सिमुल इयुस्टिस एक पेक्केटोर [अर्थात् एक ही समय में धर्मी और पापी] - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
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सिमुल इयुस्टिस एक पेक्केटोर [अर्थात् एक ही समय में धर्मी और पापी]

एक पत्रकार की कहानी सुनाई जाती है जिसने कई लेखकों और विचारकों से यह पूछने के लिए लिखा: “संसार की समस्या क्या है?” ऐसा कहा जाता है कि जी. के. चेस्टरसन ने उत्तर दिया, “मैं हूँ।” उसने उस बात को पहचाना जिसे अधिकाँश लोग पहचानने में चूकते हैं—अर्थात् कि संसार की सभी समस्याएँ हमसे ही आरम्भ होती हैं। किन्तु अधिकाँश लोगों के साथ मूलभूत समस्या यह है कि वे इस बात को नहीं समझते हैं कि वे संसार की मूलभूत समस्या के भाग हैं। अधिकाँश लोग सोचते हैं कि वे स्वभावतः अच्छे लोग हैं जिनके हृदय स्वभावतः अच्छे हैं और जिनकी मनसाएँ स्वभावतः अच्छी हैं। अधिकाँश लोग अन्य लोगों के विषय में भी ऐसा ही सोचते हैं और जो भी बुरा होता है उसका श्रेय बाहरी शक्तियों तथा प्रभावोंं को देते हैं।

इस प्रकार से सोचना न केवल अत्यधिक सरलमति है परन्तु साथ ही साथ अत्यधिक अबाइबलीय भी है, और कलीसिया में भी लोग ऐसा ही सोचते हैं। कलीसिया के अधिकाँश लोग मनुष्य की भ्रष्टता (depravity of man) के विषय में सही समझ नहीं रखते हैं, और इसके परिणामस्वरूप, वे परमेश्वर के अनुग्रह और चरित्र के विषय में भी सही समझ नहीं रखते हैं। जबकि हम अंगीकार करते हैं कि ख्रीष्ट से पृथक मनुष्य अपने स्वाभाविक दशा में परमेश्वर के सामने पूर्णतः भ्रष्ट है, हम इस बात के लिए कृतज्ञ हो सकते हैं कि परमेश्वर के अवरोधक अनुग्रह के कारण, मनुष्य सर्वदा उतना बुरा व्यवहार नहीं करता है जितना कि वह वास्तव में है।

अपनी पुस्तक द इन्स्टिट्यूट्स ऑफ दे क्रिस्चियन रिलिज्यन (Institutes of the Christian Religion) के आरम्भिक पृष्ठों से जॉन कैल्विन परमेश्वर को जानने और स्वयं को जानने के बीच के सम्बन्ध को समझने में हमारी सहायता करने का प्रयास यह तर्क देते हुए करते हैं, कि यदि हम परमेश्वर को ठीक रीति से नहीं जानते हैं, तो हम स्वयं को ठीक रीति से नहीं जान सकते हैं।
उस व्यापक रूप से प्रचलित दृष्टिकोण के साथ समस्या यह है कि मानवता मूल रूप से अच्छी है। जब परमेश्वर के प्रति हमारा दृष्टिकोण थोड़ा सा भी टेढ़ा होता है, तो मनुष्य और सब बातों के प्रति हमारा दृष्टिकोण अत्यधिक टेढ़ा हो जाता है। वर्तमान की सामाजिक-सांस्कृतिक और नैतिक समस्याओं और बुराइयों का यह एक प्रमुख कारण है। यदि हम परमेश्वर के वचन के अनुसार परमेश्वर को नहीं जानते हैं, तो हम निश्चय ही ठीक रीति से नहीं जान पाएँगे कि मनुष्य परमेश्वर के स्वरूप में बनाया गया था, तथा सम्पूर्ण मानवजाति के पास परमेश्वर प्रदत्त गरिमा है, कि आदम के पाप में सम्पूर्ण मानव जाति की पापी दशा तथा परमेश्वर के साथ शत्रुता में पतन हुआ, और कि परमेश्वर के हस्तक्षेप करने वाले तथा पुनरुज्जीवन देने वाले अनुग्रह से पृथक सब मनुष्यों के पास मेल-मिलाप की आशा नहीं है। परमेश्वर के साथ मेल-मिलाप का एकमात्र उपाय यीशु ख्रीष्ट के जीवन और कार्य के द्वारा है, जिस में केवल विश्वास के द्वारा अभ्यारोपित धार्मिकता के द्वारा हम धर्मी गिने जा सकते हैं। तब हम अपने पवित्र, धर्मी और अनुग्रहकारी परमेश्वर के सामने सिमुल इयुस्टिस एक पेक्केटोर (simul justus et peccator अर्थात् एक ही समय में धर्मी और पापी) खड़े हो सकते हैं, अर्थात् हम एक ही समय में धर्मी ठहराए हुए और पापी दोनों हो सकते हैं, तथा उसके मुख के सामने तथा अब और सर्वदा उसकी महिमा के लिए उसकी आराधना कर सकते हैं।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

बर्क पार्सन्स
बर्क पार्सन्स
डॉ. बर्क पार्सन्स टेबलटॉक पत्रिका के सम्पादक हैं और सैनफोर्ड फ्ला. में सेंट ऐंड्रूज़ चैपल के वरिष्ठ पास्टर के रूप में सेवा करते हैं। वे अश्योर्ड बाई गॉड : लिविंग इन द फुलनेस ऑफ गॉड्स ग्रेस के सम्पादक हैं। वे ट्विटर पर हैं @BurkParsons.