हमारे कार्य में आनन्द - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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हमारे कार्य में आनन्द

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का दूसरा अध्याय है: आनन्द

सोमवार सम्भवतः सप्ताह का सबसे भयभीत करने वाला दिन है। और हम सभी जानते हैं क्यों। यह वह दिन है जो शुक्रवार की प्रतीक्षा, शनिवार के आनन्द, और रविवार के विश्राम को समाप्त कर देता है। सोमवार ही को हम में से अधिकांश कार्य पर लौटते हैं, या, कम से कम, सामान्य, नियमित रूप से निर्धारित व्यस्तता पर लौटते हैं। सोमवार का अधिक भय किया जाता है क्योंकि अधिकतर लोग अपने कार्य से भयभीत प्रतीत होते हैं। परन्तु क्या ऐसा होना चाहिए? क्या इसके स्थान पर हमारे परिश्रम में सच्चा और स्थायी आनन्द प्राप्त करने का कोई मार्ग है, विशेष रूप से ऐसे व्यवसायों में जिनमें प्राय: नीरस मांगें और दोहराए जाने वाले कार्य सम्मिलित होते हैं? मातृत्व निश्चित रूप से उस विवरण में उपयुक्त है, और यद्यपि मातृत्व कोई व्यवसाय नहीं है जैसे हम व्यवसायों को परिभाषित करते आए हैं (क्योंकि इसके लिए डॉलर में भुगतान नहीं किया जाता है), यह कार्य है।

जब मेरे बच्चे छोटे और शिशु थे, तो मेरा दैनिक कार्य प्रत्येक दिन एक जैसा दिखता था। परन्तु मातृत्व की अवस्था में जिस अवस्था में मैं वर्तमान में हूँ, मेरा दैनिक कार्य प्रत्येक दिन बहुत भिन्न दिखता है। यद्यपि, मेरे बच्चे छोटे होने के बाद से घर सम्भालने के आवश्यक कार्य नहीं बदले हैं। कपड़े धोने की अभी भी आवश्यकता है, बर्तनों को अभी भी साफ करने की आवश्यकता है, भोजन को अभी भी परोसे जाने की आवश्यकता है। एक दिन के बाद दूसरे दिन उसके बाद एक और दिन—यह सब एक समान है। यदि हम सावधान नहीं हैं, तो कुछ अलग—सम्भवतः नया और रोमांचक करने की अभिलाषा करना सरलता से आरम्भ हो सकता है। कार्य, विशेष रूप से दोहराव और नीरस कार्य, बहुत कठिन हो सकता है। वे दोहराव और नीरस कार्य उस भय की भावना को सुदृढ़ कर सकते हैं जो हम प्राय: अपने कार्य के विषय में रखते हैं।

बाइबल में कार्य के विषय में कहने के लिए बहुत कुछ है, परन्तु मैं दो क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना चाहती हूँ जो हमें उत्साहित करने में सहायता कर सकते हैं उन नीरस और प्रतिदिन के प्रेम के कार्यों को करने में जिन्हें हम माताएँ करती हैं।

कार्य प्रभु के लिए है
अपने कार्य से भय के हमारे प्रलोभन से लड़ने का एक सबसे पहले उपाय यह स्मरण रखना है कि कार्य अन्तत: हमारे सृष्टिकर्ता परमेश्वर के लिए और उसके विषय में है। हमें संसार द्वारा बताया जाता है कि हमें ऐसे कार्य को करना चाहिए जो परिपूर्ण और संतोषजनक हो। मैं नहीं सोचती कि अपने व्यवसाय से प्रेम करने या किसी ऐसी वस्तु का पीछा करने में स्वाभाविक रूप से कुछ भी अनुचित है जिसके विषय में आप भावुक हैं। परन्तु यदि हम केवल इसी पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो हम सललता से मोहभंग हो सकते हैं क्योंकि काम कठिन है और पतन से प्रभावित है। इसके स्थान पर, यदि हम जानते हैं कि प्रत्येक बर्तन का धोया जाना और कपड़े धोने का हर भार और हर लंगोट बदला जाना प्रभु के लिए है, तो क्या यह बहुत बड़ा, अधिक महत्वपूर्ण केन्द्र बिन्दु नहीं है?

यदि हमारे पास बच्चे और घर है, तो परमेश्वर ने हमें अपने बच्चों की चरवाही करने और अपने घरों की देखभाल करने के लिए बुलाया है। जब मैं इस कार्य पर ध्यान केंद्रित करती हूँ, तो यह सोचना सरल होता है कि मैं अधिकतर अपने बच्चों और अपने पति की सेवा कर रही हूँ, परन्तु जैसा कि पौलुस ने हमें कुलुस्सियों में स्मरण दिलाया है: “जो कुछ तुम करते हो, उस कार्य को मनुष्यों का नहीं वरन प्रभु का समझकर तन-मन से करो, यह जानते हुए कि तुम प्रभु से प्रतिफल अर्थात मीरास पाओगे। तुम प्रभु मसीह ही की सेवा करते हो” (कुलुस्सियों 3:23-24)। बच्चों और घर की देखभाल का यह कार्य अन्य कार्यों से भिन्न नहीं है। हम जो कुछ भी करते हैं, हमें हृदय से करना है, मुख्य रूप से अपने बच्चों के लिए नहीं, मुख्य रूप से अपने जीवनसाथी के लिए नहीं, परन्तु प्रभु के लिए। और परमेश्वर अनुग्रहकारी रीति से हमें हमारे परिश्रम का प्रतिफल देता है। हमें भले ही डॉलर और सेंट में भुगतान न मिले, परन्तु मैं कल्पना करती हूँ कि जब हम अनन्त काल के लिए अपने उद्धारकर्ता की आराधना करते हैं, तो हम इन बातों के विषय में चिन्तित नहीं होंगे। उस दिन क्या आनन्द होगा! यह सत्य आपको अपने प्रतिदिन के कार्य में आनन्द प्राप्त करने के लिए प्रेरित करे, यह जानते हुए कि परमेश्वर इसे देखता है और प्रसन्न होता है । यह व्यर्थ नहीं है—इसमें महान मूल्य और आनन्द पाया जा सकता है।

सन्तुष्टि सीखना
यदि हम आनन्द पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं या अपने कार्य में निराश हैं, तो सम्भावना है कि असंतुष्टि सतह के ठीक नीचे छिपा है।

पौलुस हमें फिलिप्पियों 4:11 में कहता है, “मैं अपने किसी अभाव के कारण यह नहीं कहता, क्योंकि मैंने प्रत्येक परिस्थिति में सन्तुष्ट रहना सीख लिया है।” मैं इसके आगे-पीछे के सभी पदों के लिए आभारी हूँ। पौलुस दीन-हीन दशा और सम्पन्नता में भी रहना जानता था। पौलुस को सभी परिस्थितियों में, शान्ति और शक्ति प्रभु की ओर से मिली (पद 13)। ऐसा ही हमारे साथ होना चाहिए। पौलुस ने यह कभी नहीं कहा कि वह विभिन्न परीक्षाओं और प्रलोभनों से होकर गया है और स्वाभाविक रूप से और सदैव सन्तुष्ट था। नहीं, पौलुस ने सन्तुष्ट रहना सीखा था। परमेश्वर हमें पौलुस के जीवन में प्रगतिशील पवित्रीकरण की एक झलक देता है। हम उत्साहित हो सकते हैं कि यदि हम नीरस स्थिति में असन्तुष्टि से संघर्ष करते हैं, तो हम इससे पश्चाताप कर सकते हैं और उस कार्य के लिए परमेश्वर को धन्यवाद देना आरम्भ कर सकते हैं, जो उसने हमें दिया है। हम जो करते हैं उसमें संतुष्टि सीखना पड़ता है; किसी को भी स्वाभाविक रूप से संतुष्टि का वरदान नहीं मिला है।

कार्य कठिन है। इसके विषय में कोई सन्देह नहीं है। तो आइए हम प्रभु से प्रार्थना करें कि वह हमें अपने कार्य को उसके लिए किये जाने वाले कार्य के रूप में देखने वाली आँखें प्रदान करे। मसीही के रूप में, हमारे जीवन को ख्रीष्ट के उदाहरण का अनुसरण करते हुए व्यय होने चाहिए। आइए, हम अपने प्रभु से सेवा करने, कार्य करने और श्रम करने में हमारी सहायता करने के लिए प्रार्थना करें, यह जानते हुए कि यीशु, हमारा सिद्ध आदर्श, सेवा करने के लिए आया था, न कि सेवा कराने के लिए (मत्ती 20:28)। जैसा कि हम इस पर विचार करते हैं कि ख्रीष्ट ने क्या किया है, हम उसके आदर्श को अपने जीवन में ढ़ालने में गहरा आनन्द, उद्देश्य और मूल्य पाते हैं। कार्य, यहाँ तक ​​कि सबसे नीरस कार्य का भी एक उद्देश्य है—परमेश्वर की महिमा करना। यह कार्य करने के लिए एक उचित उद्देश्य है।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
ट्रिलिया न्यूबेल
ट्रिलिया न्यूबेल
ट्रिलिया जे. न्यूबेल एक सम्मेलन वक्ता और भय और विश्वास (Fear and Faith), एक (United),आनन्द उठाओ (Enjoy) और उनकी नवीनतम बच्चों की पुस्तक, परमेश्वर का बहुत अच्छा विचार (God’s Very Good Idea) की लेखिका हैं।