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प्रेरित पौलुस के विषय में जानने योग्य 5 बातें

प्रेरित पौलुस नये नियम में सबसे अधिक योगदान करने वाला लेखक था, और उसने भूमध्य सागर के क्षेत्र में अनेक यात्राएँ की। उसकी पृष्ठभूमि यहूदी थी किन्तु फिर भी वह रोमी नागरिक था। बाइबल के अत्यधिक रोमांचक पात्रों में से वह एक है, और यहाँ उसके जीवन और लेख के विषय में पाँच बातें हैं जिन्हें सम्भवतः आप नहीं जानते होंगे:

1. नये नियम के लिखकों में से सम्भवतः पौलुस है जिसने सबसे पहले लिखा।

ऐतिहासिक शास्त्रसम्मत (orthodox) मसीहियत के आलोचक बहुत समय से दावा करते आए हैं कि यीशु की शिक्षाओं और पौलुस की शिक्षाओं में बहुत भिन्नता है। यह आलोचना, मुख्य रूप से इस तथ्य के कारण उठती है कि पौलुस यीशु के पुनरुत्थान और पिन्तेकुस्त के पश्चात् कलीसिया के सुसमाचार की सेवा के आरम्भिक युग के बाद ही मसीही आन्दोलन में जुड़ा था। फिर भी, पौलुस की कई पत्रियाँ सुसमाचारों को लिखे जाने से पहले ही लिखी जा चुकीं थी, और कुछ विद्वानों के अनुसार पौलुस की कुछ आरम्भिक पत्रियाँ तो याकूब की पत्री से भी पहले लिखी गईं। पौलुस केवल अपने लेखों की मात्रा के कारण ही आरम्भिक कलीसिया के विश्वास को आकार देने में प्रभावपूर्ण नहीं था, परन्तु इसलिए भी क्योंकि उसके लेख सम्भवतः यीशु ख्रीष्ट और उसके सुसमाचार की सबसे आरम्भिक ऐतिहासिक साक्षियाँ हैं।

2. पौलुस प्रायः अन्य लोगों के सहयोग के साथ लिखता था।

पौलुसीय ईश्वरविज्ञान (Pauline theology) के विषय में कई पुस्तकें लिखी गईं हैं। यह आश्चर्यजनक नहीं है, जब हम इस बात को ध्यान देते हैं कि जब नये नियम का ग्रन्थसंग्रह (canon) बन रहा था, तो पवित्र आत्मा की उत्प्रेरणा (inspiration) में होकर पौलुस का साहित्यिक योगदान कितना अधिक है। रोमियों  जैसे उत्कृष्ट लेख पौलुस के ईश्वरविज्ञानीय मस्तिष्क की प्रतिभा को स्पष्ट रीति से प्रकट करते हैं। यद्यपि पौलुस अपनी सभी पत्रियों का प्रमुख लेखक है, किन्तु लगभग आधी पत्रियों में उसके अभिवादन स्पष्ट रीति से यह प्रदर्शित करते हैं कि सुसमाचार प्रचार की सेवकाई में उसके सह सेवकों का भी योगदान था। पौलुस कोई ऐसा ईश्वरविज्ञानी नहीं है जो लोगों से दूर रहता था; वह बहुधा सह विश्वासियों के साथ सहभागिता में होकर कलीसियाओं को शिक्षा और निर्देश देता था।

3. पौलुस द्वारा लिखा गया सब कुछ पवित्रशास्त्र नहीं था

शिक्षा और निर्देश के तेरह पत्र जो कि प्रेरित, अचूक तथा त्रुटिहीन थे उन्हें कलीसिया को देने के लिए परमेश्वर ने पौलुस को अद्भुत रीति से उपयोग किया। परन्तु ऐसी बात नहीं थी कि जब भी पौलुस कुछ लिखता था, तो वह पवित्रशास्त्र था। पौलुस की पत्रियों में कई स्थानों पर ऐसी पत्रियों के विषय में लिखा गया है जिन्हें आरम्भिक कलीसिया ने पवित्रशास्त्र नहीं माना और इसलिए उन्हें संरक्षित भी नहीं किया। अपने सुसमाचार प्रचार कार्य के समय में कुरिन्थुस की कलीसिया को पौलुस द्वारा कम से कम दो अन्य पत्र भेजे गए थे (1 कुरिन्थियों  5:9, 2 कुरिन्थियों 2:3-4, 9; 7:12)। जब पौलुस ने कुलुस्से की कलीसिया को पत्री लिखी, तो उसने एक ऐसी पत्री की बात की जिसे उसने लौदीकिया को लिखी थी (कुलुस्सियों 4:15-16)। उसकी मनसा थी कि दोनों कलीसियाएँ पत्रियों का आदान-प्रदान करें जिससे कि वे दोनों लाभ पाएँ। परन्तु आरम्भिक कलीसिया ने केवल कुलुस्सियों को लिखी गई पत्री को ही पवित्रशास्त्र के रूप में स्वीकार किया।

4. पौलुस सम्भवतः आमने-सामने अत्यधिक प्रभावशाली व्यक्ति नहीं प्रतीत होता था।

कई प्रमुख मसीही लोगों के पास ऐसे स्वाभाविक गुण होते हैं जिनके कारण उनको अगुवाई के पद दिए जाते हैं। खेदजनक रीति से, वाक्पटुता, आकर्षक व्यक्तित्व, और मनभावना रूप प्रायः अविश्वासयोग्य लोगों के ईश्वरविज्ञानीय और नैतिक अभाव को छिपा सकते हैं। नये नियम में पौलुस के महत्व को ध्यान देते हुए, हम सोच सकते हैं कि उसकी यह महानता उसके व्यक्तित्व और क्षमताओं के कारण थी। फिर भी, हमें पवित्रशास्त्र में प्रमाण मिलता है कि पौलुस आमने-सामने बहुत अत्यधिक प्रभावशाली, आकर्षक, और सुसंस्कृत नहीं था (उदाहरण के लिए 2 कुरिन्थियों 10:10)। इससे हम यह स्मरण कर सकते हैं कि हमारी निर्बलता में ख्रीष्ट की बड़ाई होती है, और कि सुसममाचार की वृद्धि सांसारिक बुद्धि या स्वाभाविक क्षमता पर निर्भर नहीं है।

5. पौलुस सम्भवतः अपनी सेवकाई के पूरे समय अस्वस्थ था।

यद्यपि पौलुस अत्यन्त सक्रिय और फलदायी सुसमाचार-प्रचारक था, ऐसा सम्भव है कि वह अपनी सम्पूर्ण सेवकाई के समय दीर्धकालिक अस्वस्थता और पीड़ा से ग्रस्त था। वह पहली बार गलातिया को शारीरिक पीड़ा के कारण गया था (गलातियों 4:13-14)। हम गलातियों को लिखी गई पत्री से जानते हैं कि सम्भवतः पौलुस की आँख में कोई समस्या थी जिसके कारण वहाँ के विश्वासियों ने उसके प्रति बहुत सहानुभूति प्रकट की (गलातियों 4:15) और सम्भवतः इसी कारण से पौलुस ने अपनी पत्री की प्रामाणिकता को स्पष्ट करने के लिए बड़े अक्षरों में लिखा (गलातियों 6:11)। सम्भवतः यह वही स्थिति थी जो पौलुस के प्रसिद्ध “देह में काँटा” के पीछे थी (2 कुरिन्थियों 12:7-9)। इसके अतिरिक्त, यह कल्पना करना कठिन नहीं है कि 2 कुरिन्थियों 11:23-28 में वर्णित गम्भीर अघात ने पौलुस के शारीरिक स्वास्थ्य को भी स्थायी रीति से प्रभावित किया होगा। ऐसे मसीहियों कि लिए जो आज दीर्घकालिक अस्वस्थता और पीड़ा से ग्रस्त हैं, पौलुस का उदाहरण एक प्रोत्साहन का कारण हो सकता है।

प्रेरित पौलुस के पास परमेश्वर के विषय में और उस उद्धार के विषय में बताने के लिए बहुत कुछ है जिसे परमेश्वर हमारे लिए यीशु ख्रीष्ट के द्वारा पूरा करता है। परमेश्वर ने प्रेरित पौलुस का उपयोग किया कि वह अपने समय में और हमारे समय में भी परमेश्वर के लोगों की शिष्योन्नति करे। जब आप बाइबल का अध्ययन करते हैं, तो पौलुस के विषय में अधिक जानना अत्यन्त लाभकारी है क्योंकि प्रेरित पौलुस के विषय में जानना हमारी सहायता करता है कि हम उत्तम राति से पवित्रशास्त्र को समझें, और पवित्रशास्त्र को उत्तम रीति से समझना हमारी सहायता करता है कि हम अपने विश्वास में बढ़ें।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

मैथ्यू ए. डूड्रेक
मैथ्यू ए. डूड्रेक
डॉ. मैथ्यू ए. डूड्रेक सैनफर्ड कैलिफॉर्निया में रेफर्मेशन बाइबल कॉलेज में नये नियम के सहायक प्राध्यापक हैं।