पापनिष्कृति और कोपसन्तुष्टि के क्या अर्थ हैं - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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पापनिष्कृति और कोपसन्तुष्टि के क्या अर्थ हैं

जब हम प्रायश्चित्त (atonement) के प्रतिस्थानिक आयाम की बात करते हैं, तो दो बड़े तकनीकी शब्द बार-बार आते हैं: पापनिष्कृति (expiation) और कोपसन्तुष्टि (propitiation)। इन शब्दों के कारण सब प्रकार के विवाद उत्पन्न होते हैं कि एक यूनानी शब्द के अनुवाद के लिए किस शब्द का उपयोग किया जाना चाहिए, और कुछ बाइबल के अनुवाद एक को उपयोग करेंगे और अन्य अनुवाद दूसरे को उपयोग करेंगे। मुझ से बहुधा पूछा जाता है कि पापनिष्कृति और कोपसन्तुष्टि के मध्य भिन्नता को समझाऊँ। कठिनाई यह है कि यद्यपि ये शब्द बाइबल में हैं, किन्तु हम अपने दिन-प्रतिदिन की शब्दावली में इन्हें उपयोग नहीं करते हैं, और इस कारण हम पूर्ण रीति से निश्चित नहीं हैं कि पवित्रशास्त्र में वे क्या संचार कर रहे हैं। इन शब्दों को समझना हमारे लिए कठिन है।

पापनिष्कृति और कोपसन्तुष्टि

आइए हम विचार करें कि इन शब्दों का क्या अर्थ है, और आइए हम पापनिष्कृति के साथ आरम्भ करें। एक्स  (ex) उपसर्ग का अर्थ है “से बाहर” या “से,” इसलिए पापनिष्कृति का लेना-देना है किसी वस्तु को निकालना या किसी वस्तु को हटाना। बाइबलीय भाषा में, इसका सम्बन्ध है दण्ड के भुगतान या प्रायश्चित्त के अर्पण के द्वारा दोष का हटा दिया जाना। इसके विपरीत, कोपसन्तुष्टि का लेना-देना उस वस्तु से है जिसके प्रति पापनिष्कृति हो रही है। प्रो (pro) उपसर्ग का अर्थ है “के लिए,” इसलिए कोपसन्तुष्टि परमेश्वर के व्यवहार में एक परिवर्तन लाता है, जिससे कि वह हमारे प्रति शत्रुता रखने से हटकर अब हमारे पक्ष में हो जाता है। कोपसन्तुष्टि की प्रक्रिया के द्वारा, हम उसके साथ संगति और कृपा की स्थिति में पुनःस्थापित होते हैं।

एक अर्थ में, कोपसन्तुष्टि का अर्थ परमेश्वर के सन्तुष्ट किए जाने से सम्बन्धित है। हम जानते हैं कि तुष्टिकरण  (appeasement) शब्द सैन्य या राजनैतिक विवादों में कैसे कार्य करता है। हम तथाकथित तुष्टिकरण की राजनीति (politics of appeasement) के विषय में सोचते हैं, यह विचार कि यदि कोई विश्व पर आक्रमण करने की इच्छा रखने वाला उपद्रवी शासक अनियन्त्रित और धमकाने की स्थिति में है, उसके बमवर्षा के प्रकोप की हानि न उठाने के बदले, आप उसे चेकोस्लोवाकिया का सुडेटेन क्षेत्र या उसके समान कोई भूखण्ड दे देते हैं। आप उसको सन्तुष्ट करने के लिए उसे कुछ देने के द्वारा उसके प्रकोप को बुझाने का प्रयास करते हैं जिससे कि वह आपके देश में आकर आपको ध्वस्त न कर दे। यह तुष्टिकरण का एक भक्तिहीन प्रकटीकरण है। परन्तु यदि आप क्रोधित या उल्लंघित हैं, और मैं आपके क्रोध को सन्तुष्ट करता हूँ, या आपको तुष्टि करता हूँ, तो मैं आपकी कृपा में पुनःस्थापित होता हूँ और समस्या का समाधान हो जाता है।

एक ही यूनानी शब्द को समय-समय पर पापनिष्कृति और कोपसन्तुष्टि  के रूप में अनुवाद किया जाता है। परन्तु दोनों शब्दों में एक सूक्ष्म भिन्नता है। पापनिष्कृति वह कार्य है जिसके कारण हमारे प्रति परमेश्वर की प्रवृत्ति में परिवर्तन होता है। ख्रीष्ट ने क्रूस पर यही किया, और ख्रीष्ट के पापनिष्कृति के कार्य का परिणाम कोपसन्तुष्टि है—परमेश्वर का क्रोध हटा दिया गया है। यही भिन्नता चुकाई जाने वाली फिरौति और फिरौति को प्राप्त करने वाले जन के व्यवहार के मध्य है।

ख्रीष्ट का कार्य शान्त करने की क्रिया थी

पापनिष्कृति और कोपसन्तुष्टि एक साथ मिलकर शान्त करने (placation) की क्रिया को घटित करते हैं। ख्रीष्ट ने क्रूस पर अपने कार्य को परमेश्वर के प्रकोप को शान्त करने के लिए किया। परमेश्वर के प्रकोप को शान्त करने का यह विचार आधुनिक ईश्वरविज्ञानियों के प्रकोप को शान्त नहीं कर पाया है। वास्तव में, वे परमेश्वर के प्रकोप के शान्त किए जाने के विचार से बहुत प्रकोपमय हो जाते हैं। वे सोचते हैं कि शान्त किए जाने की स्थिति में होना, अर्थात् कि उसे तुष्ट करने या शान्त करने के लिए हमें कुछ करना, परमेश्वर की प्रतिष्ठा के अयोग्य है। हमें सावधान होना चाहिए कि हम परमेश्वर के प्रकोप को कैसे समझते हैं, परन्तु मैं आपको स्मरण दिलाना चाहता हूँ कि परमेश्वर के प्रकोप को शान्त करने की अवधारणा ईश्वरविज्ञान की किसी बाह्य या स्पर्शीय बिन्दु से नहीं, वरन् उद्धार के मूल स्वभाव से सम्बन्धित है।

उद्धार क्या है?

मुझे एक बहुत सरल प्रश्न पूछने दें: उद्धार शब्द का क्या अर्थ है? बहुत शीघ्रता से इसको समझाने का प्रयास करना आपके सिर में पीड़ा उत्पन्न सकता है, क्योंकि उद्धार  शब्द का उपयोग बाइबल में लगभग सत्तर रीतियों से किया गया है। यदि कोई जन युद्ध में निश्चित पराजय से छुड़ाया जाता है, वह उद्धार का अनुभव करता है। यदि कोई जन किसी प्राण-घातक अस्वस्थता से बचता है, वह जन उद्धार का अनुभव करता है। यदि किसी के पौधे मुर्झाने की स्थिति से स्वस्थ स्थिति में आते हैं, उनका भी उद्धार होता है। यह बाइबलीय भाषा है, और यह हमारी भाषा से बहुत भिन्न नहीं है। हम धन बचाते हैं। एक मुक्केबाज घण्टी द्वारा बचाया जाता है, अर्थात् वह बुरी रीति से पराजित होने से बच जाता है, न कि वह परमेश्वर के अनन्त राज्य में पहुँचाया जाता है। सरल रीति से, स्पष्ट और वास्तविक हानि से किसी भी प्रकार के छुटकारे को उद्धार के विषय में कहा जा सकता है कि वह उद्धार का एक रूप है।

जब हम बाइबलीय रीति से उद्धार के विषय में बात करते हैं, हमें यह कहने के लिए सावधान होना चाहिए कि हम मूल रूप से किस बात से बचाए जाते हैं। प्रेरित पौलुस 1 थिस्सलुनीकियों 1:10 में हमारे लिए यही करता है, जहाँ वह कहता है कि यीशु “हमें आने वाले प्रकोप से बचाता है।” मूल रूप से यीशु हमें परमेश्वर के प्रकोप से बचाने के लिए मरा। हम इससे हटकर यीशु नासरी की शिक्षा और उपदेश को समझ ही नहीं सकते हैं, क्योंकि वह बारम्बार लोगों को चेतावनी देता था कि सम्पूर्ण जगत एक दिन ईश्वरीय न्याय के अधीन आएगा। न्याय के विषय में उसकी कुछ चेतावनियाँ ये हैं: “पर मैं तुम से कहता हूँ कि हर एक जो अपने भाई पर क्रोधित होगा वह न्यायालय में दण्ड के योग्य ठहरेगा” (मत्ती 5:22); “मैं तुमसे कहता हूँ, जो भी निकम्मी बात मनुष्य बोलेंगे, न्याय के दिन वे उसका लेखा देंगे” (मत्ती 12:36); और “न्याय के दिन नीनवे के लोग इस पीढ़ी के लोगों के साथ उठ खड़े होंगे और उन्हें दोषी ठहराएंगे, क्योंकि उन्होंने योना का प्रचार सुनकर पश्चात्ताप किया; और देखो, यहाँ वह है जो योना से भी बढ़कर है” (मत्ती 12:41)। यीशु का ईश्वरविज्ञान संकटावस्था का ईश्वरविज्ञान था। यूनानी शब्द क्रिसिस  (crisis) का अर्थ “न्याय” है। और जिस संकट (crisis) के विषय में यीशु ने प्रचार किया था, वह जगत पर आने वाले न्याय का संकट था, जिस समय परमेश्वर उन लोगों पर अपना प्रकोप उण्डेलने वाला है जो छुड़ाए गए नहीं हैं, भक्तिहीन हैं, और अपश्चात्तापी हैं। उस प्रकोप के उण्डेले जाने से बचने की एकमात्र आशा है ख्रीष्ट के प्रायश्चित द्वारा ढाँपा जाना।

इस कारण से, क्रूस पर ख्रीष्ट की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि यह है कि उसने परमेश्वर के उस प्रकोप को शान्त किया, जो हमारे विरुद्ध प्रकट होता यदि हम ख्रीष्ट के बलिदान द्वारा ढाँपे नहीं जाते। इसलिए यदि कोई भी शान्त किए जाने की अवधारणा या ख्रीष्ट द्वारा परमेश्वर के प्रकोप को सन्तुष्ट करने के विचार के विरुद्ध तर्क करता है, तो सावधान हों, क्योंकि सुसमाचार दाँव पर है। यह उद्धार के सारत्तत्व के विषय में है—कि प्रायश्चचित्त द्वारा ढाँपे गए लोगों के रूप में, किसी भी व्यक्ति के सामने आने वाले सर्वाधिक खतरे की स्थिति से हम छुड़ाए जाते हैं। प्रकोप से भरे पवित्र परमेश्वर के हाथों में पड़ना भयंकर बात है। परन्तु उन लोगों के लिए कोई प्रकोप नहीं है जिनके पापों के दाम चुकाए गए हैं। यही तो उद्धार है।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

आर.सी. स्प्रोल
आर.सी. स्प्रोल
डॉ. आर.सी. स्प्रोल लिग्नेएर मिनिस्ट्रीज़ के संस्थापक, सैनफर्ड फ्लॉरिडा में सेंट ऐन्ड्रूज़ चैपल के पहले प्रचार और शिक्षण के सेवक, तथा रेफर्मेशन बाइबल कॉलेज के पहले कुलाधिपति थे। वह सौ से अधिक पुस्तकों के लेखक थे, जिसमें द होलीनेस ऑफ गॉड भी सम्मिलित है।