आज्ञापालन के लिए भरोसा - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
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आज्ञापालन के लिए भरोसा

परमेश्वर के स्वभाव में ऐसा कुछ नहीं है जिसके कारण मनुष्य उस पर सन्देह करे (व्यवस्थाविवरण 32ः3-4), परन्तु जब से हव्वा ने अदन की वाटिका में परमेश्वर की मनसा पर प्रश्न किया, लोगों ने परमेश्वर के वचन और उसकी मनसाओं पर सन्देह किया है। अविश्वास यह मानता है या सन्देह करता है कि परमेश्वर में अधर्म या फिर अक्षमता है और इसे परमेश्वर के प्रावधान पर कुड़कुड़ाने के द्वारा, प्रतिज्ञाओं को पूरी करने में परमेश्वर की “सहायता” करने के द्वारा, भरोसा करने से पहले प्रमाण चाहने के द्वारा, या परमेश्वर से एक स्तर तक स्वतन्त्रता का दावा करने के द्वारा (उत्पत्ति 16:1–6; 18:10–14; मत्ती 16:1, 4) व्यक्त किया जा सकता है। सिद्ध परमेश्वर पर हमारा सन्देह हमारी असिद्धता और उसके विषय में हमारे त्रुटिपूर्ण ज्ञान को प्रकट करता है।

हम किसी व्यक्ति पर तब तक भरोसा नहीं कर सकते जब तक कि हम उसके चरित्र के विषय में निश्चित न हों जाएं। सन्देह के प्रति हमारे झुकाव को जानते हुए, परमेश्नर अनुग्रह में होकर हमें अपनी विश्वासयोग्यता का आश्वासन देता है। उसने अपनी प्रतिज्ञाओं का समर्थन करने के लिए, जिसकी आवश्यकता नहीं होनी चाहिए, चिन्ह भी दिए (न्यायियों 6:36-40; मरकुस 2:8-12; यूहन्ना 10:38; 20:30)। वह जो झूठ नहीं बोल सकता, उसने अपने अपरिवर्तनीय चरित्र पर हमारे विश्वास को दृढ़ करने के लिए शपथ खाई (इब्रानियों 6:13-19)। अपने पुत्र को देने के द्वारा उसने अपने न्याय, प्रेम और विश्वासयोग्यता के स्वभाव को सर्वश्रेष्ठ रीति से प्रदर्शित किया (रोमियों 5:6-10; 8:31-32)।

हमें अपने विश्वास पर नहीं परन्तु परमेश्वर पर ध्यान देना चाहिए। अब्राहम के विश्वास का नायक परमेश्वर है, न कि अब्राहम। जब उसे इसहाक को बलिदान करने को कहा गया, तो अब्राहम ने तर्क दिया क्योंकि परमेश्वर सिद्ध है, उसकी प्रतिज्ञा अवश्य पूरी होनी चाहिए, अतः यदि इसहाक का मरना निश्चित है, तो परमेश्वर अवश्य ही उसे फिर से जीवित करेगा ( इब्रानियों 11:17-19)। दाऊद का विश्वास लगभग नष्ट हो गया था जब तक कि उसने परमेश्वर के न्याय की सराहना नहीं की, क्योंकि दुष्ट समृद्ध हो गए थे (भजन 73)। परमेश्वर को जानना ही हमारे आज्ञाकारी विश्वास को दृढ़ करता है।

परमेश्वर को जाने और उस पर भरोसा किए बिना, हम उसको और अपने पड़ोसियों को प्रेम करने के द्वारा पूरी रीति से उसकी आज्ञा का पालन नहीं सकते (1 यूहन्ना 4:7)। कोई व्यक्ति भय के कारण आज्ञा पालन तो कर सकता है, परन्तु ऐसी आज्ञाकारिता पूर्ण ज्ञान से नहीं आती क्योंकि सच्ची आज्ञाकारिता में उस परमेश्वर के घनिष्ठ ज्ञान का सम्मिलित होना अनिवार्य है जिस पर भरोसा आधारित है (यूहन्ना 15:12-15)। ख्रीष्ट हमारे लिए मरने के द्वारा पिता से प्रेम कर सका और उसकी आज्ञा का पालन सका क्योंकि उसनेअपने जीवन के लिए पिता पर भरोसा रखा था। बिना विश्वास और प्रेम के अपना जीवन बलिदान करना सच्ची आज्ञाकारिता नहीं उत्पन्न कर सकता है (1 कुरिन्थियों 13:3) क्योंकि सच्ची आज्ञाकारिता के में विश्वास और प्रेम सम्मिलत हैं (यूहन्ना 14:15, 21, 23-24; रोमियों 1:5; 1 यूहन्ना 3:23)। इसलिए, बिना परमेश्वर के उचित ज्ञान के, हमारा भरोसा, प्रेम और हमारी आज्ञाकारिता कम पड़ जाएगी (मत्ती 26:35, 74)।

बचे हुए पाप के कारण जो परमेश्वर के विषय में हमारे ज्ञान को धुँधला करता है और प्रायः विकृत करता है, हम परमेश्वर पर सन्देह करते हैं, और यह विश्वास करने की त्रुटि करते हैं कि उसमें कुछ ऐसी बात है जो हमारे अविश्वास को सही ठहराती है। नई सृष्टि में जब हम सिद्धता से परमेश्वर को जानेंगे (1 कुरिन्थियों 13:12), यह असम्भव होगा कि हम सन्देह करके या प्रेम न करके परमेश्वर के प्रति अनाज्ञाकारी होंगे क्योंकि तब हमारी यह निश्चयता कि वह पूर्णतया विश्वासयोग्य है अब सन्देह के साथ मिश्रित न होगी। विश्वास, प्रेम, और आज्ञाकारिता में हमारी अन्तिम सिद्धता, अटूट रीति से परमेश्वर को सिद्धता से जानने से जुड़ी हुई है। परमेश्वर के साथ विश्वास से ओत-प्रोत ऐसा सम्बन्ध जो उसको घनिष्ठता से जानने पर आधारित है, आज्ञाकारिता के लिए अनुकूल सन्दर्भ है।

क्योंकि हमें परमेश्वर का ज्ञान देने के लिए ख्रीष्ट ने हमारे स्थान पर भरोसा किया और आज्ञा मानी, आइए हम प्रार्थना करें कि हम उसको जानने और उस पर भरोसा करने में बढ़े, जो हमें सक्षम बनाता है कि हम प्रेमपूर्ण आज्ञाकारिता में बढे़।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

एरिक कामोगा
एरिक कामोगा
एरिक कामोगा कम्पाला, युगाण्डा में अफ्रीका रिफोर्मेशन थियोलॉजिकल सेमिनरी में प्रध्यापक और वेस्टमिन्स्टर थियोलॉजिकल सेमिनरी फिलाडेल्फिया में पी.एचडी के विद्यार्थी हैं।