मत्ती 18:20 - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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मत्ती 18:20

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का पांचवा अध्याय है: उस पद का अर्थ वास्तव में क्या है?

कितनी बार हमने एक पास्टर को आराधना सभा, संगति सभा या प्रार्थना सभा में प्रभु की उपस्थिति की पुष्टि करने के लिए इस पद को उद्धृत करते हुए सुना है? “क्योंकि जहाँ दो या तीन मेरे नाम से एकत्रित होते हैं, वहाँ मैं उनके बीच में हूँ” (मत्ती 18:20)। परन्तु इस पद को इस रूप से उद्धृत करने से, हम इसको सन्दर्भ से बाहर निकालने के द्वारा इसका दुरुपयोग करते हैं।

मुझे अभी भी अपने उपदेश कला के प्राध्यापक की चेतावनी स्मरण है: “सन्दर्भ से बाहर प्रचारित कोई भी पद छल है।” इस स्थिति में, सामान्य दुरुपयोग कुछ स्तर तक हानिकारक नहीं है, क्योंकि एकत्रित सभाओं में प्रभु की उपस्थिति बाइबलीय निर्देश और प्रतिज्ञा है जो अन्य कई स्थलों में पाया जाता है, और इस स्थल से यह एक उचित निहिथार्थ है। किन्तु इसका दुरुपयोग फिर भी समस्या का कारण है उन बातों के कारण जिन्हें यह बढ़ावा दे सकता है और उन बातों के कारण जिससे यह हमें वंचित कराता है।

सन्दर्भ

इस खण्ड में, यीशु अपनी कलीसिया को एक दूसरे से छुटकारा दिलाने वाले प्रेम को करने की एक स्पष्ट विधि देता है। पद किसी वर्णित स्थिति के साथ आरम्भ होता है। एक तथाकथित भाई “अपराध में पकड़ा जाता है।” हमारी प्रत्युत्तर के लिए चार चरणों की रूपरेखा बनाई गयी है।

  1. हमें निजी रीति से स्पष्टीकरण की विनम्रता और भाई को पाने की हार्दिक इच्छा के साथ उससे मिलना जिससे परमेश्वर के अनुग्रह के द्वारा उलझाने वाले पाप को घोत किया जाए और ख्रीष्ट के लिए नई आज्ञाकारिता का पीछा किया जाए।
  2. यदि यह चरण विफल हो जाता है, तो हमें अपने साथ एक या दो व्यक्तियों ले जाना है जिनका वही वांछित उद्देश्य हो (गलातियों 6:1-2)।
  3. यदि यह प्रयास असफल हो जाए, तो हमें “कलीसिया को बताना है”। इसका अर्थ अवश्य ही यह नहीं है कि व्यक्ति को कलीसिया की सार्वजनिक सभा में उजागर किया जाए। इसका अर्थ है कि इसे कलीसिया के प्राचीनों के पास ले कर आना (या केवल कलीसिया के सदस्यों की सभा के पास इसे लेकर आना)।
  4. इस परिस्थिति में, प्राचीनों को “विशेष अनुशासन” के साथ–साथ “सामान्य अनुशासन,” अर्थात् अनुग्रह के साधन की नियमित सेवकाई (अर्थात् प्रचार, कलीसियाई विधियाँ, संगति आदि) के माध्यम से भाई को पाने के प्रयत्न के द्वारा चरवाही करनी चाहिए। विशेष अनुशासन के अनुसार, प्राचीन प्रार्थनापूर्वक प्रथम तीन चरणों को पुनः दोहराते हैं और फिर, यदि आवश्यक हुआ तो, निम्नलिखित को कार्यान्वित करते हैं: ताड़ना, जो है औपचारिक और अनौपचारिक रीति से पाप को पहचानना और चेतावनी देना कि यदि पाप को मानकर पश्चाताप नहीं किया जाता है, तो उसके परिणाम होंगे; प्रभु की मेज़ से निलम्बन; और बहिष्करण, जिसके द्वारा अपश्चातापी पापी की “अन्यजाति” और “कर एकत्रित करने वाले” के रूप में पहचान की जाती है। इन चरणों को बनाया गया है जिससे कि अपश्चातापी पापी शैतान और पाप से परिणामों के लिए छुड़ा जाए, इस आशा के साथ कि उसमें ईश्वरीय पश्चाताप जाग उठे।

ऐसा अनुशासन को स्थल में राज्य में “बाँधने और खुलने” के रूप में पहचाना गया है। स्थल गम्भीर पर आश्वासन देने वाली  प्रतिज्ञा के साथ समाप्त होता है कि जब सभा ख्रीष्ट के नाम में छुटकारे के अनुशासन के चरणों को प्रभाव में लाती है, तो प्रभु की उपस्थिति वहाँ होगी।

इस स्थल का उद्देश्य एकत्रित सभा को प्रभु की उपस्थिति का आश्वासन देना है जब वह एक अपश्चातापी पापी के जीवन में बाइबल के अनुसार छुटकारा दिलाने वाले अनुशासन के चरणों को प्रभाव में लाती है। यह ख्रीष्ट द्वारा दिए गए पवित्र आत्मा की आशीष को प्रकट करता है, जो कलीसिया में छुटकारा दिलाने वाले अनुशासन का संचालन करता है जब कलीसिया तीन अनुग्रहकारी आशीषों की खोज करती है: अपश्चातापी पापी का सुधार, कलीसिया का पवित्रीकरण, और कलीसिया के माध्यम से संसार में ख्रीष्ट की प्रभावी साक्षी।

 आशीषें

  1. शिष्यता: जब एक स्थल सन्दर्भ में प्रचारित किया/सिखाया जाता है, तो यह न केवल पद की अशीषों की पुष्टि करता है परन्तु साथ ही सत्य के वचन को सही रूप से सम्भालने में परमेश्वर के लोगों के लिए बाइबलीय प्रारूप को भी स्थापित करता है।
  2. बुद्धि: परमेश्वर के वचन और परमेश्वर के आत्मा की उपस्थिति के माध्यम से पूरी पहल में व्याप्त होने के लिए अनुशासन परमेश्वर की बुद्धि के कई अवसरों को बनाए रखता है।
  3. पवित्रता: पवित्र आत्मा के माध्यम से ख्रीष्ट की उपस्थिति अपश्चातापी पापी को सुधारने के लिए परमेश्वर की कलीसिया को समर्थ और सशक्त बनाने के दोनों पवित्र प्रयत्नों की पुष्टि करती है।
  4. प्रेम में सत्य बोलना: पवित्र आत्मा की उपस्थिति महत्वपूर्ण है न केवल उस बुद्धि के लिए जो परमेश्वर के वचन से आती है परन्तु उस अशीष के लिए भी जो आत्मा के फल के उत्पन्न होने के द्वारा उसकी उपस्थिति को बनाए रखती है।
  5. आत्मिक वरदान: परमेश्वर के लोगों के अनुबन्ध के माध्यम से पवित्र आत्मा की उपस्थिति आत्मा के वरदानों की बहुमुखी आशीषों को सुनिश्चित करता है, जो कि सब, आत्मा का फल समेत, ख्रीष्ट के आत्मा के माध्यम से ख्रीष्ट के द्वारा प्रदान किए जाते हैं।

सन्दर्भ पर ध्यान देने से ईश्वरविज्ञानी त्रुटि और विधर्मता से बचा जा सकता है, परन्तु यह साथ ही स्थल की पूर्ण आशीषों को प्राप्त करने में सहायता भी करता है। इस स्थिति में, हम परमेश्वर की उसके आत्मा द्वारा ख्रीष्ट की प्रतिज्ञा की गयी उपस्थिति के लिए स्तुति कर सकते हैं जब परमेश्वर के लोग एक दूसरे को पाप से पुनःस्थापित करते हुए एक दूसरे से अच्छी रीति से प्रेम करते हैं।

अन्त में, आइए छुटकारा दिलाने वाले अनुशासन की प्रक्रिया में ख्रीष्ट की प्रतिज्ञा की गयी उपस्थिति के लिए परमेश्वर की स्तुति करें क्योंकि यह हमें परमेश्वर के अनुग्रह के माध्यम से प्रदर्शित करने के द्वारा, भरपूरी से परमेश्वर की महिमा के लिए, परमेश्वर के मुख के सामने पवित्र आत्मा प्रदत्त परमेश्वर की सामर्थ्य का आश्ववासन देता है।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया
हैरी एल. रीडर III
हैरी एल. रीडर III
हैरी एल. रीडर III बर्मिंग्हम, ऐलबामा में, ब्रायरवुड प्रेस्बिटेरियन चर्च के वरिष्ट पास्टर हैं। वे कई पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें फ्रम एम्बर्स टु अ फ्लेम (From Embers to a Flame) सम्मिलित है।