सेवात्मक और घोषणात्मक अधिकार - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
शिशु- बपतिस्मावाद
4 नवम्बर 2021
कलीसियाई सदस्यता
11 नवम्बर 2021
शिशु- बपतिस्मावाद
4 नवम्बर 2021
कलीसियाई सदस्यता
11 नवम्बर 2021

सेवात्मक और घोषणात्मक अधिकार

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का छठवां अध्याय है: त्रुटिपूर्वक समझे गए सिद्धान्तद

कलीसियाई इतिहास का एक संक्षिप्त सर्वेक्षण प्रकट करता है कि कलीसिया के सामर्थ्य के दुरुपयोग की तुलना में केवल एक बात अधिक प्रचलित है, जो कि इसके उचित प्रशासन के प्रति आधीन होने के लिए परमेश्वर के लोगों की अनिच्छा है। समस्या यह है कि कुछ ही मसीही वास्तव में समझते हैं कि कलीसिया की सेवकाई के द्वारा से किस प्रकार से सामर्थ्य और अधिकार का उपयोग किया जाना है। बाइबल की दृष्टि से समझा जाए, तो कलीसिया का सामर्थ्य “सेवात्मक और घोषणात्मक” है, एक ऐसी अभिव्यक्ति जो कलीसिया के अविधानीय प्रकृति पर बल देती है। दूसरे शब्दों में, कलीसिया में कार्य करने वाले लोग नियमों, विधियों और प्रतिज्ञाओं को नहीं बनाते हैं;  वे परमेश्वर द्वारा प्रेरित और आधिकारिक वचन के नियमों, विधियों और प्रतिज्ञाओं की घोषणा करते हैं और लागू करते हैं। इस बात को सही रीति से समझना कलीसिया के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है।

रोमी कैथोलिक कलीसिया, अपने पोप, बिशप और महासभाओं के साथ, ऐतिहासिक रूप से स्वयं को आदेशपूर्ण, राजसी और वैधानिक के रूप में देखता है। रोमी कैथोलिक अधिकारियों का मानना है कि उन्हें केवल पवित्रशास्त्र के अतिरिक्त अन्य स्रोतों से प्राप्त सिद्धान्त के अनुसार लोगों का विवेक बान्धने का सामर्थ्य है। उदाहरण के लिए, चौथी लैटर्न महासभा (1415) ने तत्व परिवर्तन के सिद्धान्त की पुष्टि की, लियोन की दूसरी महासभा (1274) में शाधन स्थान के सिद्धान्त को अपनाया गया था, और मरियम का निष्कलंक गर्भाधारण सिद्धान्त बन गया पोप पायस IX की तथाकथित अचूक व्याख्या के द्वारा। इसके साथ साथ, मध्ययुगीन कलीसिया के द्वारा “विधर्मियों” के साथ यातना और प्राणदण्ड देने के व्यवहार कलीसिया के सामर्थ्य के प्रति ऐसा दृष्टिकोण प्रकट प्रदर्शित करता है जो कि पवित्रशास्त्र के क्षेत्र से बहुत बढ़कर है।

प्रोटेस्टेन्ट कलीसियाएं भी बाइबली सीमाओं से परे कलीसिया के सामर्थ्य का उपयोग करने के दोषी हैं। हाल के दिनों में, हम सामर्थ्य के इस दुरुपयोग को देखते हैं जब कलीसियाएं या सेवक मांग करते हैं कि सदस्य किसी विशेष राजनीतिक प्रत्याशी को मतदान दें, आदेश देते हैं कि सदस्य अपने बच्चों को किसी विशेष रीति से शिक्षित करें, या कलीसिया की सदस्यता के लिए अन्य भाषा के वरदान को अनिवार्य करते हैं। इनमें से प्रत्येक बात में, चाहे रोमी कैथोलिक हो या प्रोटेस्टेन्ट, अबाइबलीय सिद्धान्त को व्यवस्था बनाया गया है, और अगुवों ने त्रुटिपूर्ण रीति से अपने सदस्यों के विवेक को उस पर विश्वास करने और कार्य करने हेतु बाध्य किया है। कलीसिया का सामर्थ्य इस प्रकार के दुरुपयोग से व्यापक भ्रम उत्पन्न होता है और कलीसिया के ध्यान को परमेश्वर के आधिकारिक वचन से दूर ले जाते हैं। इससे बढ़कर, वे कलीसिया के ध्यान को अपने मिशन से हटाते हैं— ख्रीष्ट के राजदूत के रूप में सम्पूर्ण संसार में जाने और वचन, पवित्र विधियों और प्रार्थना के सामान्य साधनों के माध्यम से चेले बनाने से (मत्ती 28:18-20; प्रेरितों के काम 2:42; 2 कुरिन्थियों 5:18-20)।

नेतृत्व के द्वारा सामर्थ्य के दुरुपयोग के अतिरिक्त, कलीसिया के अधिकार के विश्वासयोग्य अभ्यास के प्रति अधीनता के लिए प्रायः मसीही अनिच्छुक होते हैं। निश्चय ही, ख्रीष्ट कलीसिया का प्रधान है। स्वर्ग और पृथ्वी का सारा अधिकार उसी को दिया गया है। फिर भी, ख्रीष्ट ने अपने वचन की घोषणा करने, अपने झुण्ड की रखवाली करने और अपनी भेड़ों को अनुशासित करने के अधिकार के साथ योग्य और उचित रूप से नियुक्त कलीसिया के कार्यकर्ताओं को रखा है। कलीसियाई अगुवों को ख्रीष्ट के द्वारा अपने वचन में स्पष्ट रूप से निर्धारित या भले और आवश्यक परिणाम के आधार पर विश्वासियों के विवेक को बान्धने के लिए अधिकृत किया गया है। प्रेरित पौलुस सेवकों को आज्ञा देता है कि “वचन का प्रचार कर, समय और असमय तैयार रह” (2 तीमुथियुस 4:2)। इसलिए, परमेश्वर के लोगों से मांग की जाती है कि वे परमेश्वर के वचन को सुनें और उसका पालन करें। पतरस प्राचीनों को उत्साहित करता है कि “एक सह-प्राचीन और ख्रीष्ट के दुखों का साक्षी के रूप में . . .  अपने मध्य स्थिति परमेश्वर के झुण्ड की रखवाली करो और यह किसी दबाव से नहीं, पर स्वेच्छा से तथा परमेश्वर की इच्छा के अनुसार, तुच्छ कमाई के लिए नहीं वरन् उत्साहपूर्वक करो. . .अपने झुण्ड के लिए आदर्श बनो” (1 पतरस 5:1-13)। इसलिए, हमें प्राेत्साहित किया जाता है नम्रतापूर्वक अपने अगुवों के अधीन रहने के लिए जो ख्रीष्ट के नाम में हमारे प्राणों की रखवाली करते हैं (इब्रानियों 13:17)। पवित्रशास्त्र हमें यह भी सिखाता है कि कलीसिया के पास सामर्थ्य और अधिकार है अपने सदस्यों को अनुशासित करने के लिए (मत्ती 18:15-20; 1 कुरिन्थियों 5:5,11–13; तीतुस 3:9–11)। इसलिए, परमेश्वर के लोगों को बाइबलीय अनुशासन के प्रति इस प्रकार से प्रतिक्रिया करनी चाहिए जैसे कि स्वयं ख्रीष्ट व्यक्तिगत रीति से इसका अभ्यास कर रहा हो।

कई वर्षों पूर्व, मैं अवगत था दो समान परन्तु असम्बन्धित कलीसियाई अनुशासन के विषयों में जो एक मण्डली के भीतर सामने आए थे। दोनों ही स्थितियां बड़ी स्पष्ट थीं और इसमें एल्डरों को हस्तक्षेप करने की आवश्यकता थी। एक स्थिति में, अगुवों के प्रेमपूर्ण आमना-सामना के प्रति प्रतिक्रिया क्रोध और विरोधाभाषा थे (अधिकार के प्रति अधीन होने के प्रति अस्वीकृति) था। दूसरी स्थिति में, प्रतिक्रिया गहरी विनम्रता और अगुवों के नेतृत्व के प्रति अधीनता की थी। परिणाम स्वरूप देह की सहभागिता में पुनःस्थापित करने की एक सुन्दर बाइबलीय प्रक्रिया थी। यह इस महत्वपूर्ण बिन्दु पर बल देता है कि जब कलीसिया पवित्रशास्त्र के अनुसार सामर्थ्य और अधिकार का अभ्यास करती है, यह विश्वासियों के आत्मिक आशीष के लिए है न कि हानि के लिए। क्रूस पर चढ़ाए गए, जी उठे, और स्वर्ग में उठाए गए यीशु एल्डरों की सेवकाई के माध्यम से अपने झुण्ड की रखवाली करते हैं (प्रेरितों के काम 20:28)।

जेम्स बैनरमैन, उन्नीसवीं शताब्दी के अपने उत्कृष्ट लेख ख्रीष्ट की कलीसिया (The Church of Christ), सहायक रूप से समझाते हैं कि प्रत्येक मसीही को बाइबलीय कलीसियाई अधिकार के अभ्यास के लिए अधीन क्यों  होना चाहिए:

जब कलीसियाई सामर्थ्य को सेवात्मक रीति से उपयोग किया जाता है किसी विश्वास के प्रश्न में, या घोषणात्मक रीति से उपयोग किया जाता है प्रशासन या अनुशासन के किसी प्रश्न में, तो सिध्दान्त की घोषणा और व्यवस्था के निर्णय को दो आधारों पर ग्रहण किया जाना चाहिए: सर्वप्रथम और मुख्यतः, क्योंकि वे परमेश्वर के वचन से समहत हैं; परन्तु दूसरा, एक अधीनस्थ अर्थ में, वे कलीसिया के द्वारा दिए जाते हैं, परमेश्वर की एक विधि के रूप में जो इसी उद्देश्य से नियुक्त की गई थी।

ख्रीष्ट अपनी दुल्हन, कलीसिया, से प्रेम करता है। उसने कलवरी के शापित काठ पर उसके लिए अपना बहुमूल्य जीवन दे दिया, और वह कलीसिया विश्वासयोग्य सेवकाई के द्वारा उसकी निरन्तर देखभाल करता है (इफिसियों 5:25; 1 तीमुथियुस 3:1–3)। इसलिए, यदि आप एक नियुक्त किए गए एल्डर हैं, तो स्मरण रखें कि तो आपकी सेवकाई सेवात्मक और घोषणात्मक है। आप कलीसियाई न्यायालय के सदस्य हैं, वैधानिक मण्डलियों के नहीं। वास्तव में, आप आराधना, शिष्यता, मिशन और अनुशासन के नियमों और निर्देशों को नहीं बनाते हैं। नहीं, आपकी बुलाहट है कि आत्मिक रीति से वह घोषणा और अभ्यास करना जिसे ख्रीष्ट ने स्वयं अपने वचन में निर्धारित किया है। इसके साथ साथ, हम सब को अपने एल्डरों की विश्वसनीय चरवाही और देखभाल के प्रति आनन्दपूर्वक अधीनता में रहने के लिए बुलाया गया है, “क्योंकि वे तुम्हारे प्राणों की यह जानकर चौकसी करते हैं, कि उन्हें उसका लेखा देना है” (इब्रानियों 13:17)।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
जॉन डी. पेय्न
जॉन डी. पेय्न
डॉ. जॉन डी. पेय्न चार्ल्सटन, साउथ कैरोलायना. में क्राइस्ट चर्च प्रेस्बिटेरियन के वरिष्ठ पास्टर, गॉस्पेल रिफॉर्मेशन नेटवर्क के संयोजक और पवित्रता के गौरव में (In the Splendor of Holiness) के लेखक हैं।