परमेश्वर का भय मानने का क्या अर्थ है?
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एक्कलेसिया रिफॉर्माटा, सेम्पर रिफॉर्माण्डा वाक्यांश (जिस कलीसिया में धर्मसुधार हुआ है, उसमें सर्वदा धर्मसुधार होता रहेगा) को इतना अधिक बार उपयोग किया गया है कि यह एक मंत्र या नारा बन गया है। लोगों ने विभिन्न प्रकार के आश्चर्यजनक ईश्वरविज्ञानीय और कलीसियाई कार्यक्रम और उद्देश्यों के लिए इसका उपयोग किया है। विद्वानों ने इसके उद्गम को 1674 में जोडोकस वैन लोडनस्टाइन द्वारा लिखी गई एक भक्ति की पुस्तक में पाया है। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि वैन लॉडनस्टीन का कोई उद्देश्य नहीं था कि वह एक मंत्र या नारा बनाने वाला व्यक्ति बने। उसका उद्देश्य क्या था, और इस वाक्यांश से उसका अर्थ क्या था?
वैन लोडनस्टाइन सेवक था संयुक्त प्रान्त, जिसे आज हम नीदरलैण्ड के नाम से जानते हैं, के रिफॉर्मड चर्च में। यह कलीसिया दशकों से विश्वासयोग्य प्रचार से उत्पन्न हुई, ऐसे सेवकों के द्वारा–जिनमें अधिकाँश ने जेनीवा में पढ़ाई की थी—जिन्होंने अपने जीवन को दाँव पर लगाया सुसमाचार को पहुँचाने के लिए, पहले फ्रांसीसी-भाषी निचले देशों में, और बाद में डच-भाषा बोलने वाले उत्तरी क्षेत्रों में। कुछ सेवक अपने विश्वास के लिए मारे गए, परन्तु उन्होंने समर्पित विश्वासियों की एक बहुमूल्य फसल एकत्रित की। बाइबल के अनुसार कलीसिया के सुधार की आवश्यकता का उनका सन्देश कई ऐसे लोगों के साथ प्रतिध्वनित हुआ, जिन्होंने पुरानी कलीसिया की भ्रष्टता को देखा।
चार्ल्स V और फिलिप II के शासन में, निचले देशों की सरकार ने धर्मसुधारवादी धर्म को दबाने के लिए हर सम्भव प्रयास किया, जो स्पेनी अधिपतियों के विरुद्ध उनके विद्रोह के कारण का एक बड़ा भाग था। इस विद्रोह (1568-1648) को अस्सी वर्ष के युद्ध के रूप में जाना गया, जिसने निचले देशों के उत्तरी भाग में एक नए राज्य को जन्म दिया। इस नए राज्य में–डच गणराज्य, जिससे संयुक्त प्रान्त के रूप में भी जाना जाता है–रिफॉर्मड चर्च प्रभावी था, सरकारी सहायता प्राप्त करते हुए और सत्रहवीं शताब्दी के मध्य तक अधिक जनसंख्या की कलीसिया बनी।
इस कलीसिया ने बेलजिक अंगीकार (1561) और हाइडलबर्ग धर्मप्रश्नोत्तरी (1563) को स्वीकार किया और इसका प्रशासन मूल रूप से प्रेस्बिटेरियन था। नए देश के प्रोटेस्टेन्ट राष्ट्र के अधिकारियों द्वारा हस्तक्षेप ने रिफॉर्मड कलीसिया की स्वतन्त्रता को सीमित किया, विशेषकर अनुशासन की बातों में। उस हस्तक्षेप के कारण, सत्रहवीं शताब्दी के आरम्भ में अर्मिनियसवाद के उदय के साथ एक संकट उत्पन्न हुआ। उस समस्या को 1618-19 में डॉर्ड्रेक्ट शहर में बड़े अन्तर्राष्ट्रिय सभा में सम्बोधित किया गया और उसका समाधान किया गया। इस सभा में तैयार किए गए डोर्ट के अधिनियम (Canons of Dort) कलीसिया के जीवन में एक और सिद्धांतीय अधिकार बन गया।
जोडोकस वैन लोडनस्टाइन का जन्म 1620 में डेल्फ्ट शहर में एक प्रमुख परिवार में हुआ था। उसे उस समय के सबसे प्रख्यात दो धर्मसुधारवादी प्रोफेसरों के द्वारा शिक्षा मिली: यूट्रेक्ट के शैक्षिक विद्वान और ईश्वरभक्त ईश्वरविज्ञानी गिसबरटस वोइटियस एवं फ्रेनेकर के वाचा ईश्वरविज्ञानी (covenant theologian) जोहानस कोक्सियाएस। दोनों ईश्वरविज्ञानियों से व्यक्तिगत मित्रता रखते हुए, वह वोइटियस से अधिक प्रभावित था। वोइटियस ने सटीक ईश्वरविज्ञान और मसीही जीवन दोनों पर बल दिया। वैन लोडनस्टाइन को यूट्रेक्ट में एक पास्टर के रूप में सेवा के लिए बुलाया गया, जहां उसने 1653 से 1677 में अपनी मृत्यु तक सेवा की। पास्टर के रूप में, उसने सदैव विश्वासियों को अनुशासित एवं जीवित मसीहीयत के लिए उत्साहित किया।
वैन लोडनस्टाइन एक ऐसी कलीसिया का भाग था जो स्पष्टतः एवं पूर्ण रीति से धर्मसुधारवादी थी धर्मसुधारवादी या कैल्विनवादी के बाइबल के व्याख्या के अनुसार थी। कैल्विनवादियों ने प्रायः कलीसिया की अपनी दृष्टि को तीन श्रेणियों में वर्णित किया: सिद्धान्त, आराधना और कलीसिया प्रशासन। इन तीनों क्षेत्रों में, पूरे यूरोप में अधिकांश कैल्विनवादी कलीसिया के समान, डच रिफॉर्मड चर्च पूरी तरह से कैल्विनवादी था।
पर, किसी भी कलीसिया का जीवन स्थिर नहीं है, और वैन लोडनस्टाइन ने निश्चित रूप से अपने जीवनकाल में कुछ परिवर्तन देखे। उदाहरण के लिए, सिद्धान्त में, धर्मसुधारवादी ईश्वरविज्ञानी वाचा का ईश्वरविज्ञान विकसित कर रहे थे जो बाइबल की खुलती हुई प्रकाशन की संरचना में और मसीह के कार्य दोनों की बहुत गहन अन्तर्दृष्टि देगा। अधिकांश धर्मसुधारवादी मसीहीयों ने इसको एक वास्तविक ईश्वरविज्ञानीय उन्नति के रूप में देखा है। वैन लोडनस्टाइन ने अपने समय में धर्मसुधारवादी कलीसियाओं में सार्वजनिक आराधना में आर्गन वाद्ययन्त्र (organ) के बढ़ते उपयोग को भी देखा। वह इस वाद-विवाद को जानता था कि क्या यह परिवर्तन कलीसिया की आराधना में सुधार या विकृति है। जब उसने धर्मसुधार हुई कलीसिया और उसके सर्वदा धर्मसुधार के विषय में लिखा क्या इस प्रकार के परिवर्तन उसके मन में थे?
इस प्रश्न का उत्तर है: नहीं। वैन लोडनस्टाइन कलीसिया के सिद्धांत, आराधना और शासन के तालमेल और सुधार के विषय में नहीं सोच रहा था। ये बाहरी सुधार की बातें अति आवश्यक थी जब धर्मसुधारकों ने सोलहवीं और सत्रहवी शताब्दी के आरम्भ में उन्हें पूरा किया। परन्तु वैन लोडनस्टाइन जैसे कैल्विनवादियों के लिए, वे निर्णायक रीति से पूर्ण किए और स्थापित किए गए थे। वह अपेक्षाकृत छोटे परिवर्तनों के मूल्य पर विचार नहीं कर रहा था। वह बाद के शताब्दियों का व्यक्ति नहीं था जो मानता था कि प्रगति और परिवर्तन स्वयं में आवश्यक एवं अच्छे थे। उनका मानना था कि बाइबल सिद्धान्त, आराधना और प्रशासन की नींव में स्पष्ट थी और कि धर्मसुधारवादी कलीसियाओं ने इन बातों को सही रीति से सुधारा था। इस अर्थ में, धर्मसुधार बाइबल की शिक्षा की ओर पुनः आना था। धर्मसुधारक इन बातों में सही थे और ये बातें स्थापित हो गई थीं।
वैन लोडनस्टाइन जैसे सेवकों की बड़ी चिन्ता धर्म की बाहरी बातों के विषय में नहीं थी—वे चाहे जितनी भी महत्वपूर्ण हों—वरन् धर्म के आन्तरिक बातों के विषय में थी। वैन लोडनस्टाइन एक धर्मसुधारवादी ईश्वरभक्त और दूसरे डच धर्मसुधार का भाग था। इस प्रकार, उसकी धार्मिक विचार इंग्लैण्ड के प्यीरीटन के समान थे। वे सभी मानते थे कि एक बार धर्म का बाहरी भाग परमेश्वर के वचन के अनुसार सावधानीपूर्वक और विश्वासयोग्यता से सुधार दिए गए थे, सेवकों की बड़ी आवश्यकता थी कि हृदय के सच्चे भक्ति में अगुवाई करें। उन्होंने अपने दिन के बड़े जोखिम को झूठे सिद्धांत या अंधविश्वास या मूर्तिपूजा नहीं, परन्तु औपचारिकतावाद के रूप में देखा। औपचारिकतावाद का खतरा यह है कि कोई कलीसिया का सदस्य सच्चे सिद्धान्त को अपना सकता है, एक बाइबल द्वारा संचालित कलीसियो में सच्ची आराधना में भाग ले सकता है, बिना सच्चे विश्वास की उपस्थिति के। जैसे कि यीशु ने यशायाह नबी का उद्धृत करते हुए उसके समय के फरीसी के विरुद्ध चेतावनी दी थी, “ये लोग होंठों से तो मेरा आदर करते हैं, परन्तु इनका हृदय मुझ से दूर है” (मत्ती 15:8)।
मनुष्य का हृदय धर्म का वह भाग है जिसमें सर्वदा सुधार की आवश्यकता है। जीवित धर्म और सच्चे विश्वास को निरन्तर विकसित किया जाना चाहिए। औपचारिकतावाद, चिन्ता न करना और अनुरूपतावाद का प्रबलता से विश्वासयोग्य सेवा के द्वारा विरोध किया जाना चाहिए।
वैन लोडनस्टाइन और उसके साथ खड़े होने वाले लोग विश्वास करते थे कि डोर्ट के अधिनियम उनके जैसे सच्चे धर्म की दृष्टि प्रस्तुत करती थी। अर्मिनियसवाद के विरुद्ध संघर्ष में, एक बड़ा विवाद का विषय नया जन्म का सिद्धान्त था। सोलहवीं शताब्दी के धर्मसुधारवादी ईश्वरविज्ञान में, ईश्वरविज्ञानियों ने नए जन्म का उपयोग पवित्रिकरण के लिए पर्यायवाची के रूप में किया। इसलिए, उदाहरण के लिए, बेलजिक अंगीकार के अनुच्छेद 24 कह सकता है कि हम विश्वास से नया जीवन पाते हैं। परन्तु अर्मिनियसवादियों के विरुद्ध संघर्ष में, नए जन्म ने एक तकनीकी अर्थ लिया, पवित्र आत्मा के उस संप्रभुता के कार्य को संदर्भित करते हुए जिसमें वह विश्वास के लिए आवश्यक नए जीवन को प्राण में रोपित करता है। नए जन्म के इस नए उपयोग ने समझाया कि कैसे विश्वास परमेश्वर का दान था, न कि मनुष्य की स्वतंत्र इच्छा का कार्य। परन्तु इसने यह भी समझाया कि मसीही कैसे, परमेश्वर के अनुग्रह से, पवित्रता का अनुसरण करते हुए एक नया जीवन जीने में सक्षम हैं। डोर्ट के अधिनियम ने घोषणा की:
जब परमेश्वर अपने चुने हुए लोगों में इस भले आनन्द को पूरा करता है, या उनमें सच्चा हृदय-परिवर्तन करता है, वह न केवल यह सुनिश्चित करता है कि सुसमाचार उन्हें बाहरी रूप से प्रचार किया जाता है, और पवित्र आत्मा के द्वारा उनके मन में सामर्थ्य के साथ ज्योतिर्मय करता है कि वे परमेश्वर की आत्मा की बातों को ठीक से समझ सकें और परख सकें, परन्तु उसी नया जन्म करने वाले आत्मा के प्रभावशाली संचालन से, वह मनुष्य के सबसे भीतरी भाग में भी प्रवेश करता है, बन्द हृदय को खोलता है, कठोर हृदय को नरम करता है, और ख़तना रहित हृदय का ख़तना करता है। वह इच्छा-शक्ति में नए गुणों को भरता है, मृतक इच्छा-शक्ति को जीवित करते हुए, बुरी को अच्छी बनाते हुए, अनिच्छुक को इच्छुक बनाते हुए, हठीले को नरम; वह इच्छा-शक्ति को क्रियाशील बनाता है और दृढ़ करता है ताकि, वह अच्छे पेड़ के समान अच्छे कार्यों के फल देने में सक्षम हो सके।
नए जन्म के इस सिद्धांत का तब उपयोग किया गया, मसीही में जीवन के नए सिद्धान्त और उस नए जीवन को जीने की आवश्यकता पर बल देने के लिए। परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं और उसके आत्मा में विश्राम और आशा प्राप्त करते हुए, मसीही को औपचारिकता से बचने और पाप के विरुद्ध दैनिक संघर्ष में अपने विश्वास को जीने की आवश्यकता थी।
तो वैन लोडनस्टाइन के प्रसिद्ध वाक्यांश ‘सुधरा हुआ और सदैव सुधरता हुआ’ का क्या अर्थ था? सम्भवत: ऐसा कुछ: जबकि अब हमारी कलीसिया सिद्धांत, आराधना, और प्रशासन के बाहरी भागों में सुधरी है, आइए हम सदैव यह सुनिश्चित करने के लिए कार्य करते रहें कि हमारे हृदय और जीवन को परमेश्वर के वचन और आत्मा द्वारा सुधरते जाएं। इस वाक्यांश के जो भी अन्य अर्थ बनाया जा सकता है, इसके मूल अर्थ पर मनन करना और उसे बनाए रखना बहुत लाभकारी है।
सेम्पर रिफॉर्माण्डा का क्या अर्थ है?
डब्ल्यू. रॉबर्ट गॉडफ्रे द्वारा मार्च 24 2017 श्रेणी: लेख
एक्कलेसिया रिफॉर्माटा, सेम्पर रिफॉर्माण्डा वाक्यांश (जिस कलीसिया में धर्मसुधार हुआ है, उसमें सर्वदा धर्मसुधार होता रहेगा) को इतना अधिक बार उपयोग किया गया है कि यह एक मंत्र या नारा बन गया है। लोगों ने विभिन्न प्रकार के आश्चर्यजनक ईश्वरविज्ञानीय और कलीसियाई कार्यक्रम और उद्देश्यों के लिए इसका उपयोग किया है। विद्वानों ने इसके उद्गम को 1674 में जोडोकस वैन लोडनस्टाइन द्वारा लिखी गई एक भक्ति की पुस्तक में पाया है। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि वैन लॉडनस्टीन का कोई उद्देश्य नहीं था कि वह एक मंत्र या नारा बनाने वाला व्यक्ति बने। उसका उद्देश्य क्या था, और इस वाक्यांश से उसका अर्थ क्या था?
वैन लोडनस्टाइन सेवक था संयुक्त प्रान्त, जिसे आज हम नीदरलैण्ड के नाम से जानते हैं, के रिफॉर्मड चर्च में। यह कलीसिया दशकों से विश्वासयोग्य प्रचार से उत्पन्न हुई, ऐसे सेवकों के द्वारा–जिनमें अधिकाँश ने जेनीवा में पढ़ाई की थी—जिन्होंने अपने जीवन को दाँव पर लगाया सुसमाचार को पहुँचाने के लिए, पहले फ्रांसीसी-भाषी निचले देशों में, और बाद में डच-भाषा बोलने वाले उत्तरी क्षेत्रों में। कुछ सेवक अपने विश्वास के लिए मारे गए, परन्तु उन्होंने समर्पित विश्वासियों की एक बहुमूल्य फसल एकत्रित की। बाइबल के अनुसार कलीसिया के सुधार की आवश्यकता का उनका सन्देश कई ऐसे लोगों के साथ प्रतिध्वनित हुआ, जिन्होंने पुरानी कलीसिया की भ्रष्टता को देखा।
चार्ल्स V और फिलिप II के शासन में, निचले देशों की सरकार ने धर्मसुधारवादी धर्म को दबाने के लिए हर सम्भव प्रयास किया, जो स्पेनी अधिपतियों के विरुद्ध उनके विद्रोह के कारण का एक बड़ा भाग था। इस विद्रोह (1568-1648) को अस्सी वर्ष के युद्ध के रूप में जाना गया, जिसने निचले देशों के उत्तरी भाग में एक नए राज्य को जन्म दिया। इस नए राज्य में–डच गणराज्य, जिससे संयुक्त प्रान्त के रूप में भी जाना जाता है–रिफॉर्मड चर्च प्रभावी था, सरकारी सहायता प्राप्त करते हुए और सत्रहवीं शताब्दी के मध्य तक अधिक जनसंख्या की कलीसिया बनी।
इस कलीसिया ने बेलजिक अंगीकार (1561) और हाइडलबर्ग धर्मप्रश्नोत्तरी (1563) को स्वीकार किया और इसका प्रशासन मूल रूप से प्रेस्बिटेरियन था। नए देश के प्रोटेस्टेन्ट राष्ट्र के अधिकारियों द्वारा हस्तक्षेप ने रिफॉर्मड कलीसिया की स्वतन्त्रता को सीमित किया, विशेषकर अनुशासन की बातों में। उस हस्तक्षेप के कारण, सत्रहवीं शताब्दी के आरम्भ में अर्मिनियसवाद के उदय के साथ एक संकट उत्पन्न हुआ। उस समस्या को 1618-19 में डॉर्ड्रेक्ट शहर में बड़े अन्तर्राष्ट्रिय सभा में सम्बोधित किया गया और उसका समाधान किया गया। इस सभा में तैयार किए गए डोर्ट के अधिनियम (Canons of Dort) कलीसिया के जीवन में एक और सिद्धांतीय अधिकार बन गया।
जोडोकस वैन लोडनस्टाइन का जन्म 1620 में डेल्फ्ट शहर में एक प्रमुख परिवार में हुआ था। उसे उस समय के सबसे प्रख्यात दो धर्मसुधारवादी प्रोफेसरों के द्वारा शिक्षा मिली: यूट्रेक्ट के शैक्षिक विद्वान और ईश्वरभक्त ईश्वरविज्ञानी गिसबरटस वोइटियस एवं फ्रेनेकर के वाचा ईश्वरविज्ञानी (covenant theologian) जोहानस कोक्सियाएस। दोनों ईश्वरविज्ञानियों से व्यक्तिगत मित्रता रखते हुए, वह वोइटियस से अधिक प्रभावित था। वोइटियस ने सटीक ईश्वरविज्ञान और मसीही जीवन दोनों पर बल दिया। वैन लोडनस्टाइन को यूट्रेक्ट में एक पास्टर के रूप में सेवा के लिए बुलाया गया, जहां उसने 1653 से 1677 में अपनी मृत्यु तक सेवा की। पास्टर के रूप में, उसने सदैव विश्वासियों को अनुशासित एवं जीवित मसीहीयत के लिए उत्साहित किया।
वैन लोडनस्टाइन एक ऐसी कलीसिया का भाग था जो स्पष्टतः एवं पूर्ण रीति से धर्मसुधारवादी थी धर्मसुधारवादी या कैल्विनवादी के बाइबल के व्याख्या के अनुसार थी। कैल्विनवादियों ने प्रायः कलीसिया की अपनी दृष्टि को तीन श्रेणियों में वर्णित किया: सिद्धान्त, आराधना और कलीसिया प्रशासन। इन तीनों क्षेत्रों में, पूरे यूरोप में अधिकांश कैल्विनवादी कलीसिया के समान, डच रिफॉर्मड चर्च पूरी तरह से कैल्विनवादी था।
पर, किसी भी कलीसिया का जीवन स्थिर नहीं है, और वैन लोडनस्टाइन ने निश्चित रूप से अपने जीवनकाल में कुछ परिवर्तन देखे। उदाहरण के लिए, सिद्धान्त में, धर्मसुधारवादी ईश्वरविज्ञानी वाचा का ईश्वरविज्ञान विकसित कर रहे थे जो बाइबल की खुलती हुई प्रकाशन की संरचना में और मसीह के कार्य दोनों की बहुत गहन अन्तर्दृष्टि देगा। अधिकांश धर्मसुधारवादी मसीहीयों ने इसको एक वास्तविक ईश्वरविज्ञानीय उन्नति के रूप में देखा है। वैन लोडनस्टाइन ने अपने समय में धर्मसुधारवादी कलीसियाओं में सार्वजनिक आराधना में आर्गन वाद्ययन्त्र (organ) के बढ़ते उपयोग को भी देखा। वह इस वाद-विवाद को जानता था कि क्या यह परिवर्तन कलीसिया की आराधना में सुधार या विकृति है। जब उसने धर्मसुधार हुई कलीसिया और उसके सर्वदा धर्मसुधार के विषय में लिखा क्या इस प्रकार के परिवर्तन उसके मन में थे?
इस प्रश्न का उत्तर है: नहीं। वैन लोडनस्टाइन कलीसिया के सिद्धांत, आराधना और शासन के तालमेल और सुधार के विषय में नहीं सोच रहा था। ये बाहरी सुधार की बातें अति आवश्यक थी जब धर्मसुधारकों ने सोलहवीं और सत्रहवी शताब्दी के आरम्भ में उन्हें पूरा किया। परन्तु वैन लोडनस्टाइन जैसे कैल्विनवादियों के लिए, वे निर्णायक रीति से पूर्ण किए और स्थापित किए गए थे। वह अपेक्षाकृत छोटे परिवर्तनों के मूल्य पर विचार नहीं कर रहा था। वह बाद के शताब्दियों का व्यक्ति नहीं था जो मानता था कि प्रगति और परिवर्तन स्वयं में आवश्यक एवं अच्छे थे। उनका मानना था कि बाइबल सिद्धान्त, आराधना और प्रशासन की नींव में स्पष्ट थी और कि धर्मसुधारवादी कलीसियाओं ने इन बातों को सही रीति से सुधारा था। इस अर्थ में, धर्मसुधार बाइबल की शिक्षा की ओर पुनः आना था। धर्मसुधारक इन बातों में सही थे और ये बातें स्थापित हो गई थीं।
वैन लोडनस्टाइन जैसे सेवकों की बड़ी चिन्ता धर्म की बाहरी बातों के विषय में नहीं थी—वे चाहे जितनी भी महत्वपूर्ण हों—वरन् धर्म के आन्तरिक बातों के विषय में थी। वैन लोडनस्टाइन एक धर्मसुधारवादी ईश्वरभक्त और दूसरे डच धर्मसुधार का भाग था। इस प्रकार, उसकी धार्मिक विचार इंग्लैण्ड के प्यीरीटन के समान थे। वे सभी मानते थे कि एक बार धर्म का बाहरी भाग परमेश्वर के वचन के अनुसार सावधानीपूर्वक और विश्वासयोग्यता से सुधार दिए गए थे, सेवकों की बड़ी आवश्यकता थी कि हृदय के सच्चे भक्ति में अगुवाई करें। उन्होंने अपने दिन के बड़े जोखिम को झूठे सिद्धांत या अंधविश्वास या मूर्तिपूजा नहीं, परन्तु औपचारिकतावाद के रूप में देखा। औपचारिकतावाद का खतरा यह है कि कोई कलीसिया का सदस्य सच्चे सिद्धान्त को अपना सकता है, एक बाइबल द्वारा संचालित कलीसियो में सच्ची आराधना में भाग ले सकता है, बिना सच्चे विश्वास की उपस्थिति के। जैसे कि यीशु ने यशायाह नबी का उद्धृत करते हुए उसके समय के फरीसी के विरुद्ध चेतावनी दी थी, “ये लोग होंठों से तो मेरा आदर करते हैं, परन्तु इनका हृदय मुझ से दूर है” (मत्ती 15:8)।
मनुष्य का हृदय धर्म का वह भाग है जिसमें सर्वदा सुधार की आवश्यकता है। जीवित धर्म और सच्चे विश्वास को निरन्तर विकसित किया जाना चाहिए। औपचारिकतावाद, चिन्ता न करना और अनुरूपतावाद का प्रबलता से विश्वासयोग्य सेवा के द्वारा विरोध किया जाना चाहिए।
वैन लोडनस्टाइन और उसके साथ खड़े होने वाले लोग विश्वास करते थे कि डोर्ट के अधिनियम उनके जैसे सच्चे धर्म की दृष्टि प्रस्तुत करती थी। अर्मिनियसवाद के विरुद्ध संघर्ष में, एक बड़ा विवाद का विषय नया जन्म का सिद्धान्त था। सोलहवीं शताब्दी के धर्मसुधारवादी ईश्वरविज्ञान में, ईश्वरविज्ञानियों ने नए जन्म का उपयोग पवित्रिकरण के लिए पर्यायवाची के रूप में किया। इसलिए, उदाहरण के लिए, बेलजिक अंगीकार के अनुच्छेद 24 कह सकता है कि हम विश्वास से नया जीवन पाते हैं। परन्तु अर्मिनियसवादियों के विरुद्ध संघर्ष में, नए जन्म ने एक तकनीकी अर्थ लिया, पवित्र आत्मा के उस संप्रभुता के कार्य को संदर्भित करते हुए जिसमें वह विश्वास के लिए आवश्यक नए जीवन को प्राण में रोपित करता है। नए जन्म के इस नए उपयोग ने समझाया कि कैसे विश्वास परमेश्वर का दान था, न कि मनुष्य की स्वतंत्र इच्छा का कार्य। परन्तु इसने यह भी समझाया कि मसीही कैसे, परमेश्वर के अनुग्रह से, पवित्रता का अनुसरण करते हुए एक नया जीवन जीने में सक्षम हैं। डोर्ट के अधिनियम ने घोषणा की:
जब परमेश्वर अपने चुने हुए लोगों में इस भले आनन्द को पूरा करता है, या उनमें सच्चा हृदय-परिवर्तन करता है, वह न केवल यह सुनिश्चित करता है कि सुसमाचार उन्हें बाहरी रूप से प्रचार किया जाता है, और पवित्र आत्मा के द्वारा उनके मन में सामर्थ्य के साथ ज्योतिर्मय करता है कि वे परमेश्वर की आत्मा की बातों को ठीक से समझ सकें और परख सकें, परन्तु उसी नया जन्म करने वाले आत्मा के प्रभावशाली संचालन से, वह मनुष्य के सबसे भीतरी भाग में भी प्रवेश करता है, बन्द हृदय को खोलता है, कठोर हृदय को नरम करता है, और ख़तना रहित हृदय का ख़तना करता है। वह इच्छा-शक्ति में नए गुणों को भरता है, मृतक इच्छा-शक्ति को जीवित करते हुए, बुरी को अच्छी बनाते हुए, अनिच्छुक को इच्छुक बनाते हुए, हठीले को नरम; वह इच्छा-शक्ति को क्रियाशील बनाता है और दृढ़ करता है ताकि, वह अच्छे पेड़ के समान अच्छे कार्यों के फल देने में सक्षम हो सके।
नए जन्म के इस सिद्धांत का तब उपयोग किया गया, मसीही में जीवन के नए सिद्धान्त और उस नए जीवन को जीने की आवश्यकता पर बल देने के लिए। परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं और उसके आत्मा में विश्राम और आशा प्राप्त करते हुए, मसीही को औपचारिकता से बचने और पाप के विरुद्ध दैनिक संघर्ष में अपने विश्वास को जीने की आवश्यकता थी।
तो वैन लोडनस्टाइन के प्रसिद्ध वाक्यांश ‘सुधरा हुआ और सदैव सुधरता हुआ’ का क्या अर्थ था? सम्भवत: ऐसा कुछ: जबकि अब हमारी कलीसिया सिद्धांत, आराधना, और प्रशासन के बाहरी भागों में सुधरी है, आइए हम सदैव यह सुनिश्चित करने के लिए कार्य करते रहें कि हमारे हृदय और जीवन को परमेश्वर के वचन और आत्मा द्वारा सुधरते जाएं। इस वाक्यांश के जो भी अन्य अर्थ बनाया जा सकता है, इसके मूल अर्थ पर मनन करना और उसे बनाए रखना बहुत लाभकारी है।