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बचाने वाले विश्वास क्या है

विश्वास मसीहियत के लिए केन्द्रीय है। नया नियम बारम्बार लोगों को प्रभु यीशु ख्रीष्ट पर विश्वास करने के लिए बुलाता है। एक निश्चित विषयवस्तु है जिस पर विश्वास किया जाना चाहिए, जो हमारे धार्मिक क्रियाओं का अभिन्न भाग है। धर्मसुधार के समय के विवाद में बचाने (saving) वाले विश्वास का स्वभाव (nature) सम्मिलित था। बचाने वाला विश्वास क्या है? केवल विश्वास के द्वारा धर्मीकरण का विचार बहुत लोगों को एक विरलता से छिपी हुई व्यवस्थाविरोधीवाद (antinomianism) का सुझाव देता है जो यह मानता है कि लोग जब तक उचित बातों पर विश्वास करते हों तब तक वे जैसे भी चाहें जी सकते हैं। तौभी याकूब ने अपनी पत्री में लिखा: “हे मेरे भाइयो, यदि कोई कहे कि मैं विश्वास करता हूँ, पर कर्म न करे, तो इस से क्या लाभ? क्या ऐसा विश्वास उसका उद्धार कर सकता है? . . . विश्वास भी, यदि उसके साथ कार्य न हो, तो अपने आप में मृतक है” (2:14, 17)। लूथर ने कहा कि धर्मी ठहराने वाला विश्वास फिडेस वीवा (fides viva) है, एक “जीवित विश्वास,” जो अनिवार्यतः, आवश्यक रूप से और तुरन्त धार्मिकता का फल लाता है। धर्मीकरण केवल विश्वास के द्वारा है, परन्तु उस विश्वास के द्वारा नहीं जो अकेला है। ऐसा विश्वास जो धार्मिकता की उपज न लाए सच्चा विश्वास नहीं है।

रोमन कैथोलिक कलीसिया के लिए, विश्वास और कार्य को जोड़ने पर धर्मीकरण होता है; व्यवस्थाविरोधीवादियों के लिए, विश्वास से कार्य को घटाने पर धर्मीकरण होता है; प्रोटेस्टेन्ट धर्मसुधारकों के लिए, विश्वास बराबर धर्मीकरण और कार्य होता है। दूसरे शब्दों में, कार्य तो सच्चे विश्वास के अनिवार्य फल हैं। परमेश्वर की इस उद्घोषणा में कि हम उसकी दृष्टि में धर्मी हैं, कार्यों को ध्यान में नहीं रखा जाता है; वे हमें धर्मी घोषित करने के लिए परमेश्वर के निर्णय के आधार के भाग नहीं हैं।

बचाने वाले विश्वास के संघटक तत्त्व क्या हैं? प्रोटेस्टेन्ट धर्मसुधारकों ने पहचाना कि बाइबलीय विश्वास के तीन आवश्यक आयाम हैं: नोटिश्या (notitia), असेन्सस (assensus), और फिडुश्या (fiducia)।

नोटिश्या विश्वास की विषय-वस्तु (content) से, अर्थात् उन बातों से सम्बन्ध रखता है जिन पर हम विश्वास करते हैं। ख्रीष्ट के विषय में कुछ बातें हैं जिन पर हमारा विश्वास करना अनिवार्य है, अर्थात्् कि वह परमेश्वर का पुत्र है, कि वह हमारा उद्धारकर्ता है, कि उसने प्रायश्चित्त का प्रावधान किया है, इत्यादि।

असेन्सस यह दृढ़ विश्वास है कि हमारे विश्वास की विषय-वस्तु सत्य है। एक व्यक्ति मसीही विश्वास के विषय में जान सकता है और तौभी विश्वास कर सकता है कि यह सत्य नहीं है। सम्भवतः हमारे विश्वास में एक या दो सन्देह मिश्रित हों, परन्तु यदि हमें बचाया जाना है तो एक स्तर का मानसिक पुष्टिकरण और दृढ़ विश्वास होना चाहिए। इससे पहले कि कोई भी व्यक्ति यीशु ख्रीष्ट पर भरोसा कर सके, उसे विश्वास करना होगा कि ख्रीष्ट वास्तव में उद्धारकर्ता है, कि वह वही है जो उसने कहा कि वह है। वास्तविक विश्वास कहता है कि विषय-वस्तु, नोटिश्या, सत्य है।

फिडुश्या व्यक्तिगत भरोसा और निर्भरता से सम्बन्ध रखता है। मसीही विश्वास की विषय-वस्तु को जानना और विश्वास करना पर्याप्त नहीं है, क्योंकि दुष्टात्माएँ भी ऐसा कर सकती हैं (याकूब 2:19)। विश्वास तभी प्रभावी है यदि व्यक्ति उद्धार के लिए केवल ख्रीष्ट पर व्यक्तिगत रीति से भरोसा करे। किसी कथन के प्रति मानसिक स्वीकृति एक बात है परन्तु उस पर व्यक्तिगत रीति से भरोसा करना कुछ और ही बात है। हम कह सकते हैं कि हम केवल विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराए जाने पर विश्वास करते हैं और तौभी सोच सकते हैं कि हम अपनी उपलब्धियों, अपने कार्यों, या अपने यत्न के द्वारा स्वर्ग पहुँचेंगे। विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराए जाने के सिद्धान्त को अपने सिरों में प्रवेश कराना सरल है, परन्तु इसको रक्तप्रवाह में इस रीति से प्रवेश कराना कठिन है कि हम उद्धार के लिए केवल ख्रीष्ट को थामें।
फिडुश्या में भरोसा के साथ एक और तत्त्व भी है, और वह है स्नेह। एक अपुनरुज्जीवित (unregenerate) व्यक्ति कभी भी यीशु के पास नहीं आएगा क्योंकि वह यीशु को नहीं चाहता है। अपने मस्तिष्क और हृदय में, वह परमेश्वर की बातों से आधारभूत रीति से शत्रुता की मुद्रा में है। जब तक एक व्यक्ति ख्रीष्ट का बैरी है, उसमें उसके लिए कोई स्नेह नहीं है। शैतान इसका उदाहरण है। शैतान सत्य को जानता है, परन्तु वह सत्य से घृणा करता है। वह परमेश्वर की आराधना करने के लिए पूर्ण रीति से अनिच्छुक है क्योंकि उसमें परमेश्वर के लिए कोई प्रेम नहीं है। हम स्वभाव से ऐसे ही हैं। हम अपने पाप में मृतक हैं। हम इस संसार की शक्तियों के अनुसार चलते हैं और शरीर की इच्छाओं को पूरा करते हैं। जब तक पवित्र आत्मा हमें परिवर्तित नहीं करता है, हमारे पास पत्थर के हृदय हैं। एक अपुनरुज्जीवित हृदय ख्रीष्ट के प्रति स्नेह रहित है; यह निर्जीव तथा प्रेम-रहित दोनों है। पवित्र आत्मा हमारे हृदयों की प्रवृत्ति को परिवर्तित करता है जिससे कि हम ख्रीष्ट की मधुरता को देखें और उसे ग्रहण करें। हम में से कोई भी ख्रीष्ट को सिद्धता से प्रेम नहीं करता है, परन्तु हम उससे तब तक प्रेम नहीं कर सकते हैं जब तक पवित्र आत्मा पत्थर के हृदय को परिवर्तित करके उसे माँस का हृदय न बना ले।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

आर.सी. स्प्रोल
आर.सी. स्प्रोल
डॉ. आर.सी. स्प्रोल लिग्नेएर मिनिस्ट्रीज़ के संस्थापक, सैनफर्ड फ्लॉरिडा में सेंट ऐन्ड्रूज़ चैपल के पहले प्रचार और शिक्षण के सेवक, तथा रेफर्मेशन बाइबल कॉलेज के पहले कुलाधिपति थे। वह सौ से अधिक पुस्तकों के लेखक थे, जिसमें द होलीनेस ऑफ गॉड भी सम्मिलित है।