परमेश्वर के साथ मनुष्य का वाचाई सम्बन्ध - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
शरीर और प्राण के सम्मिश्रण के रूप में मनुष्य
29 अगस्त 2023
मनुष्य वाचा तोड़ने वाला और पुनःस्थापित स्वरूप-धारक है
5 सितम्बर 2023
शरीर और प्राण के सम्मिश्रण के रूप में मनुष्य
29 अगस्त 2023
मनुष्य वाचा तोड़ने वाला और पुनःस्थापित स्वरूप-धारक है
5 सितम्बर 2023

परमेश्वर के साथ मनुष्य का वाचाई सम्बन्ध

जिस दिन से परमेश्वर ने आदम और हव्वा की सृष्टि की, वे उसके साथ वाचाई सम्बन्ध (covenant relationship) में थे। जिस प्रकार से मछली परमेश्वर द्वारा दी गई भूमिका को पूरा करने के लिए मछली पानी में रहती है, उसी प्रकार मनुष्य परमेश्वर द्वारा दी गई भूमिका को पूरा करने के लिए वाचाई सम्बन्ध में रहते हैं। यद्यपि उत्पत्ति 1-3 में वाचा शब्द नहीं आता है, फिर भी वाचा के तत्व उपस्थित हैं। जिस प्रकार से 2 शमूएल 7 में दाऊदीय वाचा की स्थापना में वाचा शब्द नहीं आता है, परन्तु भजन 89 और 132 उसे वाचाई सम्बन्ध कहते हैं, उसी प्रकार होशे 6:7 आदम के साथ परमेश्वर के सम्बन्ध को वाचा कहता है। वेस्टमिन्स्टर विश्वास अंगीकार 7.1 सृष्टिकर्ता परमेश्वर और सृष्टि के मध्य के अन्तर को इतना महान् बताता है कि परमेश्वर ने वाचाई सम्बन्ध स्थापति करने के लिए स्वेच्छा से अपने स्तर से नीचे उतरकर व्यवहार किया। इस भाषा का यह अर्थ नहीं है कि वाचाई सम्बन्ध से पृथक सृष्टिकर्ता और सृष्टि के मध्य प्राकृतिक सम्बन्ध नहीं था, परन्तु उसका अर्थ यह है कि परमेश्वर और उसके सृजे गए प्राणियों में फलप्रद सम्बन्ध के लिए वाचा आवश्यक थी। परमेश्वर का स्वैच्छिक नीचे उतरना उसकी भलाई है जिस में होकर वह अपने सृजे गए प्राणियों के विकास के लिए सब आवश्यक बातों का प्रावधान करता है। अतः उसके सृष्टिकर्ता होने के कारण यद्यपि हमें उसकी आज्ञाओं को अवश्य पालन करना चाहिए था, परमेश्वर ने उसके साथ धन्य सम्बन्ध की पूर्ण अभिव्यक्ति के लिए एक वाचा प्रदान किया।

आदम और हव्वा के प्रति परमेश्वर की आशिषों को उत्पत्ति 1-2 में पूर्ण रीति से प्रस्तुत किया गया है। परमेश्वर ने उन्हें वह सब कुछ दिया जिसकी उन्हें आवश्यकता थी कि वे परमेश्वर द्वारा फलने-फूलने, पृथ्वी में भर जाने और उसे अपने वश में करने के आदेश को पूरा कर सकें (उत्पत्ति 1:28)। उसने उन्हें भोजन और जल, रहने के लिए सुन्दर स्थान, अर्थपूर्ण कार्य, विवाह में साहचर्य, और अपने साथ नियमित संगति के वरदान दिए। और उसने उनके साथ वाचाई सम्बन्ध भी स्थापित किया जो उन्हें उत्तम आशिष की ओर ले जा सकता था।

उस वाचा के कई तत्व उत्पत्ति 1-3 में दिखते हैं। परमेश्वर ने पहल करके आदम और हव्वा के लिए सब आवश्यक वस्तुएँ दी, और उसने वाचा की माँगों को निर्धारित किया। उसने उन्हें आज्ञा दी कि वे वाटिका के एक पेड़ से न खाएँ, अर्थात् भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष से। यदि वे अनाज्ञाकिरता करते तो यह मृत्यु दण्ड को लाता था। उनके सामने जीवन का वृक्ष भी था, जो आज्ञाकारिता के लिए प्रतिफल था। ये वाचाई सम्बन्ध के सामान्य तत्व हैं जिनमें आज्ञाकारिता के लिए आशिषों की प्रतिज्ञा की जाती है और अनाज्ञाकारिता के लिए शापों की। यह आदम और हव्वा के लिए परखने वाली परीक्षा थी जिसका परिणाम जीवन की आशिष या फिर मृत्यु का दण्ड हो सकता था। आदम और हव्वा परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता में होकर इस आज्ञा को मानने में सक्षम थे। उन्हें सकारात्मक पवित्रता की दशा में सृजा गया था और वे मृत्यु की व्यवस्था के अधीन नहीं थे, परन्तु पाप करने की सम्भावना थी। यदि वे उस परीक्षा में सफल होते, उन्हें अनन्त जीवन का प्रतिफल मिलता, जिससे कि पाप करना असम्भव हो जाता।

वाचाई सम्बन्ध प्रतिनिधित्व के सिद्धान्त पर आधारित होते हैं। आदम वाचाई प्रतिनिधि है, और इसलिए उसके कार्य उन लोगों को प्रभावित करते हैं जिनका वह प्रतिनिधित्व करता है। इब्रानी शब्द आदम न केवल आदम का व्यक्तिगत नाम है, परन्तु मानव जाति के लिए सामान्य नाम भी है (इसका उपयोग उत्पत्ति 1:26-28 में किया गया है)। आदम को पहले सृजा गया (1 तीमुथियुस 2:13-14), और जब परमेश्वर ने आदम और हव्वा से उनके पाप करने के पश्चात् वाटिका में उनसे बात की, तो उसने पहले आदम से बात की यद्यपि हव्वा ने परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन किया और अपने पति को फल दिया। उनकी अनाज्ञाकारिता के लिए आदम को उत्तरदायी ठहराया गया। उसके पाप ने स्वयं उसको (उत्पत्ति 3:7), अपनी पत्नी हव्वा के साथ उसके सम्बन्ध को (उत्पत्ति 3:16), परमेश्वर के साथ सम्बन्ध को (उत्पत्ति 3:8), सृष्टि के साथ उसके सम्बन्ध को (उत्पत्ति 3:17-19) उसके बच्चों को (उत्पत्ति 4:11), और उन सब को प्रभावित किया जो प्राकृतिक रीति से उसके वंशज है, जो उत्पत्ति 5 की वंशावली में दोहराए गए वाक्यांश “और वह मर गया” और जल-प्रलय से पूर्व पृथ्वी पर दुष्टता के प्रसार (उत्पत्ति 6:5) में प्रदर्शित होता है।

वेस्टमिन्स्टर अंगीकार कथन और प्रश्नोत्तरी आदम के साथ बाँधी गई वाचा को कार्यों की वाचा और जीवन की वाचा कहते हैं। अन्य लोग इसे सृष्टि की वाचा कहते हैं। सृष्टि की वाचा वाक्यांश उत्पत्ति 1:26-28 में परमेश्वर द्वारा दिए गए आदेश से सम्बन्धित बातों को सम्बोधित करता है। पाप के प्रवेश ने उस आदेश को पूरा करने के लिए मनुष्य की क्षमता को बाधित किया, परन्तु वह आदेश अभी भी लागू होता है। जीवन की वाचा वाक्यांश उस जीवन पर बल देता है जो आदम की आज्ञाकारिता से उसे प्राप्त हो सकता था। कार्यों की वाचा वाक्यांश परख की परीक्षा के केन्द्र पर बल देता है। यद्यपि कुछ लोग कार्य शब्द को नकारात्मक रीति से लेते हैं क्योंकि या वैधानकि है और उन्हें लगता है कि यह भावशून्य है, यह एक अर्थपूर्ण शब्द है जो उद्धार की परम आशा को व्यक्त करता है।

जब आदम ने परमेश्वर के प्रति अनाज्ञाकारिता किया, तो कार्यों की वाचा का औपचारिक अन्त हो गया। आदम और हव्वा को जीवन के वृक्ष में से खाने से निषेध किया गया और उन्हें वाटिका से निकाल दिया गया (उत्पत्ति 3:23-24)। परन्तु, कार्यों की वाचा के अन्तर्गत सिद्ध रीति से परमेश्वर की व्यवस्था का पालन करने की माँग बनी हुई है। यदि कार्यों की वाचा के उल्लंघन का दण्ड आदम की सभी सन्तानों तक विस्तृत है, तो व्यवस्था को सिद्ध रीति से मानने की बाध्यता भी उन तक विस्तृत है, जिसे करने के लिए पापी असक्षम हैं। यदि अपने पतित सृष्टि को पुनःस्थापित करने के लिए परमेश्वर कार्य न करे, तो उद्धार के लिए कोई आशा नहीं होती।

परमेश्वर ने आदम को छुटकारे का अनुग्रह दिखाया क्योंकि आदम के पाप ने मृत्यु के शाप को संसार में प्रवेश कराया। अंजीर के पत्तों द्वारा वस्त्र बनाने के उनके स्वयं के प्रयास के स्थान पर परमेश्वर ने आदम और हव्वा को चमड़े के वस्त्र दिए। यह प्रावधान लहू के बहाए जाने की आवश्यकता का पूर्व-संकेत है, क्योंकि यह पाप के लिए एक प्रतिस्थापनीय बलिदान है। परमेश्वर ने न केवल सर्प को शाप दिया, परन्तु यह प्रतिज्ञा भी की कि वह स्त्री के वंश से सर्प को पराजित करने के लिए किसी को भेजेगा। तब तक दोनों वंशों के मध्य युद्ध का बैर बना रहता है। स्त्री के वंश से आने वाले जन के विषय में जानकारी सम्पूर्ण पुराने नियम में विकसित होती रहती है, जिसके अन्त में हमारा मध्यस्थ ख्रीष्ट आता है। अनुग्रह की वाचा परमेश्वर के छुटकारे के अनुग्रह का आरम्भ है, जिसके प्रति विश्वास में होकर आदम ने अपनी पत्नी का नाम हव्वा रखा क्योंकि वह सब जीवितों की माता थी (उत्पत्ति 3:20)। आदम ने परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं और प्रावधानों पर विश्वास व्यक्त किया कि जीवन चलता जाएगा और कि परमेश्वर अपनी प्रतिज्ञाओं को पूरी करेगा।

नई वाचा में यीशु ख्रीष्ट ने अनुग्रह की वाचा की सभी प्रतिज्ञाओं को पूरा किया जिन्हें परमेश्वर ने पुराने नियम की व्यक्तिगत वाचाओं में प्रकट किया था (नूह, अब्राहम, मूसा, और दाऊद के साथ), और उसने कार्यों की वाचा में परमेश्वर की व्यवस्था को सिद्ध रीति से पालन करने की माँग को भी पूरा किया। पौलुस रोमियों 5:12-21 में दिखाता है कि ख्रीष्ट ने आदम द्वारा उल्लंघन की गई कार्यों की वाचा को कैसे पूरा किया। आदम और ख्रीष्ट केवल अपने लिए कार्य नहीं करते हैं, परन्तु उनके कार्य उन लोगों को प्रभावित करते हैं जिनका वे प्रतिनिधित्व करते हैं। पौलुस द्वारा आदम और ख्रीष्ट को संघीय (वाचाई) मुखिया के रूप में प्रस्तुत किया जाना इस मत का समर्थन करता है कि उत्पत्ति 1-3 में आदम के साथ परमेश्वर का सम्बन्ध वाचाई सम्बन्ध है। आदम की अनाज्ञाकारिता ने कार्यों की वाचा का उल्लंघन किया और उसके कारण परमेश्वर की अच्छी सृष्टि में मृत्यु सहित पाप के परिणाम आए। आदम के अपराध के कारण वे सब लोग दोषी ठहराए गए जो प्राकृतिक रीति से उसके वशंज थे (रोमियों 5:18) क्योंकि उसका पाप उनके लिए गिना गया। जैसा कि पौलुस कहता है, एक मनुष्य की अनाज्ञाकारिता से अनेक पापी ठहराए गए (19 पद)। हमारे प्रतिनिधि के रूप में आदम की अनाज्ञाकारिता हमारी वैधानिक स्थिति को प्रभावित करती है। उसका पाप इस अर्थ में हमारे लिए गिना गया कि यह वैधानिक रीति से हमारे खाते में लिखा गया (अर्थात् अभ्यारोपित किया गया)। परन्तु हम इसलिए भी दोषी ठहरते हैं क्योंकि हम परमेश्वर की व्यवस्था को सिद्ध रीति से पालन करने की माँग को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं। हमारे कार्य हमारे उद्धार का आधार नहीं हो सकते हैं।

स्वयं के कार्यों पर भरोसा हमें निराशा की ओर ले जाता है क्योंकि हम अभी भी परमेश्वर की व्यवस्था का उल्लंघन करते रहते हैं। सुसमाचार की सुन्दरता यह है कि परमेश्वर ने धार्मिकता पूरी
करने वाले वाचाई मध्यस्थ के रूप में अपने स्वयं के पुत्र को दिया है। उसने सिद्ध रीति से व्यवस्था का पालन किया, और उसकी आज्ञाकारिता के आधार पर हम केवल उस पर विश्वास के द्वारा धर्मी घोषित किए जा सकते हैं। पौलुस बल देता है कि यह यीशु ख्रीष्ट के अनुग्रह के द्वारा दिया गया सेंतमेंत उपहार है (रोमियों 5:15) जिसका परिणाम धर्मीकरण है (रोमियों 5:16)। जहाँ आदम विफल हुआ, वहीं ख्रीष्ट सफल हुआ। आदम का पाप उसकी प्राकृतिक रीति से उत्पन्न सन्तानों पर अभ्यारोपित हुआ; ख्रीष्ट की धार्मिकता उन सब पर अभ्यारोपित की जाती है जो उस पर विश्वास करते हैं। जब हम अपने लिए किए गए हमारे उद्धारकर्ता के कार्यों पर मनन करते हैं और हमारे धर्मीकरण के लिए उसकी आज्ञाकारिता के प्रभाव को जानते हैं, तो हमारे हृदय ख्रीष्ट द्वारा हमारे लिए किए गए कार्य की सुन्दरता और महिमा को कैसे नहीं संजोएँगे? हम कार्यों के द्वारा बचाए जाते हैं—अपने कार्यों द्वारा नहीं, वरन् ख्रीष्ट के। ख्रीष्ट के कार्यों पर मनन करने से हमें जीवन में और मृत्यु में महान् सान्त्वना प्राप्त होनी चाहिए।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

रिचर्ड पी. बेल्चर जूनियर
रिचर्ड पी. बेल्चर जूनियर
डॉ. रिचर्ड पी. बेल्चर जूनियर शार्लट्ट, नॉर्थ कैरोलायना में रिफॉर्म़्ड थियोलॉजिकल सेमिनरी में पुराने नियम के प्राध्यापक और शैक्षणिक अध्यक्ष हैं, और प्रेस्बिटेरियन चर्च इन अमेरिका में शिक्षक प्राचीन हैं। वे कई पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें द फुलफिलमेन्ट ऑफ द प्रॉमिसेस ऑफ गॉड: ऐन एक्सप्लेनेशन ऑफ कवनेन्ट थियोलॉजी पुस्तक सम्मिलित है।