“दोष न लगाओ” - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
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“दोष न लगाओ”

मत्ती 7:1 बाइबल का सर्वाधिक आवश्यक तथा सर्वाधिक दुरुपयोग किया गया कथन है। ऐसे लोगों से मिलना असमान्य नहीं है जो मानो बाइबल से केवल तीन ही पद जानते हैं: “दोष न लगाओ” (मत्ती 7:1), “परमेश्वर प्रेम है” (1 यूहन्ना 4:16), और “तुम में जो निष्पाप हो, वही सब से पहले पत्थर मारे” (यूहन्ना 8:7)। ये लोग—भले ही वे स्वयं को मसीही कहें या नहीं—वास्तव में बाइबल को उसके अर्थ के अनुसार समझने में रुचि नहीं रखते हैं। वे अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए पवित्रशास्त्र के नारे बनाने ही में सन्तुष्ट हैं।

फिर भी केवल इसलिए कि लोग किसी पद का दुरुपयोग कर सकते हैं, हमें उस पद को पूरी रीति से उपयोग से बाहर कर देने का कोई कारण नहीं मिलता है। तथ्य तो यह है कि मत्ती 7:1 एक ऐसा आवश्यक सुधार है जिसे बहुत से मसीहियों को सुनने की आवश्यकता है। यदि हम पहले झूठे दावों को दूर कर सकते हैं, तभी हम यीशु के उद्देश्य के अनुसार मत्ती 7:1 के द्वारा निर्मित किए जाने की स्थिति में होंगे।

एक दुरुपयोग की गई आज्ञा

तो इस पद का अर्थ क्या नहीं है? सबसे पहले “दोष न लगाओ” का अर्थ यह नहीं है कि हम विधि-शासन को स्थगित करें। परमेश्वर ने राज्य के (रोमियों 13:1-2) और कलीसिया के (मत्ती 18:15-17; 1 कुरिन्थियों 5:9-13) अधिकारियों को नियुक्त किया है कि वे उस स्थिति में न्याय करें जब उनके सदस्य सही कार्य करने में विफल होते हैं। हम न्याय को अपने हाथों में लेते होए दोष नहीं लगाते हैं क्योंकि हम भरोसा करते हैं कि परमेश्वर उचित अधिकारियों के माध्यम से अपने न्याय का प्रयोग करेगा (रोमियों 12:17-21)।

दूसरा, “दोष न लगाओ” का अर्थ यह नहीं है कि हम अपने मस्तिष्कों को बन्द करें। पवित्रशास्त्र के अन्य स्थानों में हमें चिताया जाता है कि हमें प्रत्येक आत्मा की प्रतीति नहीं करनी चाहिए (1 यूहन्ना 4:1)। हमें ऐसे लोग होने चाहिए जो परख करते हैं, और जो धार्मिकता से न्याय करते हैं (यूहन्ना 7:24)। बाइबल को पढ़कर इस निष्कर्ष पर पहुँचना असम्भव है कि ईश्वरभक्ति का अर्थ है कि हम सब कुछ को सर्वदा स्वीकार करें और प्रत्येक परिस्थिति में हम सब लोगों की पुष्टि करें। जिस यीशु ने दोष न लगाने के विषय में प्रचार किया, उसी ने थूआतीरा की कलीसिया को डाँटा क्योंकि वे झूठे शिक्षकों और यौन अनैतिकता का सहन कर रहे थे (प्रकाशितवाक्य 2:20)।

तीसरा, “दोष न लगाओ” का अर्थ यह नहीं है कि हम सब नैतिक भेदों को स्थगित कर दें। पहाड़ी उपदेश ईश्वरविज्ञानीय तथा नैतिक अवलोकन को मना नहीं करता है। आवश्यकता पड़ने पर यीशु कठोर आलोचना को मना नहीं करता है। इस बात पर विचार करें: पहाड़ी उपदेश नैतिक निर्णयों से भरा हुआ है। यीशु लोगों को पाखण्डी कहता है (मत्ती 7:5)। वह लोगों को झूठे नबियों से सावधान रहने के लिए कहता है (15 पद)। “दोष न लगाओ” आज्ञा के कुछ ही वाक्य पश्चात् यीशु हमसे माँग करता है कि हम यह समझें (और परखें) कि कुछ लोग कुत्ते और सूअर हैं (6 पद)। यीशु के कहने का अर्थ मानो यह है, “मैं नहीं चाहता कि तुम अत्यालोची बनो, और न ही मैं चाहता हूँ कि तुम मूर्ख बनो।”

एक आवश्यक आज्ञा
जबकि मत्ती 7:1 का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए, हमें सावधान होना चाहिए कि हमारी सावधानी यीशु की आज्ञा को अत्यधिक अहानिकारक न बना दे। दोष न लगाने की आज्ञा हम सब के लिए एक आवश्यक चेतावनी है, विशेषकर धार्मिक व्यक्ति के लिए जो बहुत सरलता से उन लोगों को हीन भाव से देख सकता है जो कम धार्मिक हैं। तो इस पद का वास्तविक अर्थ क्या है?

पहला, “दोष न लगाओ” का अर्थ है कि हमें अन्य लोगों को उस नाप से नापना चाहिए जिससे हम चाहेंगे कि हमें नापा जाए। कोई भी नहीं चाहता है कि उनके विरुद्ध घटिया बाँट उपयोग किए जाएँ, या उनके साथ अनुचित नापने की छड़ी का उपयोग किया जाए जो बहुत छोटी या बहुत लम्बी हो। हम सब लोग चाहते हैं कि हमारा मूल्याँँकन न्यायोचित और सुसंगत रीति से किया जाए। पद 2 में यीशु इसी बात को कहता है। “क्योंकि जिस प्रकार तुम दोष लगाते हो, उसी प्रकार तुम पर भी दोष लगाया जाएगा। और जिस नाप से तुम नापते हो, उसी नाप से तुम्हारे लिए नापा जाएगा।” किसी के रंग के कारण या उनके वस्त्रों के कारण, या उनके निवास स्थान के कारण, या उनके माता-पिता के कारण किसी के विषय में बुरा न सोचें। किसी भी विषय के सभी पक्षों को बिना सुने निष्कर्ष पर न पहुँचें।

एक ऐसे युग में जिसमें जनजातीयकरण और इन्टरनेट द्वारा आलोचना की जाती है, मसीही होने के नाते एक बहुत प्रभावशाली कार्य जो हम कर सकते हैं, वह यह सोचना है कि हम स्वयं के लिए कैसी नाप चाहेंगे और फिर दूसरों के लिए उसी नाप का उपयोग करें। मैं कैसे चाहता हूँ कि लोग मेरा मूल्यांकन करें? मैं चाहता हूँ कि लोग प्रत्येक पहलू को देखें और मेरे विषय में सबसे बुरी बात पर विश्वास करने में शीघ्रता न करें। मैं चाहता हूँ कि लोग तथ्यों पर ध्यान दें न कि गपशप और अटकलों पर। मैं चाहता हूँ कि लोग मुझे ठीक से सुनें और कि वे अपने विचारों को बदलने के लिए तैयार हों। मैं चाहता हूँ कि लोग मुझ से और मेरे विषय में सम्मानपूर्वक बात करें। क्या आप नहीं चाहते कि लोग आपको ऐसे मापें? क्या आप और मैं अन्य लोगों के लिए इसी माप का उपयोग कर रहे हैं?

दूसरा, “दोष न लगाओ” का अर्थ है कि हमें पहले स्वयं का अवलोकन करना चाहिए। यीशु हमें दूसरों को सुधारने से या सच बोलने से नहीं रोक रहा है। परन्तु वह चाहता है कि हम पहले अपने स्वयं के हृदयों को सुधारें और स्वयं से सच बोलें (3-5 पद)। नैतिक और ईश्वरविज्ञानीय आलोचना उचित हो सकती है, जब तक हम साथ में गम्भीर रीति से स्वयं की भी आलोचना करें। हम प्रायः दूसरों की त्रुटियों को बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं और स्वयं की त्रुटियों को छोटा कर देते हैं। जैसा कि जॉन कैल्विन ने कहा, “लगभग सभी लोगों को अन्य लोगों की त्रुटियों की जाँच करना रुचिकर लगता है।” दूसरों को नीचा दिखाना स्वयं को नैतिक रीति से श्रेष्ठ दिखाने की एक घटिया रीति है। सम्भवतः हम सत्य को स्पष्टता से देखते हैं, परन्तु उस अन्तर्दृष्टि का क्या लाभ यदि हम सर्वप्रथम उसे अपने जीवनों में लागू न करें?

तीसरा, “दोष न लगाओ” का अर्थ है कि हमें स्मरण रखना चाहिए कि हम कौन हैं। यीशु चाहता है कि हम स्मरण रखें कि वह न्यायाधीश है और हम न्याय के अन्तर्गत हैं। इससे बढ़कर, जब कलीसिया में मसीहियों की बात आती है, तो हम परिवार हैं। 3 पद में “भाई” की भाषा को ध्यान दें। यीशु परमेश्वर के परिवार के विषय में यथार्थवादी है। टकराव अवश्य होगा। हटाने के लिए तिनके और लट्ठे भी होंगे। यीशु के कहने का तात्पर्य है: “तुम्हारे सामने आपस में चिढ़ने का प्रलोभन आएगा। परन्तु मैं तुम्हें एक उत्तम उपाय दिखाता हूँ। क्या तुम वैसा ही प्रेम कर सकते हो जैसा मैंने प्रेम किया है?”

ङाँ, परमेश्वर के वचन के अनुसार अवश्य ही न्याय करें, परन्तु कभी भी स्व-धर्मी, पाखण्डी, अत्यालोचक, पक्षपातपूर्ण निर्दयी आलोचनात्मकता में लिप्त न हों। यह कभी भी ख्रीष्ट का मार्ग नहीं है, और इसे मसीहियों का भी मार्ग नहीं होना चाहिए।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

केविन डियंग
केविन डियंग
डॉ. केविन डियंग मैथ्यूस, नॉर्थ कैरोलायना में क्राइस्ट कवनेन्ट चर्च के वरिष्ठ सेवक और शार्लट्ट, नॉर्थ कैरोलायना के रिफॉर्म्ड थियोलॉजिकल सेमिनेरी में विधिवत् ईश्वरविज्ञान के सहायक प्राध्यापक हैं। वे कई पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें टेकिंग गॉड ऐट हिज वर्ड और जस्ट डू समथिंग सम्मिलित हैं।