2 कुरिन्थियों के बारे में जानने योग्य 3 बातें - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
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2 कुरिन्थियों के बारे में जानने योग्य 3 बातें

1 कुरिन्थियों के समान 2 कुरिन्थियों में भी एक ऐसी कलीसिया को संबोधित करते हुए  बहुत सारी समस्याओं को सम्मिलित किया गया है, जो अनैतिकता, झूठे शिक्षकों, पंथवाद (sectarianism) और ईश्वरविज्ञानीय गड़बड़ी (theological confusion) से  पीड़ित है। इस पत्र में कुरिन्थियों की कलीसिया के लिए प्रेरित पौलुस  की देखभाल और चिंता स्पष्ट है। आइए पत्र की तीन महत्वपूर्ण विशेषताओं पर विचार करें जो हमें इसके सम्पूर्ण संदेश को समझने और लागू करने में सहायता करती हैं।

1. 2 कुरिन्थियों कुरिन्थुस  की कलीसिया के साथ पौलुस के गहन व्यवहार के परमोत्कर्ष (culmination) का वर्णन करता है।

कुरिन्थुस में कलीसिया  की स्थापना (52 ई. के आसपास) पौलुस की दूसरी मिशनरी यात्रा के समय में हुई थी  (प्रेरितों 18:1-11 देखें)। लूका हमें बताता है कि पौलुस अठारह महीने से अधिक समय तक कुरिन्थुस  में रहा। ऐसा लगता है कि पौलुस के कुरिन्थुस से अन्ताकिया जाने के थोड़े देर पश्चात् ही नई मण्डली में बड़ी समस्याएँ खड़ी हो गईं। पौलुस को इन समस्याओं के विषय में इफिसुस में अपनी तीसरी मिशनरी यात्रा के समय में  पता चला (प्रेरितों 19 देखें )। पूरी सम्भावना है कि 2 कुरिन्थियों चौथा पत्र है जो पौलुस ने लगभग दो वर्षों के भीतर इस कलीसिया को लिखा था:

पत्र 1: “पिछला” (विलुप्त) पत्र (1 कुरिन्थियों 5:9 देखें)

पत्र 2: 1 कुरिन्थियों

पत्र 3: “दुःखद” भेंट के बाद “कठोर” (विलुप्त) पत्र ( 2 कुरिन्थियों 2:3-4; 7:8-12 देखें)

पत्र 4: 2 कुरिन्थियों

पौलुस ने तीतुस के द्वारा “कठोर” पत्र भेजा, जो कलीसिया के पश्चाताप और प्रेरित और प्रेरितीय  (apostolic) शिक्षा के प्रति निष्ठा के आनन्दपूर्ण समाचार के साथ पौलुस के पास लौटा। इस प्रकार, 2 कुरिन्थियों प्रेरित और कुरिन्थुस के विश्वासियों के बीच एक जटिल  सम्बन्ध की एक “आनन्दमय” (यद्यपि सिद्ध नहीं) परिणति  है। तितुस से कुरिन्थुस-वासियों के कुशल-क्षेम के विषय में समाचार पाकर पौलुस का आनन्दित होना (2 कुरिन्थियों 7:6-7 देखें) दर्शाता है कि प्रेरित कलीसिया  के जीवन में किस बात को महत्व देता था। इनमें कलीसिया की शांति, पवित्रता और एकता (कलसियाई अनुशासन सहित) के साथ साथ एक मसीही का नैतिक आचरण, नम्रता और उदार भण्डारीपन  सम्मिलित है। यदि प्रेरित इतना चिन्तित था कि इस कलीसिया में ये गुण हों और ये कलीसिया इन गुणों को प्रकट करें तो हमें अपने कलीसियायों और अपने मसीही जीवन में भी इन गुणों के लिए काम करना चाहिए।  

2. 2 कुरिन्थियों पौलुस की प्रेरितीय (apostolic)  सेवकाई का एक मजबूत बचाव (defense) प्रदान करता है।

पौलुस यह प्रदर्शित करने के लिए बहुत प्रयास करता है कि झूठे “महाप्रेरितों” (2 कुरिं. 11:5) के विपरीत उसकी प्रेरिताई (apostleship) प्रामाणिक है क्योंकि पुनरुत्थित और स्वर्गारोहित प्रभु यीशु ख्रीष्ट ने उसे उसके नाम में बोलने के लिए नियुक्त किया है और कार्य सौंपा है। (2 कुरिन्थियों 5:18; 13:3 देखें)। ऐसा वह निर्बलता और दुःख (2 कुरिन्थियों 11:29-30; 2 कुरिन्थियों 12:1-10; 2 कुरिन्थियों  13:4), नई वाचा (2 कुरिन्थियों 3) और मसीही सेवा (2 कुरिन्थियों 5-6) के विषयों पर विस्तार से परिचर्चा करके करता है और इसके द्वारा यह दर्शाता है कि उसकी प्रेरितीय सेवकाई  प्रभु यीशु की सेवकाई और चरित्र के अनुरूप है और इसकी विशेषता यह है कि संसार इसे दोष  के रूप में देखता है, लेकिन परमेश्वर इसे विश्वासयोग्यता के रूप में देखता है (नीचे इस पर और अधिक जानकारी दी गई है)। पौलुस अपनी प्रेरिताई  का बचाव करने के लिए अडिग है क्योंकि वह सुसमाचार की रक्षा करने के लिए अडिग है। यदि उसका सुसमाचार सत्य नहीं है, तो कुरिन्थुसवासी अभी भी अपने पापों में हैं और आशाहीन हैं। इसलिए उसका बचाव (defense) अपनी छवि के प्रति उसकी चिंता से अधिक अपने पाठकों के प्रति उसके प्रेम के विषय में है। यह ध्यान देने योग्य है कि पौलुस द्वारा अपनी प्रेरिताई  की साख (credentials) की रक्षा 2 कुरिन्थियों को एक बहुत ही व्यक्तिगत और आत्मकथात्मक पत्र बना देती है। संभवतया हम इस पत्र में नए नियम के किसी भी अन्य पत्र की अपेक्षा पौलुस और उस कलीसिया के विषय में अधिक जानकारी पाते हैं, जिसे वह लिख रहा है। पौलुस कोई उदासीन चिड़चिड़ा बूढ़ऊ (stoic curmudgeon) नहीं है जैसा कई लोगों ने उसे बना दिया है। वह संवेदनशील है फिर भी उदार है, चिंतित है फिर भी आश्वस्त है, सौम्य है फिर भी दृढ़ है। पौलुस कलीसिया से प्रेम करता है और वह सुसमाचार से प्रेम करता है। वह झूठे शिक्षकों को आने और अपने प्रेरितीय  कार्य का स्थान लेने की अनुमति देने के लिए तैयार नहीं है। वह इन नए मसीहियों से इतना प्रेम करता है कि भेड़ियों को अंदर आने और उन्हें खा जाने की अनुमति नहीं दे सकता।

3. 2 कुरिन्थियों मसीही सेवकाई के लिए एक प्रकार का आदर्श (model) प्रदान करता है।

अपने पूरे इतिहास में कलीसिया सफलता की सांसारिक विशेषताओं को कलीसिया की अगुवाई के मानदण्ड (criteria) के रूप में अपनाने के लिए प्रलोभित होती रही है। हमारे समय में हम प्रायः यह मानते हैं कि मसीही अगुवों को एक सफल सीईओ (मुख्‍य कार्यपालक अधिकारी)  या एक आकर्षक टेलीविजन व्यक्तित्व का अनुकरण करना चाहिए। कुरिन्थुसवासियों ने यह मान लिया था कि मसीही अगुवे अनुकरणीय यूनानी वक्ता की तरह दिखेंगे। झूठे प्रेरित जो कुरिन्थुस की कलीसिया में घुस आए थे, वे पौलुस के प्रेरिताई के दावे को उसकी पीड़ा, कमजोरी और वक्तृत्व लालित्य (oratory elegance) की कमी की ओर संकेत करके चुनौती दे रहे थे। तब और अब शक्ति और आकर्षण सुसमाचार के एक आशीषित सेवक के व्यावहारिक चिह्न बन सकते हैं। इन झूठे आरोपों के प्रतिउत्तर में पौलुस वास्तव में अपनी प्रामाणिकताएंँ  सामने रखता है, लेकिन वह नहीं जिसकी संभवतया हम अपेक्षा कर रहे हों। वह स्वयं (और अन्य प्रेरितों) की अनुशंसा करता (commends) है:

 हम किसी बात में ठोकर का कारण नहीं बनते जिससे कि हमारी सेवा पर आंच आए, परंतु हरएक बात में परमेश्वर के योग्य सेवकों के सदृश अपने आप को प्रस्तुत करते हैं, अर्थात बड़े धैर्य में, क्लेशों में अभाव में, संकटों में, मार खाने में, बंदी किए जाने में, उत्पातों में, परिश्रम में, जागने में, भूख में, पवित्रता में, ज्ञान में, धीरज में, कृपालुता में, पवित्र आत्मा में, सच्चे प्रेम में, सत्य के वचन में, परमेश्वर के सामर्थ्य में, धार्मिकता के  हथियारों को दाएं बाएं हाथों में लेकर, आदर और निरादर में, यश और अपयश में, बदनामी और सुनामी में, धोखा देने वालों के सदृश समझे जाते हैं फिर भी सच्चे हैं,  अनजाने के सदृश  फिर भी प्रसिद्ध, मरते हुओं के सदृश फिर भी देखो हम जीवित हैं, ताड़ना पाने वालों के सदृश फिर भी जान से मारे नहीं जाते, शोकितों के सदृश परंतु सदैव आनंद मनाते हैं कंगालों के सदृश  परंतु बहुतों को धनी बना देते हैं, ऐसों के सदृश समझे जाते हैं जिनके पास कुछ नहीं, फिर भी हम सब कुछ रखते हैं। (2  कुरिन्थियों 6:3-10) 
यह वर्णन सफल सेवकाई के हमारे निर्विवाद प्रतिमान पर प्रश्न उठाता है। क्या हम लोगों को शरीर के अनुसार मानते हैं (2 कुरिन्थियों 5:16)? 2 कुरिन्थियों हमें सिखाता है कि वास्तविक मसीही सेवकाई की विशेषता “पवित्रता और भक्तिपूर्ण सच्चाई ” है (2 कुरिन्थियों 1:12), कि कलीसिया के अधिकारी स्वत: पर्याप्‍त या आत्मनिर्भर नहीं होते हैं (2 कुरिन्थियों 3:5) और सेवकाई स्वयं को ऊँचा उठाने के विपरीत स्वयं के प्रति मरना है (2 कुरिन्थियों 4:11-12)। पौलुस ने कुरिन्थियों से पारितोषिक स्वीकार न करने का निर्णय लिया, क्योंकि वह कोई ठोकर का पत्थर नहीं रखना चाहता था (2 कुरिन्थियों 11:7-9)। वह अनुशंसा पत्र लेकर नहीं चलता था (2 कुरिन्थियों 3:1-3)। उसने चालाकी करने से (2 कुरिन्थियों . 4:2) या कानों की खुजली  (2 कुरिन्थियों 2:17)  मिटाने से मना कर दिया, क्योंकि यह उसकी सेवकाई या उसका संदेश नहीं था – यह परमेश्वर का (सन्देश) है। नई वाचा में सभी मसीही सेवकों पर भी यही बात लागू होती है। कलीसिया में सेवकाई को कलीसिया के सिर के अनुरूप ढाला जाना चाहिए- वह जो “निर्बलता में क्रूस पर चढ़ाया गया था, लेकिन परमेश्वर के  सामर्थ्य से जीवित है” (2 कुरिन्थियों  13: 4)।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

ऐरन गैरियट्ट
ऐरन गैरियट्ट
रेव. ऐरन गैरियट्ट (@AaronGarriott) टेब्लटॉक पत्रिका के प्रबन्धक सम्पादक हैं, सैन्फर्ड, फ्लॉरिडा में रेफर्मेशन बाइबल कॉलेज में निवासी सहायक प्राध्यापक हैं, तथा प्रेस्बिटेरियन चर्च इन अमेरिका में एक शिक्षक प्राचीन हैं।