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आलस्य क्या है?
28 नवम्बर 2024![What Is Humility](https://hi.ligonier.org/wp-content/uploads/2024/12/What-Is-Humility-150x150.jpg)
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नम्रता क्या है?
5 दिसम्बर 2024बुद्धि क्या है?
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बुद्धि का आरम्भ
इतिहास में मनुष्यों ने बुद्धि प्राप्त करने के लिए कई पद्धतियों का उपयोग किया है। दर्शनशास्त्र को “बुद्धि के प्रति प्रेम” या “ज्ञान की खोज” के रूप में परिभाषित किया गया है, फिर भी जब हम अस्तित्ववाद, सुखवाद या आत्म-संयमवाद जैसे विभिन्न दर्शनशास्त्रों की विस्तृत विविधता पर विचार करते हैं, तो हम आश्चर्यचकित हो सकते हैं कि एक लक्ष्य के लिए प्रयास करते समय वे इतने अलग कैसे हो सकते हैं। जबकि हम दर्शनशास्त्र को आधुनिक अवधारणा मानने के लिए प्रलोभित हो सकते हैं, परन्तु बाइबल में मानक नैतिकता की विफलताओं और सत्य की अस्वीकृति के कई वैयक्तिक अध्ययन पाए जाते हैं (भजन 53:1; रोमियों 1:18–31)। तो फिर, बुद्धि के गुण के विषय में बाइबल का दृष्टिकोण क्या है? संक्षेप में, बुद्धि ईश्वरीय उद्देश्यों के लिए विशिष्ट स्थितियों में लागू किया जाने वाला सत्य है।
बाइबलीय के बुद्धि साहित्य का सर्वेक्षण—जैसे नीतिवचन, सभोपदेशक और अय्यूब—निर्देश और साथ ही “नियमों” के अपवादों samके लिए विभिन्न साहित्यिक तकनीकों का उपयोग दिखाता है। बुद्धि को एक रक्षक और एक स्त्री के रूप में चित्रित किया गया है जो “उनके लिए वह जीवन-वृक्ष है जो उसे पकड़ लेते हैं” (नीतिवचन 2:11; 4:6; 3:18)। बाइबल में हम जीवन के सबसे कठिन प्रश्नों को नकारने के स्थान पर उनसे निपटने में बुद्धि और संलग्नता के अनेक उदाहरण देखते हैं। बुद्धि का गुण केवल शिक्षित, अनुभवी या सम्मानित लोगों का विशेषाधिकार नहीं है। वरन्, यह साधारण लोगों के लिए भी उपलब्ध है। प्रभु उन लोगों को उदारता से बुद्धि प्रदान करता है जो उससे इसके लिए प्रार्थना करते हैं (याकूब 1:5-7)। जो लोग जानते हैं कि संसार कितना धोखे से भरा हुआ है, उनके लिए यह वास्तव में एक बड़ी सांत्वना है।
“यहोवा का भय मानना बुद्धि का प्रारम्भ है” (नीतिवचन 1:7; 9:10; भजन संहिता 111:10)। छिपने या लज्जा के भाव के स्थान पर, इस प्रकार का भय विस्मय के भाव का वर्णन करता है। विस्मय स्वीकार करता है कि परमेश्वर ही सृष्टिकर्ता, सब कुछ का केन्द्र और सभी सत्य का अटल आधार है। जीवन में कई अनुभव भ्रमित करने वाले, विचलित करने वाले और यहाँ तक कि बंधनकारी भी हो सकते हैं। फिर भी, बुद्धि प्राप्त करने के लिए केवल विनम्रता की आवश्यकता होती है (नीतिवचन 11:2)।
मूर्खता को पहचानना
बाइबल में उपयोग किए जाने वाले साहित्यिक उपकरणों में से एक है शब्द “मूर्ख।” इसे बुद्धि के विपरीत रखते हुए, मूर्खों के उदाहरण हमें बुद्धि द्वारा प्रदान किए गए जीवन का महत्व दिखाते हैं। हम शीघ्र ही समझ जाते हैं कि मूर्खता केवल “बाहर” में ही नहीं है – यह तब भी पाई जा सकती है जब हम दर्पण में देखते हैं। शेक्सपियर ने भी इस सत्य को पहचाना और कहा, “मूर्ख सोचता है कि वह बुद्धिमान है, परन्तु बुद्धिमान व्यक्ति स्वयं को मूर्ख जानता है।”
जबकि “यहोवा का भय मानना बुद्धि का आरम्भ है; मूर्ख बुद्धि और शिक्षा को तुच्छ समझते हैं” (नीतिवचन 1:7)। मूर्ख होने का क्या अर्थ है? ऑगस्टीन ने कहा, “जब सत्य उन्हें ज्ञान देता है तो वे उससे प्रेम करते हैं, जब वह उन पर दोष लगाता है तो वे उससे घृणा करते हैं।” मूर्खता केवल ज्ञान की कमी नहीं है, वरन्, पवित्रशास्त्र का कहना है कि मूर्ख वह होता है जो “अपनी दृष्टि में सही है” (न्यायियों 21:25; नीतिवचन 3:7; यशायाह 5:21)।
बाइबल में, बुद्धि और मूर्खता नैतिक श्रेणियाँ हैं। मूर्ख परमेश्वर और उसकी बुद्धि को अस्वीकार करते हैं (नीतिवचन 14:1)। जबकि बुद्धिमान परमेश्वर और उसकी बुद्धि को अपनाते हैं (नीतिवचन 3:5-7)। मूर्ख को उसके धोखे से पहचाना जाता है, जो प्रायः आत्म-धोखा होता है (1 कुरिन्थियों 3:18; याकूब 1:22-24 देखें)। बुद्धिमान सत्य के प्रति समर्पित होते हैं। जबकि मूर्ख दिखावा कर सकता है या भूमिका निभा सकता है, अन्ततः, वह अपने फल से पहचाना जाता है (मत्ती 7)।
बुद्धि को लागू करना
मनुष्य-केन्द्रित बुद्धि आत्म-लाभ में रुचि रखती है, परन्तु “जो ज्ञान ऊपर से आता है, वह पहिले तो पवित्र होता है, फिर मिलनसार, कोमल, विचारशील, करुणामय और अच्छे फलों से लदा हुआ, स्थिर और कपट-रहित होता है”(याकूब 3:17)। किसी भी तर्क के प्रति खुले रहने के स्थान पर, यह तर्क परमेश्वर की खोज करता है, जैसा कि उसने अपने वचन में स्वयं को प्रकट किया है। धोखा खाने के विपरीत, सच्ची बुद्धि स्थिर सत्य पर आधारित होती है। यह इसे जीवन के सबसे बड़े संघर्षों के लिए उपयोगी बनाता है (अय्यूब 28:12-28; मत्ती 10:16; प्रेरितों के काम 7:9 को देखें। परमेश्वर के भविष्य के कार्यों की कोई भविष्यवाणी नहीं कर सकता; इसीलिए हमारे पास जीने का एक ढाँचा होना चाहिए जिससे कि हम आवश्यकता के समय में बुद्धि का प्रयोग कर सकें। फिर से, बुद्धि विशिष्ट परिस्थितियों में लागू किया जाने वाला सत्य है।
उथली समझ केवल ठीक जान पड़ने वाले मार्ग पर ही भरोसा करती है (नीतिवचन 14:12)। किन्तु, बुद्धि प्रभु पर भरोसा करने का एक अभ्यास है (भजन 146:3–5)। हमारा अन्तिम मानदण्ड लोकप्रिय विचार नहीं है, किन्तु बुद्धिमान व्यक्ति “अपना घर चट्टान पर बनाता है” (मत्ती 7:24)। बुद्धि बल या दबाव का उपयोग नहीं करती है, वरन् नम्रता और साहस के साथ विवेक से निवेदन करती है। जबकि नम्रता का मार्ग पीड़ादायक हो सकता है, “परमेश्वरीय शोक पश्चात्ताप उत्पन्न करता है जो बिना पछतावे के उद्धार की ओर ले जाता है” (2 कुरिन्थियों 7:10)। यही कारण है कि बुद्धि का उपयोग करना विश्वास, सीखने की क्षमता, प्रबन्धन और विश्वासयोग्यता का कार्य है। यह भरोसा मनुष्य या हमारी परिस्थितियों में नहीं है, किन्तु परमेश्वर के प्रावधान, उनकी सर्वज्ञता और उनकी अनन्त भलाई में है।
बुद्धि में बढ़ना
हम सुसमाचार में बुद्धि को अपनाते हैं जो उसके वचन द्वारा हमें दी गई है, क्योंकि ख्रीष्ट स्वयं “परमेश्वर की बुद्धि है” (1 कुरिन्थियों 1:24)। हम अर्थप्रकाशक प्रचारों के अन्तर्गत बैठ कर, परमेश्वर के वचन के विद्यार्थी बनकर, और परमेश्वर की सृष्टि के विद्यार्थी बनकर बुद्धि के कौशल में वृद्धि करते हैं। एक सक्रिय विद्यार्थी प्रश्न पूछने की कुशलता को सीखता है और चिन्तन और मूल्याँकन की आदतें बनाता है। ये चिन्तन हमें अपने सीखने में और अधिक सम्बन्ध जोड़ने में सहायता करते हैं, क्योंकि हम उन सभी बातों में जो अच्छी, सच्ची और सुन्दर हैं परमेश्वर के चरित्र की प्रतिध्वनि देखते हैं। हम अपने प्रकट परमेश्वर को जानने, स्वयं को सही ढंग से जानने, तथा परमेश्वर द्वारा सृजित संसार के विषय में अपनी समझ बढ़ाने के लिए परिश्रमपूर्वक बुद्धि का पीछा करते हैं — और यही वह कार्य है जिसे हम अनन्त काल तक करते रहेंगे।
बुद्धि का अनुसरण करना किसी अचूक योजना बनाने के विषय में नहीं है। यह सीखने के समय नम्रतापूर्वक लागूकरण करने की तैयारी करना है। परमेश्वर के नियम के विषय में हमारी अज्ञानता प्रायः हमें पाप में ले जाती है, और हम अपनी मूर्खता से स्वयं को आश्चर्यचकित कर सकते हैं। बुद्धि का अर्थ है मूल्याँकन करने और पुनः प्रयास करने की तत्परता। बुद्धि को हमारे बुरे निर्णयों और उनके अप्रत्याशित परिणामों पर लागू किया जा सकता है। यदि हम घुटने टेकने को तैयार हैं तो बुद्धि को लागू करने में कभी विलम्ब नहीं होता है। आइए हम उस चरवाहे को गले लगाएँ जो अपने नाम के लिए हमें शान्त जल के पास ले जाता है (भजन 23:2–3)।
यह लेख सद्गुण और अवगुण संग्रह का भाग है।
यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।