अनुग्रह के साधन के रूप में कलीसियाई विधियां - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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अनुग्रह के साधन के रूप में कलीसियाई विधियां

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का पांचवा अध्याय है: अनुग्रह के साधारण साधन

मैं एक बड़ी बपतिस्मावादी (Baptist) कलीसिया में बढ़ा हुआ जहाँ पर बपतिस्मा बार-बार होता था और प्रभु भोज का होना असमान्य था। बपतिस्मा सर्वदा एक आनन्दपूर्ण कार्यक्रम होता था—कभी-कभी लोग खुशी से चिल्लाते भी थे। दूसरी ओर प्रभु भोज गम्भीर, शान्त और, एक जवान लड़के के लिए, उबाऊ होता था। मैंने अतिरिक्त पन्द्रह से बीस मिनट के लिए बैठने के उद्देश्य को नहीं समझ पाया। क्या केवल पास्टर यह कह कर समाप्त नहीं कर सकता था, “यीशु आपके पापों के लिए क्रूस पर मर गया।”? मैं वास्तव में कभी भी बपतिस्मा के उद्देश्य को नहीं समझ पाया, केवल कि यीशु ने इसकी आज्ञा दी थी। जब मैंने बारह वर्ष की उम्र में बपतिस्मा लिया, तो यह मेरे लिए केवल एक संस्कार था।

वेस्टमिन्स्टर का विश्वास अंगीकार बपतिस्मा और प्रभु भोज के महत्व पर बाइबल की शिक्षा को इस प्रकार सारांशित करता है: कलीसियाई विधि अनुग्रह के वाचा पवित्र चिह्न तथा छाप हैं, जो स्वयं परमेश्वर के द्वारा ठहराई गई हैं, ख्रीष्ट और उसके लाभों का प्रतिनिधित्व करने, और उसमें हमारे प्रेम की पुष्टि करने के लिए” (27:1)। “चिह्नों और छापों” की भाषा सीधे रोमियों 4:11 से आती है: “[अब्राहम को] ख़तने का चिह्न मिला जो विश्वास की उस धार्मिकता की छाप है जो ख़तना रहित दशा में भी उसमें थी।” किस रीति से कलीसियाई विधियाँ चिह्न और छाप के रूप में कार्य करते हैं?

बाइबल में कई “चिह्न” पाए जाते हैं। मूसा ने मिस्र देश में “चिह्नों” को दिखाया (निर्गमन 4:8, आदि) यीशु के आश्चर्यकर्मों को “चिह्न”  कहा जाता है (यूहन्ना 2:11)। वास्तव में, यीशु ख्रीष्ट का देहधारण और कुंवारी से जन्म लेना स्वयं में एक चिह्न थे (यशायाह 7:14)। चिह्न दृश्य संकेत हैं, जो सम्भवतः स्वयं में महत्वपूर्ण हो, जो किसी अन्य बात की ओर इंगित करती हैं। मूसा के चिह्न परमेश्वर की सामर्थ्य और अपने लोगों को छुटकारा देने के उद्देश्य की ओर इंगित करती हैं। यीशु के चिह्न परमेश्वर का अनन्त काल के पुत्र में रूप में उसकी पहचान को इंगित करती हैं (यूहन्ना 20:20-31)।

अर्थपूर्ण रीति से, बाइबल में “चिह्न” शब्द के आने के पहले छह बार में से चार बार में “वाचा का चिह्न” वाक्यांश के रूप में उपयोग किया गया है (उत्पत्ति 9:12, 13, 17; 17:11)। जल प्रलय के बाद, परमेश्वर ने नूह के साथ वाचा बांधी, अर्थात एक बाध्यकारी सम्मति थी, यह प्रतिज्ञा करते हुए कि वह पृथ्वी पर फिर कभी जल प्रलय नहीं लाएगा। अपनी वाचा की प्रतिज्ञा को पुष्टि करने के लिए एक चिह्न-स्वरूप, परमेश्वर ने मेघधनुष को दिया। मैं फ्लॉरिडा में बढ़ा हुआ, जहाँ गर्मी के दोपहर में प्रायः गरज के साथ मेघधनुष का दिखाई देना सामान्य बात है। हम मेघधनुष की सुन्दरता को देखकर विस्मित हो सकते हैं। परन्तु इसका मुख्य उद्देश्य परमेश्वर की वाचा की प्रतिज्ञा और विश्वासयोग्यता को स्मरण दिलाना है।

परमेश्वर ने इब्राहीम के साथ भी एक वाचा बांधी (उत्पत्ति 15:18; 17:2, आदि, निर्गमन 2:24 देखें)। इस वाचा में, परमेश्वर ने इब्राहीम और उसके वंशजों का परमेश्वर होने, उन्हें उत्तराधिकार में भूमि देने, उनके द्वारा राज्यों को आशीष देने, और उनके वंशज को समुद्र के किनारे रेत के समान और आकाश में तारों के समान असंख्य होने की प्रतिज्ञा की। इन प्रतिज्ञाओं की पुष्टि करने के लिए, परमेश्वर ने इब्राहीम को “वाचा के चिह्न” स्वरूप ख़तने को दिया। (उत्पत्ति 17:11)।

ये चिह्न दृश्य, मूर्त स्मारक हैं जो उसके लोगों के लिए परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं की पुष्टि करते हैं। वे प्रत्येक वाचा के लिए उपयुक्त भी हैं। मेघधनुष वर्षा के बाद आकाश में दिखाई देता है जब सूरज पानी की बूंदों में से निकलता है। परमेश्वर भारी वर्षा भेज सकता है जिसके परिणाम स्वरूप स्थानीय बाढ़ और कुछ लोगों के लिए विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं। फिर भी, वह फिर कभी सम्पूर्ण पृथ्वी पर बाढ़ नहीं लाएगा और न ही सम्पूर्ण मानव जाति को नष्ट करेगा। इब्राहीम के साथ परमेश्वर की वाचा में, परमेश्वर ने इब्राहीम के वंशजों से “एक बीज” का प्रतिज्ञा की थी (जो अन्ततः ख्रीष्ट में पूरा हुआ; गलातियों 3:15-18)। उचित रूप से, जुड़ा हुआ चिह्न पुरुष प्रजनन अंग पर लागू किया जाता है। जैसा कि हम देखेंगे, कि परमेश्वर के चिह्नों का उपयुक्त स्वभाव अन्य वाचाओं में भी सत्य है, जिसमें ख्रीष्ट के लहू की नई वाचा भी सम्मिलित है।

कलीसियाई पिता ऑगस्टीन ने प्रसिद्ध रूप से कलीसियाई विधियों को “दृश्य शब्द” कहा। जब बच्चे सीख रहे होते हैं, उन्हें पाठ को समझने में सहायता करने के लिए प्रायः चित्रों या  मूर्त वस्तुओं की आवश्यकता होती है। इसी बात को परमेश्वर हमारे लिए इन दृष्य, मूर्त चिह्नों में प्रदान करता है। वह बच्चों के रूप हमारे पास आता है  ताकि हम वास्तव में उसकी वाचा की प्रतिज्ञाओं को समझे, स्मरण रखें, और पुष्टिकरण पाएं।

पौलुस के दिनों में मुहर प्रायः मोम से बना होता था और इसमें एक मोहरदार छाप होती थी जो स्वामी की पहचान की पुष्टि करती थी। आधिकारिक आलेखों और पत्रों पर प्रायः छाप लगी होती थी। यदि भेजने वाला एक राजा या प्रशासनीय अधिकारी होता था, जो आप सामग्री को देखने के लिए मोहर को खोलने का दुस्साहस नहीं कर सकते जब तक कि वह अपने उचित गन्तव्य तक नहीं पहुँच जाता। इस अर्थ में, एक छाप भेजने वाले की पहचान और सामग्री की सुरक्षा दोनों की पुष्टि करता है।

इसी प्रकार, परमेश्वर के वाचा के चिह्न परमेश्वर के लोग होने की हमारी पहचान की पुष्टि करते हैं और उस वाचा में हमारी सदस्यता को सुरक्षित रखते हैं। दूसरे शब्दों में, वाचा के चिह्न—या विधियाँ—दोनों ही परमेश्वर के साथ हमारे सम्बन्ध को आश्वासन और दृढ़ता दोनों प्रदान करते हैं। ऑगस्टीन ने भी इसे इस प्रकार रखा: कलीसियाई विधियाँ “अदृश्य अनुग्रह के दृश्य चिह्न” हैं। वे एक ऐसे मार्ग हैं जिसमें परमेश्वर हमें विश्वास में दृढ़ करने के लिए अपना अनुग्रह प्रदान करता है।

रोमियों अध्याय 4 को पुनः देखते हुए, ख़तना का विश्वास के द्वारा इब्राहीम की धार्मिकता की का चिह्न और छाप होने के विषय में पौलुस कथन से पहले (पद 11), प्रेरित कहता है कि इब्राहीम ने “परमेश्वर पर विश्वास किया और वह उसके लिए धार्मिकता गिना गया” (पद 3)। इसी कारण, ख़तना इस बात का चिह्न और छाप था कि परमेश्वर ने उसके विश्वास और केवल उसके विश्वास के द्वारा उसे धर्मी ठहराया। फिर भी, पौलस बाद में कहता है कि इब्राहीम बच्चा उत्पन्न करने के प्रयास में बिना किसी सफलता के कई वर्षो बाद भी “अपने विश्वास में दृढ़ रहा” (पद 20)। उसके दृढ़ विश्वास का एक कारण वह वाचा का चिह्न था जो परमेश्वर ने उसे दिया था। उसकी स्वयं की देह ने निरन्तर परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं की गवाही दी और पुष्टि की। 

वाचा के चिह्न उलटी दिशा में भी कार्य करते हैं। प्राचीन संसार में वाचाएं बाध्यकारी समझौते थे जो दोनों पक्षों की ओर से प्रतिज्ञाएं और उत्तरदायित्व सम्मिलित थीं। बाइबलीय वाचाओं में, परमेश्वर हमारा परमेश्वर होने की प्रतिज्ञा करता है। बदले में हम स्वयं को पूरी रीति से परमेश्वर को समर्पित करने और उसकी आज्ञाओं का पालन करने की प्रतिज्ञा करते हैं। लतीनी शब्द सैक्रामेन्टम  प्रायः निष्ठा की शपथ को सन्दर्भित करता था जो सैनिक अपने अधिकारी के साथ बांधते थे। उसी प्रकार, कलीसियाई विधियों (अग्रेज़ी में सैक्रमेन्ट ) हमें ख्रीष्ट के लिए पूरी रीति से अलग करते हैं। कलीसियाई विधियों में, हम प्रतिज्ञा करते हैं कि पूर्ण रूप से, सम्पूर्णता से, बिना संकोच के उसी के हैं।

जब मैं विवाह की विधि को सम्पन्न करता हूँ, तो वर और वधु अंगूठी आदान-प्रदान करते हैं, एक दूसरे को यह घोषित करते हुए, “मैं आपको यह अंगूठी, हमारे निरन्तर विश्वास और बने रहने वाले प्रेम के प्रतीक और बंधन के रूप में देता हूँ।” बाइबलीय विवाह एक वाचा है (मलाकी 2:14)। विवाह की अंगूठी उस वाचा का चिह्न और छाप है। यह वर और वधु के प्रेम और एक दूसरे के प्रति समर्पण की पुष्टि तथा घोषणा करता है। मैं जो अंगूठी पहनता हूँ, वह मुझे अपनी पत्नी का होने के रूप में चिह्नित करता है और जब तक हम दोनों जीवित रहेंगे, उसके प्रति मेरे विश्वासयोग्य होने की प्रतिज्ञा की पुष्टि करता है।

परन्तु, परमेश्वर की विधियाँ, विवाह की अंगूठी से कहीं अधिक गहरे और समृद्ध हैं। वे वास्तव में हमें आत्मिक रूप से परमेश्वर के प्रति समर्पण के प्रति विश्वासयोग्य रहने लिए दृढ़ करते हैं। वे हमें ख्रीष्ट के जैसे बनने और ख्रीष्ट के साथ घनिष्टता से मेल करने में अगुवाई करते हैं। वे अकेले ही किसी जादुई रीति से कार्य नहीं करते हैं। उन्हें वचन और आत्मा के साथ अवश्य जुड़े रहना चाहिए, और तब ही प्रभावशाली हैं जब वे विश्वास के साथ संयुक्त होते हैं। फिर भी, जब ये उचित रीति से संचालित और स्वीकार किए जाते हैं, वे आत्मिक उत्साह और विकास का एक महत्वपूर्ण साधन हैं।

इस लेख के शेष भाग में दो और केवल दो कलीसियाई विधियों पर ध्यान केन्द्रित किया जाएगा जिन्हें परमेश्वर अपनी नई वाचा के लोगों को देता है: प्रभु भोज और बपतिस्मा। हम पृथक रूप से प्रत्येक के विशेष अर्थ को देखेंगे और चर्चा करेंगे कि वे हमारे जीवन में अनुग्रह और आत्मिक दृढ़ता के साधन के रूप में कैसे कार्य करते हैं।

प्रभु भोज
यीशु ने अपने शिष्यों के साथ फसह के पर्व के भोज के समय प्रभु भोज की स्थापना की। फसह के पर्व का उत्सव पुरानी वाचा का एक चिह्न था जो परमेश्वर के लोगों को मिस्र के दासत्व से बाहर लाने में परमेश्वर के द्वारा किए गए महान उद्धार के कार्य को स्मरण दिलाने के लिए था (निर्गमन 13:9)। भोजन में मेमना और अखमीरी रोटी सम्मिलित था, दोनों उपयुक्त चिह्न क्योंकि निर्गमन में वे केन्द्रीय थे। इस्राएलियों ने अखमीरी रोटी खाया क्योंकि वे शीघ्रता से जा रहे थे। उनके घरों के चौखटों पर लगाए गए मेमने के लहू ने मिस्र पर उण्डेले गए परमेश्वर के न्याय को फेर दिया। 

इसी प्रकार से, प्रभु भोज नई वाचा में परमेश्वर के महान छुटकारे की घटना के उत्सव मनाता है। यीशु ने अपने शिष्यों के साथ फसह के भोज के समय कहा, “यह मेरी देह है, जो तुम्हारे लिए दी जाती है” (लूका 22:19) और “यह वाचा का मेरा वह लहू है जो बहुत लोगों के निमित्त पापों की क्षमा के लिए बहाया जाने को है” (मत्ती 26:28)। प्रभु भोज एक चिह्न है जो क्रूस पर ख्रीष्ट की मृत्यु की ओर इंगित करता है। हम ख्रीष्ट की “स्मरण में” खाते और पीते हैं (लूका 22:19)।

प्रभु भोज आगे की ओर भी इंगित करता है। अन्तिम भोज के समय, यीशु ने भविष्य की घटनाओं की ओर देखते हुए कहा, “क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ कि जब तक यह परमेश्वर के राज्य में पूरा न हो जाए, मैं इसे फिर कभी नहीं खाऊँगा” (लूका 22:18)। इसी प्रकार, पौलुस प्रभु भोज के सम्बन्ध में लिखता है, “क्योंकि जब-जब तुम इस रोटी को और इस कटोरे में से पीते हो तो जब तक प्रभु न आ जाए उसकी मृत्यु का प्रचार करते हो” (1 कुरिन्थियों 11:26)। यहाँ पर ध्यान दीजिए कि प्रभु भोज “प्रचार” करता है। यह एक दृश्य वचन है। 

परन्तु, प्रभु भोज वचन को प्रकट करने से अधिक कार्य करता है। यह हमारी इन्द्रियों को सम्मिलित करता है। हम देखते हैं, परन्तु हम रोटी और दाखरस को सूँघते हैं, छूते हैं और स्वाद भी लेते हैं। उचित रीति से संचालित किए जाने पर, प्रभु भोज में सुनना भी सम्मिलित है, क्योंकि यह वचन के प्रचार के बाद और तत्वों के अर्थ पर उचित निर्देश दिए जाने के बाद घटित होता है। प्रभु भोज, इन पाँच इन्द्रियों के सहभागी करने के द्वारा, हमें ख्रीष्ट की मृत्यु के आश्चर्य को अच्छी रीति से समझने में सहायता करता है। प्रभु भोज क्रूस पर ख्रीष्ट की मृत्यु को व्यक्तिगत बनाता है। ख्रीष्ट केवल पापियों के लिए नहीं मरा। ख्रीष्ट मेरे  लिए मरा। 

प्रभु भोज, दूसरे शब्दों में, इस सत्य को हमारे हृदयों में छाप लगाता है। यह एक बाहरी, शारीरिक पुष्टिकरण है कि मैं ख्रीष्ट का हूँ और ख्रीष्ट ने स्वयं को मुझे दे दिया है। हाइडलबर्ग प्रश्नोत्तरी 1 के सुन्दर शब्दों में: 

जीवन और मृत्यु में आपका एकमात्र सान्त्वना क्या है? कि मैं देह और प्राण, जीवन और मृत्यु में, अपना नहीं, वरन् अपने विश्वासयोग्य उद्धारकर्ता, यीशु ख्रीष्ट का हूँ, जिसने अपने लहू के मूल्य पर मेरे सभी पापों के लिए पूर्ण रीति से भुगतान कर दिया है, और मुझे पूर्णतः शैतान के प्रभुत्व से स्वतंत्र कर दिया, और कि वह इतनी अच्छी रीति से मेरी रक्षा करता है कि बिना स्वर्ग में मेरे पिता की इच्छा के मेरे सिर से एक बाल भी नहीं गिर सकता; वास्तव में सब कुछ का मेरे उद्धार के लिए उसके उद्देश्य के अनुरूप होना अनिवार्य है।

इसके साथ, प्रभु भोज में हम आत्मिक रूप से ख्रीष्ट के साथ संगति करते हैं। पौलुस लिखता है: “धन्यवाद का वह कटोरा जिसके लिए हम धन्यवाद देते हैं, क्या वह ख्रीष्ट के लहू में सहभागिता नहीं? वह रोटी जिसे हम तोड़ते हैं, क्या वह ख्रीष्ट के देह में सहभागिता नहीं?” (1 कुरिन्थियों 10:16)। “सहभागिता” के लिए यूनानी शब्द कोइन निया  उपयोग किया गया है, वह शब्द जो किसी के साथ घनिष्ट संगति को सन्दर्भित करता है। इसके विपरीत, पौलुस कुरिन्थियों को मूर्ति पूजक आराधना में भाग लेने के द्वारा दुष्टात्माओं के साथ कोइन निया  न करने के लिए डाँटता है (पद 20)। प्रभु भोज में ख्रीष्ट आत्मिक रूप से उपस्थिति है। जब हम रोटी और प्याले में सहभागी होते हैं, तो हम उसके साथ घनिष्ट संगति करते हैं।

प्राचीन संसार में, एक साथ भोजन करना आत्मीयता की अभिव्यक्ति थी। भोजन वाचा बांधने के संस्कार का एक महत्वपूर्ण भाग भी था। एक दूसरे के साथ वाचा में प्रवेश करने वाले पक्ष एक साथ भोजन करने के द्वारा समझौते पर छाप लगाते थे। हम इस विचार को निर्गमन 19-24 में देखते हैं। परमेश्वर के द्वारा सीनै पर्वत पर इस्राएलियों के साथ वाचा बांधने के बाद, मूसा और इस्राएल के अगुवों ने पर्वत पर परमेश्वर की उपस्थिति में भोजन किया। वास्तव में, परमेश्वर और उसके लोगों के बीच एक घनिष्ट सम्बन्ध उनके साथ परमेश्वर की वाचाओं का उद्देश्य है।

यह नई वाचा में विशेष रीति से स्पष्ट है। नई वाचा में, परमेश्वर अपनी व्यवस्था को हमारे हृदयों पर लिखता है, परमेश्वर हमारे पापों को क्षमा करता है, और परमेश्वर स्वयं को सबसे व्यक्तिगत और आत्मीय रीति से हम प्रकट करता है: “छोटे से लेकर बड़े तक सब मुझे जान जाएंगे” (यिर्मयाह 31:34)। त्रिएकता के तीनों जन इस घनिष्ट सम्बन्ध में सम्मिलित हैं। परमेश्वर वाचा में  हमारे निकट आता है। ख्रीष्ट नई वाचा के प्रतिज्ञाओं को पूरी करने के लिए हमारे साथ एक बन गया। पवित्र आत्मा हमारे भीतर वास करता है, हमें नई सृष्टि बनाते हुए और वाचा की उत्तरदायित्वों को पूरा करने के लिए हमें सक्षम बनाते हुए। परमेश्वर केवल पास ही नहीं—वह हमारे भीतर है।

प्रभु भोज परमेश्वर के साथ हमारे घनिष्ट सम्बन्ध को हमारे लिए एक बड़ा अनुभवात्मक वास्तविकता बनाता है। यह परमेश्वर के साथ हमारे सम्बन्ध के हृदय से बात करता है, अर्थात हमारे लिए परमेश्वर का प्रेम और हमारा प्रेम परमेश्वर के लिए। प्रभु भोज में, ख्रीष्ट उपस्थित है, हम से कहते हुए है: “तुम मेरे प्रिय बच्चे हो। मैंने तुम्हारे लिए अपने प्राण को दे दिया। अब मैं तुम्हें सामर्थ्य देता हूँ कि तुम अपना क्रूस उठाओ और मेरे पीछे चलो।”

प्रभु भोज नई वाचा में हमारी नई पहचान को भी स्मरण दिलाता है। पुरानी वाचा में फसह के पर्व को अपने परिवार के साथ मनाया जाना था। परन्तु, यीशु ने अपने चेलों के साथ फसह खाया, यह दर्शाने के लिए कि वे परमेश्वर का नया और सच्चा परिवार थे। वे सब जो यीशु के पीछे चलते हैं, उसका भाई और उसकी बहन हैं। प्रभु भोज वह है जिसे कुछ लोगों ने “पृथक करने वाली विधि” कहा है, हमें उन लोगों के रूप में चिह्नित करते हुए जो वास्तव में, पूर्ण रूप से ख्रीष्ट के हैं।

इस रीति से, प्रभु भोज हमें उन सब के साथ एक करता है जो ख्रीष्ट के हैं। पौलुस ने कुरिन्थियों से कहा कि क्योंकि वे लोग एक साथ एकत्रित होकर तथा एकता में नहीं खा रहे थे, वे प्रभु भोज में खा ही नहीं रहे थे (1 कुरिन्थियों 11:20)। प्रभु भोज में हम ख्रीष्ट के साथ तथा एक दूसरे के साथ संगति करते हैं। आत्मा के द्वारा, प्रभु भोज हमें ख्रीष्ट के साथ और ख्रीष्ट में हमारे भाई और बहनों के साथ हमारे सम्बन्ध को दृढ़ करता है।

प्रभु भोज की प्रतीकात्मकता बहुमूल्य है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है, कि यह हमें हमारे स्थान पर ख्रीष्ट की मृत्यु का स्मरण दिलाता है जब उसने हमारे दण्ड को अपने ऊपर ले लिया। यह ख्रीष्ट के साथ हमारे मिलन की पुष्टि करता है और उसे दृढ़ भी करता है, जब हम न केवल स्मरण करते हैं परन्तु आत्मिक रीति से ख्रीष्ट के साथ संगति करते हैं। प्रभु भोज में, हम एक दूसरे के साथ अपने सम्बन्ध को भी दृढ़ करते हैं। प्रभु भोज हमें भविष्य में “मेमने के विवाह भोज” की ओर इंगित करता है, जिसमें हम ख्रीष्ट की उपस्थिति में तथा ख्रीष्ट में प्रत्येक जाति, कुल, भाषा और बोली के भाइयों और बहनों के साथ खाएंगे। उस समय तक, प्रभु भोज हमें  ख्रीष्ट के देह के रूप में ख्रीष्ट के लिए जीने के लिए दृढ़ करता है, और संसार से, संसार के लिए हमें अलग करता है।

बपतिस्मा 
बपतिस्मा भी प्रतीकात्मकता में बहुमूल्य है। प्रभु भोज से भिन्न, जो कलीसिया में बार-बार होने वाली घटना है, बपतिस्मा प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक बार की घटना है। इस सम्बन्ध में, यह ख़तने के चिह्न के समान है। ख़तने के समान, बपतिस्मा वाचा के समुदाय में हमारे प्रवेश को चिह्नित करता है। 

बपतिस्मा का मुख्य प्रतीक धोना या शुद्ध करना है। यह एक चिह्न है कि ख्रीष्ट में हम शुद्ध हैं। शुद्धिकरण के साथ बपतिस्मा का यह सम्बन्ध स्वाभाविक है क्योंकि हम पानी से स्नान करते हैं। किन्तु बपतिस्मा, शारीरिक नहीं परन्तु आत्मिक रीति से शुद्ध होने की ओर इंगित करता है।

कई बार नया नियम बपतिस्मा को पापों से धोए जाने से जोड़ता है। पौलुस के हृदय परिवर्तन के बाद, हनन्याह पौलुस के पास आता है और कहता है, “उठ, बपतिस्मा ले, और उसका नाम लेकर अपने पापों को धो डाल” (प्रेरितों के काम 22:16)। पतरस बाद में लिखता है, “यह बपतिस्मा जो [बाढ़ के पानी] से सम्बन्धित है, अब तुम्हें बचाता है, जिसका अर्थ शरीर की गन्दगी दूर करना नहीं, परन्तु यीशु ख्रीष्ट के पुनरुत्थान के द्वारा शुद्ध विवेक से परमेश्वर के अधीन होना है” (1 पतरस 3:21)। इन दोनों को, यदि ऊपरी स्तर पर लिया जाए, सम्भवतः यह कहते हुए प्रतीत होते हैं कि बपतिस्मा स्वयं हमारे पापों को धोता और हमें बचाता है। ध्यान से निरीक्षण करने पर, इस रीति से पढ़ने में त्रुटि है। पद के दूसरे भाग में पतरस कहता है कि बात शरीर पर पानी की नहीं परन्तु परमेश्वर के अधीन होने की है क्योंकि उसने हमारे पापों के दोष को शुद्ध किया है। पौलुस भी लिखता है कि ख्रीष्ट ने “[अपनी कलीसिया] वचन के द्वारा जल के स्नान से शुद्ध किया है” (इफिसियों 5:26)। जैसा कि यूहन्ना कहता है, “यीशु का लहू… हमें सब पाप से शुद्ध करता है” (1 यूहन्ना 1:7)। यीशु का लहू शुद्ध करता है, न कि बपतिस्मा का जल। बपतिस्मा का जल ख्रीष्ट के लहू में शुद्धिकरण की ओर इंगित करता है।

बपतिस्मा का एक और पहलू जो प्रभु भोज से भिन्न है, यह है कि बपतिस्मा में बपतिस्मा लेने वाला निष्क्रिय होता है। प्रभु भोज में, भाग लेने वाले लोग सक्रिय होते हैं। वे सक्रिय रूप से खाते और पीते हैं। भाग लेने वाले सभी लोगों को स्वयं को परखने और “देह को पहचानने” के लिए बुलाया जाता है (1 कुरिन्थियों 11:28-29)। प्रभु भोज में हम सक्रिय रूप से सहभागी होते हैं।

दूसरी ओर, बपतिस्मा लेने वाला व्यक्ति पर कार्य किया जाता है। बपतिस्मा परमेश्वर के अनुग्रह और इस तथ्य की ओर इंगित करता है कि उद्धार परमेश्वर की ओर से ही है। परमेश्वर ने हमें चुना है और वह अपने आत्मा के द्वारा हमें परिवर्तित करता है। विश्वास भी परमेश्वर की ओर से एक वरदान है (इफिसियों 2:8; फिलिप्पियों 1:29)। बपतिस्मा कहता है कि वे लोग ख्रीष्ट के हैं, परमेश्वर के अनुग्रह से बचाए गए हैं। उद्धार, आरम्भ से अन्त तक, परमेश्वर का कार्य है।

इस अर्थ में बपतिस्मा परमेश्वर द्वारा अपने आत्मा के दिए जाने का भी प्रतीक है। यीशु ने पिन्तेकुस्त के दिन अपने लोगों के ऊपर आत्मा के आने को बपतिस्मा के रूप में सन्दर्भित किया। प्रेरितों के काम 2 में आत्मा का आना योएल की उस भविष्यवाणी की पूर्ति है कि परमेश्वर ने सभी लोगों पर अर्थात पुरुष और स्त्री, यहूदी और गैर यहूदी पर अपना आत्मा उण्डेलेगा। इसी प्रकार, यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने घोषणा की वह जल से बपतिस्मा देता है, परन्तु ख्रीष्ट पवित्र आत्मा और आग से बपतिस्मा देगा।

आत्मा और बपतिस्मा के बीच का सम्बन्ध, केवल एक साहित्यिक सम्बन्ध से बढ़कर है। आत्मा स्वयं आत्मिक शुद्धिकरण का साधन है। पौलुस लिखता है कि परमेश्वर ने “हमें बचाया . . . पवित्र आत्मा द्वारा नए जन्म और नए बनाए जाने के स्नान से किया है” (तीतुस 3:5)। इसी प्रकार, यिर्मयाह की नई वाचा की भविष्यवाणी के यहेजकेल के संस्करण में, नबी शुद्धिकरण और परमेश्वर की आज्ञा पालन करने की क्षमता को पवित्र आत्मा के वास करने से जोड़ता है:

तब मैं तुम पर शुद्ध जल छिड़कूंगा और तुम शुद्ध हो जाओगे; मैं तुम्हें तुम्हारी सारी अशुद्धता और मूर्तियों से शुद्ध करूंगा। और फिर मैं तुम्हें एक नया हृदय दूंगा और तुम्हारे भीतर एक नई आत्मा उत्पन्न करूंगा और तुम्हारी देह में से पत्थर का हृदय निकालकर तुम्हें मांस का हृदय दूंगा। और मैं अपना आत्मा तुम में डालूंगा और तुम्हें अपनी विधियों पर चलाऊंगा और तुम मेरे नियमों का सावधानी से पालन करोगे। (यहेजकेल 36:25-27)

आत्मा शुद्ध करता है और सामर्थ्य देता है
बपतिस्मा, इसके साथ, हमें ख्रीष्ट के लिए अलग करता है और ख्रीष्ट के साथ हमारी पहचान करता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि ख्रीष्ट ने अपने स्वयं के बपतिस्मा के द्वारा हमारे साथ पहचान स्थापित किया है। यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले का बपतिस्मा “पापों की क्षमा के लिए मन परिवर्तन का बपतिस्मा” था (मरकुस 1:4)। यीशु, परमेश्वर का निष्पाप पुत्र ने, कोई पाप नहीं किया था। वास्तव में, यूहन्ना ने उससे यह कहते हुए यीशु को बपतिस्मा लेने से रोकने का प्रयास किया कि “मुझे तो तुझ से बपतिस्मा लेने की आवश्यकता है” (मत्ती 3:14)। फिर भी, यीशु का कार्य स्वयं पर उनके पाप का दोष लेने के लिए अपने लोगों के साथ पहचान करना था। पौलुस लिखता है, परमेश्वर ने “जो पाप से अनजान था, उसी को उसने हमारे लिए पाप ठहराया कि हम उसमें परमेश्वर की धार्मिकता बन जाएं” (2 कुरिन्थियों 5:21)। यीशु को यूहन्ना के द्वारा बपतिस्मा इसलिए नहीं दिया गया क्योंकि उसे पाप से शुद्ध होने की आवश्यकता थी, परन्तु इसलिए क्योंकि हमें पाप से शुद्ध होने की आवश्यकता थी।

अपने बपतिस्मा के समय, यीशु को उस कार्य को आरम्भ करने के लिए पृथक और नियुक्त किया गया जिसे परमेश्वर ने उसे करने के लिए बुलाया था। यीशु लगभग तीस वर्ष का था जब उसने बपतिस्मा लिया और उसने अपनी सेवा आरम्भ की (लूका 3:23)। तीस वर्ष की आयु थी जब पुरानी वाचा के याजकों ने अपनी सेवा आरम्भ की (गिनती 4:3)। वे एक शुद्धिकरण संंस्कार के द्वारा सेवा के लिए अलग किए जाते थे, जिसमें जल सम्मिलित था (निर्गमन 29:4; लैव्यव्यवस्था 8:6)। इसी प्रकार, यीशु के बपतिस्मा ने उसे सर्वोच्च याजकीय सेवा के लिए, अपने शिष्यों के लिए मध्यस्थता करने, और अपने सभी लोगों के सब पापों को दूर करने के लिए स्वयं को एक बार सदा के लिए पर्याप्त बलिदान के रूप में देने के लिए अलग किया।

इसी रीति से, बपतिस्मा हमें परमेश्वर का होने के रूप चिह्नित करता है। यह बताता है कि हमारे पास ख्रीष्ट में एक नई पहचान है। पुरानी वाचा के अन्तर्गत, ख़तना इस्रालियों को “खतनारहित” अन्यजातियों से अलग करता था। बपतिस्मा हमें संसार से अलग करता है और दिखाता है कि हम ख्रीष्ट के हैं। हमारा बपतिस्मा उस ख्रीष्ट के साथ हमारे मिलन का प्रतीक है, जो स्वयं हमारे साथ एक हो गया और जिसने अपने बपतिस्मा के द्वारा हमारे साथ होने की पहचान को दिखाया। बपतिस्मा हमें ख्रीष्ट की सेवा करने के लिए भी अलग करता है। ख्रीष्ट के समान (यद्यपि, ठीक उसी रीति से नहीं), हम “याजक” है (प्रकाशितवाक्य 1:6), जो प्रतिदिन अपने शरीरों को जीवित, पवित्र और ग्रहणयोग्य बलिदान कर के परमेश्वर को समर्पित करने के लिए बुलाए गए हैं (रोमियों 12:1)।

शुद्धिकरण, पवित्रीकरण, पहचान, आरम्भ करना—बपतिस्मा के अर्थ के लिए ये सबसे महत्वपूर्ण हैं। वेस्टमिन्स्टर की बड़ी प्रश्नोत्तरी (The Westminster Larger Catechism) हमें निर्देश देता है कि जब बपतिस्मा होता है तो हम अपने बपतिस्मा को “सुधारना” है—अर्थात हमें स्मरण रखना है कि हम ख्रीष्ट के साथ एक हैं, शुद्ध किए गए हैं, अलग किए गए हैं, और पवित्र आत्मा के सामर्थ्य के द्वारा उसकी सेवा करने के लिए बुलाए गए हैं। बपतिस्मा अनुग्रह का साधन है क्योंकि यह हमें स्मरण दिलाता है कि हम कौन हैं और परमेश्वर ने हमारे लिए क्या किया है। बपतिस्मा हमें उद्धार नहीं देता है, परन्तु यह हमें परमेश्वर के अनुग्रह और ख्रीष्ट में परमेश्वर के धन की ओर इंगित करता है।

जबकि कलीसियाई विधियाँ “दृश्य शब्द” है, लिखित और बोले गए वचन ख्रीष्टिय जीवन और आराधना में प्राथमिक हैं। विश्वास सुनने से, और सुनना ख्रीष्ट के वचन के द्वारा होता है (रोमियों 10:17), जो कि अनुग्रह का मुख्य साधन है। पौलुस तीमुथियुस को स्वयं को एक पास्टर के रूप इफिसुस में पवित्रशात्र पढ़कर सुनाने, उपदेश देने और सिखाने के लिए समर्पित होने के लिए प्रोत्साहित करता है (1 तीमुथियुस 4:13)। कलीसियाई विधियाँ, जबकि महत्वपूर्ण है, किसी रहस्यमयी रीति से ख्रीष्ट को स्वयं नहीं प्रदान करते हैं। वे वचन के प्रचार के पूरक करते हैं, और उनको पवित्रशास्त्र के पढ़े जाने और शिक्षा दिए जाने को कभी भी हटाना नहीं करना चाहिए। कलीसियाई विधियों को कभी भी उपदेश के बिना और उनके अर्थ की उचित व्याख्या के बिना नहीं होना चाहिए। हालाँकि, जब वे उचित रीति से उपयोग किए जाते हैं, कलीसियाई विधियाँ अनुग्रह के महत्वपूर्ण साधन हैं प्रभु के साथ हमारे चाल-चलन में हमें दृढ़ता प्रदान करने के लिए।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
विलियम बार्कले
विलियम बार्कले
डॉ विलियम बार्कले शार्लट्ट, नॉर्थ कैरोलायना में सॉवरिन ग्रेस प्रेस्बिटेरियन चर्च के वरिष्ठ पास्टर हैं और रिफॉर्म्ड थियोलॉजिकल सेमिनरी में नया नियम के सहायक प्रोफेसर हैं। वे द सीक्रेट ऑफ कन्टेमेन्ट एंड गॉस्पेल क्लैरिटी नामक पुस्तकों के लेखक हैं।