राज्य की बढ़ोत्तरी - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
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26 अक्टूबर 2023
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राज्य की बढ़ोत्तरी

अपने सुसमाचार के चौथे अध्याय में, मरकुस ने यीशु के राज्य के तीन दृष्टांतों को समूह में रखता है, जिनमें बीज का उपयोग मुख्य रूपक के रूप में हुआ है। 1-9 पदों में, यीशु एक बोने वाले के विषय में कहते हैं, बीज जो बोया जाता है, और भिन्न प्रकार की भूमि जिसमें बीज बोया जाता है। 13-20 पदों में, यीशु इस दृष्टांत की व्याख्या करते हैं। 26-29 पदों में, यीशु एक और बीज का दृष्टांत देते हैं; इसे लोकप्रिय रूप से बढ़ते हुए बीज का दृष्टांत कहा गया है।

दृष्टांत का अर्थ कुछ कुछ स्तर तक स्वतः स्पष्ट है: वह जो बोता है उसके पास उस प्रक्रिया पर कोई अधिकार नहीं है जिसके द्वारा बीज अंकुरित होता है और बढ़ता है; और न ही बोने वाला फसल पर नियंत्रण करता है। प्रेरित पौलुस ऐसा प्रतीत होता है कि वह इस दृष्टांत के बिन्दु को 1 कुरिन्थियों 3:5-7 में प्रतिबिम्बित कर रहा है। ‘‘मैंने बोया, अपुल्लोस ने सींचा, परन्तु परमेश्वर ने बढ़ाया। अतः न तो बोने वाला कुछ है, और न ही सींचने वाला, परन्तु बढ़ानेवाला परमेश्वर ही सब कुछ है।’’ वचन की सेवकाई करने के द्वारा इस संसार में परमेश्वर के राज्य को व्यक्त किया जाता है (बीज बोना और बोए हुए बीज की सिंचाई करना) जैसे पौलुस सही रीति से सूचित करता है, बोना और सिंचाई करना मनुष्यों के यंत्रों में से आता है (इसे भी देखें, इफिसियों 4:15-16), किन्तु परमेश्वर किसी भी फल के बढ़ने का कुशल कारण है।

मरकुस 4:30-32 में, हम अध्याय के तीसरे बीज का दृष्टांत पाते हैं। यीशु पूछते हैं, ‘‘परमेश्वर के राज्य की उपमा हम किससे दें, अथवा किस दृष्टांत के द्वारा हम उसका वर्णन करें? वह इस पर कहते हैं कि वह एक राई के दाने के समान है, जैसे कि राई का बीज जो धीरे-धीरे बढ़ता जाता है, परमेश्वर का राज्य भी जो छोटे से आरम्भ होता और अधिक विशाल और उत्कृष्ट रूप से वृद्धि करता जाता है। जब हम 120 लोगों के समूह को देखते हैं जो उपरौती कोठरी में ख्रीष्ट के स्वर्गारोहण के पश्चात् एकत्र हुआ था और तब हम देखते हैं कि पुरुषों और स्त्रियों के सम्मिलित होने की संख्या बढ़ गई थी, और वे प्रत्येक भाषाओं, गोत्र, और राष्ट्रों से थे और हम निश्चित रुप से देख सकते हैं कि अब राई का दाना बड़ा हो गया है।

परन्तु इनके साथ ही धीरे-धीरे राज्य की बढ़ोत्तरी की चर्चा करते हुए, सम्भवतः यीशु यहाँ पर एक और बात कह रहे हैं। इन सबके पश्चात्, उनके कहने का सन्दर्भ एक राई का दाना है। एक अवलोकनकर्ता कहते हैं: ‘‘जहाँ पर यीशु रहे, वहाँ पर राई बड़ी उपजाऊ थी, जैसे कि एक साधारण और मज़बूत जंगली घास के समान। यह कहीं पर भी उग सकता है और बहुत बढ़ सकता है।’’ इसके अतिरिक्त, राई का एक बीज एक झाड़ी के रूप में बढ़ता है– एक बांज वृक्ष के समान विशाल तो नहीं, परन्तु एक झाड़ी (एक मजबूत और सम्भवतः बहुत ही घनी झाड़ी, परन्तु फिर भी एक झाड़ी पेड़ के समान)। वास्तव में, हो सकता है पौलुस के शब्दों में, 1 कुरिन्थियों 1:26 एक अच्छी अन्तरदृष्टि है इस दृष्टांत मेंः “हे भाइयो, अपने बुलाए जाने पर तो विचार करो कि शरीर के अनुसार तुम में से न तो बहुत बुद्धिमान थे।’’ राज्य का विकास न केवल धीरे-धीरे होती है किन्तु सासांरिक मानको के अनुसार यह निश्चय ही विकास जैसा नहीं लग सकता है। पौलुस आगे कहता है, ‘‘परमेश्वर ने संसार के निकृष्ट और तुच्छों को, वरन् उनको जो हैं भी नहीं चुन लिया, कि उन्हें जो हैं व्यर्थ ठहराए, जिससे कि कोई प्राणी परमेश्वर के सामने घमण्ड न करे’’( पद 28-29)।

सम्भवतः यह दृष्टांत विकास और और सामर्थ्य को सांसारिक मानकों के आधार पर परिभाषित करने की हमारी प्रवृत्ति की बात कह रहा हो। सम्भवतः राई का बीज और उससे बनने वाली छोटी झाड़ी इस बात स्मरण दिलाती है कि राज्य का विकास वैसा नहीं हो सकता है जैसा हम सोचते हैं।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

केन जोन्ज़
केन जोन्ज़
रेव्ह. केन जोन्ज़, मयैमी में ग्लेन्डेल बैपटिस्ट चर्च के पास्टर हैं।