अनुग्रह के साधन क्या हैं?
18 मई 2021अनुग्रह के साधन के रूप में प्रार्थना
21 मई 2021अनुग्रह के साधन के रूप में परमेश्वर का वचन
सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का दूसरा अध्याय है: अनुग्रह के साधारण साधन
हम कभी-कभी प्रतिभाशाली खिलाड़ियों, कलाकारों, या लेखकों के विषय में सुनते हैं जिनके योग्यताओं को बहुत कम महत्व दिया जाता है। उनके पास योग्यताओं के होते हुए भी, उनके कार्यों की उपेक्षा की गई है, और उन्हें उनका देय नहीं दिया गया है। कम प्रतिभाशाली लोगों की लोकप्रियता और सफलता हमें चकित करती है, और हम सोचते हैं कि हमारी संस्कृति उथलेपन और छूछे प्रसिद्ध व्यक्तियों से इतना ग्रसित क्यों है। परन्तु, हमें इस पर विचार करना चाहिए कि इस संसार में एक से भी अनुचित नमूना सामने आया है: परमेश्वर के वचन को बहुत कम महत्व दिया गया है। ख्रीष्टियों के रूप में, हमें परमेश्वर के उस वचन को महत्व देने में दृढ़ रहना चाहिए, जिसका उपयोग वह अपनी कलीसिया की सृष्टि आत्मिक उन्नति के प्राथमिक साधन के रूप में उपयोग करता है।
हमें स्मरण दिलाए जाने की आवश्यकता है कि परमेश्वर का वचन सामर्थी है। परमेश्वर का वचन ही कार्यकारी था सम्पूर्ण सृष्टि को अस्तित्व में लाने में (भजन 33:6; यूहन्ना 1:3)। इस क्षण में, परमेश्वर के सामर्थ्य का वचन ही सब वस्तुओं को सम्भालता है (इब्रानियों 1:3)। जबकि सर्वश्रेष्ठ मनुष्य में और उनके सबसे उत्तम कार्य इस पृथ्वी से छीण और समाप्त हो जाते हैं, हमारे परमेश्वर का वचन सदा बना रहता है (यशायाह 40:8)। जबकि हम हृदय और मनों में प्रभाव डालने के लिए संघर्ष करते हैं, “परमेश्वर का वचन जीवित, प्रबल और किसी भी दोधारी तलवार से तेज़ है। वह प्राण और आत्मा, जोड़ों और गूदे, दोनों को आरपार बेधता और मन के विचारों तथा भावनाओं को परखता है” (इब्रानियों 4:12)। विश्वासियों को बदलने में परमेश्वर का वचन सहायक है, क्योंकि हमने “नाशमान नहीं वरन् अविनाशी बीज से, अर्थात परमेश्वर के जीवित तथा अटल वचन द्वारा, नया जन्म प्राप्त किया है” (1 पतरस 1:23)।
हमें यह भी स्मरण करना चाहिए कि जीवित वचन में बढ़ने और फैलने की बहुत क्षमता है। प्रेरितों के काम की पुस्तक में हम परमेश्वर के वचन के बढ़ोत्तरी का एक आकर्षक वर्णन पढ़ते हैं। प्रेरितों का ध्यान प्रार्थना और वचन की सेवकाई में लगा हुआ था; वे समझ गए कि यह उनके सेवकाई का मुख्य केन्द्र था (प्रेरितों 6:1-4)। इसके परिणामस्वरूप, प्रेरितों के काम की पुस्तक में कलीसिया के बढ़ोत्तरी के दृश्य अत्यन्त महिमामयी हैं, जिन में हज़ारों लोग कलीसिया में सम्मिलित हो गए। परन्तु यह तर्क किया जा सकता है कि पूरे प्रेरितों के काम में इससे अधिक बल दिया गया है स्वयं परमेश्वर के वचन के विस्तार, बढ़ोत्तरी, द्विगुणित होने, और प्रबल होने पर (प्रेरितों की पुस्तक 6:7; 12:24; 13;49; 19:20)। यदि आप एक कदम पीछे जाते हैं और प्रेरितों के काम की पुस्तक का सर्वेक्षण करते हैं, तो जितना यह कलीसिया की वृद्धि का वर्णन है कि उतना ही अधिक वचन के बढ़ोत्तरी का वर्णन है। कलीसिया के बढ़ने पर सबसे पहले वचन के प्रभावों पर ध्यान केन्द्रित करने के बजाय, हमें वचन की वास्तविक उपस्थिति और बढ़ोत्तरी के लिए स्वस्थ मूल्यांकन की आवश्यकता है।
जैसा कि हम समीक्षा करते हैं कि पवित्रशास्त्र इन सच्चाइयों की कैसे पुष्टि करता है, हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि परमेश्वर के वचन को कलीसिया के जीवन में प्राथमिक स्थान में होना चाहिए। इसकी कभी उपेक्षा नहीं होनी चाहिए। वेस्टमिन्स्टर लघु प्रश्नोत्तरी (Westminster Shorter Catechism) 89 सिखाता है:
परमेश्वर का आत्मा परमेश्वर के वचन के पढ़ने जाने, परन्तु विशेष रूप से प्रचार को, पापियों को विश्वास दिलाने और परिवर्तित करने, और उन्हें उद्धार की ओर, विश्वास के द्वारा, पवित्रता और आश्वासन में बढ़ाने में एक प्रभावशाली साधन बनाता है।
जब लघु प्रश्नोत्तरी परमेश्वर के वचन को पढ़ने और उसका प्रचार करने के विषय में एक “साधन” के रूप में बात करता है, तो यह वचन के विषय में एक उपकरण या एक यंत्र के रूप में बात करता है। यह, एक अर्थ में, कुछ इस प्रकार है, जैसे हम छात्रों के मन को बदलने के साधन के रूप में निश्चित पाठ्यक्रम का उपयोग कैसे करते हैं या लकड़ी के टुकड़े को आकार देने के लिए एक निश्चित प्रक्रिया का उपयोग कैसे करते हैं। सच्चाई यह है कि जब बाइबल मानव प्रकाशक द्वारा छापी जाती है और मानव प्रचारकों द्वारा इसका प्रचार किया जाता है, तब प्रभु ही है जो हमारे भीतर कार्य करने के लिए वचन को एक उपकरण के रूप में उपयोग कर रहा है। प्रेरित पौलुस ने थिस्सलुनीकियों को यह सिखाया कि “जब हमारे द्वारा तुम्हें परमेश्वर के वचन का सन्देश मिला, तो तुमने उसे मनुष्यों का नहीं, परन्तु परमेश्वर का वचन समझ कर ग्रहण किया – सचमुच वह है भी—जो तुम विश्वासियों में अपना कार्य भी करता है” (1 थिस्सलुनीकियों 2:13)।
जब परमेश्वर के वचन का उपयोग करने की बात आती है, तो कलीसिया की प्राथमिक उत्तरदायित्व यह सुनिश्चित करने की रही है कि वचन का प्रचार सावधानीपूर्वक, पर्याप्त रूप से, और सच्चाई से किया जाए और यह विश्वास किया जाए कि प्रभु उसका उपयोग करेगा। परमेश्वर का पुत्र स्वयं सुसमाचार के प्रचारक के रूप में आया (लूका 4:18)। उसके प्रेरित प्राथमिक रूप से वचन का प्रचार करने के लिए भेजे गए। तीमुथियुस और तीतुस जैसे पुरुषों को प्रायः अधिकार के साथ उपदेश देने और सिखाने के लिए निर्देश दिया गया (1 तीमुथियुस 4:13-14, तीतुस 2:13)। हम ऐसे प्रचारकों के बिना खोए हुए होते जिन्हें शुभ सन्देश लाने के लिए भेजा गया था, क्योंकि “विश्वास सुनने से, और सुनना ख्रीष्ट के वचन के द्वारा होता है” (रोमियों 10:14-17)। तीतुस 1:3 में, पौलुस सिखाता है कि परमेश्वर ने “अपने ही वचन को उस प्रचार के द्वारा प्रकट किया है।” इसका अर्थ है कि परमेश्वर प्रचार के द्वारा “प्रकट” करता है या अपने “भेद” खोलता है। प्राकृतिक मनुष्य के लिए जो रहस्यमय था वह प्रकट किया जाता है।
जब हम इन विचारों को एक साथ रखते हैं, हमें यह स्वीकार ही है कि बिना प्रचार के,
पाप की वास्तविकता को समझ पाना या ख्रीष्ट पर विश्वास करना या पवित्रशास्त्र की चौड़ाई या गहराई को समझना, साधारण बात नहीं है। जिस प्रकार परिश्रमी माता-पिता मुख्य रूप से अपने शब्दों के द्वारा बच्चे के चरित्र का आकार देते हैं और उसे ढालते हैं, वैसी ही प्रभु साधारणतः अपने वचन के प्रचार के द्वारा अपने बच्चों को एकत्रित करता है और उन्हें आकार देता है।
विश्वासयोग्य प्रचार के अधीन होने की एक बड़ी आशीष है कि यह प्रायः हम पर अप्रत्याशित सत्य, सुधार, और प्रोत्साहन को प्रकट करता है। स्वयं और अपने विचारों पर छोड़ दिए जाने पर, हम अपनी इच्छाओं के अनुसार जीवन जीने और सीखने लगते हैं। कुछ बातों में, इसके परिणामस्वरूप पवित्रशास्त्र के कुछ भागों को शोषित किया जाता है। नियमित अर्थ प्रकाशात्मक प्रचार के अधीन होना, जो समय के साथ पवित्रशास्त्र को चौड़ाई को समाविष्ट करता है और हमें पुराने और नये विचार देता है, विश्वासियों को एक स्वस्थ आत्मिक आहार देगा। ऐसा प्रचारक का होना जो अपनी मण्डली की आवश्यकताओं और चिन्ताओं को जानता है ऐसा मार्गदर्शन का कारण होगा जो सम्भवतः चुनौतीपूर्ण हो सकता है किन्तु अन्ततः हमारे जी में जी ले आएगा और “धार्मिकता के मार्गों में” हमारी अगुवाई करेगा (भजन 23)। नया नियम हमें पन्द्रह बार बताता है, “जिसके पास सुनने के लिए कान हों, वह सुन ले।”
पवित्रशास्त्र हमें परमेश्वर के वचन को व्यक्तिगत रीति से उपयोग किए जाने के आशीष को भी अनुग्रह के साधन के रूप में दिखाता है। उपदेश की आवश्यकता का अर्थ यह नहीं है कि विश्वासियों को व्यक्तिगत रीति से वचन का अध्ययन करने से लाभ नहीं होता है। भजनकार प्रार्थना करने और वचन पढ़ने के लिए भोर को उठता था (भजन 119:147 – 148)। “सज्जन” बिरीया निवासियों ने प्रतिदिन पवित्रशास्त्रों में से खोज-बीन की (प्रेरितों के काम 17:11)। पवित्रशास्त्र को सावधानी और परिश्रम से पढ़ना आपको उपदेश को परख के साथ सुनने के लिए सक्षम करेगा। व्यक्तिगत रीति से पवित्रशास्त्र पढ़ने का एक नियमित और सुसंगत आहार आपको कुशल बनाएगा और “प्रत्येक भले कार्य के लिए” तत्पर करेगा (2 तीमुथियुस 3:17)। यह निरन्तर आपको सुधारेगा और ताड़ना देगा (पद 16), जो कठिन हो सकता है परन्तु आवश्यक है। यह प्रायः आपको ख्रीष्ट की आवश्यकता की ओर इंगित करेगा, आपको “उद्धार पाने के लिए बुद्धि” देगा, और आपको शिक्षा और ख्रीष्टिय जीवन जीने के लिए नींव देगा (पद 15-16)।
जब आप बाइबल पढ़ते हैं या विश्वसनीय उपदेशों को सुनते हैं, तो केवल विचारों के संचार से बढ़कर कुछ और हो रहा होता है। वचन स्याही और लेखापत्र से कहीं अधिक बढ़कर है, और उपदेश देना भाषण से बढ़कर है। वचन जीवित है, जब प्रभु इसके द्वारा अपने पवित्र आत्मा द्वारा प्रभावशाली रूप से कार्य रहा है। पवित्रशास्त्र में इसके कई चित्रण हैं: प्रभु अपने वचन के द्वारा अविनाशी बीज बो रहा है (1 पतरस 1:23), पश्चात्ताप और विश्वास उत्पन्न कर रहा है (रोमियों 10), हमारे प्राणों को जीवन की रोटी खिला रहा है (मत्ती 4:4; यूहन्ना 6:35), हमारे हृदयों में जीवन के जल का स्रोत बना रहा है (यूहन्ना 7:38), और अपनी कलीसिया को शुद्ध कर रहा है (इफिसियों 5:26)। हम में वचन का बना रहने का अर्थ है ख्रीष्ट के साथ एक होना और उसकी इच्छा के अनुरूप होना है ताकि हम यह इच्छा करना सीखें कि भक्तिपूर्ण या पवित्र होना क्या है (15:7)। इसका अर्थ यह है कि यह वचन हमारे लिए परमेश्वर का अतुलनीय रूप से बहुमूल्य और सामर्थी दान है जब वह इस के द्वारा कार्य करता है। वचन में हम ख्रीष्ट से भेंट करते हैं, और ख्रीष्ट से भेंट करते हुए उसके साथ संगति करते हैं।
अन्त में, ख्रीष्टीय के लिए इस तथ्य में एक महान आश्वासन है कि परमेश्वर का वचन बदलता नहीं है। हम एक ऐसे संसार में रहते हैं जहाँ परिवर्तन को स्वयं में एक अच्छाई के रूप में देखा जाता है, जिन में कईं अज्ञानी नैतिक, नीतियां और जीवन शैली के परिवर्तन सम्मिलित हैं। प्रचलन आते-जाते रहते हैं। परन्तु हम कृतज्ञ हो सकते हैं कि, पुस्तक के लोग होने के रूप कारण, हम उसी वचन का अंगीकार करते हैं जिसे सब युगों की कलीसिया अंगीकार करती है। परमेश्वर का वचन अनुग्रह के साधन के रूप न अपना महत्व और न ही अपना सामर्थ्य खोया है। यह पृथ्वी के विभिन्न क्षेत्रों में निरन्तर उन्नत करता और फैलता जाता है। “घास तो सूख जाती है और फूल मुर्झा जाता है, परन्तु हमारे परमेश्वर का वचन सदा अटल रहेगा” (यशायाह 40:8)।