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2 अक्टूबर 2025परमेश्वर का आत्म-प्रकटीकरण
– ऐन्ड्रू एम. डेविस
मैं कुछ दिन पहले ही में सदोम और अमोरा के विनाश से ठीक पहले परमेश्वर और अब्राहम के बीच हुई भेंट के विषय में सोच रहा था और मुझे एक अद्भुत अनुभूति हुई। यह परमेश्वर के स्वयं के अन्दर इस प्रश्न पर हुए संवाद से सम्बन्धित था: “जो मैं करने पर हूँ, क्या उसे अब्राहम से छिपा रखूँ?” (उत्पत्ति 18:17)।
यह अद्भुत बात है कि हमारे पास इस प्रश्न का अभिलेख है। यह परमेश्वर के मन में एक पूर्णतः आन्तरिक विचार-विमर्श था। अब्राहम को उस समय यह पता भी नहीं था कि यह घटित हो रहा है; न ही ऐसा कोई संकेत कि परमेश्वर ने उसे बाद में इसके विषय में बताया हो। परमेश्वर के मन की यह अन्तर्दृष्टि आधी सहस्राब्दी बाद तक नहीं आई, जब मूसा पवित्र आत्मा की उत्प्रेरणा से उत्पत्ति की पुस्तक लिख रहा था। आत्मा ने मूसा को परमेश्वर के गूढ़ मन में निहित इस विचार-प्रणाली का ज्ञान दिया, और मूसा ने इसे आने वाली पीढ़ियों के लिए लिख दिया। परमेश्वर ने हम सभी के लिए अपना मन खोल दिया।
यही प्रकटीकरण परमेश्वर के आन्तरिक विचार-विमर्श का विषय भी था। वह अपने भीतर ही भीतर इस बात को लेकर द्वन्द्व कर रहा था कि वह सदोम और अमोरा जैसे दुष्ट नगरों के साथ क्या करने वाला है, उन्हें आग और गन्धक से जलाकर राख कर देना है। अवश्य ही, परमेश्वर के “अपने भीतर के द्वन्द्व” की बात करना एक मानवीकरण (anthropomorphism) है, अर्थात् परमेश्वर को समझने में हमारी सहायता करने के लिए मानवीय भाषा का उपयोग। एक सर्वज्ञानी परमेश्वर कभी भी अपने भीतर द्वन्द्व नहीं करता। परन्तु परमेश्वर ने इस प्रकार की “विचार प्रक्रिया” भाषा का उपयोग किया स्वयं को हमारे स्तर तक नीचे लाने के लिए और स्वयं को हमारे समझने योग्य बनाने के लिए।
इससे भी अधिक अद्भुत बात यह है कि परमेश्वर अब्राहम से कुछ भी छिपाना नहीं चाहता है। यद्यपि परमेश्वर अब्राहम (या किसी अन्य मनुष्य) को किसी भी प्रकार का स्पष्टीकरण देने के लिए बाध्य नहीं है, फिर भी परमेश्वर अपने चुने हुए लोगों के प्रति अपने मन को खोलने की गहरी इच्छा रखता है। यह आत्म-प्रकाशन हमारे उद्धार का सार है। जैसा कि यीशु ख्रीष्ट ने कहा, “और अनन्त जीवन यह है कि वे तुझे जो एकमात्र सच्चा परमेश्वर है और यीशु ख्रीष्ट को जानें जिसे तूने भेजा है” (यूहन्ना 17:3)। अब्राहम को परमेश्वर का मित्र कहा गया है (यशायाह 41:8)। मित्रता के लिए आत्म-प्रकटीकरण आवश्यक है। परमेश्वर स्वयं को हमें समझाना चाहता है, और मैं विश्वास करता हूँ कि स्वर्ग परमेश्वर के लोगों को परमेश्वर के मन और उद्देश्यों की अनन्त शिक्षा प्रदान करेगा। यह कितना अद्भुत होगा। परमेश्वर ने अब तक अस्तित्व में आए प्रत्येक राष्ट्र के उत्थान और पतन पर, साथ ही एक गौरैया के भूमि पर गिरने पर भी शासन किया है। परमेश्वर की सम्प्रभु योजना के जटिल आयामों और विवरणों के विषय में सीखने के लिए असीमित बातें होंगी। और हमें सिखाना उसका आनन्द होगा और सीखना और अचम्भित होना हमारा आनन्द होगा।
वर्तमान में, परमेश्वर की अधिकाँश इच्छाएँ हमसे छिपी हुई हैं। “मुझे तुमसे और भी बहुत-सी बातें कहनी हैं, परन्तु तुम अभी उन्हें सहन नहीं कर सकते” (यूहन्ना 16:12)। परमेश्वर के कुछ सबसे जटिल और कष्टदायक न्यायों को तब तक छिपाए रखा जाना होगा जब तक कि हमारे महिमामय मन उन सत्यों को सम्भाल न सकें। परन्तु परमेश्वर की योजना आगे और प्रकट होगी, और यह उज्जवल ढंग से महिमामय होगी।
यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

