“क्या मैं? पवित्रशास्त्र को कंठस्ठ करूँ? किन्तु अब मैं एक बच्चा नहीं रहा। अब मैं बच्चों को सिखाता हूँ। मैं सिखाता हूँ; वे सीखते हैं।” हालाँकि सम्भवत: ये वयस्क मसीहियों के वास्तविक शब्द नहीं हैं, पर ऐसी भावनाएं बहुत से लोगों के स्वभाव का प्रतिनिधित्व करती हैं। उन्होंने वास्तव में विशेष पवित्रशास्त्र के खण्ड को कई वर्षों में कंठस्थ नहीं किया है (सम्भवतः कभी भी नहीं)।