विवाह के बाहर यौन सम्बन्ध के विषय में बाइबल क्या कहती है? - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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विवाह के बाहर यौन सम्बन्ध के विषय में बाइबल क्या कहती है?

विवाह के बाहर यौन सम्बन्ध के विषय में बाइबल क्या कहती है? क्योंकि व्यवस्था हृदय पर लिखी हुई है (रोमियों 2:15), अविश्वासी लोग भी यौन सम्बन्ध के उद्देश्य और सीमाओं के विषय में कुछ जानते हैं, भले ही वे इस ज्ञान को दबाते हैं (रोमियों 1:18)। मुख्य बात यह है कि क्या व्यक्ति अधीन होकर उत्तर को ग्रहण करता है या नहीं। फिर भी, मसीही विश्वास के प्रति सन्देहवादी और पाप को उचित ठहराने का प्रयास करने वाले लोग प्रायः कहा करते हैं कि बाइबल स्पष्ट शब्दों में विवाह से बाहर के यौन सम्बन्ध को दोषी नहीं ठहराती है। यद्यपि हमें मूर्ख को उसकी मूर्खता जैसा उत्तर नहीं देना चाहिए (नीतिवचन 26:4), यौन सम्बन्ध के बारे में मसीहियों को बाइबल की स्पष्ट  शिक्षा के विषय में अटल रीति से स्पष्ट होना चाहिए।

शैतान ने अकारण ही यौन सम्बन्ध को विकृत करने के लिए अथक प्रयास नहीं किया है। क्योंकि यौन सम्बन्ध पवित्र है, उसको अपवित्र करने के परिणाम विनाशकारी हैं। प्रायः, दो मुख्य रीतियों से यौन सम्बन्ध का तिरस्कार और दुरुपयोग किया गया है: अनैतिक कोलाहल या गूढ़ज्ञानवादी रीति से यौन सम्बन्ध को अनुचित माना जाता है। पहली विचारधारा के लिए, यौन अनैतिकता से सम्बन्धित सभी आज्ञाओं को अनदेखा किया जाता है। दूसरी विचारधारा के लिए, उत्पत्ति की पुस्तक को अनदेखा किया जाता है और श्रेष्ठगीत को लज्जाजनक समझा जाता है। दोनों दृष्टिकोणों में आधारभूत भ्रान्ति हैं और परमेश्वर के उद्देश्य को विकृत किया जाता है। और हमारे प्रश्न का उत्तर देने के लिए यौन सम्बन्ध के लिए परमेश्वर के मूल उद्देश्य को समझना अनिवार्य है।

बाइबल की पहली पुस्तक के अनुसार, पुरुष को अच्छा  सृजा गया था। स्त्री की सृष्टि पुरुष से  की गई (उत्पत्ति 2:22) और वह पुरुष के लिए उपयुक्त  थी (उत्पत्ति 2:18)। पुरुष की संगिनी के रूप में  (1 कुरिन्थियों 11:11), स्त्री परमेश्वर द्वारा प्रदान की गई सहायक थी (उत्पत्ति 2:18) जिसकी सहायता से सृष्टि अपने लक्ष्य तक पहुँच पाए, जहाँ परमेश्वर और उसके स्वरूप को धारण करने वाले लोग एक साथ सामंजस्य में रहेंगे। यह तब होता जब मानवजाति आज्ञाकारी रीति से सृष्टि के आदेश को पूर्ण करें: “फूलो-फलो” (उत्पत्ति 1:22)। स्पष्ट शब्दों में, सृष्टि को उसके लक्ष्य तक पहुँचाने के लिए परमेश्वर के मूल उद्देश्य में एक पुरुष और एक स्त्री के बीच में यौन सम्बन्ध सम्मिलित था, जिसमें शुक्राणु और अण्डाणु मिलकर एक भ्रूण (अर्थात् मनुष्य) को बनाएँगे। यौन सम्बन्ध फूलने-फलने का साधन  है। इस मिलन के द्वारा, जो फलदायक यौन सम्बन्ध द्वारा निर्मित किया जाता है, परमेश्वर के प्रतिनिधियों के द्वारा परमेश्वर का राज्य स्थापित किया जाएगा। मसीही यौन सम्बन्धी नैतिकता के लिए यह एक आधारभूत तत्व है: परमेश्वर के उद्देश्य के अनुसार यौन सम्बन्ध अच्छा  है।

परन्तु परमेश्वर प्रत्येक सन्दर्भ में यौन सम्बन्ध की अनुमति नहीं देता है। बाइबल के अनुसार, यौन सम्बन्ध मात्र एक ही सन्दर्भ में स्वीकृत है। यह केवल एक पुरुष और एक स्त्री के मध्य वाचाई मिलन (covenantal union) के सन्दर्भ में स्वीकृत है। इन बाध्यताओं को किसी चिड़चड़े विक्टोरियन युग के पादरी द्वारा लागू नहीं किया था। परमेश्वर ने यौन सम्बन्ध का निर्माण किया, और परमेश्वर ने यौन सम्बन्ध के नियम निर्धारित किए हैं। सम्भवतः पहले से अधिक वर्तमान समय में, मसीही यौन सम्बन्धी नैतिकता की निन्दा की जाती है, यहाँ तक कि कलीसिया के लोगों के मध्य भी। परन्तु बाइबल की यौन सम्बन्धी नैतिकता किसी भी रीति से धुँधली नहीं है। जैसा कि सी.एस. लूइस ने कहा, “एक विकल्प विवाह है, जिसमें आप अपने जीवन साथी के प्रति पूर्ण रीति से विश्वासयोग्य हैं, और दूसरा विकल्प पूर्ण संयम (abstinence) है।

आरम्भ ही से, एक-पुरुष-और-एक-स्त्री की सीमा को इस बात में देखा जा सकता है कि आदम के लिए एक  ही स्त्री की सृष्टि की गई। परमेश्वर ने आदम के लिए चार नहीं, वरन् एक ही पत्नी की सृष्टि की। उत्पत्ति 2:24 में वर्णित मिलन यौन सम्बन्ध से पूर्व आता है: “पुरुष अपने माता-पिता को छोड़ कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा,” और इसके पश्चात् ही

 “वे एक ही तन बने रहेंगे।” विवाह रहित यौन सम्बन्ध वैवाहिक मिलन के बिना ही वैवाहिक मिलन फल का आनन्द उठाने का प्रयास है। पौलुस कुरिन्थियों को शिक्षा देते हुए इस बात को सम्बोधित करता है:

क्या तुम नहीं जानते कि तुम्हारे शरीर ख्रीष्ट के अंग हैं? तो क्या मैं ख्रीष्ट के अंगों को लेकर वेश्या के अंग बना दूँ? कदापि नहीं! या क्या तुम यह नहीं जानते कि वह जो वेश्या से संयोग करता है उसके साथ एक तन हो जाता है? क्योंकि कहा गया है, “वे दोनों एक तन होंगे।” परन्तु वह जो प्रभु से संगति करता है उसके साथ एक आत्मा हो जाता है। व्यभिचार से भागो। अन्य सारे पाप जो मनुष्य करता है देह के बाहर होते हैं, परन्तु व्यभिचारी तो अपनी ही देह के विरुद्ध पाप करता है। (1 कुरिन्थियों 6:15-18)

“अनौपचारिक यौन सम्बन्ध” स्वयं में विरोधाभास है। वैवाहिक कार्य केवल  वैवाहिक सन्दर्भ के लिए ही हैं। पौलुस स्पष्ट कर देता है कि यदि कोई अपनी यौन इच्छाओं को नियन्त्रित नहीं कर सकता है, तो इसका समाधान अनुचित यौन सम्बन्ध बनाना नहीं, वरन् विवाह करना है (1 कुरिन्थियों 7:9)। यह शिक्षा निरर्थक होती यदि पौलुस सोचता कि विवाह के बाहर यौन सम्बन्ध शुद्ध है। बाइबल की शिक्षा है कि “जब तक प्रेम स्वतः न जाग उठे, तब तक हमें उसे न ही जगाना और न उकसाना” चाहिए (श्रेष्ठगीत 2:7)। इसका अर्थ है कि ऐसा समय अवश्य ही होता है जब प्रेम को जगाया जाना चाहिए, परन्तु उस समय से पहले नहीं। इब्रानियों की पत्री यौन अनैतिकता के प्रति चेतावनी देती है और निष्कलंक विवाह-बिछौना को विषनाशक के रूप में प्रस्तुत करती है। परन्तु ध्यान दें कि केवल विवाह-बिछौना  को “निष्कलंक” कहा जा सकता है (इब्रानियों 13:4)। इसके अनुसार, विवाह के बाहर का यौन कार्य (अर्थात् “बिछौना”) कलंकित है।

मसीही व्यक्ति के लिए, विवाह के बाहर यौन सम्बन्ध का विकल्प ही नहीं है। फिर भी, जहाँ  ऐसा किया गया है, परमेश्वर टूटे और पिसे हुए हृदय को तुच्छ नहीं जानता है (भजन 51:17), क्योंकि पिता के पास हमारा सहायक है, प्रभु यीशु ख्रीष्ट, जो हमारे पापों का प्रायश्चित्त है (1 यूहन्ना 2:1-2)। उस पर भरोसा रखें, और आगे को पाप न करें (यूहन्ना 5:14; 8:11)।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

ऐरन गैरियट्ट
ऐरन गैरियट्ट
रेव. ऐरन गैरियट्ट (@AaronGarriott) टेब्लटॉक पत्रिका के प्रबन्धक सम्पादक हैं, सैन्फर्ड, फ्लॉरिडा में रेफर्मेशन बाइबल कॉलेज में निवासी सहायक प्राध्यापक हैं, तथा प्रेस्बिटेरियन चर्च इन अमेरिका में एक शिक्षक प्राचीन हैं।