केवल विश्वास द्वारा ही धर्मी ठहराए गए
केवल विश्वास द्वारा ही धर्मीकरण का सिद्धान्त धर्मसुधारवाद के ईश्वरविज्ञान का केंद्र है, और आज सभी विश्वासियों के लिए अति आवश्यक है। इस सिद्धान्त पर निरन्तर प्रहार होते रहते हैं, परन्तु फिर भी, इसके बिना सुसमाचार है, ही नहीं। व्याख्यानों की इस श्रृंखला में, डॉ. स्प्रोल ने धर्मीकरण के इस सिद्धान्त की ऐतिहासिक और ईश्वरविज्ञान के दृष्टिकोण से व्याख्या की है। उन्होंने बहुत ध्यान से “केवल विश्वास के द्वारा धर्मीकरण” वाक्याँश के प्रत्येक शब्द को परिभाषित किया है। साथ ही उन्होंने केवल यीशु ख्रीष्ट में मिलने वाली उस सिद्ध धार्मिकता के लागू किए जाने की ओर भी संकेत किया है।
मार्टिन लूथर
सुधार लाने में मार्टिन लूथर की भूमिका का आँकलन किसी भी रीति से कम बिलकुल भी नहीं समझा जा सकता है। इस पाठ में, डॉ. स्प्रोल यह समझाते हैं कि किस प्रकार से मार्टिन लूथर का जीवन धर्मसुधारवाद के ऐतिहासिक ढाँचे के लिए, और केवल विश्वास द्वारा धर्मीकरण के सिद्धान्त का धर्मसुधारवाद का केंद्र होने के लिए, अत्यावश्यक है।
केवल विश्वास द्वारा
उद्धार देने वाले विश्वास के मुख्य भाग क्या हैं, और उसे कहाँ रखा जाना चाहिए? इस पाठ में, डॉ. स्प्रोल वाक्याँश केवल विश्वास के द्वारा धर्मीकरण के शब्दों को, परिभाषित करते रहते हैं। वे यह, केवल ख्रीष्ट में विश्वास होने के द्वारा ही बचाए जाने वाले विश्वास को और गहराई से देखने के द्वारा करते हैं।
रोमियों को लिखी पौलुस की पत्री
पौलुस ने रोमियों को लिखी पत्री में विश्वास के द्वारा धर्मीकरण के सिद्धान्त की सबसे व्यापक व्याख्या की है। इस पाठ में, डॉ. स्प्रोल हमें रोमियों के सबसे महत्वपूर्ण खण्डों से ले कर जाते हैं और धर्मी ठहराए जाने के सिद्धान्तों से सम्बन्धित ईश्वरविज्ञान की धारणाओं की और विस्तृत व्याख्या प्रदान करते हैं।
प्रश्न और उत्तर
अब हम धर्मीकरण के सिद्धान्त को ऐतिहासिक, ईश्वरविज्ञान, और पवित्रशास्त्र के दृष्टिकोण से देख चुके हैं। इस अन्तिम पाठ में, डॉ. स्प्रोल हमारे अध्ययन का समापन, उन प्रश्नों के उत्तर देने के द्वारा करते हैं, जो इस तथ्य को रेखांकित करते हैं कि धर्मीकरण वास्तव में केवल विश्वास ही के द्वारा है।