करने वाले, केवल सुनने वाले नहीं - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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करने वाले, केवल सुनने वाले नहीं

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का पहला अध्याय है: ईश्वरविज्ञान करना

एक स्थानीय कलीसिया के पास्टर के रूप में, उन वर्षों में मैं अनेक लोगों से मिल चुका हूँ जो कलीसिया में जाते हुए बड़े नहीं हुए और उन्होंने कभी भी पवित्रशास्त्र या पवित्रशास्त्र के ईश्वरविज्ञान का अध्ययन नहीं किया। मैं ऐसे लोगों से भी मिला जो कलीसिया जाते हुए बड़े हुए किन्तु उनको कभी भी पवित्रशास्त्र और उसका ईश्वरविज्ञान सिखाया नहीं गया। फिर भी, जैसा डॉ आर सी स्प्रोल ने कहा है, हर कोई एक ईश्वरविज्ञानी है—प्रश्न है कि क्या हम अच्छे ईश्वरविज्ञानी हैं या नहीं। हमारे समय की मूलभूत समस्या यह है की बहुत से दावा करने वाले ख्रीष्टीय यह नहीं सोचते हैं कि उन्हें ईश्वरविज्ञान अध्ययन की आवश्यकता है, जबकि बहुत से अन्य ख्रीष्टिय ईश्वरविज्ञान के विषय में विचार नहीं करते या अध्ययन करने में बहुत आलसी हैं। फिर भी, ख्रीष्टियों को ईश्वरविज्ञान के विषय में विचार करना चाहिए। हम कैसे नहीं कर सकते, जब की यह हमें उसके विषय में बताता है जो हमारे प्राणों को बचाता है?

बहुत ख्रीष्टीय, विशेष रीति पर जवान ख्रीष्टीय और वे जो हाल ही में ख्रीष्टीय बने, नहीं जानते कि कहाँ से ईश्वरविज्ञान का अध्ययन प्रारम्भ करे, और वे नहीं जानते कि कैसे किया जाए। मैंने पाया है कि कुछ ख्रीष्टीय विचार करते हैं कि ईश्वरविज्ञान केवल पास्टर और विद्वानों के लिए है, और इससे भी बुरा, कुछ पास्टर और विद्वानों के कारण साधारण ख्रीष्टीय ऐसा सोचते हैं कि वे वास्तव में केवल तभी ईश्वरविज्ञान का अध्ययन कर सकते हैं जब वे उन्नत ईश्वरविज्ञानिक डिग्री लेंगे। मैंने ऐसा भी पाया कि कुछ ख्रीष्टीय सोचते हैं कि उनको अपना स्वयं का ईश्वरविज्ञान विकसित करना होगा। परन्तु परमेश्वर ने हमें अपना ईश्वरविज्ञान स्वयं से विकसित करने के लिए नहीं बुलाया—यह बाइबल में पहले से विकसित है। हम बुलाए गए हैं कि अध्ययन करें, समझें, और इसके करने वाले हों, न कि केवल सुनने वाले। इसके साथ ही, यह हमारा अपना ईश्वरविज्ञान नहीं है; यह ईश्वरविज्ञान है एक, पवित्र, विश्वव्यापी, और प्रेरिताई कलीसिया का। जब लोग अपना स्वयं का ईश्वरविज्ञान विकसित करते हैं, वे अपरिहार्य अपनी स्वयं की विधर्मता विकसित करते हैं।

ईश्वरविज्ञान करने का अर्थ है बाइबल का अध्ययन करना और विश्वासयोग्य पूर्वजों के वचनो का अध्ययन करना जिन्होंने विश्वासयोग्यता से बाइबल का अध्ययन किया। इसका अर्थ है ऐतिहासिक विश्वास वचन और कलीसिया के अंगीकार का अध्ययन करना, जो सहायता करते हैं बाइबल में सिखाई गई बातों के उपयोगी सारांशों और स्पष्टिकरणों के रूप में। इसका अर्थ यह है न केवल विधिवत ईश्वरविज्ञान पुस्तकों का अध्ययन करना किन्तु बाइबलीय टीकाओं का भी, तथा व्याख्याशास्त्र (बाइबल के व्याख्या करने की विधि) की पुस्तकों का, कलीसियाई इतिहास, ऐतिहासिक ईश्वरविज्ञान, और साथ ही साथ ख्रीष्टिय जीवन (कैसे ईश्वरविज्ञान को जीवन में लागू करे), क्योंकि सही रीति से समझा गया ईश्वरविज्ञान वह ईश्वरविज्ञान है जो सही रीति से जीवन में लागू किया जाता है। इसका यह भी अर्थ है कि हमें ईश्वरविज्ञान का अध्ययन करना है जब हम अपने स्थानीय कलिसियाओं में वचन की सेवकाई के अधीन बैठते हैं, हर सप्ताह, आराधना, गीतों, और कलीसियाई विधियों के माध्यम से। क्योंकि जब हम ईश्वरविज्ञान का अध्ययन करते हैं, हम परमेश्वर का अध्ययन कर रहे हैं, कि हम बाइबल के त्रिएक परमेश्वर को सही से जानें, उससे प्रेम करें, उसकी आराधना करें, और उसकी घोषणा करें, न कि स्वयं के बनाए हुए परमेश्वर की।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
बर्क पार्सन्स
बर्क पार्सन्स
डॉ. बर्क पार्सन्स टेबलटॉक पत्रिका के सम्पादक हैं और सैनफोर्ड फ्ला. में सेंट ऐंड्रूज़ चैपल के वरिष्ठ पास्टर के रूप में सेवा करते हैं। वे अश्योर्ड बाई गॉड : लिविंग इन द फुलनेस ऑफ गॉड्स ग्रेस के सम्पादक हैं। वे ट्विटर पर हैं @BurkParsons.