ट्यूलिप और धर्मसुधारवादी ईश्वरविज्ञान: सन्तों का अन्त तक बना रहना - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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ट्यूलिप और धर्मसुधारवादी ईश्वरविज्ञान: सन्तों का अन्त तक बना रहना

फिलिप्पियों को लिखते हुए, पौलुस कहता है, “मुझे इस बात का निश्चय है कि जिसने तुम में भला कार्य आरम्भ किया है, वही उसे मसीह यीशु के दिन तक पूर्ण भी करेगा” (फिलिप्पियों 1:6)। इसमें परमेश्वर की प्रतिज्ञा है कि जो वह हमारे प्राणों में आरम्भ करता है, उसे, वह पूर्ण करने की मन्सा भी रखता है। इसलिए सन्तों के अन्त तक बने रहने के विषय में धर्मसुधारवादी ईश्वरविज्ञान का पुराना सूत्र यह है: यदि आप के पास है—अर्थात, यदि आप के पास सच्चा विश्वास है और बचाने वाले अनुग्रह की अवस्था में हैं—तो आप इसे कभी नहीं खोएंगे। यदि आप इसे खो देते हैं, तो वह आप के पास कभी था ही नहीं।

हम जानते हैं कि बहुत से लोग विश्वास का अंगीकार करते हैं, फिर विमुख हो जाते हैं और उन अंगीकारों को नकारते हैं या उनका परित्याग कर देते हैं। प्रेरित यूहन्ना लिखता है कि ऐसे कुछ लोग थे जिन्होंने शिष्यों की संगति को छोड़ दिया था, और वह उनके विषय में कहता है कि “वे निकले तो हम ही में से, परन्तु वास्तव में हम में से नहीं थे”(1 यूहन्ना 2:19)। निस्संदेह, चले जाने से पहले वे बाहरी रूप से चेलों के साथ थे। उन्होंने बाहरी  रूप से विश्वास का अंगीकार किया था, और यीशु स्पष्ट करता है कि सम्भव है कि व्यक्ति तब भी ऐसा करे जब उसके पास वह नहीं है जिसका वह अंगीकार करता है। यीशु कहता है, “ये लोग अपने होंठों से तो मेरा आदर करते हैं परन्तु इनका हृदय मुझ से दूर हैं” (मत्ती 15:8)। यीशु पहाड़ी उपदेश के अन्त में चेतावनी भी देता है कि अन्त के दिन को बहुत से लोग यह कहते हुए उसके पास आएंगे: “हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हमने तेरे नाम से यह नहीं किया? क्या हमने तेरे नाम से वह नहीं किया?” वह यह कहते हुए उन्हें दूर कर देगा: “मैंने तुम को कभी नहीं जाना; हे कुकर्मियों, मुझ से दूर हटो” (मत्ती 7:23)। वह यह नहीं कहेगा: “मैं तुम्हें कुछ समय के लिए जानता था और अब तुम विमुख हो गए और तुमने मुझे धोखा दिया। नहीं,  तुम कभी भी  मेरी अदृश्य कलीसिया के भाग नहीं थे।” परमेश्वर के चुनाव का पूरा उद्देश्य है अपने लोगों को स्वर्ग में सुरक्षित लाना; इसलिए, जो वह आरम्भ करता है, उसे पूर्ण करने की वह प्रतिज्ञा करता है। वह न केवल मसीही जीवन का आरम्भ करता है, परन्तु हमारे अन्त तक बनाए रखने को सुनिश्चित करने के लिए पवित्र आत्मा हमारे साथ है पवित्र करने वाला, कायल करने वाला, और सहायक के रूप में।

मैं इस बात पर बल देना चाहता हूँ कि विश्वास में अन्त तक बना रहना हमारी शक्ति पर निर्भर नहीं है। नया जन्म हो जाने के बाद भी हम पाप में गिर जाते हैं, यहाँ तक कि गम्भीर पाप में भी। हम कहते हैं कि किसी मसीही के लिए बहुत गम्भीर पतन का अनुभव करना सम्भव है, हम विश्वास से पीछे हट जाने के विषय में बात करते हैं, हम नैतिक पतन के विषय में बात करते हैं, इत्यादि। मैं किसी ऐसे पाप के विषय में नहीं सोच सकता, पवित्र आत्मा के प्रति ईशनिन्दा को छोड़कर, जिसे एक वास्तविक हृदय-परिवर्तित मसीही करने में सक्षम नहीं है।

उदाहरण के लिए, हम पुराने नियम में दाऊद के उदाहरण को देखते हैं। दाऊद निश्चित रूप से परमेश्वर के मन के अनुसार व्यक्ति था। वह निश्चित रूप से एक नया जन्म पाया हुआ व्यक्ति था। उसमें परमेश्वर का आत्मा था। उसे परमेश्वर की बातों के प्रति अति गहरा एवं तीव्र प्रेम था। फिर भी इस व्यक्ति ने न केवल व्यभिचार किया, परन्तु उसकी प्रेमिका के पति को युद्ध में मरवा डालने के षड्यंत्र में सम्मिलित भी था—यह सचमुच में हत्या का षड्यंत्र था। यह बहुत ही गम्भीर बात है। यद्यपि हम दाऊद के पश्चात्ताप का गम्भीर स्तर को देखते हैं, जो नातान नबी के वचनों के परिणामस्वरूप हुआ, बात यह है कि दाऊद गिरा, और वह गम्भीर रूप से गिरा।

प्रेरित पौलुस हमें स्वयं की आत्मिक सामर्थ्य के विषय में घमण्डी दृष्टिकोण रखने के प्रति चेतावनी देता है। वह कहता है कि “अतः जो यह समझता है कि मैं स्थिर हूं, वह सावधान रहे कि कहीं गिर न पड़े” (1 कुरिन्थियों 10:12)। हम बहुत गम्भीर कार्यों में गिरते हैं। प्रेरित पतरस ने, पहले चेतावनी दिए जाने के पश्चात भी, मसीह को अस्वीकार कर दिया, यह शपथ लेते हुए कि वह कभी भी उसे नहीं जानता था—यह सार्वजनिक रूप से यीशु के प्रति विश्वासघात था। उसने अपने प्रभु के विरुद्ध राजद्रोह किया। जब उसे इस घटना के विषय में चेतावनी दी जा रही थी, तो पतरस ने कहा था कि ऐसा कभी नहीं होगा। यीशु ने कहा, “शमौन, हे शमौन, देख! शैतान ने तुम लोगों को गेहूँ के समान फटकने के लिए आज्ञा मांग ली है, परन्तु मैंने तेरे लिए प्रार्थना की है कि तेरा विश्वास चला न जाए। अतः जब तू फिरे तो अपने भाईयों को स्थिर करना” (लूका 22:31-32)। पतरस गिरा, परन्तु वह पुनः लौटा। उसे पुनः स्थापित कर दिया गया। उसका गिरना कुछ समय के लिए था। इसीलिए हम कहते हैं कि सच्चे मसीही अनुग्रह की स्थिति से मौलिक और बहुत गम्भीर रूप से गिर सकते हैं, परन्तु पूर्ण रूप से और समापक रूप से कभी भी नहीं गिर सकते।

मैं सोचता हूँ कि यह छोटा सा वाक्यांश—सन्तों का अन्त तक बना रहना, बहुत ही ख़तरनाक रूप से भटकाने वाला है। ऐसा प्रतीत होता है कि बने रहना एक ऐसी बात है जिसे हम करते हैं, सम्भवतः अपने आप ही। मैं विश्वास करता हूँ कि सन्त लोग विश्वास में बने रहते हैं, और वे जो परमेश्वर के द्वारा प्रभावशाली रूप से बुलाए गए हैं और पवित्र आत्मा की सामर्थ्य के द्वारा जिनका नया जन्म हुआ है अन्त तक बने रहेंगे। हालाँकि, वे इस कारण से नहीं बने रहते है क्योंकि वे परमेश्वर की दया का उपयोग करने में बहुत परिश्रमी हैं। हम केवल ही एक कारण दे सकते हैं कि हम में से कोई भी विश्वास में क्यों बना रह सकता है, और वह है क्योंकि हमें अन्त तक बनाए रखा गया है। इसलिए मुझे सन्तों का सुरक्षित रखा जाना  शब्द अच्छा लगता है, क्योंकि जिस प्रक्रिया के द्वारा हमें अनुग्रह के अवस्था में रखा जाता है, वह कुछ ऐसी है जिसे परमेश्वर के द्वारा पूर्ण किया जाता है। मेरे सुरक्षित रखे जाने में भरोसा मेरी अन्त तक बने रहने की क्षमता में नहीं है। मैं मसीह की सामर्थ्य पर भरोसा करता हूँ कि वह अपने अनुग्रह और मध्यस्थता की सामर्थ्य के द्वारा मुझे बनाए रखता है। वह हमें सुरक्षित घर ले आएगा।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

आर.सी. स्प्रोल
आर.सी. स्प्रोल
डॉ. आर.सी. स्प्रोल लिग्नेएर मिनिस्ट्रीज़ के संस्थापक, सैनफर्ड फ्लॉरिडा में सेंट ऐन्ड्रूज़ चैपल के पहले प्रचार और शिक्षण के सेवक, तथा रेफर्मेशन बाइबल कॉलेज के पहले कुलाधिपति थे। वह सौ से अधिक पुस्तकों के लेखक थे, जिसमें द होलीनेस ऑफ गॉड भी सम्मिलित है।