त्र के अधिकार के सम्बन्ध में, हम मानते हैं कि परमेश्वर ने पुराने और नए नियम के प्रत्येक भाग में अधिकारपूर्वक बात की है। परमेश्वर का वचन परमेश्वर का प्रकाशन है जो पवित्र आत्मा की उत्प्रेरणा से है, इसलिए, यह ईश्वरीय अधिकार के रूप में इसके ताने-बाने में बुना हुआ है। बाइबल इस संसार में जीवन और आराधना के प्रत्येक क्षेत्र के लिए आधिकारिक है। परमेश्वर चाहता है कि उसके लोग उसके वचन को उनके छुटकारे के आधिकारिक प्रकाशन के साथ-साथ उनके कार्यों के लिए आधिकारिक मार्गदर्शक के रूप में प्राप्त करें। पवित्रशास्त्र ही एकमात्र उत्कृष्ट और अचूक अधिकार है जिसके द्वारा हम जान सकते हैं कि हमारे जीवन के लिए परमेश्वर की इच्छा क्या है।
जब प्रोटेस्टेंट ईश्वरविज्ञानी दावा करते हैं कि बाइबल स्पष्ट है, तो उनका तात्पर्य एक बहुत ही विशिष्ट बात से होता है— अर्थात्, बाइबल उद्धार के लिए आवश्यक बातों और परमेश्वर को प्रसन्न करने वाले जीवन के लिए आवश्यक बातों के विषय में स्पष्ट है। उनका अर्थ यह नहीं है कि बाइबल का प्रत्येक खण्ड समान रूप से स्पष्ट है। इसके अलावा, उनका अर्थ यह नहीं है कि वचन की सेवकाई अनावश्यक है। पवित्रशास्त्र की स्पष्टता यह विचार है कि उद्धार के लिए क्या आवश्यक है उसे समझने के लिए पवित्रशास्त्र से अलग किसी विशेष प्रकाशन की आवश्यकता नहीं है, और न ही ऐसी समझ के लिए बाइबल की व्याख्या में उच्च श्रेणी की शिक्षा की आवश्यकता होती है। पवित्रशास्त्र का कोई भी पाठक या सुनने वाला मूल सुसमाचार को समझ सकता है और यह भी समझ सकता है कि परमेश्वर को प्रसन्न करने के लिए उसे क्या करना है। पवित्रशास्त्र की स्पष्टता के धर्मसिद्धान्त को पवित्रशास्त्र की सुस्पष्टता के रूप में भी जाना जाता है।
पवित्रशास्त्र की पूर्णता हमें सिखाती है कि बाइबल में ठीक वे सभी धर्मसिद्धान्त और चेतावनियाँ हैं जिनकी हमें आवश्यकता है। इसमें उन सच्चाइयों का कोई अभाव नहीं है जो प्रभु चाहते हैं कि उनके लोगों को उनकी भलाई और उसकी महिमा के लिए मिले। पूर्णता पवित्रशास्त्र की पर्याप्तता का परिणाम है। यदि हमें परमेश्वर की इच्छा देने के लिए किसी अन्य स्रोत की आवश्यकता नहीं है, तो पवित्रशास्त्र को हमें वह सबकुछ सिखाना चाहिए जो हमें उसे प्रसन्न करने लिए इस जीवन में परमेश्वर को और उसकी इच्छा के बारे में जानने के लिए आवश्यक है। पूर्णता पवित्रशास्त्र की आवश्यकता का परिणाम है, जो कहता है कि हमें परमेश्वर, उद्धार के मार्ग और हमारे लिए परमेश्वर की व्यवस्था को जानने के लिए बाइबल की आवश्यकता है। पवित्रशास्त्र के अतिरिक्त हम परमेश्वर के बारे में सच्चाइयों और यहाँ तक कि उसके नैतिक व्यवस्था के मूल बातें को सृष्टि से भी जान सकते हैं (रोमियों 1-2); फिर भी, स्वभाव से ही, सभी मनुष्य इन सत्यों को अधर्म से तोड़ते और दबाते रखते हैं। साथ ही, जबकि सृष्टि हमें केवल परमेश्वर के अनन्त अस्तित्व और सामर्थ के बारे में बताती है, परन्तु हमें यह बताने में अपर्याप्त है कि मसीह में विश्वास के माध्यम से उसके साथ कैसे मेल-मिलाप किया जाए। केवल पवित्रशास्त्र ही हमें उद्धार पाने के लिए बुद्धि दे सकता है (2 तीमुथियुस 3:15)।
अन्ततः, परमेश्वर का वचन हमारे उद्धार के लिए पर्याप्त है। हमें उद्धार के मार्ग और अपने जीवन में परमेश्वर की इच्छा को जानने के लिए किसी अन्य पुस्तक या व्यक्तिगत प्रकाशन की आवश्यकता नहीं है। पवित्रशास्त्र की पर्याप्तता के धर्मसिद्धान्त का अर्थ ईश्वरविज्ञानिय पुस्तकों या कलीसिया के इतिहास के अध्ययन के लाभ को कम करना नहीं है। परन्तु, यह केवल इस बात की पुष्टि करता है कि किसी व्यक्ति को परमेश्वर के वचन में दिए गए उद्धार को प्राप्त करने के लिए ईश्वरविज्ञान में उच्च श्रेणी की शिक्षा की आवश्यकता नहीं है। परमेश्वर ने बाइबल में वह सब कुछ प्रकट किया है जो एक विश्वासी को जीवन और भक्ति के लिए जानने की आवश्यकता है। बाइबल पवित्रशास्त्र में परमेश्वर के प्रकाशन को घटाने या बढ़ाने का प्रयास करने वाले किसी भी व्यक्ति के विरुद्ध चेतावनी देती है (प्रकाशितवाक्य 22:18-19)।
उद्धरण
कलीसिया की गवाही से हम पवित्र पवित्रशास्त्र के प्रति उच्च और आदर-पूर्वक सम्मान के प्रति चलित और प्रेरित हो सकते हैं। और इस विषय की स्वर्गीयता, धर्मसिद्धान्त की प्रभावकारिता, शैली की भव्यता, सभी भागों की सहमति, समग्र उद्देश्य (जो कि परमेश्वर को सारी महिमा देना है), वह पूर्ण खोज जो वह करती है मनुष्य के उद्धार का एकमात्र मार्ग है, कई अन्य अतुलनीय उत्कृष्टताएं, और उसकी सम्पूर्ण सिद्धता, ऐसे तर्क हैं जिनके द्वारा यह प्रचुर मात्रा में स्वयं को परमेश्वर का वचन होने का प्रमाण देता है: फिर भी, इसके अचूक सत्य और ईश्वरीय अधिकार के विषय में हमारा पूरा अनुनय और आश्वासन, यह पवित्र आत्मा के आंतरिक कार्य से है जो हमारे हृदयों में वचन के द्वारा और उसके द्वारा गवाही देता है।
Westminster Divines
Westminster Confession of Faith 1.5
जॉन केल्विन को उनके इस कथन के लिए जाना जाता है कि परमेश्वर हमसे ‘शिशु भाषा’ में बात करता है, हमें हमारे स्तर पर बातें समझाता है जिससे कि हम उसे जानेंगे और प्रेम करेंगे। परमेश्वर ने हमें सब कुछ नहीं बताया है, परन्तु उसने हमें जो भी बताया है वह सत्य है, और हमारी भाषा का उपयोग हम तक सत्य बताने के लिए किया जा सकता है। मनुष्यों ने बाइबल लिखी, परन्तु वे परमेश्वर से इस प्रकार प्रेरित थे कि उनके शब्द परमेश्वर के वचन हैं। इस प्रकार, पवित्रशास्त्र का पालन करना परमेश्वर का पालन करना है।
R.C. Sproul
“The Word of God in the Words of Men”
यदि हम बाइबल पर विश्वास करते हैं, तो हम यीशु पर भी विश्वास करेंगे। परन्तु यह भी सत्य है कि यदि हम यीशु में विश्वास करते हैं तो हम बाइबल पर भी विश्वास करेंगे।
Michael Kruger
“Is the Bible the Word of God?”
कई बार लोग दावा करेंगे कि परमेश्वर ने उन्हें कुछ ऐसा करने का आदेश दिया है जो बाइबल का उल्लंघन करता है। परन्तु जैसा कि हमने देखा है, यदि हम परमेश्वर के वचन की अवज्ञा करते हैं, तो हम स्वयं परमेश्वर की भी अवज्ञा करते हैं यहाँ तक कि भले ही हमें लगे कि हम उसकी वाणी सुन रहे हैं। जब आपको लगे कि प्रभु आपको निर्देशित कर रहा हैं, तो सुनिश्चित करें कि जो दिशा आप सुन रहे हैं वह पवित्रशास्त्र का उल्लंघन नहीं करती है।
R.C. Sproul
पवित्रशास्त्र की सभी बातें अपने आप में समान रूप से स्पष्ट नहीं हैं, न ही सभी के लिए समान रूप से स्पष्ट हैं: फिर भी वे बातें जो उद्धार के लिए जानना, विश्वास करना और अवलोकन करना आवश्यक है, बहुत स्पष्ट रूप से स्थापित की गई हैं, और पवित्रशास्त्र के किसी न किसी स्थान पर खोली गई हैं, कि न केवल सीखा हुआ, परन्तु अशिक्षित भी, सामान्य साधनों के समुचित उपयोग से, उनकी पर्याप्त समझ प्राप्त कर सकता है।
Westminster Divines
Westminster Confession of Faith 1.7
यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।