ट्यूलिप और धर्मसुधारवादी ईश्वरविज्ञान: अप्रतिबन्धित चुनाव - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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ट्यूलिप और धर्मसुधारवादी ईश्वरविज्ञान: अप्रतिबन्धित चुनाव

चुनाव का धर्मसुधारवादी विचार, जो अप्रतिबन्धित चुनाव के नाम से भी जाना जाता है, का अर्थ है कि परमेश्वर पहले से कोई कार्य या हमारी स्थिति को नहीं देखते हैं जो उसे बाध्य करती है हमें बचाने के लिए। इसके विपरीत, चुनाव टिका हुआ है परमेश्वर की सार्वभौमिक निर्णय पर जिससे वह जिसे चाहता है उसे बचाता है।

रोमियों की पुस्तक में, हम इस कठिन विषय पर चर्चा पाते हैं। रोमियों 9:10-13 पढ़ता है “और केवल यही नहीं, परन्तु रिबका ने भी एक मनुष्य अर्थात् हमारे पिता इसहाक से जुड़वाँ बच्चों का गर्भ धारण किया; यद्यपि अब तक न तो जुड़वाँ जन्मे थे और न उन्होंने कुछ भला या बुरा किया था, इस अभिप्राय से कि परमेश्वर के द्वारा चुनने का उद्देश्य कर्म के कारण नहीं वरन् बुलाने वाले के कारण स्थिर रहे, उस से यह कहा गया था, ‘ज्येष्ठ पुत्र छोटे की सेवा करेगा।’ जैसा लिखा है, ‘याकूब से मैंने प्रेम किया, परन्तु एसाव को अप्रिय जाना।’” यहाँ पर प्रेरित पौलुस चुनाव के सिद्धान्त पर अपनी व्याख्या दे रहा है। वह मुख्य रीति से बात करता है इसके विषय में रोमियों 8 में, परन्तु यहाँ पर चुनाव के सिद्धान्त की शिक्षा का उदाहरण देता है यहूदियों के अतीत में जाकर और जुड़वाँ बच्चों—याकूब और एसाव—के जन्म के आसपास की परिस्थितियों को देखते हुए। प्राचीन संसार में, यह प्रथा थी कि पहलौठा पुत्र उत्तराधिकार या पितृसत्तात्मक आशीर्वाद प्राप्त करे। किन्तु, इन जुड़वाजु़ड़वाँ बच्चों की स्थिति में, परमेश्वर ने इस प्रक्रिया को उलट दिया और बड़े को नहीं किन्तु छोटे को आशीर्वाद दिया। जिस बिन्दु को प्रेरित यहाँ पर निर्मित करता है वह यह है कि परमेश्वर न केवल जुड़वाँ बच्चों के जन्म से पहले निर्णय लेता है, परन्तु वह बिना उनके किसी कार्य के विषय में सोचकर निर्णय लेता है, चाहे अच्छे या बुरे कार्य, ताकि परमेश्वर के उद्देश्य स्थिर हो सकें। इसलिए, हमारा उद्धार हम पर टिका हुआ नहीं है; यह पूरी तरह से परमेश्वर के अनुग्रहकारी, तथा सार्वभौमिक निर्णय पर टिका हुआ है।

इसका अर्थ यह नहीं है कि परमेश्वर लोगों को निश्चय ही बचाएगा चाहे वे विश्वास करें या न करें। कुछ शर्तें हैं जिनको परमेश्वर ने उद्धार के लिए घोषित किया है, जिसमें से महत्वपूर्ण है मसीह पर व्यक्तिगत भरोसा करना। किन्तु, यह धर्मी ठहराए जाने के लिए एक शर्त है, और चुनाव का सिद्धान्त इससे भिन्न है। जब हम अप्रतिबन्धित चुनाव की बात कर रहे हैं, तो हम स्वयं चुनाव के सिद्धान्त के बहुत ही संकीर्ण क्षेत्र की बात कर रहे हैं।

तो, फिर, परमेश्वर किस आधार पर  कुछ लोगों को बचाने के लिए चुनाव करता है? क्या यह, चुने हुए व्यक्ति की पहले से देखी हुई किसी प्रतिक्रिया, प्रतिउत्तर या गतिविधि के आधार पर निर्भर है? बहुत से लोग जिनके पास चुनाव या पूर्वनिर्धारण का सिद्धान्त (की समझ) है इसे इसी रीति से देखते हैं। उनका मानना है कि अनन्तकाल-अतीत में परमेश्वर ने समय में आगे जाकर देखा और वह पहले से जान गया कि कौन सुसमाचार के प्रस्ताव के लिए हाँ कहेगा और कौन न कहेगा। इस पूर्व ज्ञान के आधार पर कि कौन जो उद्धार के लिए शर्त पूरी करेगा—अर्थात, मसीह में भरोसा या विश्वास व्यक्त करेगा—वह उसे बचाने के लिए उसका चुनाव करता है। यह तो शर्त वाला या प्रतिबन्धित  चुनाव है, जिसका अर्थ है कि परमेश्वर अपने चुनाव के अनुग्रह को पहले से देखी गई कुछ स्थिति के आधार पर देता है जिसे मनुष्य स्वयं पूरा करते हैं।

अप्रतिबन्धित चुनाव  एक और ऐसा वाक्यांश है जिसके विषय में, मैं सोचता हूँ कि थोड़ा भ्रमित करने वाला हो सकता है, इसलिए मुझे सार्वभौमिक चुनाव  वाक्यांश का उपयोग करना अच्छा लगता है। यदि परमेश्वर सार्वभौमिक रीति से कुछ पापियों पर अपना अनुग्रह उण्डेलने को चुनता है और अन्य पापियों पर से अपना अनुग्रह उण्डेलने से रोके रहता है, तो क्या इसमें कोई न्याय का उल्लंघन है? जो लोग इस वरदान को प्राप्त नहीं करते हैं क्या वे कुछ ऐसा प्राप्त करते हैं जो उन्हें नहीं मिलना चाहिए? कदापि नहीं। यदि परमेश्वर इन पापियों को नाश होने देता है, तो क्या वह उनके साथ अन्यायी व्यवहार कर रहा है? कदापि नहीं। एक समूह अनुग्रह प्राप्त करता है; दूसरे को न्याय मिलता है। किसी को अन्याय नहीं प्राप्त होता है। पौलुस इस विद्रोह की प्रत्याशा करता है: “क्या परमेश्वर अन्यायी है?” (रोमियों 9:14अ)। वह इसका उत्तर सबसे बलपूर्वक प्रतिक्रिया के साथ देता है। मुझे यह अनुवाद अच्छा लगता है, “परमेश्वर न करें” (पद 14ब)। तब वह इस प्रतिक्रिया को विस्तृत रीति से बढ़ाता है: “क्योंकि वह मूसा से कहता है, मैं जिस पर चाहूँ उसी पर दया करूँगा, और जिस पर चाहूँ उसी पर तरस खाऊँगा” (पद 15)। यहाँ पर प्रेरित अपने पाठक को वह स्मरण दिलाता है जिसे मूसा ने शताब्दियों पहले घोषित किया था; अर्थात, यह परमेश्वर का परमेश्वरीय अधिकार है कि वह जब चाहे और जहाँ चाहे, क्षमादान दे सकता है। वह आरम्भ से कहता है, “मैं जिस पर चाहूँ उसी पर दया करूँगा।” यह उन लोगों पर नहीं है जो कुछ प्रतिबन्ध पूरा करते हैं, परन्तु उन पर जिन पर वह उस उपकार को देने के लिए प्रसन्न है।

अगले लेख में, हम ट्यूलिप में ‘L’ (ल) , सीमित प्रायश्चित्त पर विचार करेंगे।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

आर.सी. स्प्रोल
आर.सी. स्प्रोल
डॉ. आर.सी. स्प्रोल लिग्नेएर मिनिस्ट्रीज़ के संस्थापक, सैनफर्ड फ्लॉरिडा में सेंट ऐन्ड्रूज़ चैपल के पहले प्रचार और शिक्षण के सेवक, तथा रेफर्मेशन बाइबल कॉलेज के पहले कुलाधिपति थे। वह सौ से अधिक पुस्तकों के लेखक थे, जिसमें द होलीनेस ऑफ गॉड भी सम्मिलित है।