धर्मसुधारवादी होने के लिए साहस - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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धर्मसुधारवादी होने के लिए साहस

जब हम धर्मसुधारवादी ईश्वरविज्ञान (Reformed Theology) को समझने लगते हैं, तो न केवल हमारे उद्धार की समझ में परिवर्तन होता है, परन्तु प्रत्येक बात की समझ में। इसी कारण से जब लोग धर्मसुधारवादी ईश्वरविज्ञान के प्रारम्भिक सिद्धान्तों से संघर्ष करते हैं और जब वे उसे समझने लगते हैं, तो वे प्राय: अनुभव करते हैं कि उनका दोबारा हृदय परिवर्तित हो रहा है। वास्तव में, जैसा कि कई लोगों ने मुझसे स्वीकार किया है, वास्तविकता यह है कि कुछ लोग पहली बार ही परिवर्तित हुए हैं। ऐसा उनके धर्मसुधारवादी ईश्वरविज्ञान के अवलोकन के द्वारा हुआ जब उनका आमना-सामना अपनी सम्पूर्ण भ्रष्टता और पाप में मृतक स्थिति, परमेश्वर द्वारा अपने लोगों का अप्रतिबंधित चुनाव और अन्य लोगों के दोषी ठहराये जाने, मसीह के द्वारा अपने लोगों के लिए वास्तविक छुटकारा कमाया (हासिल किया) जाना, पवित्र आत्मा का प्रभावशाली अनुग्रह, उनके अन्त तक बने रहने का कारण, अन्त तक बनाए रखने वाला परमेश्वर का अनुग्रह, एवं सम्पूर्ण इतिहास में अपनी महिमा के लिए परमेश्वर का वाचाओं के आधार पर कार्य करने के साथ हुआ। जब लोग समझते हैं कि अन्ततः उन्होंने परमेश्वर को नहीं चुना, परन्तु परमेश्वर ने उन्हें चुना है, तो वे स्वाभाविक रूप से उनके प्रति परमेश्वर के अद्भुत अनुग्रह के कार्य को नम्रता पूर्वक ग्रहण करने की स्थिति पर पहुँच जाते हैं। तब ही, जब हम पहचानते हैं कि हम वास्तविक रीति से कितने घिनौने हैं, “कितना अद्धभुत अनुग्रह” (Amazing Grace) गीत को गा सकते हैं। और धर्मसुधारवादी ईश्वरविज्ञान ठीक यही करता है: यह हमें अन्दर से लेकर बाहर तक परिवर्तित करता है और हमें गीत गाने के लिए अगुवाई करता है—यह हमें जीवन भर सार्वभौमिक और त्रिएक, अनुग्रहकारी, तथा प्रेमी परमेश्वर की आराधना करने के लिए अगुवाई करता है, केवल रविवार के दिन ही नहीं परन्तु प्रत्येक दिन और जीवन भर। धर्मसुधारवादी ईश्वरविज्ञान केवल एक चिह्न नहीं है जिसे हम तब पहनते है जब धर्मसुधारवादी होना लोकप्रिय और बढ़िया होता है, यह एक ईश्वरविज्ञान है जिसे हम जीते हैं और सांस लेते हैं, अंगीकार करते हैं, और जब इस पर आक्रमण होता है तो इसका बचाव भी करते हैं।

सोलहवीं शताब्दी में प्रोटेस्टेन्ट धर्मसुधारकों ने, और साथ में उनके पंद्रहवीं शताब्दी के पूर्वजों तथा सत्रहवीं शताब्दी के उनके वंशजों ने, इसलिए अपने सिद्धान्तों को नहीं सिखाया और बचाव नहीं किया क्योंकि वे बहुत प्रसिद्ध या लोकप्रिय थे, परन्तु इसलिए क्योंकि यह बाइबलीय था, और उन्होंने अपने जीवन को उसके लिए दांव पर लगा दिया। वे न केवल पवित्रशास्त्र के ईश्वरविज्ञान के लिए मरने को तैयार थे, वे इसके लिए जीने के लिए, इसके लिए दुख उठाने के लिए तथा इसके लिए मूर्ख माने जाने के लिए भी तैयार थे। इस बात में भ्रमित न हों: धर्मसुधारक निडर और साहसी थे अपने आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता के कारण नहीं किन्तु इस तथ्य के कारण कि वे सुसमाचार के द्वारा दीन किए गए थे। वे साहसी थे क्योंकि पवित्र आत्मा उनमें था और वे तैयार थे कि झूठ के एक अँधेरे युग में सत्य के प्रकाश की घोषणा करने के लिए। जिस सत्य का उन्होंने प्रचार किया वह नया नहीं था; वह प्राचीन था। यह सिद्धान्त शहीदों, पिताओं, प्रेरितों और प्राचीन पिताओं का था—यह पवित्रशास्त्र में वर्णन परमेश्वर के सिद्धान्त थे।

धर्मसुधारकों ने अपना ईश्वरविज्ञान नहीं बनाया; वरन् उनके ईश्वरविज्ञान ने उन्हें वह बनाया जो वे थे। पवित्रशास्त्र के ईश्वरविज्ञान ने उन्हें धर्मसुधारक बनाया था। क्योंकि वे धर्मसुधारक बनने के लिए नहीं निकले थे, वे परमेश्वर तथा परमेश्वर के वचन के प्रति विश्वासयोग्य बनने के लिए निकले। न तो धर्मसुधार के पाँच सोला (solas) और न तो अनुग्रह के सिद्धान्त (केल्विन के पाँच बिन्दु) धर्मसुधारकों के द्वारा खोज किए गए, न ही वे धर्मसुधार के ईश्वरविज्ञान का पूर्ण सार हैं। किन्तु वे आधारभूत सिद्धान्त बन गए जिन्होंने आने वाली कलीसिया की सहायता करने की सेवा की कि वह क्या विश्वास करती है।  आज भी कई ऐसे हैं जो सोचते हैं कि वे धर्मसुधारवादी ईश्वरविज्ञान को अपनाते हैं, किन्तु उनका धर्मसुधारवादी ईश्वरविज्ञान केवल धर्मसुधार के पाँच सोला तथा अनुग्रह के सिद्धान्त की गहराई तक ही जाता है। इससे बढ़कर, कई ऐसे हैं जो कहते हैं कि वे धर्मसुधारवादी ईश्वरविज्ञान का अनुसरण करते हैं किन्तु कोई भी नहीं जानता कि वे धर्मसुधारवादी हैं। इस प्रकार के “गुप्त कैल्विनवादी” न तो सोलहवीं या सत्रहवीं शताब्दी के किसी भी ऐतिहासिक धर्मसुधारवादी अंगीकार को स्वीकार किया और न ही धर्मसुधारवादी ईश्वरविज्ञानीय भाषा को स्पष्ट रूप से प्रयोग में लाते हैं।

हालाँकि, यदि हम वास्तव में ऐतिहासिक धर्मसुधारवादी अंगीकार के अनुसार धर्मसुधारवादी ईश्वरविज्ञान पालन करते हैं, तो हम अवश्य ही धर्मसुधारवादी के रूप में पहचाने जाएंगे। वास्तव में, “गुप्त केल्विनवादी” बने रहना असम्भव है, और बिना किसी को पता लगाए धर्मसुधारवादी बने रहना असम्भव है—यह अनिवार्य रूप से एक न एक दिन सामने आएगा। ऐतिहासिक रूप से धर्मसुधारवादी होने के लिए व्यक्ति को किसी धर्मसुधारवादी अंगीकार का पालन अवश्य करना चाहिए, और न केवल पालन करना परन्तु अंगीकार, उद्घोषणा और उसका बचाव भी करना चाहिए। धर्मसुधारवादी ईश्वरविज्ञान मूल रूप से अंगीकार करने वाला ईश्वरविज्ञान है।

धर्मसुधारवादी ईश्वरविज्ञान एक व्यापक भी है। यह न केवल उसको बदलता है जो हम जानते हैं, परन्तु इस बात को बदलता है कि कैसे जानते हैं जो हम जानते हैं। यह न केवल परमेश्वर के बारे में हमारी समझ को बदलता है, परन्तु साथ ही साथ यह हमारे स्वयं के बारे में हमारी समझ को बदलता है। निश्चित ही, यह न केवल हमारे उद्धार के दृष्टिकोण को बदलता है, यह बदलता है कि हम कैसे आराधना करते हैं, हम कैसे सुसमाचार प्रचार करते हैं, हम कैसे अपने बच्चों का पालन-पोषण करते हैं, हम कैसे कलीसिया के साथ व्यवहार करते हैं, कैसे हम प्रार्थना करते हैं, कैसे हम पवित्रशास्त्र का अध्ययन करते हैं— यह बदलता है कि हम कैसे जीते हैं, चलते फिरते हैं तथा कैसे अस्तित्व रखते हैं। धर्मसुधारवादी ईश्वरविज्ञान एक ऐसा ईश्वरविज्ञान नहीं है जिसे हम छिपा सकते हैं, और यह एक ऐसा ईश्वरविज्ञान नहीं है जिसे हम केवल मुंह से बोलते हैं। क्योंकि यह सम्पूर्ण इतिहास में विधर्मियों तथा ईश्वरविज्ञानीय प्रगतिवादियों की आदत रही है। वे अपने धर्मसुधारवादी अंगीकार का पालन करने का दावा करते हैं, लेकिन वे वास्तव में कभी अंगीकार नहीं करते हैं। वे केवल तभी धर्मसुधारवादी होने का दावा करते हैं जब वे रक्षात्मक स्थिति में होते हैं—जब उनके प्रगतिवादी (यद्यपि लोकप्रिय) ईश्वरविज्ञान पर प्रश्न उठाया जाता है, और, यदि वे पास्टर हैं, तो केवल तभी जब उनकी नौकरियाँ खतरे में होती हैं। जबकि ईश्वरविज्ञानीय उदारवादी लोग सम्भवतः ऐसी कलीसियाओं और मतों (denominations) में हो सकते हैं और ऐसे वर्ग जो “धर्मसुधारवादी” के रूप में पहचाने जाते हैं, वे इस प्रकार से पहचाने जाने से लज्जित होते हैं और यह विश्वास पर पहुँचे हैं कि “धर्मसुधारवादी” के रूप में पहचाना जाना कुछ लोगों के लिए ठोकर तथा अन्य लोगों के लिए अपमान का कारण है। इसके अतिरिक्त, कलीसिया के ऐतिहासिक, साधारण चिह्नों के अनुसार—परमेश्वर के वचन का खरा प्रचार, परमेश्वर के वचन के अनुसार प्रार्थना, बपतिस्मा तथा प्रभु भोज की कलीसियाई विधि का सही उपयोग, और कलीसियाई अनुशासन का लगातार अभ्यास करना—ऐसी “धर्मसुधारवादी” कलीसियाए प्रायः सच्ची कलीसियाएं ही नहीं होती हैं। आज, कई सामान्य विश्वासी तथा पास्टर हैं जो परम्परागत रीति से धर्मसुधारवादी और प्रोटेस्टेन्ट कलीसियाओं और मतों में हैं, जिन्होंने वर्षों पहले अपनी कलीसियाओं और मतों के साथ धर्मसुधारवादी स्थिति को छोड़ दिया है और अपने अंगीकार को अस्वीकृत किया है।

इस प्रवृत्ति के विपरीत, हमें सबसे अधिक ऐसे पुरुषों की उपदेश-मंच में आवश्यकता है जो धर्मसुधारवादी होने की हिम्मत रखते हैं—ऐसे पुरुष जो उस विश्वास से नहीं लजाते हैं जो एक ही बार पवित्र लोगों को सौंपा गया था परन्तु उसके लिए यत्नपूर्वक संघर्ष करने के लिए तैयार रहते हैं, केवल कहने के द्वारा नहीं किन्तु अपने पूरे जीवन से तथा अपनी सारी सामर्थ्य से। हमें उपदेश-मंच पर ऐसे पुरुषों की आवश्यकता है जो साहसी हैं तथा सत्य का प्रचार करने में अटल हैं तथा साथ ही साथ अनुग्रहकारी तथा दयालु हैं। हमें ऐसे पुरुषों की आवश्यकता है जो समय और असमय धर्मसुधारवादी ईश्वरविज्ञान के सरल सत्य का प्रचार करेंगे, अपनी उंगलियों को चेहरे की ओर संकेत करते हुए नहीं, वरन कंधे पर हाथ के साथ। हमें ऐसे पुरुषों की आवश्यकता है जो धर्मसुधारवादी अंगीकार से प्रेम करते हैं क्योंकि वे हमारे प्रभु परमेश्वर तथा उसके अपरिवर्तनीय, प्रेरित तथा आधिकारिक वचन से प्रेम करते हैं। जब हमारे उपदेश-मंच पर ऐसे पुरुष होते हैं जो धर्मसुधारवादी होने का साहस रखते हैं, तब ही कलीसिया में ऐसे लोग होगें जो धर्मसुधारवादी ईश्वरविज्ञान को और उनके जीवन पर उसके प्रभाव को समझेंगे, ताकि हम परमेश्वर को अपने सारे हृदय, सारी बुद्धि, और सारी शक्ति से प्रेम कर सकें और अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम कर सकें। इसी ईश्वरविज्ञान ने सोलहवीं शताब्दी में कलीसिया को सुधारा, और यही एकमात्र ईश्वरविज्ञान इक्कीसवीं शताब्दी में धर्मसुधार तथा बड़ा बदलाव लेकर आएगा। क्योंकि वर्तमान में कट्टर प्रगतिवादी ईश्वरविज्ञानीय उदारवादी (radical progressive theological liberalism) समय में, सबसे अधिकर कट्टर हम शास्त्रसम्मत हो सकते हैं हमारे  धर्मसुधारवादी अंगीकार के अनुसार, किन्तु अहंकार के साथ नहीं वरन् कलीसिया के तथा खोए हुए लोगों के लिए साहस और करुणा के साथ, सब कुछ परमेश्वर की महिमा के लिए, और केवल उसकी महिमा के लिए।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

बर्क पार्सन्स
बर्क पार्सन्स
डॉ. बर्क पार्सन्स टेबलटॉक पत्रिका के सम्पादक हैं और सैनफोर्ड फ्ला. में सेंट ऐंड्रूज़ चैपल के वरिष्ठ पास्टर के रूप में सेवा करते हैं। वे अश्योर्ड बाई गॉड : लिविंग इन द फुलनेस ऑफ गॉड्स ग्रेस के सम्पादक हैं। वे ट्विटर पर हैं @BurkParsons.