संघीय प्रमुखतावाद - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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संघीय प्रमुखतावाद

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का दूसरा अध्याय है: ख्रीष्ट वरन क्रूस पर चढ़ाए गए ख्रीष्ट

प्रेरित पौलुस यह नहीं मानता था कि मनुष्य मूल रूप से अच्छे लोग हैं जो बुरे कार्य करते हैं। रोमियों के लिए उसकी पत्री के आरम्भिक अध्याय इस मुख्य बात के प्रति समर्पित हैं कि, यीशु ख्रीष्ट को छोड़कर, प्रत्येक मनुष्य स्वभाव से अधर्मी, दोषी और मृत्यु के योग्य है। पौलुस निष्कर्ष निकालता है  “दोनों यहूदी और यूनानी सब के सब पाप के वश में हैं” (रोमियों 3:9)।

मानवता का यह धूमिल और निर्दयी चित्र कम से कम दो प्रश्न उठाता है: ऐसा क्यों है कि हम विश्वव्यापी मानव भ्रष्टता के लिए कोई अपवाद नहीं देखते हैं? क्या उन पापियों के लिए कोई आशा है जो परमेश्वर की धार्मिक दण्ड की आज्ञा के अधीन खड़े हैं और जो स्वयं को ईश्वरीय न्याय से निकालने के लिए असहाय हैं?

रोमियों की पत्री में पौलुस इन दोनों प्रश्नों का उत्तर अनपेक्षित रीति से देता है। पापियों के रूप में हमारी दुर्दशा का पता अन्ततः आदम से लगाया जा सकता है। पापियों के रूप में हमारी एकमात्र आशा दूसरे आदम, यीशु ख्रीष्ट में है। रोमियों 5:12-21, प्रेरित पौलुस हमें यह देखने में सहायता करता है कि कैसे इन दोनों व्यक्ति आदम और यीशु का कार्य आज मनुष्य जाति को प्रभावित करता है। 

रोमियों 5:14 में, पौलुस कहता है कि आदम “उसका प्रतीक था जो आने वाला था,” अर्थात यीशु ख्रीष्ट। यीशु के जैसा, आदम एक सच्चा, ऐतिहासिक मनुष्य था। जबकि यीशु केवल एक मनुष्य ही नहीं है, वह एक सच्चा मनुष्य है। पौलुस यहाँ पर आदम और यीशु के बीच एक समानता की पुष्टि करता है। 1 कुरिन्थियों में पौलुस ऐसी भाषा प्रस्तुत करता है जो हमें उनके सम्बन्ध को अच्छी रीति से समझने में सहायता करता है। यदि आदम “पहला मनुष्य” है तो यीशु “अन्तिम आदम” है (1 कुरिन्थियों 15:45) आदम “पहला मनुष्य” है; यीशु, “दूसरा मनुष्य” है (पद 47)। आदम और यीशु प्रतिनिधि पुरुष हैं। पहले मनुष्य और अन्तिम आदम के बीच कोई दूसरा नहीं है। और दूसरे मनुष्य, यीशु के बाद कोई और नहीं है। पौलुस हमें बताता है, कि संसार के प्रत्येक स्थान और प्रत्येक समय में प्रत्येक व्यक्ति का प्रतिनिधित्व या तो आदम या तो यीशु द्वारा की जाती है (देखें पद 47-48)। इस सम्बन्ध के सन्दर्भ में है प्रतिनिधि ने जो किया है वह उसका हो जाता है जिसका प्रतिनिधित्व हुआ है।

रोमियों 5 में, पौलुस इन प्रतिनिधित्व करने वाले सम्बन्धों को सूक्ष्म रीति से व्याख्या करता है। प्रेरित चाहता है कि हम देखें कि कैसे आदम के “एक अपराध” ने उन सभी को प्रभावित किया जो आदम में हैं। वह ऐसा विश्वासियों (जो “ख्रीष्ट में” में है) को यह देखने में सहायता करने के लिए करता है कि ख्रीष्ट की आज्ञाकारिता और मृत्यु उन्हें कैसे प्रभावित करते हैं।

रोमियों 5:12-21 में पौलुस द्वारा उपयोग किए जाने वाले कुछ सबसे महत्वपूर्ण शब्द न्यायालय से प्राप्त होते हैं। एक ओर वह “दण्ड” है जो उनके लिए जो आदम में हैं, और दूसरी ओर “धर्मी ठहराया जाना” है जो उनका है जो ख्रीष्ट में हैं (पद 16,18)। 19 पद में  जो शब्द “ठहराया जाना” के रूप में प्रायः अनुवाद किया गया है (“जैसे एक मनुष्य के आज्ञा-उल्लघंन से अनेक पापी ठहराए गए , वैसे ही एक मनुष्य की आज्ञाकारिता से अनेक मनुष्य धर्मी ठहराए जाएंगे ”) उसका अधिक सटीक अनुवाद “नियुक्त” किया गया है। इस पद में पौलुस की बात न यह है कि आदम का पाप हमें व्यक्तिगत रीति से पापी लोगों में परिवर्तित करता है, न ही कि यीशु की आज्ञाकारिता हमें व्यक्तिगत रीति से धर्मी लोगों में परिवर्तित करती है। उसकी बात यह है कि, आदम की अनाज्ञाकारिता के प्रकाश में, जिन लोगों का आदम प्रतिनिधित्व करता है, वे एक नई वैधानिक श्रेणी (पापी) से सम्बन्धित हैं। इसी प्रकार, यीशु की आज्ञाकारिता के कारण उसके लोगों को एक नई वैधानिक श्रेणी (धर्मी) में प्रवेश दिया गया है।

तकनीकी ईश्वरविज्ञानीय शब्द जो इस आदान- प्रदान का वर्णन करता है जिसमें प्रतिनिधि और प्रतिनिधित्व का प्राप्तकर्ता हैं, अभ्यारोपण  (imputation) है। आदम का पाप उन सभी लोगों पर अभ्यारोपित किया (लिखा, जोड़ा) जाता है जिनका वह प्रतिनिधित्व करता है। इस आदान- प्रदान के परिणामस्वरूप,वे सभी जो “आदम में” हैं, दण्ड में प्रवेश करते हैं। अर्थात, वे ईश्वरीय न्याय के लिए उत्तरदायी हैं आदम के एक पाप के कारण जो उन पर अभ्यारोपित किया गया है। दूसरी ओर, ख्रीष्ट की धार्मिकता उन सभी को दे दी जाती है जिनका वह प्रतिनिधित्व करता है। इस आदान-प्रदान के परिणामस्वरूप, वे सब जो “ख्रीष्ट में” हैं धर्मी ठहरा दिए जाते हैं। परमेश्वर उन्हें धर्मी मानता है, इसलिए नहीं क्योंकि उन्होंने कुछ कार्य किया है, कर रहे हैं, या कभी करेंगे। परमेश्वर पापियों को धर्मी ठहराता है केवल ख्रीष्ट के सिद्ध आज्ञाकारिता और पूर्ण सन्तुष्टि के आधार पर, जिसे परमेश्वर उन पर अभ्यारोपित करता है, और जो वे केवल विश्वास के द्वारा प्राप्त करते हैं।

रोमियों 5:12-21 के दो अभ्यारोपण उन दो प्रश्नों के उत्तर प्रदान करते हैं जिन्हें हमने आरम्भ में उठाया था। इसका कारण कि “कोई धर्मी नहीं, एक भी नहीं” (रोमियों 3:10) इस तथ्य से उत्पन्न हुआ है कि सभी मानव जाति, दूसरे आदम को छोड़कर, स्वभाव से ही आदम में दोषी हैं। विश्वव्यापी दोष के साथ-साथ, पौलुस हमें दिखाता है, कि विश्वव्यापी भृष्टता भी है। यह आदम के पहले पाप को मनुष्यों पर अभ्यारोपण के प्रकाश में है कि ये दोषी मनुष्य, गर्भधारण के समय से ही, अपने माता-पिता से पतित स्वभाव को उत्तराधिकार में प्राप्त करते हैं।

इन कारणों से, “आदम में” पाए जाने वाले लोगों के लिए कोई आशा या सहायता उपलब्ध नहीं है। परन्तु पापियों के लिए आशा और सहायता उपलब्ध है। वे केवल दूसरे और अन्तिम आदम, यीशु ख्रीष्ट में पाए जाते हैं। केवल ख्रीष्ट में विश्वास के द्वारा, पापी ख्रीष्ट की धार्मिकता को प्राप्त करता है। केवल इस धार्मिकता के आधार पर, पापी धर्मी ठहराए जाता है। उसके पाप क्षमा कर दिए हैं और वह परमेश्वर के न्यायालय में धर्मी गिना गया है। ख्रीष्ट के साथ एक होकर और विश्वास के द्वारा उसमें धर्मी ठहराए जाकर, विश्वासी पवित्र आत्मा के सामर्थ्य में ख्रीष्ट के स्वरूप में परिवर्तित होता है।

रोमियों 5:12-21 में पौलुस की शिक्षा के साथ एक कठिनाई जिसे लोगों ने प्रायः व्यक्त किया है इस आपत्ति में सारांशित किया जा सकता है, “यह न्यायसंगत नहीं है!”, बहुत लोग पूछते हैं: “क्या वास्तव में यह न्यायसंगत है कि किसी और के किए हुए कार्य के लिए परमेश्वर मुझे दण्ड दे? क्योंकि, किसी ने मुझ से कभी नहीं पूछा कि क्या मैं आदम को प्रतिनिधि के रूप में चाहता हूँ। एक न्यायी और भला परमेश्वर इन नियमों के आधार पर मुझे कैसे दोषी ठहरा सकता है?”

यह आपत्ति गम्भीर है और सावधानीपूर्वक विचार करने के योग्य है। वास्तव में, आदम और मनुष्यों के बीच परमेश्वर ने जो प्रतिनिधि सम्बन्ध स्थापित किया है, यह परमेश्वर की भलाई, सम्प्रभुता और न्याय को प्रकट करता है। अदन की वाटिका में आदम के साथ उसके व्यवहार से परमेश्वर की भलाई स्पष्ट होती है, व्यवहार जो प्रत्येक व्यक्ति से सम्बन्धित है जिसका आदम ने प्रतिनिधित्व किया। परमेश्वर ने आदम को एक धर्मी मनुष्य बनाया। आदम का विचार, चुनाव, भावना और आचरण सब पाप रहित थे। परमेश्वर ने आदम को स्वर्गलोक जैसी स्थिति में रखा और उसने उसे उसके उपहारों का आनन्द लेने की अनुमति दी। परमेश्वर ने आदम के साथ अनन्त जीवन की पुष्टि की प्रतिज्ञा को बढ़ाया और उससे केवल यह मांग की कि एक समय के लिए वाटिका में से एक पेड़ से खाने से रुके। हमारे प्रतिनिधि आदम के लिए इससे अधिक लाभप्रद परिस्थितियों की कल्पना करना कठिन है। परमेश्वर ने आदम के साथ जो वाचा बांधी उसकी प्रत्येक बात परमेश्वर की दया को दर्शाता है। पापियों के रूप में क्या हमारे पास, जो एक पापमय संसार में पापियों के बीच रहते हैं, अदन की वाटिका में हमारे प्रतिनिधि आदम से श्रेष्ट सम्भावनाएं हो सकती थी? 

आदम और उसके साधारण वंशजों के बीच परमेश्वर ने जो प्रतिनिधित्व का सम्बन्ध नियुक्त किया, परमेश्वर की सम्प्रभुता और न्याय की भी साक्षी देता है। आदम और हम दोनों ही परमेश्वर के हाथों की सृष्टि हैं। परमेश्वर के पास यह अधिकार है कि वह हमारे जीवन को जिस प्रकार वह चाहे चला सके, और हमारे पास उससे लेखा लेने का कोई अधिकार नहीं है (देखें रोमियों 9:19-20)। ऐसा कार्य करने के द्वारा, वह हमारे साथ कोई अन्याय नहीं करता है। इसके विपरीत, वह अपने न्यायपूर्ण चरित्र के अनुसार कार्य करता है।

हमें कम से कम दो अतिरिक्त विचारों और उससे सम्बन्धित प्रतिफलों को स्मरण रखना चाहिए जब हम उस सम्बन्ध के बारे में विचार करते हैं जिसे परमेश्वर ने आदम और मनुष्यों के बीच स्थापित किया था। पहला, परमेश्वर ने स्वर्गदूतों के बीच ऐसा सम्बन्ध स्थापित नहीं किया। प्रत्येक स्वर्गदूत व्यक्तिगत रूप से परमेश्वर के सामने खड़ा होता है। कुछ स्वर्गदूत परमेश्वर की इच्छा के प्रति आज्ञाकारी बने रहे हैं, जबकि अन्य स्वर्गदूत पाप में गिरे हैं। परमेश्वर ने इन पतित स्वर्गदूतों के लिए कोई मध्यस्थ प्रदान नहीं किया है, और उन पर उद्धार के लिए दया नहीं करता है। “अपने निज निवास को छोड़े” जाकर वे “अनन्त बन्धनों में जकड़ कर उस भीषण दिन के न्याय के लिए अन्धकार में रखा है” (यहूदा 6)। 

दूसरा, उसी प्रकार के प्रतिनिधि सम्बन्ध के द्वारा, जिसमें हम आदम में, पाप में गिरे, कि परमेश्वर ने गिरे हुए, अयोग्य पापियों को छुड़ाया है। जब पापी का केवल विश्वास के द्वारा यीशु ख्रीष्ट से मेल हो जाता है, वह दण्ड से धर्मी ठहराए जाने की ओर जाता है, और वह स्वतन्त्र रूप से यीशु ख्रीष्ट की धार्मिकता को प्राप्त करता है। पापी धार्मिकता के इस दान को इसलिए नहीं प्राप्त करता क्योंकि उसने कुछ किया है, कर रहा है, या कभी करेगा, वरन् परमेश्वर उस धार्मिकता को उस पापी पर अनुग्रहपूर्वक दे देता है, जो इसे विश्वास से ग्रहण करता है। और वह विश्वास भी परमेश्वर की ओर से दान है (इफिसियों 2:8, फिलिप्पियों 1:29)।

इस कारण से, हम ख्रीष्टीय उस उद्धार की ओर देखते हैं जिसे हमने ख्रीष्ट में प्राप्त किया है और कहते हैं “यह न्यायसंगत नहीं है!” हम इसे क्रोध और अवज्ञा से बंधी हुई मुट्ठियों के साथ नहीं कहते हैं परन्तु स्तुति और धन्यवाद के खुले हाथों के साथ। सुसमाचार का शुभ समाचार यह है कि परमेश्वर ने हमें वह नहीं दिया जिसके हम योग्य हैं। हम अनन्तकाल के लिए नरक-दण्ड के योग्य हैं। परन्तु क्रूस पर परमेश्वर ने हमारे पापों को यीशु पर डाल दिया, और जब हमने विश्वास किया तो उसने अपने पुत्र की धार्मिकता को हमें दे दिया (2 कुरिन्थियों 5:21)। परमेश्वर ने हमें हमारा देय नहीं दिया है। उसने हमें ख्रीष्ट का देय दिया है। उसने हमें श्राप के स्थान पर आशीष दी, दोषी ठहराए जाने के स्थान पर धर्मी ठहराया, मृत्यु के स्थान पर जीवन दिया, और निराशा के स्थान पर आशा दी है। और ऐसा करने में, उसने अपने पुत्र पर विश्वास करने वालों के लिए स्वयं को धर्मी और धर्मी ठहराने वाले के रूप प्रदर्शित किया है (देखें रोमियों 3:26)।

न्याय के दिन, अपश्चातापी पापी स्वयं को छोड़ किसी और पर दोष लगाने में सक्षम नहीं होंगे (रोमियों 2:1-11)। वे न्यायपूर्वक दण्डित किए जाएंगे और दोषी ठहराए जाएंगे, और उनका “मुंह बन्द किया जाएगा” (रोमियों 3:19)। उसी दिन, हम जो छुड़ा लिए गए हैं, स्वयं पर गर्व नहीं करेंगे। हम सब प्रशंसा और महिमा को अपने उद्धारकर्ता, दूसरे आदम, प्रभु यीशु ख्रीष्ट को देंगे।

वह दिन अभी नहीं आया है। तब तक, ख्रीष्टीय लोग मन, और शरीर, शब्द और कार्य में ख्रीष्ट की स्तुति करने का कार्य आरम्भ कर सकते हैं। और हम दूसरों को उस परमेश्वर की ओर संकेत कर सकते हैं, जो दया का धनी और प्रेम से भरपूर होने के कारण, मृतक पापियों को ख्रीष्ट के साथ जीवित करता है (इफिसियों 2:4-5)।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
गाय प्रेन्टिस वाटर्स
गाय प्रेन्टिस वाटर्स
डॉ. गाय प्रेन्टिस वाटर्स जैक्सन मिसिसिपी के रिफॉर्म्ड थियोलॉजिकल सेमिनरी में जेम्स बेय्र्ड जूनियर प्रोफेसर ऑफ न्यू टेस्टामेन्ट हैं, और प्रेस्बिटेरियन चर्च इन अमेरिका में शिक्षक प्राचीन हैं। वह हाउ जीज़स रन्ज़ द चर्च और द लाइफ एंड थियोलॉजी ऑफ पौल के लेखक हैं।