परमेश्वर से पहले क्या आया? - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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परमेश्वर से पहले क्या आया?

लोग तर्क कर सकते हैं कि यदि प्रत्येक प्रभाव (effect) का एक कारण (cause) होता है, तो परमेश्वर का भी एक कारण होना चाहिए। इसलिए वे पूछ सकते हैं, परमेश्वर से पहले क्या था? परन्तु शाश्वत परमेश्वर तो कोई प्रभाव नहीं है। कभी भी ऐसा समय नहीं था जब परमेश्वर नहीं था। परमेश्वर का अस्तित्व स्वयं से बाहर किसी वस्तु से व्युत्पन्न (derived) नहीं है, न ही वह स्वयं से बाहर किसी वस्तु पर निर्भर है। यही बात सबसे अधिक परमेश्वर को सृजे गए प्राणियों से भिन्न करती है, क्योंकि सृजा गया प्राणी, परिभाषा से ही निर्भर,आश्रित, और व्युत्पन्न है और स्वयं उसमें अस्तित्व में होने की क्षमता नहीं है। परमेश्वर को कुछ नहीं चाहिए; वह अनादिकाल से अस्तित्व में है।

शाश्वत होना दूसरी दिशा में भी जाता है। भविष्य में ऐसा समय कभी नहीं आएगा जब परमेश्वर का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। वह अनन्तकाल के लिए स्व-अस्तित्वान (self-existent) बना रहेगा। यदि कुछ भी का अस्तित्व है, तो इसका अर्थ है कि सर्वदा से कुछ अस्तित्व में रहा है। यदि कभी भी पूर्णतः कुछ नहीं (absolutely nothing) था, तो यह असम्भव है कि अब कुछ भी है, क्योंकि कुछ नहीं से कुछ प्राप्त करना असम्भव है। इसके विपरीत, यदि कुछ है जो अब है, तो यह स्वयं ही प्रकट कर देता है कि सर्वदा से कुछ रहा है। और जो कुछ भी सर्वदा से है, वह स्वयं में अस्तित्व में है। वही है जिसके पास स्वयं में अस्तित्व की क्षमता है, अर्थात् जीवित परमेश्वर। इसलिए उसका शाश्वत होना एक और गुण है जिसके कारण हमारे प्राणों को भक्ति और स्तुतिगान में उमड़ना चाहिए: हम उस परमेश्वर के द्वारा सृजे गए हैं जिसके पास अनादिकाल से स्वयं में अस्तित्वान होने की क्षमता है। इस प्रकार के प्राणी की महानता के विषय में कल्पना करने का प्रयास तो करें!

सम्भवतः किसी भी अन्य बात से अधिक, परमेश्वर का शाश्वत होना उसे हमसे पृथक करता है। उसकी पवित्रता न केवल उसकी शुद्धता से सम्बन्धित है परन्तु उसकी भिन्नता (otherness) या उसकी पारलौकिकता (transcendence) से भी—कि वह हम से अलग है। हम सब मनुष्यों में एक सामान्य बात है कि हम सृजे गए प्राणी हैं, जो स्वभाव से ही पार्थिव (temporal) हैं। किसी भी व्यक्ति के जीवन के अन्त में, जब उसे गाड़ा जाता है, तो उसकी क़ब्र पर समाधि का पत्थर रखा जाता है जिस पर व्यक्ति का नाम और उसके जन्म और मरण की तिथि लिखी जाती है। हम पृथ्वी पर उन दो तिथियों के मध्य जीते हैं: जन्म और मरण। परमेश्वर के लिए ऐसी कोई तिथियाँ नहीं हैं। वह न केवल स्थान के सम्बन्ध में, परन्तु समय के सम्बन्ध में भी असीम है। कभी भी ऐसा समय नहीं था जब परमेश्वर नहीं था। वह अनादिकाल से अनन्तकाल तक है। परमेश्वर का शाश्वत होना अभिन्न रीति से उसके स्व-अस्तित्ववान होने से सम्बन्धित है, अर्थात् उसकी स्वयंभूति (aseity) से। फिर भी स्वयंभूति शब्द सामान्य मसीही की शब्दावली से लगभग अनुपस्थित है। स्वयंभूति का अर्थ है “अपने आप ही अस्तित्व में होना।”

व्हाय आय ऐम नॉट ए क्रिस्चियन (Why I Am Not a Christian मैं एक मसीही क्यों नहीं हूँ) पुस्तक में गणितज्ञ्य और दार्शनिक बर्ट्रेंड रसल (Bertrand Russell) ने अपने अविश्वास के लिए कारण बताए हैं। जब तक वे किशोर थे, रसल इस बात को मानते थे कि विश्व को समझाने के लिए किसी परमेश्वर का होना अनिवार्य था। फिर उसने जॉन स्टुअर्ट मिल (John Stuart Mill) के लेख पढ़े, जिसने परमेश्वर के अस्तित्व के लिए पारम्परिक विश्व-कारण-युक्ति (cosmological argument) का खण्डन किया, जिसके अनुसार, इस आधार पर कि अभी वस्तुएँ अस्तित्व में हैं, तर्क करता है कि एक प्रथम कारण (first cause) होना चाहिए। यह तर्क कार्य-कारण-सिद्धान्त (law of causality) पर आधारित है, जो कहता है कि प्रत्येक प्रभाव का एक पूर्वगामी कारण (antecedent cause) होना चाहिए। मिल ने दावा किया कि यदि सब कुछ का पूर्वगामी कारण होना अनिवार्य है, तो स्वयं परमेश्वर का भी कोई पूर्वगामी कारण होना चाहिए। परन्तु यदि परमेश्वर का कोई पूर्वगामी कारण है, जो वह सब से समान सृजा हुआ प्राणी ही है। जब रसल ने इस बात को अपनी किशोरावस्था के अन्त में पढ़ी, तो उसने निर्णय लिया कि परमेश्वर के अस्तित्व के लिए पारम्परिक तर्क में तर्कदोष है। रसल ने उसी दृष्टिकोण को अपनी मृत्यु तक माना, परन्तु वे इस बात को समझने में विफल थे कि उनका दृष्टिकोण कार्य-कारण-सिद्धान्त की एक त्रुटिपूर्ण परिभाषा पर निर्मित था।

कार्य-कारण-सिद्धान्त इस बात की शिक्षा देता है कि हर प्रभाव का एक कारण होना चाहिए, न कि हर वस्तु (everything) का एक कारण होना चाहिए। किसी भी प्रभाव को परिभाषा के आधार पर स्वयं से बाहर कारण की आवश्यकता होती है। परन्तु, हमें यह मानने की आवश्यकता नहीं है कि सब कुछ प्रभाव है—अर्थात् कि सब कुछ पार्थिव, सीमित, निर्भर, और व्युत्पन्न है। यह बात अतार्किक नहीं है कि एक स्व-अस्तित्ववान, अनन्त प्राणी है जिसके पास स्वयं में ही अस्तित्व में रहने की क्षमता है। वास्तव में तो, इस प्रकार के प्राणी का होना न केवल तार्किक रीति से सम्भव है, परन्तु (जैसा कि थॉमस अक्वाइनस ने प्रदर्शित किया था) यह तो तार्किक रीति से अनिवार्य है। किसी भी वस्तु के अस्तित्व में होने के लिए, कैसे भी करके कहीं न कहीं किसी न किसी वस्तु के पास अस्तित्व में होने की क्षमता होनी चाहिए, क्योंकि अस्तित्व में होने की क्षमता के बिना, यह सम्भव नहीं है कि कुछ भी हो। वह प्राणी जिसमें स्वयं ही में अस्तित्व में होने की क्षमता है, और जो अपने से बाहर किसी वस्तु पर निर्भर नहीं है, उसमें तो अनादिकाल से ही अस्तित्व में होने की क्षमता होनी चाहिए। यही बात परमेश्वर को हम से पृथक करती है। हम पुराने नियम के पहले वाक्य को स्मरण करते हैं: “आदि में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की” (उत्पत्ति 1:1)। सम्पूर्ण विश्व में परमेश्वर को छोड़कर सब कुछ सृजा गया है। सम्पूर्ण सृष्टि में हर वस्तु और प्राणी का आरम्भ किसी न किसी समय पर हुआ। केवल परमेश्वर ही अनादिकाल से अनन्तकाल तक है और केवल उसी के पास अनन्तता (eternality) का गुण है। परमेश्वर के स्वभाव का वह प्रतापी आयाम इस जगत में हमारे द्वारा कल्पना की गई प्रत्येक वस्तु से इतना अधिक परे है कि केवल इसी को ही हमारे प्राणों को उत्साहित करना चाहिए कि हम परमेश्वर की स्तुति करें और उसे सराहें।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

आर.सी. स्प्रोल
आर.सी. स्प्रोल
डॉ. आर.सी. स्प्रोल लिग्नेएर मिनिस्ट्रीज़ के संस्थापक, सैनफर्ड फ्लॉरिडा में सेंट ऐन्ड्रूज़ चैपल के पहले प्रचार और शिक्षण के सेवक, तथा रेफर्मेशन बाइबल कॉलेज के पहले कुलाधिपति थे। वह सौ से अधिक पुस्तकों के लेखक थे, जिसमें द होलीनेस ऑफ गॉड भी सम्मिलित है।