केवल विश्वास द्वारा ही धर्मी ठहराए गए

केवल विश्वास द्वारा ही धर्मीकरण का सिद्धान्त धर्मसुधारवाद के ईश्वरविज्ञान का केंद्र है, और आज सभी विश्वासियों के लिए अति आवश्यक है। इस सिद्धान्त पर निरन्तर प्रहार होते रहते हैं, परन्तु फिर भी, इसके बिना सुसमाचार है, ही नहीं। व्याख्यानों की इस श्रृंखला में, डॉ. स्प्रोल ने धर्मीकरण के इस सिद्धान्त की ऐतिहासिक और ईश्वरविज्ञान के दृष्टिकोण से व्याख्या की है। उन्होंने बहुत ध्यान से “केवल विश्वास के द्वारा धर्मीकरण” वाक्याँश के प्रत्येक शब्द को परिभाषित किया है। साथ ही उन्होंने केवल यीशु ख्रीष्ट में मिलने वाली उस सिद्ध धार्मिकता के लागू किए जाने की ओर भी संकेत किया है।


आज के लिए सिद्धान्त

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केवल विश्वास ही के द्वारा धर्मीकरण का सिद्धान्त हमारे द्वारा सुसमाचार को समझने के लिए अत्यावश्यक है। परिचय के इस प्रारम्भिक पाठ में, डॉ. स्प्रोल यह तर्क देते हैं कि अभी तक, केवल विश्वास ही के द्वारा धर्मीकरण का सिद्धान्त ही अनन्त परिणामों का सिद्धान्त रहा है।

मार्टिन लूथर

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सुधार लाने में मार्टिन लूथर की भूमिका का आँकलन किसी भी रीति से कम बिलकुल भी नहीं समझा जा सकता है। इस पाठ में, डॉ. स्प्रोल यह समझाते हैं कि किस प्रकार से मार्टिन लूथर का जीवन धर्मसुधारवाद के ऐतिहासिक ढाँचे के लिए, और केवल विश्वास द्वारा धर्मीकरण के सिद्धान्त का धर्मसुधारवाद का केंद्र होने के लिए, अत्यावश्यक है।

पंचानवे सूत्र

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मसीही विश्वासी पर ख्रीष्ट की धार्मिकता लागू किए जाने की मार्टिन लूथर की खोज ने सब कुछ को परिवर्तित कर दिया। इस पाठ में, डॉ. स्प्रोल यह समझाते हैं कि किस प्रकार से यह खोज धर्मसुधारवाद की अग्रदूत थी।

रोमन कैथोलिक दृष्टिकोण

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धर्मीकरण के धर्मसुधारवाद के दृष्टिकोण को समझने का सबसे अच्छा ढंग रोमन ढंग उसकी तुलना धर्मीकरण के कैथोलिक सिद्धान्त के साथ करना है। इस पाठ में, डॉ. स्प्रोल ट्रेंट की महासभा में परिभाषित किए गए, धर्मीकरण के रोमन कैथोलिक सिद्धान्त की समीक्षा करते हैं।

अपने शब्दों को परिभाषित करना

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धर्मीकरण के प्रोटेस्टेंट दृष्टिकोण को समझने और समझाने के लिए सम्बन्धित शब्दों को समझना अत्यावश्यक है। इस पाठ में, डॉ. स्प्रोल रोमन कैथोलिक दृष्टिकोण के अध्ययन का समापन करते हैं और वाक्याँश केवल विश्वास के द्वारा धर्मीकरण के शब्दों को परिभाषित करना आरम्भ करते हैं।

केवल विश्वास द्वारा

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उद्धार देने वाले विश्वास के मुख्य भाग क्या हैं, और उसे कहाँ रखा जाना चाहिए? इस पाठ में, डॉ. स्प्रोल वाक्याँश केवल विश्वास के द्वारा धर्मीकरण के शब्दों को, परिभाषित करते रहते हैं। वे यह, केवल ख्रीष्ट में विश्वास होने के द्वारा ही बचाए जाने वाले विश्वास को और गहराई से देखने के द्वारा करते हैं।

रोमियों को लिखी पौलुस की पत्री

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पौलुस ने रोमियों को लिखी पत्री में विश्वास के द्वारा धर्मीकरण के सिद्धान्त की सबसे व्यापक व्याख्या की है। इस पाठ में, डॉ. स्प्रोल हमें रोमियों के सबसे महत्वपूर्ण खण्डों से ले कर जाते हैं और धर्मी ठहराए जाने के सिद्धान्तों से सम्बन्धित ईश्वरविज्ञान की धारणाओं की और विस्तृत व्याख्या प्रदान करते हैं।

धर्मीकरण के परिणाम

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विश्वास द्वारा धर्मीकरण से हमें पवित्र परमेश्वर के साथ शान्ति, उस तक पहुँच, और उसमें आशा मिलती है। इस पाठ में, डॉ. स्प्रोल, विश्वासी के जीवन में धर्मीकरण के परिणामों का परिचय देते हुए, पौलुस की पत्री में धर्मीकरण के अपने अध्ययन निरन्तर करते रहते हैं।

पौलुस बनाम याकूब?

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रोमियों को लिखी पौलुस की पत्री का याकूब की पत्री के साथ सामंजस्य बैठाना असम्भव नहीं है। इस पाठ में, डॉ. स्प्रोल समझाते हैं कि धर्मीकरण के सिद्धान्त से सम्बन्धित पवित्रशास्त्र के दो विरोधाभासी प्रतीत होने वाले भागों को हमें किस प्रकार से समझना चाहिए।

प्रश्न और उत्तर

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अब हम धर्मीकरण के सिद्धान्त को ऐतिहासिक, ईश्वरविज्ञान, और पवित्रशास्त्र के दृष्टिकोण से देख चुके हैं। इस अन्तिम पाठ में, डॉ. स्प्रोल हमारे अध्ययन का समापन, उन प्रश्नों के उत्तर देने के द्वारा करते हैं, जो इस तथ्य को रेखांकित करते हैं कि धर्मीकरण वास्तव में केवल विश्वास ही के द्वारा है।