हमारी कानाफूसी करने की लत को तोड़ना - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
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हमारी कानाफूसी करने की लत को तोड़ना

हाई स्कूल में मेरे एक अच्छे मित्र पर चोरी करने का आरोप लगाया गया। उस पर कोई औपचारिक दोष तो नहीं लगाया गया, परन्तु कानाफूसी के द्वारा अनौपचारिक दोष उस सम्पूर्ण छोटे नगर में फैल गया। उसके मना करने के पश्चात् भी वहाँ के कानाफूसी करने वालों ने उसे दोषी मान लिया। कई महीने पश्चात् वास्तविक दोषी को पकड़ा गया। परन्तु उन झूठे आरोपों के लिए किसी ने भी क्षमा नहीं माँगी, न तो व्यक्तिगत रीति से और न ही सामूहिक रीति से। समुदाय के अधिकाँश लोग यही सोचते रहे कि मेरा मित्र दोषी था, भले ही उसकी निर्दोषता प्रमाणित हो चुकी थी।

सम्पूर्ण बाइबल में निन्दा और कानाफूसी के पाप और खतरों के विषय में चेतावनियाँ पाई जाती हैं। ये महत्वहीन पाप नहीं हैं। रोमियों 1:28-31 में पौलुस मानव जाति की भ्रष्टता के विषय में प्रभावशाली रीति से लिखता है:

जब उन्हें परमेश्वर को मानना और अधिक उचित न लगा, तब परमेश्वर ने भी उन्हें उनके भ्रष्ट मन के वश में छोड़ दिया, कि वे अनुचित कार्य करें, अतः वे सब प्रकार की अधार्मिकता, दुष्टता, लोभ, द्वेष से तथा सारी ईर्ष्या, हत्या, झगड़े, छल और डाह से भर गए। वे [कानाफूसी करनेवाले], निन्दक, परमेश्वर से घृणा करने वाले, ढीठ, हठी, डींगमार, बुराई करनेवाले, माता-पिता की आज्ञा न माननेवाले, समझ-रहित, विश्वासघाती, प्रेम-रहित और दया-रहित हो गए।

दुष्टता, हत्या, दया-रहित होने और परमेश्वर से घृणा करने के बारे में बोलने के मध्य में, पौलुस बकवाद और निन्दा की बात करता है। परमेश्वर की दृष्टि में ये दोनों द्वेषपूर्ण कार्य छोटे अपराध नहीं माने जाते हैं। फिर भी निन्दा, और विशेषकर कानाफूसी, खुले रूप से प्रतिदिन किये जाते हैं, मानो हमारे पास इस प्रकार दुष्टता करने की अनुमति हो।

तो निन्दा क्या है, और यह कानाफूसी से भिन्न कैसे है? निन्दा एक झूठा कथन है जो किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को हानि पहुँचाता है। कानाफूसी ऐसी व्यर्थ बातें हैं जो सत्य या असत्य हो सकती हैं। कभी-कभी हम यह दावा करने के द्वारा अपनी कानाफूसी को सही ठहराते हैं कि हम तो केवल उन्हीं बातों को दोहरा रहे हैं जिन्हें हम सत्य मानते हैं। कानाफूसी करना उस जानकारी को साझा करना है जिसे साझा नहीं किया जाना चाहिए। यह ऐसी जानकारी हो सकती है जिसे हम रोमांचक सोचते हैं, परन्तु यह उन लोगों के लिए लाभकारी नहीं है जिनके विषय में वह है। कानाफूसी के लिए यूनानी शब्द का अर्थ “फुसफुसाना” है। हम कानाफूसी करते समय फुसफुसाते हैं क्योंकि किसी अन्य व्यक्ति के विषय में जिस जानकारी को हम साझा कर रहे हैं वह निजी, अति वैयक्तिक, या हानिकारक हो सकती है। सामान्यतः कानाफूसी वह समाचार है जिसे यदि वह हमारे विषय में हो तो हम नहीं चाहते कि साझा किया जाए।

कानाफूसी करना एक माध्यम है जिसके द्वारा हम दूसरों को नीचे गिराते हैं और स्वयं को ऊँचा करते हैं। हम “सच्ची” कानाफूसी के द्वारा उन लोगों की आलोचना करते हैं जिनके विषय में हम अच्छा नहीं सोचते हैं: “देखो, मैंने तुम्हें बताया था कि वह किस प्रकार का व्यक्ति है।” हम स्वयं के विचारों को सही ठहराने के लिए कानाफूसी का उपयोग करते हैं: “देखों इससे पता चलता है कि मैंने जो तुम्हें बताया था, वह सही है।” हम कानाफूसी को उपयोग करते हैं जिससे कि हम महत्वपूर्ण जानकारी के लिए अखण्डनीय स्रोत बन सकें। हम चाहते हैं कि अपने मित्रों के समूह में हम वह पहले व्यक्ति हों जो नये समाचार की घोषणा करता है। भले हम इसे किसी भी रीति से प्रस्तुत करें, परमेश्वर इसे एक घोर पाप कहता है जिसे एक ऐसे सूची में रखा गया है जिनमें दुष्टता के बुरे रूप पाए जाते हैं। मैं टेबलटॉक के सम्पादकों के प्रति आभारी हूँ जिन्होंने मुझे इस विषय पर लिखने के लिए कहा, क्योंकि मेरे अध्ययन ने मुझे स्मरण दिलाया कि मैं स्वयं भी प्रायः इस कार्य में सम्मिलित होता हूँ जिसमें मेरी जीभ शैतान के उद्देश्यों को पूरा करती है।

तो फिर हम इस छली पाप से स्वयं को कैसे बचाएँ? हमें क्या करना चाहिए जब कोई हमसे किसी के विषय में कानाफूसी करता है। हमें क्या करना चाहिए जिससे कि हम कानाफूसी की बातों के लिए माध्यम न बनें?

हमें उस बात की सत्यता को जानने का प्रयास करना चाहिए कि जिसे हम सुनते हैं। यदि वह सत्य नहीं है और हम उसे दोहराते हैं, तो हमारे पाप में निन्दा भी जुड़ जाती है। यदि बात सत्य है, तो हम उस व्यक्ति के लिए अनुग्रह का माध्यम बन सकते हैं जिसने पाप किया या फिर उस व्यक्ति के लिए सान्त्वना का साधन बन सकते हैं जिसके प्रति पाप किया गया है। यदि बात सत्य न हो, तो हमें उस व्यक्ति से बात करनी चाहिए जिसने उस झूठ को हमें बताया। किन्तु सत्यता को जानने का उद्देश्य कभी भी यह नहीं होना चाहिए कि हम उस बात (कानाफूसी) को शुद्ध विवेक से आगे बढ़ाएँ।

दूसरा, हमें अपने आप से पूछना चाहिए, “क्या हमारी बातचीत आस-पास के संसार के लिए आशिष है? क्या हमारे शब्द सान्त्वना, चंगाई, और शान्ति को बढ़ावा देते हैं?” नीतिवचन के लेखक ने कहा, “मधुर वचन मधु के छत्ते के समान होते हैं। वे प्राण के लिए मीठे और हड्डियों को चंगाई देने वाले होते हैं” (16:24)। पवित्र आत्मा को हमारे दैनिक वार्तालापों को प्रेम, आनन्द, शान्ति, धीरज, दयालुता, भलाई, विश्वस्तता, नम्रता और संयम से भरपूर करना चाहिए—कानाफूसी की बातों से नहीं। इसका अर्थ है कि बोलने से पहले हमें अपने आप से कई महत्वपूर्ण प्रश्न पूछने चाहिए। जिस जानकारी को मैं साझा करने जा रहा हूँ उससे क्या भलाई होगी? क्या यह अधिक उत्तम रहेगा कि इस जानकारी को साझा न किया जाए? इस जानकारी को साझा करना मेरी स्वयं की खराई को कैसे प्रदर्शित करता है?

इन शब्दों को लिखने के पश्चात् मैं सोचता हूँ कि मुझे कहना चाहिए, “मैं मौन रहने का प्रण ले लेता हूँ।” परन्तु इस प्रकार का प्रण मुझे सहायता, सान्त्वना, चंगाई, और चेतावनी के शब्द बोलने से रोकेगा—हाँ, चेतावनी के शब्द कभी-कभी एक आवश्यक और पवित्र प्रत्युत्तर होते हैं। भली-मनसा वाले मसीहियों के द्वारा भी बड़ी हानि की गई है जब उन्होंने निर्णायक समयों में आवश्यक जानकारी को छिपाए रखा। उनको प्रेम में सत्य बोलना चाहिए था जिससे कि वे सही निर्णय लेने में लोगों की सहायता करते। परन्तु बुरी जानकारी न साझा करने की इच्छा के कारण वे शान्त रहे। कभी-कभी हमें किसी समूह या व्यक्ति का अवलोकन करने के लिए कहा जाता है। हमारी साक्षी के आधार पर महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाएँगे। ऐसे अवलोकन कानाफूसी नहीं हैं। उन परिस्थितियों में सत्य न बोलने से विनाशकारी प्रभाव हो सकते हैं।

प्रिय पाठक, हमारे वार्तालापों को नियन्त्रित करना सरल बात नहीं है। हमें याकूब के इन शब्दों को कण्ठस्थ करना चाहिए:

क्योंकि प्रत्येक जाति के पशु-पक्षी, रेंगने वाले जन्तु, और समुद्री जीव पाले जा सकते हैं तथा मानव जाति द्वारा वश में किए गए हैं, पर जीभ को कोई भी, वश में नहीं कर सकता। यह एक ऐसी बुराई है जो कभी शान्त नहीं रहती तथा प्राण-नाशक विष से भरी है। इसी से हम अपने प्रभु और पिता की प्रशंसा करते हैं, और इसी से हम मनुष्यों को शाप देते हैं, जो परमेश्वर की समानता में बनाए गए हैं। (3:7-9)

कानाफूसी करना हर दिन का प्रलोभन है, और इसे केवल पवित्र आत्मा द्वारा सशक्त, निरन्तर और सावधानीपूर्ण प्रयास से ही पराजित किया जा सकता है। हमारे लिए यह अच्छा होगा यदि हम कानाफूसी की बात को प्रार्थना में यीशु से कहें। जब हम अपनी कानाफूसी यीशु से कहेंगे, तो वह हम से पूछेगा, “क्या तुमने भी यह सब नहीं किया है?” (रोमियों 2:1 देखें)।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

जॉन पी. सार्टेल सीनियर
जॉन पी. सार्टेल सीनियर
रेव्ह जॉन पी. सार्टेल सीनियर टेनेसी के मेम्फिस में क्राइस्ट कवनेन्ट रिफॉर्म्ड चर्च के वरिष्ठ पास्टर हैं। वे व्हाट क्रिस्टियन पैरेन्ट्स शुड नो अबोउट इनफन्ट बैप्टिस्म पुस्तक के लेखक हैं।