भजन 51 के अनुसार प्रार्थना करना - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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भजन 51 के अनुसार प्रार्थना करना

परमेश्वर के लोगों ने बहुत समय से भजन 51 में दाऊद के शब्दों को एक ऐसे नमूने के रूप में देखा है कि हमें प्रार्थना कैसे करना चाहिए जब हम पवित्र परमेश्वर के विरुद्ध अपने घिनौने अपराधों से अभिभूत होते हैं। निस्सन्देह, “जूफा,” “हत्या का अपराध,” और “होमबलि” की भाषा के कारण (और साथ में यह बात भी कि दाऊद दावा करता है कि उसने केवल परमेश्वर के ही विरुद्ध अपराध किया है), इस भजन में नई वाचा के लोगों के लिए अपरिचित उदाहरण हैं। फिर भी, भजन 51 पश्चात्ताप की प्रार्थनाओं के लिए एक अद्भुत मार्गदर्शिका है। इस लेख का उद्देश्य यह दिखाना है कि कैसे भजन 51 हमारे पश्चात्ताप में सहायक है।1

1. क्षमा के लिए प्रार्थना करें (भजन 51:1-9): “अनुग्रह कर”; “धो दे”; “शुद्ध कर”; “मिटा डाल।”

परमेश्वर हमारी सबसे बड़ी आवश्यकता है, पाप हमारी सबसे बड़ी समस्या है, और परमेश्वर की क्षमा हमारा एकमात्र समाधान है। जब हम पाप करते हैं, तो हमारी सबसे बड़ी आवश्यकता उसे छिपाना, समझाना, या किसी को बताकर अच्छा अनुभव करना नहीं है। हमें क्षमा की आवश्यकता है। और परमेश्वर तत्परता से उन लोगों को क्षमा करता है जो अपने पाप को अंगीकार करने और क्षमा माँगने के लिए नम्रतापूर्वक उसके पास आते हैं। परन्तु जब तक हमारे विवेक पर चोट नहीं लगती तब तक हम अनुग्रह की माँग नहीं करेंगे। जिस प्रकार से जॉन कैल्विन कहते हैं, “हम तब तक गम्भीरता से परमेश्वर से क्षमा की याचना नहीं करेंगे, जब तक हम अपने पाप को देखकर भय से न भर जाएँ।2” हमें अपने पापों से भली-भाँति परिचित होना चाहिए और जब आत्मा हमारे विवेक को कायल करता है, तो हमें पश्चात्ताप करने के लिए तत्पर होना चाहिए। तब हम इसलिए नहीं क्षमा के लिए प्रार्थना करते हैं क्योंकि परमेश्वर क्षमा करने के लिए अनिच्छुक है, परन्तु इसलिए क्योंकि हम जानते हैं कि हम पूर्ण रीति से परमेश्वर के अनुग्रह पर निर्भर हैं। हम कायाक्लेश (penance) नहीं करते हैं। हम अपने पापों का प्रायश्चित्त करने के लिए स्वयं को कोड़े नहीं मारते हैं। हम पाप को छिपाते नहीं हैं। दाऊद के समान हम पाप को प्रकट करते हैं और परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर भरोसा करते हैं कि वह अपने लोगों को क्षमा करेगा। जब हम पछतावे की पीड़ा का आभास करते हैं, हम सोच सकते हैं कि भला होता कि हम किसी रीति से समय में पीछे जाकर अपने कार्य को न करते। प्रिय मसीही, हमारे पास इससे भी उत्तम कुछ है। हमारे पास एक निश्चित प्रतिज्ञा है, जैसे दाऊद ने नातान से प्राप्त किया था कि प्रभु ने हमारे पाप “दूर कर दिया है” (2 शमूएल 12:13)। इसलिए स्पष्ट रीति से अपने पाप का नाम लें, उसका अंगीकार करें, और अनुग्रह के लिए प्रार्थना करें।

2. पुनःस्थापना के लिए प्रार्थना करें (भजन 51:10-12): “फिर से जागृत कर”; “अपने सामने से निकाल न दे”; “मुझे सम्भाल ले।”

क्षमा के लिए प्रार्थना करने के बाद, दाऊद अब पुनःस्थापना के लिए प्रार्थना करता है। सच्चा पश्चात्ताप क्षमा और  पुनःस्थापना, दोनों की खोज करता है। धूर्त पाखण्डी ऐसे पापों की क्षमा की खोज करते हैं जिनमें वे लौटने की पूरी मनसा रखते हैं। पश्चात्तापी पापी क्षमा के साथ-साथ परमेश्वर की कृपादृष्टि और उसके उद्धार की अनेक आशिषों में पुनःस्थापना की इच्छा रखता है। दाऊद उन बातों का नवीनीकरण चाहता था जिसे उसने पाप के कारण खो दिया था: शुद्ध हृदय, स्थिर आत्मा, परमेश्वर की उपस्थिति और उदार आत्मा, और आनन्द। पाप अति भयंकर और दुखद है क्योंकि यह परमेश्वर को शोकित करता है। जब हम पाप करते हैं और क्षमा की याचना करते हैं, तो अच्छा होगा कि हम पुनःस्थापना और आशिषों के नवीनीकरण के लिए दाऊद द्वारा की गई विनतियों को ध्यान दें। प्रार्थना करें कि परमेश्वर आपको आज्ञाकारिता के लिए इच्छुक और तत्पर बनाए, वह आपको खराई वाला नया हृदय दे, वह उस आनन्द को नवीनीकृत करे जो परमेश्वर के उद्धार में होने से आता है, और वह आपको उसकी बनी रहने वाली उपस्थिति के प्रति सचेत करे।

3. आज्ञाकारिता के लिए प्रार्थना करें और आत्मिक बलिदान चढ़ाएँ (भजन 51:13-17): “तब मैं . . .”; “टूटा मन”; “पिसा हुआ हृदय।”

इन आशिषों की पुनःस्थापना के कारण अब आज्ञाकारिता के लिए एक नया संकल्प और प्रयत्न उत्पन्न होता है (लघु वेस्टमिन्स्टर प्रश्नोत्तरी 87 देखें)। हमें नई आज्ञाकारिता के लिए  क्षमा और पुनःस्थापित किया जाता है। यदि दाऊद को वह क्षमा और पुनःस्थापना प्राप्त होती है जिसकी खोज वह कर रहा है, तो वह उद्घोषणा के रूप में अपनी आज्ञाकारिता को व्यक्त करेगा—अर्थात् वह दूसरों को परमेश्वर के अनुग्रह का शुभ सन्देश सुनाएगा जिसे उसने बड़ी मात्रा में अनुभव किया है। कैल्विन टिप्पणी करता है, “जिन लोगों को दया में होकर उनके पापों से बचाया गया है, वे अपने भाइयों की सहायता करने के लिए प्रेम द्वारा चलाए जाएँगे; और समान्य रूप से, वे लोग जो परमेश्वर के अनुग्रह के सहभागी हैं, वे भक्ति के प्रति निष्ठा और परमेश्वर की महिमा के द्वारा विवश अनुभव करते हैं कि अन्य लोगों को भी उस सहभागिता में लाया जाना चाहिए।3” दाऊद राजा परमेश्वर की स्तुति करने की इच्छा व्यक्त करता है (भजन 51:14-15)। अन्त में, वह पशुओं के बलिदान के स्थान पर आत्मिक बलिदान चढ़ाता है। यह थोड़ा अटपटा प्रतीत हो सकता है, क्योंकि प्रभु ही ने पाप के समाधान के लिए बलिदान-प्रणाली को स्थापित किया था। परन्तु, दाऊद एक ऐसी बात को समझता था जिसे कई यहूदी लोग नहीं समझते थे। व्यवस्था के अधीन कई लोग वेदी पर पशु के बलिदान के द्वारा परमेश्वर से क्षमा और उद्धार के लिए भुगतान  करना चाहते थे। दाऊद जानता था कि क्षमा अर्जित करने के लिए उसके पास कुछ नहीं था, और कि वह पूर्ण रीति से प्रभु की दया और प्रतिज्ञात प्रायश्चित्त पर निर्भर था।4

जॉन बनयन (John Bunyan) के अनुसार, टूटा मन रखने का अर्थ है कि मन “पाप के प्रति परमेश्वर के प्रकोप के समझ के द्वारा टूटा, अक्षम और हटा दिया गया है।” पिसा हुआ हृदय वह है जो पश्चात्तापी है, और “परमेश्वर के विरुद्ध किए गए पाप, और प्राण को पहुँची क्षति के कारण गम्भीर रीति से शोकित और गहराई से दुःखी है।“5 तो फिर टूटा और पिसा हृदय एक नम्र, खेदित और आशान्वित मुद्रा को दर्शाता है। प्रिय भाइयो और बहनो, परमेश्वर टूटे मन और पिसे हृदय को तुच्छ नहीं जानता है (भजन 51:17)। वह उसमें हर्षित होता है। जब हम इस मुद्रा में होते हैं, हम अपने पाप (भले ही वे कितने गम्भीर हों) के लिए प्रभु के सर्वोत्तम प्रावधान पर अपनी निर्भरता को स्वीकार करते हैं—अर्थात् प्रभु यीशु ख्रीष्ट के प्रायश्चित्त के कार्य पर।

4. परमेश्वर के लोगों के लिए प्रार्थना करें (भजन 51:18-19): “भलाई कर”; “शहरपनाह को बना।”

अब तक, दाऊद ने स्वयं के लिए प्रार्थनाएँ की हैं—क्षमा के लिए, पुनःस्थापना के लिए, और कृतज्ञ आज्ञाकारिता और पिसे हृदय से प्रेरित जीवन के लिए। पद 18 में, दाऊद अब परमेश्वर के लोगों की ओर से प्रार्थना करता है—जो कि पश्चात्ताप की प्रार्थना के समापन के लिए असामयिक प्रतीत हो सकता है। निस्सन्देह, सिय्योन के लिए दाऊद की प्रार्थना विशेष थी, क्योंकि वह इस्राएल में प्रभु का राज-प्रतिनिधि था। चरवाहा-राजा के रूप में, वह परमेश्वर के लोगों की देखरेख और सुरक्षा के लिए उत्तरदायी था। उसके पाप के कारण इस्राएल के लोगों पर न्याय और संकट आया, जैसा कि अन्य लोगों के पाप के साथ नहीं होता था।6 फिर भी, यह अभी भी सत्य है, भले ही उससे निचले स्तर पर, कि हमारा भी पाप कलीसिया को ठेस पहुँचाता है। जब हमारे पापों ने अन्य लोगों को दुःख पहुँचाया है, हम उनके लिए प्रार्थना करते हैं (और उनके सामने भी कभी-कभी अपने पाप को मानते हैं)। और उस पीड़ा और दुःख को जानते हुए, हम उनके लिए प्रार्थना करते हैं और उन्हें प्रोत्साहित करते हैं जिससे कि वे भी उसी फन्दे में न पड़ जाएँ। इसके साथ ही हम कलीसिया की देखरेख के लिए कलीसिया के सिर, प्रभु यीशु ख्रीष्ट पर भरोसा करते हैं। हम अपने पाप के द्वारा कलीसिया का विनाश नहीं कर सकते हैं; और हम स्वयं के प्रयासों के द्वारा कलीसिया का निर्माण या उसकी उन्नत्ति भी नहीं कर सकते हैं। ख्रीष्ट पर भरोसा करते हुए कि वह अपनी कलीसिया का निर्माण करेगा और उसे बनाए रखेगा, हमारी पश्चात्ताप की प्रार्थनाओं में हमें सामूहिक कलीसिया को ध्यान में रखना चाहिए। यद्यपि कुछ पाप निजी होते हैं, हम कभी भी पूर्ण रीति से एकान्त में पाप नहीं करते हैं। हम एक देह के अंग हैं (गलातियों 3:16)। इसलिए हम प्रार्थना करते हैं कि परमेश्वर हमारी दुष्टता को विफल करे, अपने लोगों को बनाए रखे, अपनी कलीसिया को स्थिर करे और अपनी इच्छा को पूरी करे।

दाऊद अपने पाप के प्रति जितना दुःखी था, उसके पास उतना ही भरोसा भी था कि प्रभु टूटे और पिसे हुए लोगों को दया दिखाने में आनन्द लेता है। जब आप अपने पाप के लिए अत्यधिक दुःख में फँसे हुए हैं, क्षमा और पुनःस्थापना के लिए प्रार्थना करें, नई आज्ञाकारिता में चलने का संकल्प करें, और अन्य लोगों के लिए विनती करें कि वे पाप में न गिरें। सबसे महत्वपूर्ण रीति से, दाऊद ने आगे की ओर देखा जब प्रभु सम्पूर्ण तथा अन्तिम प्रायश्चित्त करेगा, हम अपनी दृष्टि को उस राजा पर लगाते हैं जो हमें हिम से भी श्वेत करने के लिए आया था। और इसलिए, हम अपने पश्चात्तापी घुटनों से उठते हैं और इस आश्वासन के साथ आगे बढ़ते हैं कि प्रभु ने हमारे पाप को उतना ही “दूर कर दिया है” (2 शमूएल 12:13) जितना “उदयाचल से अस्ताचल” (भजन 103:12) दूर है।


1 निस्सन्देह, कई ऐसे भजन हैं जो हमारी पश्चात्तापी प्रार्थनाओं के लिए नमूने हो सकते हैं। भजनों को प्रार्थना करने के महत्व और उचित रीति से भजनों को प्रार्थना के लिए उत्तम मार्गदर्शिका के लिए देखें, गॉर्डन वेन्हम द्वारा लिखित द सॉल्टर रीक्लेम्ड: प्रेइंग ऐण्ड प्रेज़िंग विद द साम्ज़।

2 जॉन कैल्विन, भजन संहिता की पुस्तक पर टीका (बेल्लिंगम, वाशिंगटन)।

3 जॉन कैल्विन, भजन संहिता की पुस्तक पर टीका (बेल्लिंगम, वाशिंगटन)।

4 आर.सी. स्प्रोल, फॉलोइंग क्राइस्ट (व्हीटन, इल्लनोई: टिण्डेल हाउस, 1996)। “यहाँ दाऊद के विचार प्रकट करते हैं कि दाऊद ने उस बात को समझा था जिसे कई पुराने नियम के लोग समझने में विफल हुए थे—कि मन्दिर में बलिदान चढ़ाने के द्वारा पापी की योग्यता नहीं बढ़ती थी। बलिदान स्वयं से बढ़कर सिद्ध बलिदान की ओर संकेत करते थे। सिद्ध प्रायश्चित्त तो बिना दाग वाले सिद्ध मेमने ने किया था। बकरों और बैलों का लहू पाप को नहीं हटाता है। यीशु का लहू ऐसा करता है। ख्रीष्ट के प्रायश्चित्त का लाभ उठाने के लिए, उस ढाँपे जाने को प्राप्त करने के लिए, हमें टूटेपन और पिसे हुए हृदय के साथ परमेश्वर के सामने आना होगा। “टूटा मन परमेश्वर के योग्य बलिदान है।”

5 जॉन बनयन, द एक्सेप्टेबल सैक्रिफाइस (बेल्लिंगम, वाशिंगटन)

6 कैल्विन दाऊद के इस विशेष कर्तव्य को समझाता है: “सिंहासन तक बढ़ाए जाकर, और इसी उद्देश्य से राजा के रूप में अभिषिक्त होकर कि परमेश्वर की कलीसिया की उन्नति करे, दाऊद ने अपने घिनौने कार्यों के द्वारा उसका लगभग विनाश कर दिया था। यद्यपि वह इसके लिए दोषी है, वह अब प्रार्थना करता है कि परमेश्वर अपनी दया में अपने लोगों को पुनःस्थापित करे। भजन संहिता की पुस्तक पर टीका (बेल्लिंगम, वाशिंगटन)।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

ऐरन गैरियट्ट
ऐरन गैरियट्ट
रेव. ऐरन गैरियट्ट (@AaronGarriott) टेब्लटॉक पत्रिका के प्रबन्धक सम्पादक हैं, सैन्फर्ड, फ्लॉरिडा में रेफर्मेशन बाइबल कॉलेज में निवासी सहायक प्राध्यापक हैं, तथा प्रेस्बिटेरियन चर्च इन अमेरिका में एक शिक्षक प्राचीन हैं।