ट्यूलिप और धर्मसुधारवादी ईश्वरविज्ञान : सीमित प्रायश्चित्त - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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ट्यूलिप और धर्मसुधारवादी ईश्वरविज्ञान : सीमित प्रायश्चित्त

मैं सोचता हूँ कि कैल्विनवाद के पाँच बिन्दुओं में, सीमित प्रायश्चित्त  सबसे विवादास्पद है, और यही सम्भवतः सबसे अधिक भ्रम और व्याकुलता उत्पन्न करता है। यह सिद्धान्त मुख्यतः परमेश्वर के मूल उद्देश्य, योजना या अभिप्राय से सम्बन्धित है मसीह के क्रूस पर मरने के लिए संसार में भेजने में। क्या पिता की मन्सा थी अपने पुत्र को क्रूस पर मरने के लिए भेजे के द्वारा सब के लिए उद्धार सम्भव करने की, परन्तु साथ ही इस सम्भावना के साथ कि उसकी मृत्यु किसी के लिए भी प्रभावकारी न होगी? अर्थात्, क्या परमेश्वर ने मसीह को भेजा क्रूस पर मरने के द्वारा केवल उद्धार को सम्भव करने के लिए, या क्या परमेश्वर ने, अनन्तकाल पूर्व से, ऐसे उद्धार की योजना बनाई जिसके द्वारा, उसके अनुग्रह के धन और सनातन चुनाव के अनुसार, उसने अपने लोगों के उद्धार को सुनिश्चित करने के लिए प्रायश्चित्त को ठहराया? क्या प्रायश्चित्त अपनी मूल बनावट में सीमित था?

मैं सीमित प्रायश्चित्त  वाक्यांश का उपयोग करना पसन्द नहीं करता हूँ क्योंकि यह भटकाने वाला है। इसके बदले, मैं निश्चित छुटकारा  या निश्चित प्रायश्चित्त  की बात करता हूँ , जो यह व्यक्त करता है कि परमेश्वर पिता ने छुटकारे के कार्य की योजना इस उद्देश्य से बनाई थी कि विशेष रूप से चुने हुए लोगों को उद्धार प्रदान करने के लिए, और कि मसीह अपनी भेड़ों के लिए मरे और उन लोगों के लिए अपना जीवन दे, जिन्हें पिता ने उसे दिया था।

एक खण्ड जिसे हम प्राय: सुनते हैं निश्चित प्रायश्चित्त के विचार के विरुद्ध आपत्ति के रूप में प्रयोग किए जाते हुए वह 2 पतरस 3: 8–9 है: “ हे प्रियो, यह बात तुम से छिपी न रहे कि प्रभु की दृष्टि में एक दिन हज़ार वर्ष के बराबर है और हज़ार वर्ष एक दिन के बराबर। प्रभु अपनी प्रतिज्ञा को पूरी करने में विलम्ब नहीं करता, जैसा कि कुछ लोग समझे हैं, परन्तु वह तुम्हारे प्रति धीरज रखता है। वह यह नहीं चाहता कि कोई नाश हो, परन्तु यह कि सब पश्चात्ताप करें।” इस खण्ड का शब्द कोई  तत्कालिक पूर्वगामी शब्द हमें   है तुम्हारे  शब्द से, और मैं सोचता हूँ कि यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि पतरस कह रहा है कि परमेश्वर यह नहीं चाहता हैं कि हम  में से कोई भी नाश हो, पर कि हम  सब उद्धार प्राप्त करें। वह अन्धाधुँध रीति से सम्पूर्ण मानव जाति के विषय में बात नहीं कर रहा है; शब्द हम  उन विश्वासी लोगों की ओर संकेत कर रहा है जिन से पतरस बात कर रहा है। मैं नहीं सोचता कि हम एक ऐसे परमेश्वर पर विश्वास करना चाहेंगे जो क्रूस पर मसीह को मरने को तो भेजता है और तब आशा करता है कि काश कोई उस प्रायश्चित्त देने वाली मृत्यु का लाभ उठा ले। परमेश्वर के विषय में हमारा दृष्टिकोण भिन्न है। हमारा विचार है कि निश्चित पापियों का छुटकारा परमेश्वर की एक अनन्त योजना थी, और यह योजना और युक्ति पूरी रीति से नियोजित की गई थी और पूरी तरह से क्रियान्वित भी की गई थी ताकि अपने लोगों को बचाने के लिए परमेश्वर की इच्छा मसीह के प्रायश्चित्त के कार्य द्वारा पूरी होती है।

इसका अर्थ यह नहीं है कि यीशु मसीह के प्रायश्चित्त के मूल्य या महत्व पर एक सीमा ठहराई गई है। यह पारम्परिक रीति से कहा जाता है कि मसीह के प्रायश्चित्त का कार्य सभी के लिए पर्याप्त है। अर्थात्, इसका गुणवान मूल्य सब लोगों के पापों को ढांपने के लिए पर्याप्त है, और निश्चित रूप से जो कोई भी यीशु मसीह पर भरोसा रखता है या रखती है, उसे उस प्रायश्चित्त के लाभों का पूर्ण प्रतिफल प्राप्त होगा। यह समझना भी महत्वपूर्ण है कि सुसमाचार का प्रचार हर स्थान पर किया जाना चाहिए। यह एक और विवादास्पद बिन्दु है, क्योंकि एक हाथ पर सुसमाचार को उन सब के लिए प्रस्तुत किया जाता है जो इसके उपदेश को सुन सकते हैं, परन्तु यह सभी के लिए इस रीति से भी प्रस्तुत नहीं किया जाता है कि इसमें कोई प्रतिबन्ध ही नहीं है। यह प्रत्येक विश्वास करने वाले व्यक्ति के लिए उपलब्ध है। यह प्रत्येक पश्चात्ताप करने वाले के लिए उपलब्ध है। स्पष्ट रीति से यीशु मसीह के प्रायश्चित्त का लाभ उन सब को दिया जाता है जो विश्वास करते हैं और अपने पापों से पश्चात्ताप करते हैं।

अगले लेख में, हम ट्यूलिप के ‘I’ (अप्रतिरोध्य अनुग्रह) पर विचार करेंगे।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

आर.सी. स्प्रोल
आर.सी. स्प्रोल
डॉ. आर.सी. स्प्रोल लिग्नेएर मिनिस्ट्रीज़ के संस्थापक, सैनफर्ड फ्लॉरिडा में सेंट ऐन्ड्रूज़ चैपल के पहले प्रचार और शिक्षण के सेवक, तथा रेफर्मेशन बाइबल कॉलेज के पहले कुलाधिपति थे। वह सौ से अधिक पुस्तकों के लेखक थे, जिसमें द होलीनेस ऑफ गॉड भी सम्मिलित है।