सर्वशक्ति - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
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सर्वशक्ति

पवित्रशास्त्र घोषणा करता है कि परमेश्वर “परमेश्वर यहोवा सर्वशक्तिमान!” (यहोशू 22:22), वह जिसके पास ऐसी शक्ति है जो इतनी असीमित है कि इसे परमेश्वर की गुणों में उसकी सर्वशक्ति (अंग्रेज़ी में ओम्निपोटेन्स) के रूप में जाना जाता है, जिसका उत्पत्ति लातीनी शब्द “ओम्नि” (सर्व) और “पोटेन्टिया” (शक्ति) से है। यह गुण कुछ परिस्थितियों में प्रकट होने वाले परमेश्वर के महिमामय अस्तित्व से अभिन्न है। यह परमेश्वर के नामों के माध्यम से प्रवाहित होता है, जैसे “येहोवा” (भजन 2:7) और “एकमात्र सम्राट” (1 तीमुथियुस 6:15)। यह पवित्रशास्त्र में उसके “दाहिने हाथ” (निर्गमन 15:6) और “सामर्थी भुजा” (भजन 89:13) जैसे मानवरूपी वर्णन में गूँजता है। और यह उसके सृजन (यिर्मयाह 51:15), ईश्वरीय-प्रावधान (प्रेरितों 17:25), उद्धार (2 पतरस 1:3), न्याय (रोमियों 9:17), और सभी बातों को पूर्ण करने (फिलिप्पियों 3:21) के कार्यों में प्रकट होता है। सीधे शब्दों में कहें, क्योंकि परमेश्वर तो परमेश्वर है, वह अपरिवर्तनीय और सदैव सर्वशक्तिमान है।

इस बाइबलीय सत्य की सरलता के होते हुए, इसके सम्बन्ध में त्रुटिपूर्ण धारणाएँ आ सकती हैं। हम दो प्रश्नों पर विचार करेंगे जिनके कभी-कभी अनुपयुक्त उत्तर दिए जाते हैं। पहला, क्या परमेश्वर की सर्वशक्तिमानता का अर्थ यह है कि परमेश्वर कुछ भी कर सकता है, या दूसरे शब्दों में कहें तो, क्या ऐसा कुछ है जो परमेश्वर नहीं कर सकता? दूसरा, पवित्रशास्त्र परमेश्वर की सर्वशक्तिमानता को बुराई की वास्तविकता के साथ कैसे मेल कराता है?

परमेश्वर की सर्वशक्ति का विस्तार
पहले प्रश्न के उत्तर में, पवित्रशास्त्र पुष्टि करता है कि परमेश्वर ने संसार में जो करने का निश्चय किया है, उससे कहीं अधिक कर सकता है। जैसा कि यीशु ने घोषणा की, “क्या तू नहीं जानता कि मैं अपने पिता से विनती कर सकता हूँ, और वह स्वर्गदूतों की बारह पलटन से अधिक मेरे पास अभी उपस्थित कर देगा?” (मत्ती 26:53) । परमेश्वर इन पत्थरों से भी इब्राहीम के लिए सन्तान उत्पन्न कर सकता है। वास्तव में, वह हमारी विनती और कल्पना से कहीं अधिक बढ़कर कार्य कर सकता है (इफिसियों 3:20) इसलिए जब परमेश्वर यिर्मयाह से पूछता है, “क्या मेरे लिए कोई काम कठिन है?” (यिर्मयाह 32:27), सही उत्तर नहीं है, क्योंकि परमेश्वर के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है (लूका 1:37 देखें) । इसलिए, जो परमेश्वर ने करने का निश्चय किया है उसके लिए हमें परमेश्वर की स्तुति करनी चाहिए, इसलिए नहीं कि वह कुछ और करने में असमर्थ है, वरन् इसलिए कि उसने जो करने की इच्छा की है वह सर्वोत्तम है, ठीक इसलिए क्योंकि उसने ऐसा करना चाहा है।

परन्तु क्या परमेश्वर की पूर्ण शक्ति का यह अर्थ है कि परमेश्वर सचमुच कुछ भी कर सकता है? यदि हाँ, तो कुछ लोग यह तर्क करते हैं कि परमेश्वर की सर्वशक्तिता गुण एक कठिनाई प्रस्तुत करती है। यह तर्क है कि यदि परमेश्वर सब कुछ कर सकता है, तो इसका अर्थ है कि वह एक ऐसा पत्थर बना सकता है जिसे वह खुद भी नहीं उठा सकता, या फिर वह ऐसी कोई वस्तु बना नहीं सकता जो उसकी शक्ति से परे हो—ये दोनों विकल्प उसकी सर्वशक्तिमानता को खतरे में डाल सकती हैं। ऐसी विचार के साथ समस्या यह है कि परमेश्वर की सर्वशक्तिमानता का तात्पर्य यह है कि वह केवल वही कर सकता है जो तार्किक रूप से सम्भव है। परन्तु अब एक और प्रश्न उठता है: क्या तर्क के नियम परमेश्वर से ऊपर हैं, जो उसे सीमित विकल्पों के साथ बाध्य करते हैं, जिसमें से उसे अपनी अब असीमित शक्ति का उपयोग करना चुनना होगा? कदापि नहीं, क्योंकि जो तार्किक है वह हमारे द्वारा नहीं वरन् परमेश्वर के स्वयं के पवित्र चरित्र और इच्छा से परिभाषित होता है। इसलिए, यह असम्भव है की परमेश्वर झूठ बोले (इब्रानियों 6:18) या बदले (याकूब 1:17) या स्वयं अपना इनकार करे (2 तीमुथियुस 2:13) या बुरी बातों से किसी की परीक्षा करें (याकूब 1:13)। संक्षेप में, अपनी सर्वशक्तिमानता का उपयोग करते समय, परमेश्वर स्वयं परिभाषित करता है कि क्या सम्भव है, और वह जो कुछ भी करता है वह अपने पवित्र स्वभाव के अनुसार, स्वतन्त्र रूप से और पूरी रीति से, और अपनी महिमा के लिए करता है।

जब इस समझ के साथ देखा जाता है, तो परमेश्वर की सर्वशक्तिमानता सबसे महिमामय प्रकार की असीमित शक्ति के रूप में चमकती है। जैसा कि कैंटरबरी के ऐन्सेल्म ने सिखाया, धोखा देने, छल करना या स्वयं का खण्डन करने की क्षमता कोई शक्ति नहीं वरन् एक प्रकार की निर्बलता है। क्योंकि परमेश्वर में कोई निर्बलता नहीं है, यह तथ्य कि परमेश्वर विरोधाभास उत्पन्न नहीं कर सकता है या जो वह है उसे बदल नहीं सकता है, यह उसकी सर्वशक्तिमानता को नहीं बिगाड़ता है वरन् उसे प्रकट करता है। चार्ल्स हॉज के शब्दों में, “यह कहना निश्चित रूप से सिद्धता की कोई सीमा नहीं है कि यह अ-सिद्ध नहीं हो सकता।” इसलिए, परमेश्वर की सर्वशक्तिमानता उसकी सम्पूर्ण सिद्धता और पूर्ण सम्प्रभुता की महिमामय अभिव्यक्ति है। बच्चों की प्रश्नोत्तरी (The Children’s Catechism) इस वास्तविकता के आश्चर्य को पकड़ती है जब वह पूछती है, “क्या परमेश्वर सब कुछ कर सकता है?” उत्तर: “हाँ; परमेश्वर अपनी सारी पवित्र इच्छा पूरी कर सकता है।”

बुराई पर परमेश्वर की सर्वशक्ति
यह हमें दूसरे प्रश्न पर लाता है: क्या परमेश्वर की शक्ति बुराई की वास्तविकता के साथ सामंजस्य स्थापित कर सकती है? यदि परमेश्वर अपनी सर्वशक्तिमानता से केवल अपने पवित्र और अच्छे चरित्र को ही प्रकट कर सकता है, तो संसार में बुराई कैसे हो सकती है? कभी-कभी विश्वासियों और अविश्वासियों की समान रूप से व्यक्तिगत और हृदय-विदारक चीखें (“परमेश्वर ऐसा कैसे होने दे सकते हैं?” “जब यह हुआ तब परमेश्वर कहाँ था?”) परमेश्वर की सर्वशक्तिमानता के विषय में सनेदेह या यहाँ तक ​​कि नकारने का कारण बनता है। यह बुराई की तथाकथित समस्या का एक संस्करण प्रस्तुत करता है: यदि परमेश्वर सर्व-अच्छा है, और बुराई उपस्थित है, तो परमेश्वर सर्व-शक्तिशाली नहीं हो सकता।

फिर भी, एक छिपी हुई धारणा इस चुनौती को ईश्वरीय सर्वशक्तिमानता की ओर ले जाती है। तर्क यह मानता है कि एक अच्छा और सर्वशक्तिमान परमेश्वर सभी बुराईयों को रोकने के लिए सर्वदा तुरन्त कार्य करेगा। परन्तु पवित्रशास्त्र सिखाता है कि परमेश्वर ने जो बुराई है उसे ठहराया है (यद्यपि, परमेश्वर नहीं, मनुष्य इसके लिए उत्तरदायी है; सभोपदेशक 7:29) और ऐसा करने के पीछे कारण का एक भाग बै कि वह बुराई पर अपनी शक्ति प्रकट कर सके, यहाँ तक कि इसके माध्यम से अपने भले उद्देश्यों को पूरा करें (उदाहरण के लिए, उत्पत्ति 50:20)।

सर्वशक्ति और सुसमाचार
बुराई पर उसकी सर्वशक्तिमानता के माध्यम से परमेश्वर के सम्पूर्ण पवित्र चरित्र का केन्द्रीय और सबसे आश्चर्यजनक प्रकटीकरण यीशु ख्रीष्ट के सुसमाचार में पाया जाता है। जैसे ही यीशु ने लंगड़ों को चंगा किया, हवा को रोका, अन्धों की आँखें खोलीं, और मृत्यु पर विजयी होते हुए जी उठा, उसने स्वयं को “परमेश्वर का सामर्थ्य और परमेश्वर का ज्ञान” के रूप में दिखाया (1 कुरिन्थियों 1:24)। वह उन लोगों के हृदयों को पुनर्जीवित करने में अपना सर्वशक्तिमान कार्य जारी रखता है, जिन्हें पिता अप्रतिरोध्य रूप से अपनी ओर खींचता है, और वह उस दिन उनमें बचाने का कार्य पूरा करेगा, जिस दिन वह अपने लोगों को अविनाशी महिमा में जिला उठाएगा (यूहन्ना 6:44)। और जब वह संसार का न्याय करेगा, सृष्टि को फिर से बनाएगा, और स्वर्ग को पृथ्वी पर लाएगा, तो विश्वासियों का एकत्रित समूह उसकी शक्ति के विषय में गाएँगी: “हल्‍लिलूय्याह! क्योंकि प्रभु हमारा सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर राज्य करता है।” (प्रकाशितवाक्य 19:6)।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

आर. कार्ल्टन विन
आर. कार्ल्टन विन
डॉ. आर. कार्लटन विने अटलान्टा में वेस्टमिन्स्टर प्रेस्बिटेरियन चर्च के सहायक पास्टर और रिफॉर्म्ड थियोलॉजिकल सेमिनरी में विधिवत् ईश्वरविज्ञान के सहायक प्राध्यापक हैं।