हमारा अति-अनुग्रहकारी उद्धारकर्ता - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
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हमारा अति-अनुग्रहकारी उद्धारकर्ता

नए नियम के आरम्भिक अध्याय हमें स्मरण दिलाते हैं कि परमेश्वर का देहधारी पुत्र एक उद्धारकर्ता है। मरियम आराधनापूर्वक कहती है, “मेरी आत्मा मेरे उद्धारकर्ता परमेश्वर में आनन्दित हुई है” (लूका 1:47)। एक स्वर्गदूत ने यूसुफ से घोषणा करके कहा कि उसका पुत्र “अपने लोगों का उनके पापों से उद्धार करेगा” (मत्ती 1:21)। चरवाहे इस सन्देश से चकित होते हैं: “आज दाऊद के नगर में तुम्हारे लिए एक उद्धारकर्ता जन्मा है और यही ख्रीष्ट प्रभु है” (लूका 2:11)। जिस यूनानी शब्द को “उद्धारकर्ता” के रूप में अनुवादित किया गया है, उसका अर्थ है “प्राकृतिक आपदाओं और कष्टों से बचाने वाला या छुड़ाने वाला।” “उद्धारकर्ता” में हानि से मुक्ति का विचार पाया जाता है और इसमें छुड़ानेवाला और रक्षा करने वाले दोनों का चित्रण पाया जाता है।

मरकुस 15:33-41 में, हमारे उद्धारकर्ता के रूप में यीशु के कार्य का शीर्ष, भयंकर और महिमामय प्रदर्शन है। यह उस अत्यन्त पीड़ा, लज्जा और निन्दा के कारण भयंकर है जिसे हमारे प्रभु ने सहा, परन्तु यह महिमामय भी है क्योंकि इसी पीड़ा के स्थान में पापियों को छुड़ाया जाता है। यीशु के “प्राण त्याग” (37 पद) के पश्चात् एक सूबेदार, जो इन भयावह घटनाओं का आँखों देखा गवाह था, वह घोषणा करता है, “निःस्सन्देह यह मनुष्य परमेश्वर का पुत्र था!” (39 पद)। यह एक कठोर सैनिक है जिसको यीशु के क्रूसीकरण का उत्तरदायित्व दिया गया है। सम्भवतः वह यीशु के पकड़े जाने के समय में उपस्थित था, उसकी सुनवाई के समय में था, और उसने अपने साथियों के साथ यीशु का अपमान किया होगा, और अब जब यीशु अपनी इच्छा से अपने प्राण त्याग रहा है, तो वह उसे मरते हुए सुनता है।

उस सूबेदार ने यीशु को अपने निन्दकों को क्षमा करते हुए, क्रूस पर डाकू को बचाते हुए, और अपनी माता को यूहन्ना को सौंपते हुए सुना होगा, और इन सब के बाद उसने निष्कर्ष निकाला होगा कि “यह कोई साधारण पुरुष नहीं है।” यह रोमी सूबेदार इस निष्कर्ष पर कैसे पहुँचता है? मत्ती 27 और लूका 23 के खण्ड प्रकट करते हैं कि यीशु के प्राण त्याग के बाद, मन्दिर का पर्दा दो भागों में फट जाता है, एक भूकम्प होता है, और कई लोगों का पुनरुत्थान होता है। इन घटनाओं के कारण यह अनुभवी योद्धा पूर्णतः हिल जाता है। “जब सूबेदार ने यह सब देखा तो वह यह कहकर परमेश्वर की बड़ाई करने लगा: “निश्चय यह मनुष्य निर्दोष था!” (लूका 23:47)। भीड़ के अन्य लोग भी सूबेदार के अंगीकार में जुड़ जाते हैं। यीशु में कोई अद्भुत और अलौकिक बात तो है। वह एक धर्मी उद्धारकर्ता है जो अपने लिए नहीं वरन् दूसरों के स्थान पर मर रहा है।

क्रूस पापियों के शुद्धिकरण का केन्द्र बन गया, अर्थात् शरण और छुटकारे का स्थान। उद्धारकर्ता के रूप में, यीशु हमें हमारे पाप से, हमारे पाप के प्रति परमेश्वर के प्रकोप से, और मृत्यु से छुड़ाता है, जो हमारे पाप का परिणाम है। यशायाह ने कहा, “तुम्हारे अधर्म के कामों ही ने तुम्हें तुम्हारे परमेश्वर से अलग कर दिया है, और तुम्हारे पापों के कारण उसका मुख तुमसे छिप गया है” (यशायाह 59:2)। पौलुस विलाप करता है: “मैं कैसा अभागा मनुष्य हूँ! मुझे इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा”? (रोमियों 7:24)। वह अपने प्रश्न का उत्तर 1 थिस्सलुनीकियों 1:10 में देता है: “यीशु . . . जो हमें आने वाले प्रकोप से बचाता है।” इस सूबेदार के दृष्टिकोण से देखें और परमेश्वर के मेमने को निहारें जो कि हमारा उद्धारकर्ता है, जो अनुग्रह में होकर हमारे स्थान पर अपना प्राण देता है जिससे कि हम जो एक समय शत्रु थे अब परमेश्वर के पुत्र और पुत्रियाँ हैं।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

डस्टिन डब्ल्यू. बेन्ज
डस्टिन डब्ल्यू. बेन्ज
डॉ. डस्टिन डब्ल्यू. बेन्ज लुईविल, केन्टकी के द सदर्न बैप्टिस्ट थियोलॉजिकल सेमिनरी में बाइबलीय आत्मिकता और ऐतिहासिक ईश्वरविज्ञान के सहायक प्राध्यापक हैं। वे कई पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें द अमेरिकन प्युरिटन्स, स्वीट्ली सेट ऑन गॉड, और द लवलिएस्ट प्लेस सम्मिलित हैं।