परमेश्वर का नाम क्या है? - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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परमेश्वर का नाम क्या है?

मूसा ने एक कुछ क्षणों के लिए पवित्र परमेश्वर से भेंट की, और वह जितना निकट गया, उतनी ही वह भयभीत हुआ। उसने परमेश्वर की वाणी को उसे एक विशेष कार्य के लिए भेजते हुए सुना, और उसका भय सन्देह में बदल गया: “मैं कौन हूँ जो इस कार्य को करने जाऊँ?” और प्रतिउत्तर में परमेश्वर ने कहा, “मैं तेरे साथ रहूँगा” (निर्गमन 3:12)। वास्तव में परमेश्वर ने मूसा के प्रश्न का उत्तर नहीं दिया कि मूसा कौन था; उसके कहने का तात्पर्य था, “इस बात की चिन्ता मत करो कि तुम कौन हो, क्योंकि मैं तेरे साथ रहूँगा।”

“‘इसका यह चिन्ह होगा कि जब तू उन लोगों को मिस्र से निकाल चुकेगा तो तुम इसी पर्वत पर परमेश्वर की आराधना करोगे।’ तब मूसा ने परमेश्वर से कहा, ‘देख, यदि मैं इस्राएलियों के पास जाकर उनसे कहूँ, “तुम्हारे पूर्वजों के परमेश्वर ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है,” और वे मुझ से पूछें, “उसका क्या नाम है?” तो मैं उनको क्या उत्तर दूँ?’” (निर्गमन 3:12-13)। अब हम मुख्य बात पर पहुँचते हैं। मूसा अब यह प्रश्न नहीं पूछ रहा है कि “मैं कौन हूँ”। अब मूसा ने पूछा कि “आप कौन हैं? आपका नाम क्या है?”

लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ के आरम्भिक दिनों में किसी ने मुझ से पूछा, “आप क्या करने का प्रयास कर रहे हैं? आपका मिशन क्या है? आपने जिस सेवकाई को स्थापित किया है, इसका उद्देश्य क्या है?” मैंने उसको बताया, “यह एक शिक्षा देने वाली सेवकाई है जो परमेश्वर के वचन में मसीहियों को स्थिर करने की सहायता करने के लिए है।” और उसने कहा, “आप ऐसा क्या सिखाना चाहते हैं, जिसे लोग पहले से नहीं जानते हैं?” इसका उत्तर तो सरल था। मैंने कहा, “मैं यह सिखाना चाहता हूँ कि परमेश्वर कौन है। रोमियों 1:18-25 हमें बताता है कि जगत के सभी लोग जानते हैं कि परमेश्वर है, क्योंकि परमेश्वर ने सृष्टि के द्वारा स्वयं को इतनी स्पष्ट रीति से प्रकट किया है कि मनुष्यों के पास कोई बहाना नहीं रह गया है, क्योंकि उसके सामान्य प्रकाशन ने उनके मस्तिष्कों को भेदा है। वे जानते हैं कि परमेश्वर है, परन्तु वे उससे घृणा करते हैं।” मैंने यह भी कहा, “इसका एक बड़ा कारण यह है कि वे जानते हैं कि वह है, परन्तु वे नहीं जानते है वह कौन है।” उस व्यक्ति ने कहा, “परन्तु आप क्या सोचते हैं कि मसीहियों के लिए वर्तमान समय में सबसे अधिक क्या जानना महत्वपूर्ण है?” मैंने कहा, “मसीहियों को जानने की आवश्यक्ता है कि परमेश्वर कौन है।”

मैं सोचता हूँ कि वर्तमान समय की सबसे बड़ी दुर्बलता यह है कि परमेश्वर के चरित्र को लगभग छिपा दिया गया है, यहाँ तक कि हमारी कलीसियाओं में भी। एक बार मनोविज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त एक स्त्री ने, जो किसी कलीसिया की सदस्य थी, मुझसे सम्पर्क किया। उसने बहुत क्रोधित होकर कहा, “मैं हर रविवार कलीसिया में जाती हूँ, और मुझे ऐसा लगता है कि प्रचारक हर सम्भव प्रयास कर रहा है कि परमेश्वर के चरित्र को हम से छिपाए। प्रचारक को डर है कि यदि वह वास्तव में पवित्रशास्त्र को खोलकर परमेश्वर के चरित्र की घोषणा उसी रीति से करे जैसे बाइबल में किया गया है तो लोग कलीसिया छोड़कर चले जाएँगे, क्योंकि वे पवित्र परमेश्वर की उपस्थिति में असहज हो जाएँगे।” मूसा वह पहला व्यक्ति नहीं था जिसने परमेश्वर की उपस्थिति से अपना मुँह छिपाया था। यह तो अदन की वाटिका में आरम्भ हुआ था, जब आदम और हव्वा लज्जा के कारण छिप गए थे।

अतः मूसा ने पूछा, “आप कौन हैं? आपका नाम क्या है—यदि आपका कोई नाम है भी?” परमेश्वर ने पहले ही स्वयं को “तेरे पिता का परमेश्वर, अब्राहम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर, और याकूब के परमेश्वर” के रूप में प्रकट कर दिया था (निर्गमन 3:6 देखें)। मूसा यह तो जानता था; परन्तु वह परमेश्वर के नाम को जानना चाहता था।

1963 में, टीवी के एक कार्यक्रम में, डेविड फ्रॉस्ट (David Frost) ने प्रसिद्ध सरगर्म नास्तिक मैडलिन मर्रे ओ’हेर (Madalyn Murray O’Hair) का साक्षात्कार किया। फ्रॉस्ट ने ओ’हेर के साथ परमेश्वर के अस्तित्व के विषय में वाद-विवाद किया। जब ओ’हेर और अधिक क्रुद्ध और अप्रसन्न हो रही थी, फ्रॉस्ट ने विवाद का समाधान करने के लिए एक उपाय निकाला, अर्थात् उसने वहाँ उपस्थित सभी लोगों से पूछा, “आप तीस लोगों में से कितने लोग [लगभग तीस लोग थे] किसी प्रकार के परमेश्वर, किसी प्रकार की महान् शक्ति, या अपने से महान् किसी अस्तित्व पर विश्वास करते हैं?” सब लोगों ने अपने हाथ उठाए। ओ’हेर ने कहा, “आप अशिक्षित जनता से और क्या अपेक्षा कर सकते हैं? ये लोग अपनी मानसिक बाल्यावस्था से अभी बड़े नहीं हुए हैं; वे अभी भी समाज और परमेश्वर की मिथ्या द्वारा प्रभावित हैं।” और उन्होंने वहाँ उपस्थित सभी लोगों का अपमान करना जारी रखा।

मैंने नहीं सोचा था कि वह ऐसा करेंगी। मैंने सोचा था कि वह श्रोतागण को देखकर बोलेंगी, “आप लोग किसी प्रकार की महान् शक्ति, या अपने से महान् किसी अस्तित्व पर विश्वास करते हैं। मुझे यह पूछने दीजिए: आप में से कितने लोग याहवे पर, अर्थात् बाइबल के परमेश्वर पर विश्वास करते हैं? उस परमेश्वर पर, जो माँग करता है कि आप उसके सामने अन्य ईश्वरों को नहीं रख सकते हैं? उस परमेश्वर पर, जो पुरुषों, स्त्रियों, और बच्चों को सर्वदा के लिए नरक भेज देता है, और उनको दोषी ठहराता है क्योंकि वे इस मिथक यीशु पर विश्वास नहीं करते हैं?” मैं सोचता हूँ कि तब लोगों की प्रतिक्रिया क्या रही होती यदि प्रश्न को इस रीति से अधिक स्पष्टता से पूछा जाता। हमारे समाज में यह बहुत समान्य बात है कि परमेश्वर को किसी प्रकार की महान् शक्ति, या अपने से महान् किसी अस्तित्व के रूप में वर्णित किया जाता है। परन्तु वह महान् शक्ति क्या है? गुरुत्वाकर्षण? बिजली? भूकम्प? एक धुंधली, नाम-रहित, चरित्र-रहित ऊर्जा के साथ समस्या है कि, पहले तो वह अव्यक्तिगत (impersonal) है, और दूसरा तथा अधिक महत्वपूर्ण रीति से, वह निर्नैतिक (amoral) है। इस प्रकार की अव्यक्तिगत और निर्नैतिक ऊर्जा की आराधना करने के लाभ भी हैं, और कुछ हानि भी। पापी के लिए लाभ यह है कि एक अव्यक्तिगत और निर्नैतिक ऊर्जा किसी से भी कोई भी नैतिक माँग नहीं करती है। गुरुत्वाकर्षण लोगों के व्यवहार का न्याय नहीं करता है; यदि कोई व्यक्ति किसी ऊँचे भवन की खिड़की से कूदता है, तो गुरुत्वाकर्षण इसके प्रति व्यक्तिगत न्याय नहीं करता है। गुरुत्वाकर्षण द्वारा किसी का विवेक भेदा नहीं जाता है। यदि आपकी महान् ऊर्जा अव्यक्तिगत और निर्नैतिक है, यह आपको स्वतन्त्रता देती है कि आप जैसा चाहें वैसा व्यवहार कर सकते हैं।

परन्तु इसमें हानि की बात है कि वास्तव में कोई है नहीं। इस विश्वास का अर्थ है कि कोई व्यक्तिगत परमेश्वर नहीं है, कोई छुटकारा देने वाला नहीं है। गर्जन के साथ आपका उद्धार से जुड़ा हुआ किस प्रकार का सम्बन्ध हो सकता है? गर्जन में ध्वनि तो होती है, और सब लोग उसे सुनते तो हैं, परन्तु जहाँ तक विषय-वस्तु की बात आती है, तो वह गूँगी है। उसमें कोई प्रकाशन नहीं है, और कोई आशा नहीं है। गर्जन और गुरुत्वाकर्षण कभी भी किसी भी पाप को नहीं क्षमा कर पाए हैं।

परमेश्वर द्वारा मूसा को दिए गए उत्तर में, हम इस अव्यक्तिगत ऊर्जा से एक विपरीत बात को देखते हैं। उसने यह नहीं कहा, “वह जो है सो है,” जो वर्तमान समय के कई झूठे ईश्वरों का नाम प्रतीत होता है। उसने कहा, “मैं जो हूँ सो हूँ” (निर्गमन 3:14)। यह नाम परमेश्वर के व्यक्तिगत नाम, याहवे, से सम्बन्धित है। इस प्रकार से, सबसे पहले परमेश्वर अपने विषय में प्रकट करता है कि वह व्यक्तिगत परमेश्वर है। वह देख सकता है; वह सुन सकता है; वह ज्ञात कर सकता है; वह बोल सकता है। वह उन लोगों के साथ सम्बन्ध रख सकता है जिन्हें उसने अपने स्वरूप में बनाया। यह वही परमेश्वर है जिसने अपने लोगों को मिस्र देश से निकाला था। वह ऐसा परमेश्वर है जिसका नाम और इतिहास है।

बहुत वर्ष पूर्व, मैंने महाविद्यालय में ईश्वरविज्ञान की कक्षा को पढ़ाया था, और हम परमेश्वर के नामों का अध्ययन कर रहे थे। मैं परमेश्वर के नामों के महत्व को समझाने का प्रयास कर रहा था, और इस बात को भी कि परमेश्वर के नाम उसके चरित्र के विषय में क्या प्रकट करते हैं। कक्षा से ठीक पहले, एक छात्रा ने, जिसको हम ममता कह सकते हैं, कक्षा में इस विचित्र रीति से प्रवेश किया—कि सभी लोग उसके बाएँ हाथ पर एक चमकीली हीरे की अंगूठी को देख सकें। मैंने कहा, “ममता, क्या तुम्हारी सगाई हो गई?” उसने कक्षा के पीछे बैठे एक पुरुष की ओर संकेत करते हुए कहा, “जी हाँ, सौरभ से।” मैंने कहा, “बधाई हो। जब तुम कह रही हो कि तुम उससे विवाह करोगी, मैं सोचता हूँ कि तुम उससे प्रेम करती हो—क्या मेरा सोचना सही है?” उसने कहा, “जी हाँ।”

मैंने कहा, “तुम उससे प्रेम क्यों करती हो?” उसने कहा, “क्योंकि वह देखने में बहुत अच्छा है।” मैंने कहा, “हाँ, वह देखने में अच्छा तो है। पर विजय को देखो—वह भी तो देखने में अच्छा है। क्या तुम नहीं सोचती कि विजय देखने में अच्छा है?” उसने कहा, “आप सही कह रहे हैं, विजय भी देखने में अच्छा है।” मैंने कहा, “सौरभ में कुछ और बात होगी, उसके अच्छे दिखने के अतिरिक्त।” उसने कहा, “वह खेल-कूद में भी अच्छा है।” मैंने कहा, “हाँ, वह है। परन्तु विजय तो क्रिकेट टीम का कप्तान है। तुम सौरभ के स्थान पर विजय से प्रेम क्यों नहीं करती?” वह कुछ कुछ परेशान होने लगी, और उसने कहा, “सौरभ पढ़ाई में भी अच्छा है।” मैंने कहा, “वह एक बहुत अच्छा छात्र है। पर सम्भवतः कक्षा का सबसे उत्तम छात्र तो विजय है। इसलिए ममता, सौरभ में कुछ तो बात होगी जो उसे तुम्हारे दृष्टिकोण में विजय से उत्तम बनाता है—उसकी कोई विशिष्ट बात, जिससे कि उसके प्रति तुम्हारा स्नेह इतना अधिक है। वह कारण क्या है जिससे तुम उसे इतना अधिक प्रेम करती हो?”

उसने कुछ कुछ क्रोधित होकर कहा, “मैं उससे प्रेम करती हूँ क्योंकि . . . मैं उससे प्रेम करती हूँ क्योंकि—मैं उससे प्रेम करती हूँ क्योंकि वह सौरभ है।” और मैंने कहा, “अब तुमने सही बात कही है। जब तुम उसके सार के निचोड़ पर ध्यान केन्द्रित करना चाहती हो, कि वह कौन है और तुम्हारे सम्बन्ध और व्यक्तिगत इतिहास में उसका क्या महत्व है, तो यह सब कुछ वापर आकर उसके नाम पर रुकता है।

मैंने कक्षा की ओर देखकर समझाया, “यही कारण है, कि जब हम परमेश्वर को देखते हैं, हम जानते हैं कि उसका नाम अद्भुत है। उस नाम में, वह अपने अस्तित्व की श्रेष्ठता और अपने चरित्र की सिद्धता के विषय में अनेक बातों को प्रकट करता है। और यही कारण है कि यदि हम पुराने विश्वासियों से पूछते, ‘हमें परमेश्वर के विषय में वह सब कुछ बता दीजिए जो आप जानते हैं,’ तो वे अन्त में कहते, ‘याहवे—मैं जो हूँ सो हूँ।’”

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

आर.सी. स्प्रोल
आर.सी. स्प्रोल
डॉ. आर.सी. स्प्रोल लिग्नेएर मिनिस्ट्रीज़ के संस्थापक, सैनफर्ड फ्लॉरिडा में सेंट ऐन्ड्रूज़ चैपल के पहले प्रचार और शिक्षण के सेवक, तथा रेफर्मेशन बाइबल कॉलेज के पहले कुलाधिपति थे। वह सौ से अधिक पुस्तकों के लेखक थे, जिसमें द होलीनेस ऑफ गॉड भी सम्मिलित है।