चुनाव-समर्थक: इसका अर्थ क्या है? - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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चुनाव-समर्थक: इसका अर्थ क्या है?

चुनाव-समर्थक विचारधारा (pro-choice – इस बात के लिए समर्थन देने वाली विचारधारा कि प्रत्येक स्त्री के पास चुनाव करने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए कि वह किसी भी कारण से जब चाहे तब गर्भपात करवा सकती है) का सारतत्त्व क्या है? यदि कोई स्त्री कहे कि वह तो गर्भपात नहीं करना चाहेगी परन्तु वह ऐसा करने के लिए किसी और के अधिकार को नकारना नहीं चाहती है, तो फिर यह स्त्री किस आधार पर स्वयं गर्भपात करने से संकोच करती है? सम्भवतः वह तो चाहती है कि उसके पास जितने सम्भव हैं उतने बच्चे हों और नहीं सोचती है कि वह कभी बिना चाहे गर्भवती होगी। सम्भवतः वह सोचती है कि भ्रूण तो एक जीवित मनुष्य ही है या फिर वह भ्रूण की स्थिति के विषय में निश्चित नहीं है। सम्भवतः वह विश्वास करती है कि भ्रूण तो एक जीवित मनुष्य है परन्तु इस दृष्टिकोण को अन्य लोगों पर थोपना नहीं चाहती है। यहाँ पर हम चुनाव-समर्थक विचारधारा के केन्द्र-बिन्दु पर आते हैं। क्या चुनाव करने का अधिकार एक परम अधिकार है? क्या हमारे पास नैतिक अधिकार है कि हम वह चुनें जो नैतिक रीति से त्रुटिपूर्ण है? इस प्रकार के प्रश्न को पूछना ही उत्तर को स्पष्ट कर देता है।

पुनः, प्रत्येक लागू की गई विधि किसी न किसी के चुनावों को सीमित करती है। यह तो विधियों की प्रवृत्ति है। यदि हम विधि ठहराने के द्वारा लोगों को सीमित नहीं करना चाहते हैं, तो हमें विधि बनाना रोकना चाहिए और मतदान करना छोड़ना चाहिए। मेरे विचार से अधिकाँश लोग सहमत होंगे कि चुनाव की स्वतन्त्रता परम स्वतन्त्रता नहीं है। कोई भी मनुष्य स्वयं में नैतिक बातों को निर्धारित करने का अधिकार नहीं रखता है। जब तक हम पूर्ण सापेक्षवाद (pure relativism) पर आधारित नैतिक प्रणाली को स्वीकार करने के लिए तैयार न हों, हमें इस प्रस्तावना से दूर भागना चाहिए कि प्रत्येक व्यक्ति स्वायत्तशासी (autonomous) है। विचारों से वास्तविकता की ओर बढ़ते हुए, मैं सोचता हूँ कि क्या चुनाव-समर्थक पक्ष के लोग उन विधियों पर आपत्ति जताते हैं जो उनकी व्यक्तिगत सम्पत्ति को सुरक्षित रखती हैं। क्या टेलीविज़न चोरी करने हेतु किसी घर में बलपूर्वक प्रवेश करने वाले चोर के पास अपरिहार्य अधिकार है कि ऐसा करने का चुनाव करे? क्या किसी पुरुष के पास अधिकार है कि वह किसी स्त्री का बलात्कार करने का चुनाव करे? ये कठोर उदाहरण इस बात को स्पष्ट कर देते हैं कि चुनाव करने की स्वतन्त्रता को एक परम अधिकार नहीं माना जा सकता है।

चुनाव करने की स्वतन्त्रता किस सीमा पर समाप्त होनी चाहिए? मैं विश्वास करता हूँ कि उसकी सीमा वहाँ है जहाँ मेरी चुनाव की स्वतन्त्रता किसी दूसरे जन के जीवन और स्वतन्त्रता को प्रभावित करे। कभी भी किसी भी अजन्मे शिशु के पास अपने विनाश को चुनने या नकारने का अधिकार नहीं रहा है। वास्तव में, जैसा कि कुछ लोगों ने कहा है, कुछ क्षेत्रों में तो किसी मनुष्य के लिए सबसे जोखिम भरा स्थान स्त्री के गर्भ के भीतर है। लाखों अजन्में शिशुओं के लिए तो गर्भ मृत्युदण्ड पाए हुए बन्दियों का कक्ष बन गया है। बन्दी को बिना किसी सुनवाई या बिना उसकी रक्षा में बोले गए शब्दों के, तुरन्त मार दिया जाता है। इस मृत्युदण्ड में तो यथार्थ रूप से व्यक्ति के शरीर के अंगों को अलग-अलग कर दिया जाता है। क्या यह विवरण अत्यधिक उत्तेजक है? नहीं। ऐसा तब होता यदि यह विवरण झूठा होता।

चुनाव करने का अधिकार, भले ही यह जितना भी पवित्र क्यों न हो, यह किसी भी मानव जीवन को नष्ट करने का मनमाना अधिकार नहीं रखता है। यह न्याय का उतना ही गर्भपात है जितना कि एक मानव बच्चे का गर्भपात है।

चुनाव करने की स्वतन्त्रता में ऐसी क्या बात है जो इसे इतना बहुमूल्य बना देती है? किस बात ने पैट्रिक हेनरी (Patrick Henry) को यह कहने के लिए उकसाया, “मुझे स्वतन्त्रता दो या मुझे मृत्यु दो”? निश्चय ही हम चाहते हैं कि हम स्वयं के जीवन पर कुछ नियन्त्रण रखें, और बाहरी दबाव के अधीन जीने का विचार तो घृणास्पद है। हम विचार करने वाले प्राणी हैं, और हम अपनी चुनाव करने की स्वतन्त्रता को बहुमूल्य समझते हैं। हम में से अधिकतर लोगों को बन्दीगृह में डाला जाना अप्रिय लगेगा, परन्तु अधिकतम सुरक्षा वाले बन्दीगृह में भी, चुनाव करने के लिए व्यक्ति का अधिकार, पूर्ण रीति से हटाया नहीं जाता है।

यह आत्मनिर्णय का सिद्धान्त है—अर्थात् स्वयं की स्थिति और भविष्य के लिए योगदान करने को—जो प्रत्येक अजन्मे, गर्भपात किए गए बच्चे को क्रूरता से नकारता है। मेरी माता के निर्णय में, कि क्या वह गर्भपात करे या पूरे समय के लिए मुझे रखे, मेरा कोई योग्दान नहीं था। मेरे सम्पूर्ण जीवन उनके हाथों में था। यदि वह गर्भपात को चुनतीं, तो मेरे जन्म से पहले ही मेरे जीवन को दबा दिया जाता। आप और मैं वास्तविक मनुष्य हैं। एक समय था जब हम अपने चुनाव करने के बहुमूल्य अधिकार का उपयोग करने के लिए असहाय थे। एक समय था जब हम अपने ही अस्तित्व के लिए किसी और के निर्णय पर पूर्ण रीति से निर्भर थे।

चुनाव करने के अधिकार का दूसरा आयाम यह प्रश्न है कि शिशु के जीवन के विषय में नैतिक चुनाव को कब किया जाना चाहिए। (क्योंकि इस इसमें यौन नैतिकता जुड़ी हुई है, यह इस चर्चा का एक अलोकप्रिय भाग है।) बच्चा चाहिए या नहीं, यह चुनाव करने का सही समय बच्चे के गर्भ में आने और उसका विकास आरम्भ होने के बाद नहीं है। बलात्कार की घटनाओं के अतिरिक्त, यौन सम्बन्ध, भले ही वह गर्भनिरोध के साथ हो या नहीं, फिर भी चुनाव ही की बात है। हमारे द्वारा किए गए चुनावों के सर्वदा ही परिणाम होते हैं, भले ही वह यौन-सम्बन्धित हो या यौन-सम्बन्धित न हो। नैतिकता और विधि का एक सिद्धान्त है कि हम ही अपने निर्णयों के परिणामों के लिए उत्तरदायी हैं।

जब हम यौन सम्बन्ध बनाते हैं, तो हमारी मनसा में एक और मानव जीवन उत्पन्न करना हो सकता है या नहीं भी हो सकता है। परन्तु हम जानते हैं, कि यौन सम्बन्ध प्रजनन प्रणाली को आरम्भ करता है और सन्तान उत्पन्न कर सकता है। सन्तान की हत्या करना तो इस निर्णय के समाधान का न तो उत्तरदायी और न ही नैतिक उपाय है।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

आर.सी. स्प्रोल
आर.सी. स्प्रोल
डॉ. आर.सी. स्प्रोल लिग्नेएर मिनिस्ट्रीज़ के संस्थापक, सैनफर्ड फ्लॉरिडा में सेंट ऐन्ड्रूज़ चैपल के पहले प्रचार और शिक्षण के सेवक, तथा रेफर्मेशन बाइबल कॉलेज के पहले कुलाधिपति थे। वह सौ से अधिक पुस्तकों के लेखक थे, जिसमें द होलीनेस ऑफ गॉड भी सम्मिलित है।