चालाक प्रबन्धक का दृष्टान्त - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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चालाक प्रबन्धक का दृष्टान्त

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का चौथा अध्याय है: यीशु के दृष्टान्त

हमारा दृष्टान्त “किसी धनवान मनुष्य” के साथ प्रारम्भ होता है जिसका “प्रबन्धक” या भण्डारी है। (यूनानी ओइकोनोमोस; लूका 16:1) ओइकोनोमोस  प्राचीन जगत में एक भरोसेमन्द सेवक था जो अपने स्वामी की वस्तुओं को उसके ग्राहकों को बांटता था और उन लोगों का खरा रिकॉर्ड रखता था जो उसके स्वामी के देनदार थे। हालाँकि, यह भण्डारी चालाक था। उसके स्वामी को एक आरोप प्राप्त होता है कि भण्डारी “उसकी सम्पत्ति उड़ा रहा” है (पद 1)। बिना झिझक के, स्वामी ने उसको बुलाकर उसका लेखा देने को कहता है। उसे निकाल दिया जाता है। भण्डारी तुरन्त विस्मित होता है कि वह क्या करेगा। वह गड्ढा खोदने के लिए बहुत शक्तिहीन और भीख मांगने के लिए बहुत घमण्डी था (पद 3)। परन्तु फिर, आरम्भ की घबड़ाहट बुद्धि का मार्ग दिखाती है। वह अपने स्वामी के सभी देनदारों के पास पहुँचा है, उनसे पूछता कि उनका कितना ऋण है, और फिर उन्हें उनके बही खातों को पुन: लिखने को कहता है।

उसकी रणनीति सरल है। काम छोड़ने से पहले वह लोगों को छूट देता है ताकि, उसके स्वयं के शब्दों में, “जब मैं अपने भण्डारीपन से निकाला जाऊँ तो लोग अपने घरों में मेरा स्वागत करें”(पद 4)। उसकी योजना उपकार और अतिथि सत्कार के प्राचीन व्यवहारों का लाभ उठाता है। ये ऋणी उसके स्वामी के देनदार हैं। परन्तु यदि वह “छूट” प्रदान करता है, तब वे उसके देनदार होंगे। और जब उन्हें पता लगेगा कि वह नौकरी से बाहर और सड़कों पर है, वे उसकी उदारता के कारण बाध्य होंगे उसकी कृपा को लौटाने के लिए और उसे रहने का स्थान देंगे।

यह अत्यन्त ही बुद्धिमानी की योजना है, पर क्या है निष्कपट है? कुछ टिप्पणीकार ऐसा नहीं सोचते। वे पद 5-7 के कार्यों को उसके स्वामी की इच्छा के विरुद्ध और चालाक मानते हैं, एक कर्मचारी के समान जो अपने अन्तिम दिन में निःशुल्क उपहार देता है। परन्तु यदि यह सत्य है, तो कैसे पद 8 में अपने स्वामी की सराहना प्राप्त करता है? यह इसलिए है क्योंकि उसके कार्य वास्तव में सराहनीय हैं। इससे भी अधिक सम्भव यह है कि, भण्डारी ने अपने स्वामी के देनदारों और स्वयं को लाभ पहुँचाने के लिए अपने भाग को हटाकर बकाया राशि को कम कर दिया हो। अन्य शब्दों में, यह भण्डारी देनदारों द्वारा बकाया राशि को कम करने के लिए चालाक नहीं है (पद 5-7)। वह बुद्धिमान है। उसे जो चालाक बनाता वह यह कि वह “अपने [स्वामी की] सम्पत्ति” उड़ा देता (पद 1)। फिर यीशु भण्डारी की चालाकी के बजाय उसके “बुद्ध” या “चतुराई” पर चर्चा करता है और घोषणा करता है कि “इस युग के पुत्र अपने जैसे लोगों के साथ व्यवहार करने में ज्योति के पुत्रों से अधिक चतुर हैं” (पद 8)।

दृष्टान्त और यीशु के श्रोताओं (प्राचीन और आधुनिक) के मध्य सम्बन्ध पद 9 में आता है: “मैं तुमसे कहता हूँ कि अधर्म के धन से अपने लिए मित्र बना लो कि जब वह समाप्त हो जाए तो वे तुम्हें अनन्त निवासों में ले लें।“  यीशु अपने लोगों को अधर्मी (सांसारिक) धन के माध्यम से भौतिक निवास स्थान सुरक्षित रखने के द्वारा भण्डारी के बुद्धिमान कार्यों का अनुकरण करने के लिए कहता है, परन्तु एक प्रमुख अन्तर के साथ। हमें अपने सांसारिक धन का उपयोग मित्र बनाने के लिए करना है और इस प्रकार से अपने लिए अनन्त निवास को सुरक्षित करना है। परन्तु यह दो कठिन प्रश्नों को उठाता है: (1) हम सांसारिक धन से मित्र कैसे बनाते हैं? (2) वे मित्र कैसे हमारा स्वागत स्वर्ग में करते हैं?

पहले प्रश्न का उत्तर जो 10-13 में दिया गया है। हम “परमेश्वर और धन दोनों की सेवा नहीं कर सकते”(पद 13)। वे दो प्रतियोगी स्वामी हैं। एक की सेवा करने का अर्थ है दूसरे की अवज्ञा करना। एक से प्रेम करने का अर्थ है दूसरे से घृणा करना। सांसारिक धन से मित्र बनना बुलाहट है अपने वित्तों को पूर्णतः परमेश्वर की इच्छा और संसार में उसके सुसमाचारीय उद्देश्यों को समर्पित करने की। इसका अर्थ है जो आवश्यकता में हैं उन्हें आशीष देना अपने स्वामी के धन के “विश्वासयोग्य” भण्डारी होने के द्वारा (पद 10)।  परन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि हम बदले में आशीषित नहीं हैं।

यह हमें दूसरे, अधिक चुनौतिपूर्ण प्रश्न पर लाता है: वे मित्र कैसे हमारा स्वागत स्वर्ग में करते हैं? हमें सर्व प्रथम यह ध्यान देना चाहिए कि क्रिया “स्वागत” (पद 9) का कोई प्रकट कर्ता नहीं है। जिसका अर्थ है कि वे जो हमारा स्वागत स्वर्ग में करते हैं या तो पृथ्वी के “मित्र” हो सकते हैं जैसा कि अभी उल्लेख हुआ या, जैसा कि कुछ ने तर्क दिया है, स्वर्गीय “स्वर्गदूत”, जो स्वयं परमेश्वर कहने के तुल्य है। क्योंकि “मित्र” शब्द स्थल में प्रकट होता है, इन्हें क्रिया “स्वागत” के कर्ता के रूप में देखना अधिक समझ में आता है। परन्तु यह हमें अबाइबलीय धारणा की ओर ले जा सकता है कि आवश्यकता में पड़े हुए लोगों को धन देना किसी प्रकार से स्वर्ग में हमारे प्रवेश के योग्य हो सकता है। उद्धार केवल विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से ख्रीष्ट और उसके कार्य में ही है। फिर भी, हम अपने उद्धार को अपने भले कार्यों द्वारा दिखाते हैं। पद 11 इसे स्पष्ट रूप से रखती है: “यदि तुम अधर्म [सांसारिक] के धन में विश्वासयोग्य न रहे तो सच्चा धन [स्वयं स्वर्ग का] तुम्हे कौन सौंपेगा?” भिन्न रूप से देखें: यदि हम हमारे पृथ्वी के धन के विश्वासयोग्य भण्डारी बनने में असफल हो जाते हैं तो—अर्थात्— यह कहकर,” ‘कुशल से चले जाओ, गरम और तृप्त रहो’, पर उन्हें वह वस्तु न देना जो उनके शरीर के लिए आवश्यक है” (याकूब 2:16)—हम यह नहीं मान सकते कि हमें अनन्त जीवन का स्वर्गीय धन प्राप्त होगा। “विश्वास कार्य बिना मृतक है” (पद 26)। यह सांसारिक धन के युग में बाइबलीय भण्डारीपन के लिए क्रान्तिकारी बुलाहट है। परमेश्वर हमें लोगों की आवश्यकताओं को देखने के लिए अनुग्रह दे और जो परमेश्वर ने ख्रीष्ट में हमारे लिए किया उसके प्रति आभारी हृदयों के साथ उन आवश्यकताओं को पूरा कर सकें।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
डेविड ई. ब्रियोनेस
डेविड ई. ब्रियोनेस
डॉ. डेविड ई. ब्रियोनेस फिलाडेल्फिया में वेस्टमिन्स्टर थियोलॉजिकल सेमिनरी में नए नियम में सहायक प्रध्यापक हैं और ऑर्थोडॉक्स प्रेस्बिटेरियन चर्च में शिक्षक एल्डर हैं। वे पौलुस की आर्थिक कूट-नीति: एक सामाजिक-ईश्वरविज्ञानीय प्रस्ताव (Paul’s Financial Policy: A Socio-Theological Approach)।