धनी मूर्ख का दृष्टान्त - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
राई के दाने और ख़मीर का दृष्टान्त
23 नवम्बर 2021
चालाक प्रबन्धक का दृष्टान्त
2 दिसम्बर 2021
राई के दाने और ख़मीर का दृष्टान्त
23 नवम्बर 2021
चालाक प्रबन्धक का दृष्टान्त
2 दिसम्बर 2021

धनी मूर्ख का दृष्टान्त

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का तीसरा अध्याय है: यीशु के दृष्टान्त

लूका के सुसमाचार के अध्याय 12 के आरम्भ में, हम यीशु को हज़ारों की भीड़ से घिरा पाते हैं जब वह उन्हें फरीसियों के ख़मीर से सावधान करता है (पद 1)। इसके तुरन्त बाद, वह दूसरी चेतावनी के साथ जारी रखता है कि किस से भय रखना है, यह कहते हुए:

हे मेरे मित्रों !, मैं तुम से कहता हूँ, उनसे मत डरो जो शरीर को घात करते हैं पर इसके पश्चात् और कुछ नहीं कर सकते। मैं तुम्हें चेतावनी देकर कहता हूँ कि किस से डरना चाहिए: उसी से डरो जिसको मारने के पश्चात् यह अधिकार है कि नरक में डाले; हां, मैं कहता हूँ कि उसी से डरो!

और फिर भी, प्रत्येक पुरुष और स्त्री के लिए यीशु के पास तीसरी चेतावनी थी: “मैं तुमसे कहता हूँ जो मनुष्यों के सामने मुझे स्वीकार करेगा, मनुष्य का पुत्र भी उसे परमेश्वर के स्वर्गदूतों के सामने स्वीकार करेगा। परन्तु जो मनुष्यों के सामने मुझे अस्वीकार करता है, वह भी परमेश्वर के स्वर्गदूतों के सामने अस्वीकार किया जाएगा” (पद 8-9)।

इस सम्पन्न आत्मिक शिक्षा के ठीक मध्य में, “भीड़ में से किसी ने उससे कहा, ‘हे गुरु, मेरे भाई से कह कि पिता की सम्पत्ति का मेरे साथ बँटवारा करे।’  परन्तु उसने उस से कहा, ‘हे मनुष्य, किसने मुझे तुम्हारा न्यायी या बँटवारा करने वाला नियुक्त किया है?’” (पद 13-14)। गुरु भीड़ और अपने चेलों को स्वर्ग के राज्य में जीवन के कुछ महत्वपूर्ण सिद्धान्तो को सिखाने का प्रयास कर रहा थ। परन्तु यह पुरुष स्पष्टतः मनुष्य के राज्य से सम्बन्धित वस्तुओं में रुचि रखता था। यह वास्तविकता कि इस मनुष्य ने यीशु को गुरु कह कर सम्बोधित किया यह प्रकट करती है कि उस समय यह अपेक्षा की जाती थी कि कुछ विशेष स्तर के अधिकारों वाले शिक्षक इस श्रेणी के विषयों के बारे में उचित निर्णय को प्रस्तुत करने में सक्षम थे।

परन्तु यीशु पृथ्वी के क्षेत्र में फंसने से मना करता है था। पहले ही, मसीह ने अपने अनुयायियों को सिखाया था,  “मेरा राज्य इस संसार का नहीं” (यूहन्ना 18:36)। यह सम्भव है कि विनती करने वाला मनुष्य दोनों में से छोटा हो, चूँकि उन दिनों में बड़े भाई के पास सम्पत्ति का अधिकार होता था या विरासत के साथ कुछ भी करने के लिए अनुमति थी। इसके बाद भी, यीशु का मिशन सम्पूर्ण जगत में सबसे महत्वपूर्ण विषय से सम्बन्धित है: मानवजाति का उद्धार। विनती करने वाला मनुष्य या तो यीशु की शिक्षा पर ध्यान नहीं दे रहा है या उसे समझ नहीं पा रहा है जो उसने अभी सुना है।

गुरु इस याचिका को अनदेखा करता है और एक दृष्टान्त सुनाने का अवसर लेता है इस बात पर बल देने के लिए कि वास्तविक जीवन किस बारे में हैं। आइए हम दृष्टान्त के पुरुष की विशेषताओं को देखें। वह एक आभारी पुरुष नहीं है। उसकी भूमि में प्रचुरता से उपज हुई, और ऐसा प्रतीत होता है कि यह परमेश्वर के सामान्य अनुग्रह के कारण स्वाभाविक रूप से घटित हुआ। वास्तव में, उस पहले वाक्य में, भूमि विषय है न कि पुरुष। परन्तु इस बात का कोई प्रमाण नहीं कि मनुष्य सृष्टिकर्ता का आभार प्रकट करता है जिसने भूमि में पोषक तत्व, वर्षा, और सूर्य उपलब्ध किया जो भूमि को वैसे उत्पादन करने देती है जैसा कि वह करती है।

इसके साथ ही, मनुष्य बहुत ही स्व-केन्द्रित है। वह स्वयं को व्यक्तिगत सर्वनाम “मैं” और “मेरा” का उपयोग करते हुए दस बार से भी अधिक स्वयं को सन्दर्भित करता है। उसके अहंकार केंद्रित जीवनशैली को “मेरा सारा आनाज और सारी सम्पत्ति” रखने के विचार में भी देखा जा सकता है। वह किसी के साथ साझा नहीं करता या औरों को नहीं बेचता जिन्हें इसकी आवश्यकता है।

यह मनुष्य अनभिज्ञ भी है; वह सोचता है कि वह अपने जीवन पर राज्य करता है। वह स्वयं से कहता है कि उसने बहुत वर्षों तक जीवन यापन के लिए पर्याप्त संचय कर लिया है, फिर भी उसके पास इस बात की कोई गारन्टी नहीं है कि ऐसा होगा। उसका विश्वावलोकन उसके आत्मकामिकता को प्रतिबिम्बित करता है। वह कहता है, “हे मेरे प्राण, तेरे पास बहुत वर्षों के लिए बहुत-सी सम्पत्ति रखी है। चैन कर, खा-पी और आनन्द मना”(पद 19)। वह केवल स्वयं को सुखों में लिप्त करने के बारे में सोच सकता है जबकि अन्य भूख से मर रहे हैं।   

इसके अतिरिक्त, यह मनुष्य एक मूर्ख के समान जी रहा है, किसी ऐसे व्यक्ति के समान जो परमेश्वर पर विश्वास नहीं करता या किसी ऐसे व्यक्ति के समान जो ऐसे रहता हो जैसे कि परमेश्वर का अस्तित्व ही नहीं है। “मूर्ख ने अपने मन में कहा है, ‘परमेश्वर है ही नहीं’” (भजन 14:1)। वह परमेश्वर की सम्प्रभुता से अनजान है। “परन्तु परमेश्वर ने उस से कहा, ‘हे मूर्ख! आज ही रात तेरा प्राण तुझ से ले लिया जाएगा; तब जो कुछ तू ने इकट्ठा किया है वह किसका होगा?’  ऐसा ही है वह मनुष्य भी जो अपने लिए धन तो संचित करता है परन्तु परमेश्वर की दृष्टि में धनी नहीं” (लूका 12:20-21)।

यह दृष्टान्त छोटा और सरल है, परन्तु साथ ही यह सम्पन्न और गहन है। पतन के बाद, आदम के वंशजो ने एक स्व-केन्द्रित, सांसारिक, और “यहाँ और अभी” का विश्वावलोकन को उपार्जित कर लिया था। यीशु खोए हुओं को बचाने और परमेश्वर-केन्द्रित, परमेश्वर-महिमान्वित,और आनन्द-युक्त जीवन को पुनःस्थापित करने के लिए आया था। इसे गले लगाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
मिगेल नुन्येज़
मिगेल नुन्येज़
डॉ. मिगेल नुन्येज़ सैन्टो जोमिन्गो, डोमिनिकन रिपब्लिक में इग्लेसिया बाउटीस्टा इन्टरनासियोनाल के वरिष्ठ पास्टर और विज़डम ऐन्ड इन्टेग्रिटी मिनिस्ट्रीज़ के अध्यक्ष और संस्थापक हैं। वे कई पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें एक देश के परिवर्तन में वचन का सामर्थ्य (The Power of the Word in the Transformation of a Nation) और परमेश्वर के मन के अनुसार की कलीसिया (A Church according to the Heart of God)।