7 अक्टूबर 2025
हम प्रभु-भोज की विधि से बहुत अधिक लाभान्वित होंगे यदि यह विचार हमारे मस्तिष्क पर अंकित हो जाए: कि जब भी कोई भाई हमारे द्वारा आहत, घृणित, तिरस्कृत, अपमानित, या किसी रीति से दुःखी किया जाता है, हम अपने द्वारा किए गए कार्यों से ख्रीष्ट को चोट पहुँचाते हैं, तिरस्कार करते हैं और उसका दुरुपयोग करते हैं; कि जब भी हम अपने भाइयों से असहमत होते हैं, तो हम ख्रीष्ट से असहमत होते हैं; कि हम भाइयों में होकर ख्रीष्ट से बिना प्रेम किए ख्रीष्ट से प्रेम नहीं कर सकते; कि हमें अपने भाइयों के शरीर की उतनी ही देखभाल करनी चाहिए जितनी हम अपनी करते हैं; क्योंकि वे हमारे शरीर के अंग हैं; और कि जैसे हमारे शरीर का कोई भी अंग पीड़ा की ऐसी भावना से प्रभावित नहीं होता जो शेष सभी में न फैले, वैसे ही हमें अपने भाई को किसी भी बुराई से प्रभावित नहीं होने देना चाहिए, बिना उसके प्रति करुणा के।
