क्या वे लोग, जिन्होंने ख्रीष्ट के बारे में कभी नहीं सुना, नरक जा रहे हैं? - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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क्या वे लोग, जिन्होंने ख्रीष्ट के बारे में कभी नहीं सुना, नरक जा रहे हैं?

किसी ख्रीष्टीय से पूछे जाने वाले प्रश्नों में से यह प्रश्न सर्वाधिक भावनात्मक है। इस बात को सोचने से अधिक डरावना और भयंकर कुछ नहीं है कि कोई भी मनुष्य नरक जाएगा। ऊपरी सतह पर, जब हम इस प्रकार का प्रश्न पूछते हैं, तो छिपा विचार यह चल रहा है, “ऐसा कैसे सम्भव है कि परमेश्वर किसी ऐसे व्यक्ति को नरक में भेज सकता है जिसे अवसर भी नहीं मिला उद्धारकर्ता के बारे में सुनने का? यह सही प्रतीत नहीं होता है।”

मैं कहूँगा कि उस प्रश्न का अध्ययन करने के लिए बाइबल का सबसे महत्वपूर्ण भाग पौलुस के द्वारा रोमियों को लिखी गई पत्री का पहला अध्याय है। रोमियों की पुस्तक का मुख्य उद्देश्य शुभ सन्देश की उद्घोषणा करना है—उस उद्धार की अद्भुत कहानी जिसे परमेश्वर ने सम्पूर्ण मानव जाति के लिए ख्रीष्ट में उपलब्ध कराया है, परमेश्वर के अनुग्रह की महिमा का धन, और हमें छुड़ाने के लिए परमेश्वर किस सीमा तक गया। परन्तु जब पौलुस सुसमाचार का परिचय देता है, वह पहले अध्याय में यह घोषित करते हुए आरम्भ करता है कि परमेश्वर का प्रकोप स्वर्ग से प्रकट होता है और परमेश्वर के क्रोध का यह प्रकटीकरण एक ऐसे मानव जाति के विरुद्ध है जो भक्तिहीन तथा अधर्मी हो गए है। इसलिए परमेश्वर के क्रोध का कारण बुराई के विरुद्ध क्रोध है। परमेश्वर निर्दोष लोगों से क्रोधित नहीं है; वह क्रोधित है दोषी लोगों से। उन पर विशेषकर इस बात के लिए आरोप लगाया जाता है परमेश्वर के आत्म-प्रकटीकरण को नकारने के लिए।

पौलुस इस पर बल देता है कि सृष्टि के पहले दिन से और सृष्टि के द्वारा, परमेश्वर ने स्पष्ट रूप से अपनी अनन्त सामर्थ्य और अस्तित्व तथा चरित्र को पृथ्वी के प्रत्येक मनुष्य पर प्रकट किया है। दूसरे शब्दों में, प्रत्येक मनुष्य इस बात को जानता है कि एक परमेश्वर है और कि वह परमेश्वर के प्रति उत्तरदायी है। फिर भी, प्रत्येक मनुष्य परमेश्वर के प्रति अनाज्ञाकारिता करता है। पौलुस सुसमाचार की अपनी व्याख्या को उस बिन्दु से क्यों आरम्भ करता है? वह यह कहने का प्रयास कर रहा है तथा वह इस बात को रोमियों की पुस्तक में करता है: ख्रीष्ट एक ऐसे संसार में भेजा गया है जो पहले से ही नरक के मार्ग पर है। ख्रीष्ट ऐसे संसार में भेजा गया है जो खोया हुआ है, तथा उस पिता को अस्वीकार करने के लिए दोषी हैं जिसे वे वास्तव में जानते हैं।

आइए, अब हम अपने मूल प्रश्न पर पुनः विचार करते हैं, “क्या परमेश्वर उन लोगों को नरक भेजता है जिन्होंने यीशु के बारे में कभी नहीं सुना?” परमेश्वर कभी भी यीशु को अस्वीकार करने के लिए किसी को दण्डित नहीं करता यदि उसने यीशु के बारे में नहीं सुना हो। जब मैं यह कहता हूँ, तो लोग राहत की सांस लेते हैं और कहते हैं, “तब तो यह अच्छा होगा कि हम यीशु के बारे में लोगों को न बताएं क्योंकि हो सकता है कोई उसे अस्वीकार कर दे। तब वे वास्तव में गहरी समस्या में हैं।” किन्तु फिर भी, नरक जाने के अन्य कारण भी हैं। परमेश्वर पिता को अस्वीकार करना एक बहुत गम्भीर बात है। और कोई भी अन्तिम दिन यह नहीं कह पाएगा, “मुझे नहीं पता था कि आप अस्तित्व में है,” क्योंकि परमेश्वर ने स्वयं को स्पष्ट रूप से प्रकट किया है। अब बाइबल स्पष्ट कर देती है कि लोगों को तीव्रता से ख्रीष्ट की आवश्यकता है। हो सकता है कि परमेश्वर कभी अपनी दया को कभी अपने आप प्रकट करेगा, किन्तु इस बात पर आशा रखने के लिए मेरे पास कोई कारण नहीं है। मैं सोचता हूं कि हमें ख्रीष्ट के तीव्र आदेश को गम्भीरता से ध्यान देना चाहिए, और पूरे संसार में, और हर जीवित प्राणी के पास जाकर यीशु के बारे में बताना चाहिए।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

आर.सी. स्प्रोल
आर.सी. स्प्रोल
डॉ. आर.सी. स्प्रोल लिग्नेएर मिनिस्ट्रीज़ के संस्थापक, सैनफर्ड फ्लॉरिडा में सेंट ऐन्ड्रूज़ चैपल के पहले प्रचार और शिक्षण के सेवक, तथा रेफर्मेशन बाइबल कॉलेज के पहले कुलाधिपति थे। वह सौ से अधिक पुस्तकों के लेखक थे, जिसमें द होलीनेस ऑफ गॉड भी सम्मिलित है।