हम अंगीकारवादी क्यों हैं? - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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हम अंगीकारवादी क्यों हैं?

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का दूसरा अध्याय है: अंगीकार करने वाली कलीसिया

“मैं विश्वास करता हूँ।” ये शब्द हम अपने जीवनों में प्रतिदिन सुनते हैं। सन्दर्भ भले कोई भी हो, हम लगभग सभी बातों के विषय में अपना विचार व्यक्त करने के लिए इन सरल शब्दों का उपयोग करते हैं। जब हम औरों को बताना चाहते हैं कि हम क्या सोच रहे हैं या अपने हृदय के अन्तरतम प्रेम को प्रकट करना चाहते हैं, हम प्रायः कहेंगे, “मैं विश्वास करता हूँ।” अपनी बुद्धि में, परमेश्वर ने हमारी रचना न केवल विश्वास करने की योग्यता के साथ की परन्तु हमारे विश्वासों को खोजने, जाँचने, और उनको व्यक्त करने की एक अतृप्त इच्छा के साथ भी की (नीतिवचन 2; 1 पतरस 1)। हम अपने प्राणों की गहराई में परमेश्वर प्रदत्त भूख को रखते हैं जो हमें परमेश्वर ने जो कुछ भी हम पर प्रकट किया है उसके विषय में मूलभूत सत्यों को जाँचने का कारण देती है (व्यवस्थाविवरण 4; मत्ती 22)।

केवल यह तथ्य कि हम किसी बात  पर विश्वास करते हैं वास्तव में हमारे लिए कुछ नहीं करता है। सबसे आधारभूत स्तर पर, किसी बात  पर विश्वास केवल अत्याधिक तीव्र बोध प्रदान करता है कि हम अकेले नहीं हैं और यह कि हमारे अतिरिक्त भी कुछ विद्यमान है। हर किसी में किसी बात  पर विश्वास करने की क्षमता होती है, और वास्तव में हर कोई किसी बात पर विश्वास करता है (प्रेरितों के काम 17)। यद्यपि निन्दक सन्देहवादी कह सकते हैं, “मैं किसी बात पर विश्वास नहीं करता,” सरल बिन्दु यह है कि वह किसी बात पर विश्वास करता  है, और उसके अनुसार वह कोई बात “कुछ नहीं” है। परन्तु दृढ़ विश्वासी सन्देहवादी जानता है कि पूर्णतः कुछ नहीं पर विश्वास करना असम्भव है। यदि कोई कुछ नहीं पर विश्वास करने का दावा करता है, तो वास्तविकता यह है कि वह उन सब बातों पर विश्वास करता है जो उसके स्व-विधान, स्व-केन्द्रित विश्वास के स्रोत और उद्देश्य के रूप में स्वयं पर आरम्भ और अन्त होती हैं। सब बातों के लिए उसका एक खुला विचार है, जो कि, प्रचलित मत के विपरीत, अच्छी बात नहीं है। ऐसा कोई जिसका हर बात के लिए खुला विचार है वह किसी भी और सारी सामग्री को अपने मस्तिष्क में प्रवेश करने की अनुमति देगा, भले ही वह कितना ही निरर्थक हो, क्योंकि उसके पास सही और त्रुटि, सत्य और झूठ, और सत्य और अर्द्ध सत्य को समझने का कोई निस्पादक नहीं—कोई मापदण्ड नहीं है (नीतिवचन 1:22, 32)। हर एक बात के लिए खुला विचार एक अविवेकी खुला स्थान है, जो कि धारणाओं और प्रवृत्तियों से भरा होता है।

विश्वास के हृदय परिवर्तन करने वाले और जीवन परिवर्तन करने वाले महत्व होने के लिए, आवश्यक है कि परमेश्वर ही इसका स्रोत और उद्देश्य दोनों ही हो (भजन 68:26; 1 कुरिन्थियों 2:5)। मसीहियों के रूप में, हम यीशु ख्रीष्ट में नयी सृष्टि हैं, और पवित्र आत्मा ने अनुग्रह में हमारे कठोर पत्थर के हृदयों को साफ कर दिया है और हमें नए, आत्मिक लचीले हृदय दिए हैं जिससे कि अब हम परमेश्वर के पवित्र वचन (लूका 24:45) के महिमावान और अनन्त सत्यों पर विश्वास करने, अंगीकार करने, और घोषणा करने के सक्षम हों। हमें परमेश्वर ने जो कुछ और सब कुछ जो हम पर प्रकट किया है उसके प्रति खुले विचार का होना चाहिए, और आवश्यकता अनुसार कोई भी बात जो उसके प्रकाशन के विपरीत है उसके प्रति पूर्णतः, यद्यपि अनुग्रही, बन्द विचारों का होना चाहिए। मसीहियों के रूप में, हम परमेश्वर के सत्य और केवल परमेश्वर के सत्य पर विश्वास करते, अंगीकार करते, और उसकी घोषणा करते हैं। इसी लिए हमारे पास विश्वास वचन और अंगीकार है, जिससे कि दृढ़ निश्चय के साथ हम पवित्र लोगों को दिए गए विश्वास पर दृढ़ बने रहें—अन्त तक जिससे कि हम और हमारे बच्चे परमेश्वर के अपरिवर्तनीय सत्य पर उसकी महिमा के लिए विश्वास करें, अंगीकार करें और उसकी घोषणा करें, क्योंकि जो सब कुछ जिस पर हम विश्वास करते हैं, वह उसका स्रोत है और, इस प्रकार, उसका प्रकाशन पूरे विश्वास और जीवन के लिए हमारा विश्वास का स्तर है।

हर किसी के पास एक विश्वास वचन है

हमारे पास विश्वास वचन हैं क्योंकि हर कोई किसी बात पर विश्वास करता है, और इससे भी महत्वपूर्ण है, हर कोई परमेश्वर पर विश्वास करता है। यहाँ तक कि स्व-घोषित नास्तिक भी विश्वास करता है कि परमेश्वर है, सृष्टि में स्वयं के विषय में परमेश्वर के प्रकाशन के गुण के द्वारा और इस तथ्य के द्वारा कि सब लोग परमेश्वर के स्वरूप में बने हैं, और इसलिए हमारे पास कोई बहाना नहीं रह गया है (रोमियों 1:18-20)। तथाकथित नास्तिक अच्छे से जानते हैं कि परमेश्वर है; वे केवल परमेश्वर से घृणा करते हैं और अपने विवेक के लिए यह दिखावा करना सरल पाते हैं कि वह अस्तित्व में नहीं है। परन्तु जैसा कि हम जानते हैं, दुष्टात्माएँ भी विश्वास करती हैं कि परमेश्वर है और थरथराती हैं (मरकुस 5:7; याकूब 2:19)।

यदि हर कोई परमेश्वर पर विश्वास करता है, तो प्रश्न उठता है: हम परमेश्वर के विषय में क्या विश्वास करते हैं? इस प्रश्न  का उत्तर देना का अर्थ है अपने विश्वास वचन का अंगीकार करना, या उसे घोषित करना। भले ही वह औपचारिक हो या अनौपचारिक, लिखित हो या मौखिक, किसी न किसी रूप में हम सबके पास एक विश्वास वचन है जो हमारे विश्वास का विवरण देता है। हम में से कुछ के पास औपचारिक, लिखित विश्वास वचन है जिसका हम पालन करते हैं, जबकि अन्य लोगों के पास एक अनौपचारिक, अलिखित विश्वास वचन है जिसे सरलता से परिवर्तित किया जा सकता है और सम्भवतः प्रायः परिवर्तित होता भी है।

हम अपने स्वभाव से ही कुछ न कुछ विश्वास करते हैं और जन्म लेने के क्षण से ही हम विश्वास की अवधारणाओं को बनाना आरम्भ कर देते हैं। जैसे-जैसे हम अवधारणाओं के निर्माण से विश्वास के वास्तविक कथनों की ओर बढ़ते हैं, हम स्वाभाविक रूप से मौखिक और लिखित निरुपणों की ओर प्रवृत्त होने लगते हैं जो हमारे विश्वास को व्यक्त करते और हमें अन्य लोगों से जोड़ता है उन सत्यों के साथ जिनके पालन के लिए हम सब सहमत होते हैं। परमेश्वर के प्रारूप के द्वारा, सम्पूर्ण मानव जाति कुछ न कुछ विश्वास करती है—पतन से पूर्व और पतन के पश्चात्—और नए आकाश और नयी पृथ्वी में पूरे अनन्तकाल तक करती रहेगी। तो वास्तविक प्रश्न यह नहीं है कि हमारे पास विश्वास वचन है या नहीं। वरन्, प्रश्न हैं, हम अपने विश्वास वचनों में क्या विश्वास करते हैं? हमारे विश्वास की प्रकृति क्या है? हमारे विश्वास का अधिकार, उपयोगिता, नींव, और उद्देश्य क्या है?   

कुछ लोग विश्वास वचन और अंगीकार को केवल पवित्रशास्त्र  (sola Scriptura) के सिद्धान्त से असंगत पाते हैं। क्योंकि परमेश्वर ने विश्वास और जीवन के लिए हमारे एकमात्र अचूक मार्गदर्शक के रूप में पवित्रशास्त्र को प्रदान करना उपयुक्त देखा, इसलिए यह आवश्यक रूप से सही है कि पवित्रशास्त्र हमारे विश्वास के अन्तिम, निर्विवाद न्यायी और स्तर के रूप में कार्य करने के लिए पूर्ण रूप से पर्याप्त है। क्या यह सही नहीं है? निस्सन्देह—उद्धार के लिए हमें केवल परमेश्वर का वचन चाहिए। ठीक यही है जो परमेश्वर स्वयं हमें सिखाता है (यूहन्ना 17:17; 2 तीमुथियुस 3:16; 2 पतरस 3:16)। तो फिर, हमारे विश्वास के ऐतिहासिक विश्वास वचन का क्या, जैसे की प्रेरितों का विश्वास वचन या नीकिया का विश्वास वचन? सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दी के सभी धर्मसुधारक अंगीकारों और धर्मोप्रश्नोत्तरियों का क्या, जैसे विश्वास का वेस्टमिन्स्टर अंगीकार और हेडिल्बर्ग धर्मोप्रश्नोत्तरी? यदि केवल पवित्रशास्त्र शिक्षा, ताड़ना, सुधार और धार्मिकता की शिक्षा के लिए उपयोगी है जिससे कि हम प्रत्येक भले कार्य के लिए कुशल और तत्पर हो जाएँ (2 तीमुथियुस 3:16-17), तो हमें किसी और वस्तु की आवश्यकता क्यों है? यदि सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्वर चाहता कि  हमारे पास पवित्र शास्त्र की छियासठ पुस्तकों के अतिरिक्त भी कुछ हो, तो क्या वह हमें प्रदान नहीं कर सकता था? क्या विश्वास वचन और अंगीकार वास्तव में मसीहियों के जीवन और कलीसिया के जीवन में आवश्यक है?

जब विश्वास वचन और अंगीकार पर बात आती है तो ये आवश्यक और अनिवार्य प्रश्न हैं जिसपर प्रत्येक मसीही को विचार करना चाहिए। और हम सरलता से देख सकते हैं कि कैसे इस प्रकार के प्रश्न केवल विश्वास वचन तक ही नहीं परन्तु स्वयं सिद्धान्त के अध्ययन की प्रकृति और उद्देश्य तक बढ़ जाते हैं। इसके अतिरिक्त, ऐसे प्रश्न स्वाभाविक रूप से पवित्रशास्त्र के किसी और सभी अध्ययन तक बढ़ जाते हैं—सारी टीकाएँ, सभी विधिवत् ईश्वरविज्ञान, सभी उपदेश, और बाइबल में पाए जाने वाले किसी भी विषय पर चर्चाएँ और विवाद। जब भी कोई व्यक्ति उस पर एक क्षण के लिए विचार करता है कि परमेश्वर ने उसके लिए किया, तो उसने विश्वास वचन का निर्माण करना आरम्भ कर दिया है। जब कभी भी हम अपने बच्चों के लिए सरल गीतों को गाते हैं, जैसे “यीशु मुझसे प्रेम करता है, यह मैं जानता हूँ, क्योंकि बाइबल ऐसा मुझे बताती है” (Jesus loves me, this I know, for the Bible tells me so), तो हमने यीशु, उसके प्रेम, उसके प्रेम के उद्देश्य, उसके प्रेम के लिए हमारे आश्वासन, और बाइबलीय अधिकार की प्रकृति के विषय में विश्वास के कथन का निर्माण कर दिया है।

फिर भी, कुछ लोग कह सकते हैं, “ख्रीष्ट मेरा एकमात्र विश्वास वचन है।” परन्तु जैसे ही हम प्रश्न पूछते हैं, “ख्रीष्ट कौन है?” हम ख्रीष्ट के विषय में उस व्यक्ति के विश्वास की समझ की अभिवव्यक्ति को सुनेंगे, जो या तो सही या त्रुटिपूर्वक होगी, बाइबलीय या अबाइबलीय होगी। और ख्रीष्ट के व्यक्ति या कार्य के विषय में अबाइबलीय विश्वास हमारी दण्डाज्ञा का परिणाम होगा। क्योंकि यदि यह बाइबल का ख्रीष्ट है जो हमें एक करता है, तो हमें सच्चे बाइबलीय उद्धार और सच्ची बाइबलीय एकता पाने के लिए एक, सच्चे बाइबलीय ख्रीष्ट की पुष्टि करनी होगी। इस प्रकार, यह कहना अत्यन्त उचित होगा, “मेरा एकमात्र विश्वास ख्रीष्ट का विश्वास है”। यही प्रत्येक मसीही का उद्देश्य है—पवित्र शास्त्र में प्रकट विश्वास वचन और सिद्धान्त का विश्वास करना, अंगीकार करना, और उसकी घोषणा करना जिसको स्वयं ख्रीष्ट ने लिखा, पूरा किया, सुरक्षा की, और घोषित किया। यदि हम सही रीति से मसीही हैं जो केवल ख्रीष्ट पर भरोसा करते हैं, तो हमारे लिए यह असम्भव होगा कि हम अपने प्रभु और उद्धारकर्ता ख्रीष्ट के उद्धार के आधारभूत सिद्धान्त की पुष्टि न करें; केवल प्रश्न यह है कि हमारे सिद्धान्त की सम्पूर्णता ठोस सिद्धन्त है या झूठा सिद्धान्त।

विश्वास वचन और अंगीकार हमारे पूर्वजों की ओर से मानचित्र के समान है

परमेश्वर के वचन के अध्ययन करते समय, दिशानिर्देशन के लिए विश्वास वचन और अंगीकार को मानचित्र, या मार्गदर्शिका, के रूप में सोचना लाभदायक हो सकता है। जबकि कोई यह तर्क कर सकता है कि हमें यात्रा के लिए मानचित्र की आवश्यकता नहीं है, हम सब जानते हैं कि जब हमें एक विशेष समय में विशेष मार्ग से विशेष गन्तव्य पर पहुँचना तो मानचित्र कितने सहायक होते हैं। जब कभी भी हमें एक विशेष गन्तव्य पर पहुँचने के लिए सहायता की आवश्यकता होती है जिससे हम परिचित नहीं होते, हम मानचित्र का उपयोग करते हैं, परन्तु हम उस सड़क का मानचित्र नहीं देखते जिसपर हमने प्रायः यात्रा की हुई है क्योंकि उस मार्ग को हमने स्मृति में प्रतिबद्ध किया हुआ है। परन्तु जब तक हम किसी एक विशेष गन्तव्य के लिए नियमित रूप से यात्रा नहीं करते हैं, हम अपना मार्ग खो सकते हैं और सबसे सुविधाजनक मार्ग से भटक सकते हैं क्योंकि हमारा मस्तिष्क जैसा हम चाहते हैं न उतनी स्पष्टता से सोचता है और न पूरी रीति से स्मरण रखता है।  बाइबल पहाड़ों, नदियों, और रास्तों, का सुन्दर और विशाल संसार है, और हमें उन पर चढ़ने, और उसके अनुसार चलने, और उस पर चलने के लिए बुलाया गया है जब हम उसे देखते, उससे सीखते, और अपने पूर्वजों पर निर्भर होते हैं जिन्होंने पिछली पीढ़ियों में उन पर विश्वासयोग्यता से यात्रा की है।

फिर भी, कोई भी सरलता से विश्वास वचन और अंगीकार की उपयोगिता के विरुद्ध आरोप लगा सकता है यह इंगित करते हुए कि हमारे पूर्वज, पापी यद्यपि विश्वासयोग्य थे और इसलिए कलीसिया के लिए ऐसे मार्गदर्शकों का निर्माण करने के अयोग्य है। इस आरोप पर दोहरी प्रतिक्रिया है। प्रथम, पाप में हमारे पतन के पश्चात्, परमेश्वर छुड़ाए और पश्चातापी पापियों को निरन्तर उसकी और उसके बुलाए हुए लोगों, कलीसिया की सेवा करने के लिए इस सीमा तक  बुलाता, उपहार देता, और तैयार करता है कि परमेश्वर के लोग उसके सत्य पर विश्वास करें, अंगीकार करें, और उसकी घोषणा करें। द्वितीय, छुड़ाए और पश्चातापी पापी जो प्राकृतिक रूप से विश्वास वचन का निरूपण करने की ओर प्रवृत होते हैं, हमें यह समझना चाहिए कि यह हमारा पाप है जो कलीसिया के भीतर हमें असहमति, विवाद, और विभाजन की ओर ले जाता है, जो कि ठीक वह है जिसकी विरुद्ध में परमेश्वर ने स्वयं अपने वचन में आज्ञा दी है। इसलिए, जबकि हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि यह क्योंकि पाप के कारण हम स्वाभाविक रूप से भिन्न विश्वासों की ओर प्रवृत होते हैं, यह भी पाप के कारण है कि हमें एक लिखित विश्वास वचन के लिए परिश्रम से प्रयत्न करना चाहिए जो पवित्रशास्त्र के सिद्धान्तों की पुष्टि करता है। आत्मिक पुनरुज्जीवित विश्वासियों के रूप में, हम पाप के बौद्धिक प्रभावों का अनुभव करते है और जब हम पवित्रशास्त्र का अध्ययन करते हैं सदैव उतनी स्पष्टता और सावधानीपूर्वक से नहीं सोचते जितना हमें सोचना चाहिए। यद्यपि, जब तक ख्रीष्ट के राज्य का समापन होता है तब तक के लिए अपने अनुग्रह में परमेश्वर ने हमें अपना आत्मा दिया है, और अपनी बुद्धि में उसने हमें पास्टर और शिक्षक दिए हैं। पवित्रा आत्मा हम पर अपने वचन को प्रज्वलित करता है और अपने वचन के सत्य की ओर लेकर जाता है जब वह उपदेशों, बाइबल अध्ययन पाठों, टिप्पणियों, पुस्तकों, और विश्वास वचन में सत्यों के अध्ययन करने, समझाने, और सिखाने के लिए अपने सेवकों को सक्षम बनाता और उपयोग में लाता है। इसलिए विश्वास वचन और अंगीकार, उपदेशों के समान ही, लिखी, निरूपित की गयी व्याख्याएँ हैं जो हमें पवित्रशास्त्र के सिद्धान्त के स्पष्ट सारांश को प्रदान करने के लिए हैं।

पाप न केवल हमारी सोच को धुन्धला कर देता है; यह हमारी स्मृतियों को भी धुन्धला कर देता है। हम सदैव ही हमारे पवित्रशास्त्र के अध्ययन से पूर्णतः और शीघ्रता स्मरण नहीं करते हैं जैसा कि हमें करना चाहिए, इसीलिए परमेश्वर ने स्वयं ही अपने पूरे वचन में हमें अपने वचन के विश्वास के सारांश दिया है (उदहारण, व्यवस्थाविवरण 6:4; 1 तीमुथियुस 3:16)। और पवित्रशास्त्र में संक्षिप्त विश्वास वचन कथनों के समान ही, कलीसिया के ऐतिहासिक विश्वास वचन  हमें पवित्रशास्त्र के सिद्धान्त की एक संक्षिप्त प्रणाली प्रदान करते हैं जिससे कि हम अपने प्रभु के सिद्धान्त को अधिक उत्तम और सरल रीति से समझ सकें और स्मरण कर सकें जो उसने अपने वचन में प्रकट किया है।

पाप के बिना, लगभग सब कुछ भिन्न होता, और हमें विश्वास वचनों और अंगीकारों की कुछ भी आवश्यकता नहीं होती। यदि हम पापी न होते, तो हम सब परमेश्वर के वचन को ठीक वैसा ही पढ़ते और विश्वास करते जैसा कि परमेश्वर चाहता था। हम पवित्रशास्त्र की किसी भी बात से असहमत न होते। कलीसिया में किसी भी प्रकार का विभाजन न होता। न कोई भी झूठे शिक्षक, न विधर्मता, और न ही कलीसियाई अनुशासन की आवश्यकता होती। एक, पवित्र, विश्वव्यापी, और प्रेरितीय कलीसिया हर बात पर पूर्ण रूप से सहमत होती। और यह नए आकाश और नयी पृथ्वी में वास्तविकता होगी। परन्तु दुखद बात यह है, कि पाप में मनुष्य के पतन को कम समझे जाने के परिणामस्वरूप हम भ्रष्ट हृदय और भ्रष्ट मस्तिष्क वाले पापी हैं, जिससे हम न केवल परमेश्वर के साथ, परन्तु कुछ सीमा तक, एक दूसरे के साथ भी शत्रुता में हैं। हमें पाप के परिणामों को कम नहीं समझना चाहिए। अपेक्षाकृत, हमें मनुष्य की भ्रष्टता और जो कुछ भी हम सोचते, कहते, और करते हैं और हमारे सोचने, कहने, और करने के पीछे के उद्देश्यों के प्रति उच्च विचार होने चाहिए। परिणामस्वरूप, ऐसा इसलिए है क्योंकि हम में से हर एक पापी है और क्योंकि हम में से एक से अधिक हैं जिन्हें विश्वास वचनों और अंगीकारों की आवश्यकता है।

विश्वास वचन हमें एक करते हैं

लोकप्रिय मत के विरुद्ध, हमारे पास विश्वास वचन और अंगीकार हमें विभाजित करने के लिए नहीं अपितु एकमात्र सचचे विश्वास के मूलभूत विश्वासों पर एक करते हैं। सिद्धान्त विभाजित नहीं करते हैं; न ही विश्वास वचन विभाजित और अंगीकार विभाजित करते हैं। पाप हमें विभाजित करता है, और सिद्धान्त हमें एक करता है। ख्रीष्ट के साथ हमारे मिलन, और पवित्र आत्मा के सामर्थ्य  के माध्यम से, बाइबलीय सिद्धान्तों की हमारी पुष्टि ही वह बात है जो पश्चाताप करने वाले उन पापियों से बनी एक कलीसिया को सम्भवतः एक कर सकती है जो हमारे सम्प्रभु परमेश्वर द्वारा उद्धार पाए हैं जिसके सामने हम अंगीकार करते हैं।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया

बर्क पार्सन्स
बर्क पार्सन्स
डॉ. बर्क पार्सन्स टेबलटॉक पत्रिका के सम्पादक हैं और सैनफोर्ड फ्ला. में सेंट ऐंड्रूज़ चैपल के वरिष्ठ पास्टर के रूप में सेवा करते हैं। वे अश्योर्ड बाई गॉड : लिविंग इन द फुलनेस ऑफ गॉड्स ग्रेस के सम्पादक हैं। वे ट्विटर पर हैं @BurkParsons.