पौलुस में अनुग्रह - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
पवित्रशास्त्र को जानना
16 अगस्त 2022
पतरस और यहूदा में आशा
23 अगस्त 2022
पवित्रशास्त्र को जानना
16 अगस्त 2022
पतरस और यहूदा में आशा
23 अगस्त 2022

पौलुस में अनुग्रह

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का तीसरा अध्याय है: नए नियम की पत्रियाँ

पौलुस के पत्र यीशु ख्रीष्ट में परमेश्वर की महिमा पर केन्द्रित हैं। पौलुस द्वारा प्रचार किया गया सुसमाचार आधारभूत रूप से परमेश्वर के पुत्र, यीशु ख्रीष्ट के विषय में था (रोमियों 1:2-4)। पौलुस के लिए, सुसमाचार मुख्य है (1 कुरिन्थियों 15:3), और क्योंकि सुसमाचार ख्रीष्ट के विषय में है, तो यह बात सुस्पष्ट हो जाता है कि ख्रीष्ट मुख्य है। पौलुस सुसमाचार को इस सन्देश के रूप में संक्षेपित करता है कि ख्रीष्ट मरा और जैसा कि पुराने नियम में भविष्यद्वाणी की गयी उसके अनुसार हमारे पापों के लिए जी उठा (1 कुरिन्थियों 15:3-4)। पौलुस का सुसमाचार इस बात पर बल देते हुए यीशु को प्रभु के रूप में (रोमियों 10:9) घोषित करता है कि पापियों को उद्धार पाने के लिए अपने विश्वास को क्रूस पर चढ़ाए गए और जी उठे यीशु पर रखना है (4:25)। 

क्योंकि पौलुस के लेखों में सुसमाचार प्रमुख है, इसलिए हमें यह जानकर आश्चर्य नहीं होता कि ख्रीष्ट द्वारा प्राप्त किए गए उद्धार का बहुमुखी प्रकार से वर्णन किया गया है। कोई भी परिभाषा या रूपक उस बात का जिसे परमेश्वर ने ख्रीष्ट में हमारे लिए किया है, सम्पूर्णता से वर्णन नहीं कर सकती है। इसलिए, ख्रीष्ट में परमेश्वर के उद्धार के कार्य का वर्णन अन्य विषयों के साथ-साथ धर्मीकरण, उद्धार, मेलमिलाप, लेपालकपन, छुटकारे, प्रायश्चित, दुष्ट शक्तियों पर विजय, पवित्रीकरण, पुनरुज्जीवन, और चुनाव के सम्बन्ध में किया है। इन सभी शब्दों को अधिक अध्ययन की आवश्यकता है, क्योंकि वे उद्धार की कहनी में हमारे लिए रंग भरते हैं। वे मात्र अमूर्त ईश्वरविज्ञानी शब्द नहीं हैं, क्योंकि हम ईश्वरीय न्यायाधीश के द्वारा धर्मी घोषित किए गए हैं, पाप से बचाए गए हैं, परमेश्वर के मित्र हैं, उसके परिवार के हैं, पाप की सामर्थ्य से मुक्त हुए हैं, परमेश्वर के क्रोध को ख्रीष्ट की मृत्यु में सन्तुष्ट होते हुए देखा है, शैतान और दुष्टात्माओं पर विजय पायी है, पवित्रता के क्षेत्र में रखे गए हैं, पुनः जन्म लिया है, और जगत की उत्पत्ति से पूर्व परमेश्वर द्वारा चुने गए हैं। उद्धार के बहुमुखी वर्णन के पीछे यह सत्य है कि उद्धार परमेश्वर के अनुग्रह के कारण है। विश्वासियों ने अपनी आज्ञाकारिता या गुणों के कारण उद्धार नहीं प्राप्त किया है। उद्धार परमेश्वर की ओर से उन लोगों के लिए दान है जो अपना भरोसा ख्रीष्ट पर रखते हैं (इफिसियों 2:8-9)।

उद्धार की आवश्यकता क्यों हैं

पौलुस के पत्र विश्वासियों को दिए गए उद्धार के आश्चर्य के कारण प्रशंसा और धन्यवाद के वातावरण को दिखाते हैं। विश्वासी गहराई से इस बात को जानते हैं कि सब वस्तुएँ जिनका वे आनन्द लेते हैं, वे उन्हें दी गयी हैं (1 कुरिन्थियों 4:7)। उनकी प्रशंसा भी पाप की गहरी अनुभूति में जड़वत् है जो कि उन्हें परमेश्वर के अनुग्रह के अयोग्य बनाती है। पाप आधारभूत रूप से परमेश्वर को धन्यवाद देने और महिमा देने से इनकार करना है (रोमियों 1:21)। ऐसे मनुष्य जिनका हृदय-परिवर्तन नहीं हुआ है, अपना जीवन परमेश्वर को नहीं देते हैं, परन्तु अपनी आराधना और निष्ठा सृष्टिकर्ता के स्थान पर सृष्टि को देते हैं (पद 25)। ईश्वर केन्द्रित होने के स्थान पर, वे स्व-केन्द्रित हैं, और इसलिए वे अपने जीवनों पर परमेश्वर के प्रभुता से दूर हो जाते हैं। अन्य शब्दों में, पाप को मूर्तिपूजा के रूप में चित्रित किया जा सकता है।

पाप मनुष्यों के जीवनों में स्पष्टतः स्वयं को प्रकट करता है जिसका अर्थ है कि यह केवल एक अमूर्तता नहीं है (रोमियों 1:24-32)। मानव जीवन अनैतिक यौन सम्बन्ध, व्यभिचार, ईर्ष्या, क्रोध, हत्या, झगड़ा, मतभेद, छल, झूठ, चोरी, अहंकार, अभिमान, लोभ, और माता-पिता की अवज्ञा से चिन्हित है। अन्य शब्दों में कहें तो, मनुष्य परमेश्वर की व्यवस्था को पूरी करने में असफल रहे हैं। “सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित है” (3:23)। परमेश्वर सिद्ध आज्ञापालन की माँग करता है, परन्तु किसी ने भी उसके द्वारा दी गयी व्यवस्था के अनुसार सब कुछ नहीं किया है (गलातियों 3:10; 5:3)। व्यवस्था के स्तर के द्वारा, अर्थात्, व्यवस्था के कामों के द्वारा, कोई भी परमेश्वर के सम्मुख धर्मी नहीं है (रोमियों 3:20)। व्यवस्था बचा नहीं सकती, क्योंकि यह मनुष्य के पाप को प्रकट करती है। उल्लेखनीय रूप से, मनुष्य पापी होने के बाद भी अपने व्यवस्था के आज्ञापलन पर गर्व करने की ओर प्रवृत्त होते हैं (रोमियों 3:28; 4:1-5; 10:1-8; फिलिप्पियों 3:2-9; गलातियों 6:12-13; इफिसियों 2:8-9)। यह प्रवृत्ति यह प्रकट करती है कि हम मनुष्य कितने धोखा देने वाले और अहंकारी हैं। केवल विश्वास से ही उद्धार प्राप्त होता है, क्योंकि विश्वास परमेश्वर को महिमा देता है क्योंकि यह इस बात को पहचानता है कि सामर्थ्य और शक्ति केवल उसी से मिलता है (रोमियों 4:20-21)। “जो कुछ विश्वास से नहीं, वह पाप है” (14:23), क्योंकि परमेश्वर पर भरोसा करने में विफलता शरीर और मानवीय क्षमता पर निर्भर होने का संकेत देती है, जिससे कि महिमा परमेश्वर के स्थान पर मनुष्य को मिले।

मनुष्यों की पापमयता को इफिसियों 2:1-3 में प्रकट किया जाता है। उद्धार से पूर्व, मनुष्य संसार, शरीर, और शैतान के नियन्त्रण में थे। हम कह सकते हैं कि पाप सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, और आत्मिक है। सामाजिक रूप से, संसार का दबाव और प्रभाव मनुष्य को पाप करने के लिए बुलाता है। मनोवैज्ञानिक रूप से, अविश्वासियों के हृदयों में इच्छाएँ शारीरिक और स्वार्थी हैं। आत्मिक रूप से, अविश्वासी शैतान और उसकी दुष्टात्माओं के अधीन हैं (6:10-19)। इसलिए, यह जानना कोई आश्चर्य नहीं है, कि पापी पाप के दासत्व में हैं (रोमियों 6:6)। उनमें परमेश्वर के प्रति समर्पण और उसकी व्यवस्था का पालन करने की कोई क्षमता नहीं है (8:7-8)। मनुष्य केवल आत्मिक रूप से अस्वस्थ या दुर्बल नहीं परन्तु “[अपने] अपराधों और पापों में मरे हुए हैं” (इफिसियों 2:1)। वास्तव में, मनुष्य इस संसार में आदम के पुत्र और पुत्रियों के रूप में प्रवेश करते हैं। आदम के एक पाप के कारण, हम संसार में आत्मिक रूप से मृत और परमेश्वर के सम्मुख दोषी प्रवेश करते हैं (रोमियों 5:12-19)। आधारभूत रूप से मानव जीवन व्यक्तिवादी नहीं है, हम सब आदम की संतान हैं, जो हमारी वाचा का प्रधान है, और इस प्रकार हम जीवन में उनके समान प्रवेश करते हैं जो परमेश्वर के सम्मुख दोषी और बिना जीवन के हैं।

ख्रीष्ट का व्यक्ति और पवित्र आत्मा

पाप के विषय में पौलुस जो कहता है वह हमें उस उद्धार के आश्चर्य और महिमा को प्रभावित करता है जिसे ख्रीष्ट ने उनके लिए पूरा किया है जो उसके हैं। आश्चर्यजनक छुटकारा एक आश्चर्यजनक व्यक्ति का कार्य रहा होगा, और पौलुस अपने पाठकों के लिए यीशु ख्रीष्ट की पहचान को सामने लाता है। वह दाऊद का पुत्र है —पुराने नियम में प्रतिज्ञा किया गया मसीहा (रोमियों 1:3; 2 तीमुथियुस 2:8) जो दाऊद के वंश के विषय में की गयी प्रतिज्ञाओं को पूरा करता है (2 शमूएल 7; भजन 89; 132)। वह दूसरा आदम है, वह जिसने प्रथम आदम के पापों पर विजय पाई और अपने लोगों को अपनी धार्मिकता धारण करवाता है (रोमियों 5:12-19; 1 कुरिन्थियों 15:21-22)। वह ऊँचा किया गया प्रभु है जो अपने लोगों के लिए मृत्यु का दुख उठाने के पश्चात् महिमावान और ऊँचा किया गया है (फिलिप्पियों 2:6-11)। वह परमेश्वर का पुत्र है जो परमेश्वर के उसी स्वभाव को साझा करता है (रोमियों 1:3-4), और इसलिए स्वयं परमेश्वर के समान एक ही पहचान को साझा करता है (रोमियों 9:5; तीतुस 2:13)। यीशु ख्रीष्ट “अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप है” (कुलुस्सियों 1:15) और सब कुछ का सृष्टिकर्ता है (कुलुस्सियों 1:16; 1 कुरिन्थियों 8:6)। परमेश्वर की समस्त परिपूर्णता यीशु में वास करती है (कुलुस्सियों 1:19; 2:9), और इसलिए वह सभी वस्तुओं में श्रेष्ठ है (कुलुस्सियों 1:18)।

तो, मसीही जीवन, मूलतः परमेश्वर और ख्रीष्ट केन्द्रित है। विश्वासी जो भी करते हैं, यहाँ तक कि पीना और खाना, सब कुछ को परमेश्वर की महिमा के लिए किया जाना चाहिए (1 कुरिन्थियों 10:31)। परन्तु इस सत्य को इस रीति से भी व्यक्त किया जा सकता है कि सब कुछ जो विश्वासी करते हैं, यीशु के नाम से किया जाता है, “सब प्रभु यीशु के नाम से करो” (कुलुस्सियों 3:17)। मसीही किस प्रकार का जीवन जिया करें जो परमेश्वर को प्रसन्न करे? पौलुस के अनुसार, एक ऐसा जीवन पवित्र आत्मा की सामर्थ से जिया जाता है। मसीहियों को आनन्द से और परमेश्वर की इच्छा के अनुसार जीने के लिए आत्मा से परिपूर्ण होना चाहिए (इफिसियों 5:18)। जब विश्वासी आत्मा में चलते है, आत्मा में समर्पित होते हैं, आत्मा के साथ कदम मिला कर चलते हैं, और आत्मा के लिए बोते हैं, तो वे शरीर की लालसाओं पर विजय पा लेते हैं (गलातियों 5:16,18,25; 6:8)। प्रभु का आत्मा स्वतन्त्रता लाता है (2 कुरिन्थियों 3:17), जिससे कि जो आत्मा में चलें वह परमेश्वर की इच्छा को पूरा करें (रोमियों 8:4)। इस प्रकार से, पौलुस का ईश्वरविज्ञान, मूलतः त्रिएकतावादी (Trinitarian) है —हमारा महान उद्धार पिता, पुत्र, और पवित्र आत्मा का कार्य है।

कलीसिया

विश्वासियों को एकान्त में नहीं बचाया जाता है। यह सदैव से परमेश्वर का ध्येय था कि एक समूह को अपनी महिमा के लिए बचाए —यीशु ख्रीष्ट की कलीसिया को। पौलुस इस बात पर बल देता है कि कलीसिया परमेश्वर के लिए महिमा लाती है (इफिसियों 2:7; 3:10)। कलीसिया ख्रीष्ट की देह (1 कुरिन्थियों 12:27) और परमेश्वर के मन्दिर (1 कुरिन्थियों 3:16) के रूप में वर्णित की गयी है। यह विशेषरूप से पौलुस के लिए महत्वपूर्ण है कि कलिसीया में एकता पाई जाए। इसलिए, वह विश्वासियों को उत्साहित करता है कि जब भी वे इकट्ठे हों, तो एक दूसरे की उन्नति करें (इफिसियों 4:11-16; 1 कुरिन्थियों 12-14)। आत्मा विश्वासियों को दान प्रदान करता है जिससे कि वे अन्य विश्वासियों का निर्माण और उन्हें सशक्त कर सकें, न कि इसलिए कि वे अपनी आत्मिकता या प्रतिभा का प्रचार-प्रसार कर सकें। शक्तिशाली और दुर्बल दोनो ही विश्वासियों को यह विचार करना चाहिए कि क्या प्रेमपूर्ण है और अपनी इच्छाओं और आकांक्षाओं को सन्तुष्ट करने के लिए जीने से बचना चाहिए (1 कुरिन्थियों 8-10; रोमियों 14-15)। 

युगान्त विज्ञान (ESCHATOLOGY)

पौलुस के ईश्वरविज्ञान की केन्द्रिय विशेषता युगान्त विज्ञान है। युगान्त विज्ञान को “अन्तिम बातों” तक सीमित नहीं रखना चाहिए, क्योंकि पौलुस के अनुसार, अन्तिम दिनों का आरम्भ यीशु ख्रीष्ट की मृत्यु और पुनरुत्थान के साथ हुआ था। अन्तिम दिनों का उद्घाटन हो चुका है परन्तु अभी तक यीशु ख्रीष्ट में पूर्ण नहीं हुआ है। तो, विश्वासी, हो-चुका-किन्तु-अभी-नहीं (already but not yet) के बीच की अन्तरावधि में जीते हैं। वे पहले से बचाए गए हैं परन्तु अन्तिम दिन में अपने उद्धार की परिपूर्णता की प्रतिक्षा कर रहे हैं (रोमियों 5:9)। वे अभी छुड़ाए जा चुके हैं परन्तु अपने अन्तिम छुटकारे की प्रतिक्षा में हैं‌ — जब वे शारीरिक रीति से जी उठेंगे (रोमियों 8:23; इफिसियों 1:7)। मसीही लोग अभी सिद्धता का अनुभल नहीं करेंगे क्योंकि उनके शरीर अभी भी नश्वर हैं और वे अन्तिम पवित्रीकरण की प्रतिक्षा में हैं (फिलिप्पियों 3:12-16; 1 थिस्स्लुनीकियों 5:23-24)। यद्यपि, विश्वासियों के पास भविष्य के उद्धार की निश्चित आशा है। यीशु पुनः आएगा, और वे सब जो उस पर भरोसा करते हैं मरे हुओं में जी उठेंगे (1 थिस्स्लुनीकियों 4:13-18)। अन्तिम शत्रु के रूप में मृत्यु पर विजय पा ली जाएगी (1 कुरिन्थियों 15:26), और वे जो ख्रीष्ट में भरोसा करने से इनकार करते हैं उन्हें अनन्त न्याय का सामना करना पड़ेगा (2 थिस्सलुनीकियों 1:5-10), जब्कि वे जो उसमें भरोसा करते हैं वे ऐसे आनन्द का अनुभव करेंगे जो कभी समाप्त न होगा।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया

थॉमस आर. श्राइनर
थॉमस आर. श्राइनर
डॉ. थॉमस आर. श्राइनर लूईविल, केन्टकी मे सदर्न बैप्टिस्ट सेमिनेरी में नया नियम अर्थानुवाद के प्राध्यापक, बाइबलीय ईश्वरविज्ञान के प्राध्यापक, तथा ईश्वरविज्ञान के विद्यालय के सहायक डीन हैं। वे अनेक पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें स्पिरिचुअल गिफ्ट्स (Spiritual Gifts) सम्मिलित है।